Sunday, June 6, 2010

'टाईअप-ब्रेकअपÓ का खेल

मैं पार्क में पहुंचकर सीमेंट की बेंच पर बैठा ही था कि बगल में खाली स्थान पर एक चौदह वर्षीय लड़की आकर बैठ गयी। उसकी आंखें नम थीं। लगा कि वह कुछ देर पहले रो रही थी। मैं पार्क में जमा जोड़ों की अठखेलियां निहारने में मशगूल हो गया। पार्क की खूबसूरती बढ़ाने के लिए जगह-जगह झाडिय़ों को काट-छांटकर विभिन्न पशुओं की आकृतियां प्रदान की गयी थी। पार्क से कुछ दूर बैठा एक प्रेमी युगल आपस में चुहलबाजियां कर रहा था। तभी मेरा ध्यान उस लड़की की ओर गया। वह सुबक रही थी। मुझे लगा कि एक अच्छे नागरिक होने के नाते उससे उसका दुख-दर्द पता करके यदि संभव हो, तो दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। मैंने उससे सहानुभूतिपूर्वक पूछा, 'क्या हुआ...तुम रो क्यों रही हो? कोई परेशानी हो, तो बताओ। मैं दूर करने का प्रयास करूंगा।Óउसने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, 'अंकल...आप मेरी परेशानी नहीं दूर कर सकते।Óमैंने भी हाकिमताई बनने का पूरा फैसला कर लिया था। सो मामले की पूंछ पकडऩे की कोशिश में लगा रहा, 'फिर तुम रो क्यों रही हो?Ó
'दरअसल...आज ही मेरा अपने ब्वायफ्रेेंड से ब्रेकअप हो हुआ है। उसकी याद आ रही थी, तो आंसू नहीं रोक पायी।Ó कहकर लड़की सामने बैठे प्रेमी युगल को निहारने लगी।मैं चौंक उठा। उसे एक बार गौर से निहारा। सोचा, बाप रे बाप...छंटाक भर की इस छोकरी को मुझ अपरिचित से अपने ब्वायफ्रेेंड के बारे में चर्चा करने में झिझक नहीं हुई। मुझे अपना जमाना याद आया, जब आशिक दीदार-ए-यार के लिए घंटों माशूका के घर के चक्कर लगाया करते थे। 'जान-ए-जिगरÓ की एक झलक देखने को आशिक जेठ की दोपहरी में घंटों छत पर बैठे टकटकी लगाये रहते थे और दूर से ही दीदार हो जाने पर इस तरह खुश होते थे मानो कारू का खजाना मिल गया हो। दीदार को घंटों छत पर खड़े रहने से आंखें बटन हो जाती थीं। माशूका के भाई, बहन या मां-बाप, अड़ोसी-पड़ोसी को तो छोडि़ए, अपने ही भाई-बहन या अड़ोसी-पड़ोसी के देख लेने पर पिटने का खतरा था। कई बार तो 'वन वे ट्रैफिकÓ होने पर माशूका के हाथों पिटने की नौबत तक आ जाती थी, लेकिन मजनूं इसे भी लैला की एक अदा मानकर जी-जान न्यौछावर करने को तैयार रहते थे।
मामले की संवेदनशीलता जानते-बूझते हुए भी मैंने टांग अड़ा दी। हालांकि कई बार तो ऐसे मामले में टांग के शहीद होने का खतरा ज्यादा रहता है, 'तुम्हें इस उम्र में इन फालतू बातों पर ध्यान देने की बजाय पढ़ाई करनी चाहिए। यह कोई उम्र है इश्क फरमाने की।Óलड़की मेरी बेवकूफी पर हंस पड़ी। बोली, 'अंकल...यह गाना तो आपके ही जमाने में गया था...यार बिना चैन कहां रे...इश्क की कोई उम्र नहीं होती...जब हो जाये, समझो...वही उम्र सही है।Ó
'तुम्हारा उससे यह निगोड़ा इश्क कब से चल रहा था?Ó मैंने दरियाफ्त करने की नीयत से पूछा।
लड़की मानो अतीत में खो गयी। उसने कहा, 'यह मेरा सातवां ब्वायफ्रेेंड था। चार महीने पहले वह मेरा ब्वायफ्रेेंड बना था। उससे पहले नीलेश सपना का ब्वायफ्रेेंड था। सपना मेरे से दो क्लास आगे यानी कि दसवीं में पढ़ती है। सपना का नीलेश छठा ब्वायफ्रेेंड था और सपना नीलेश की नौवीं गर्लफ्रेेंड थी। अंकल...आप ऊंट की आकृति वाली झाड़ी के पास स्थित बेंच पर बैठे उन दोनों लड़के-लड़की को देख रहे हैं...वह लड़का मेरा एक्स ब्वायफ्रेेंड नीलेश है। उसके साथ मनोरमा है...जो मेरी सहेली की बहन है। कल ही मनोरमा और नीलेश का 'टाईअपÓ हुआ है।Ó इतना कहकर लड़की चुप हो गयी। उसकी आंखें नम हो गयीं।
'और नीलेश का नंबर कितना था?Ó मेरी उत्सुकता ने यह सवाल करने को मजबूर कर दिया। हालांकि इस मामले में मैं एहसास-ए-कमतरी (माइनॉरिटी कांप्लेक्स) के बोझ से दबा जा रहा था। मुझे अपने जवानी के वे दिन याद आ गये, जब छबीली से आंखें चार होने के बावजूद उसके सामने इजहार-ए-इश्क की हिम्मत नहींजुटा पाया। नतीजतन...घर परिवारवालों ने जिसके पल्ले बांध दिया, अब तक बिना चूं-चपड़ किये उसी के इर्द-गिर्द कोल्हू के बैल की तरह आंखों पर पट्टी बांधे घूम रहा हूं। रोज सुबह उठकर बेगम अपनी किस्मत को कोसती हैं और मैं अपनी गल्ती पर पछताता हूं कि काश! मैंने थोड़ी सी हिम्मत दिखायी होती...? ऐसे में लड़कपन से ही आंखें लड़ाने वाली इस बित्ता भर की छोकरी के हिम्मत की दाद दिये बिना मैं नहीं रह सका।
वह कुछ देर सोचने के बाद बोली, 'नीलेश शायद सातवां था...अगर प्रदीप को भी ब्वायफ्रेेंड में गिना जाये, तो आठवां...प्रदीप से मेरा अफेयर सिर्फ एक सप्ताह चला था। उसके बाद वह शालिनी के चक्कर में फंस गया और मेरी उसकी बात खत्म हो गयी थी।Óमैंने फिर सवालों का गोला दागा, 'तुम्हारा पहला अफेयर...मेरा मतलब है कि तुम्हारा पहला टाईअप कब और किससे हुआ था?Ó
'मैं पांचवींक्लास में मेरा पहला अफेयर क्रिस्टीना के कजन डेविड से हुआ था। क्रिस्टीना मेरी क्लासफेलो थी। अब वह हैदराबाद में पढ़ती है। छह महीने तक यह अफेयर चला था। इसके बाद परमजीत अच्छा लगने लगा। परमजीत ने मेरे लिए किरणजोत को छोड़ दिया।Ó'क्या तुम्हें नहीं लगता कि इस उम्र में तुम्हें यह सब कुछ नहीं करना चाहिए? अभी तुम्हारी पढऩे-लिखने की उम्र है, मन लगाकर पढ़ाई करो...अपना भविष्य सुधारो। पढ़-लिखकर कुछ बन जाओ...तब यह सब करना।Ó मैंने अपना धर्म निभाया और उसे उपदेश की घुट्टी पिलाई।
'अंकल...क्या आपको नहीं लगता कि कैरियर बनते-बनते मैं बूढ़ी हो जाऊंगी। 28-29 साल की उम्र कैरियर बनाने में निकल जायेंगे। हो सकता है कि उससे पहले ही मम्मी-डैडी किसी बेवकूफ के साथ बांध दें, तब अफेयर करने का मौका कहां मिलेगा। न...बाबा..न...मैं यह रिस्क नहीं ले सकती। जितने दिन मौज-मस्ती की जा सकती है, उतने दिन खूब जमकर करूंगी। उसके बाद तो कोल्हू का बैल बनना ही है।Ó लड़की काफी समझदार हो गयी थी।
'तुम्हारे मम्मी-डैडी को तुम्हारी इस 'करतूतÓ का पता है?Ó मैं सवाल पूछे बिना नहीं रह पाया।
'हां...नीलेश के बारे में मम्मी को पता है। उन्होंने डांट भी लगायी थी। लेकिन जब मेरी क्लास की सारी सहेलियां अपने ब्वायफ्रेेंड के बारे में चर्चा करती हैं, तो मुझसे रहा नहीं जाता और किसी न किसी से अफेयर कर बैठती हूं। आपको पता नहीं होगा, मेरे मम्मी-डैडी ने लव मैरिज की थी। मेरे डैडी मम्मी के आठवें ब्वायफ्रेेंड थे और मेरे डैडी की ग्यारहवींप्रेमिका मम्मी थीं। लेकिन उनकी लव मैरिज सिर्फ तीन साल चली, बाद में दोनों ने डाइवोर्स ले लिया।Ó लड़की के चेहरे पर न चाहते हुए भी दर्द उभर आया। लेकिन यह दर्द ज्यादा देर तक नहीं टिक सका।
मैंने पूछा, 'अब आगे क्या इरादा है?Ó
लड़की ने चुहुल भरे अंदाज में कहा, 'सोचती हूं...अब आपको अपना ब्वायफ्रेेंड बना लूं। आप दूसरों के मुकाबले कहीं अच्छे साबित हो सकते हैं।Ó
उसकी बात सुनते ही मुझे झटका लगा। बेगम का रौद्र रूप याद आया और मैं झटके से उठ खड़ा हुआ, 'मुझे काफी देर हो गयी है बैठे-बैठे। चलता हूं घर पर बेगम इंतजार कर रही होंगी।Ó इतना सुनते ही लड़की खिलखिलाकर हंस पड़ी। मैंने जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाये और पार्क से बाहर हो गया। पार्क के बाहर निकलते-निकलते पीछे मुड़कर देखा। लड़की काफी देर से पीछे बैठे एक लड़के का हाथ पकड़े उसकी बाइक की ओर बढ़ रही थी। उसके चेहरे पर 'ब्रेकअपÓ का दर्द नहीं, बल्कि नए 'टाईअपÓ की खुशी थी।

कंपनियों का मुनाफा और हमारा विनाश


मुनाफा कमाने की होड़ में लगी राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मुनाफा कमाने की होड़ के चलते हमारे देश की ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की जैव विविधता खतरे में है। कई वनस्पतियां हमारे बीच से विलुप्त हो चुकी हैं। चिडिय़ा गौरेया, फाख्ता, गिद्ध, कौवे, गंगा में पायी जाने वाली डाल्फिन सहित कई प्रजाति की मछलियां, मेंढक, सांप आदि कल तक हम सबके जीवन का हिस्सा थे, लेकिन आज वे खोजने पर भी नहीं मिलते। नील गाय, मोर, गीदड़, सियार, रोही बिल्ली, पाटा गोह, उडऩे वाली गिलहरी, खनखजूरा, विभिन्न प्रकार के मेंढक अब विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसका कारण जैव विविधता वाले क्षेत्र यानी प्रकृति में पाये जाने वाले सूक्ष्मतम और विशालतम जीव जंतुओं के जीवन चक्र क्षेत्र में लगातार और अनियंत्रित रूप से बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप है। नदियों और समुद्रों में पाये जाने वाले जीव जंतु बड़े पैमाने पर शिकार और अनुकूल परिस्थितियां न रहने के कारण विनष्ट होते गये। खेती-बाड़ी में उपयोग होने वाले रासायनिक उवर्रकों के चलते प्रकृति के मित्र समझे जाने वाले कीट-पतंग या तो नष्ट हो गये या फिर उनकी प्रजननक्षमता कम हो गयी। नतीजा यह हुआ कि वे धीरे-धीरे हमारे बीच से विलुप्त हो गये, जब तक हमें पता लगता, मामला काफी गंभीर हो चुका था। मोबाइल टावरों, हवाई जहाजों से निकलने वाली तरंगों ने हमारी जैव विविधता को कम नुकसान नहीं पहुंचाया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पशु-पक्षियों के संरक्षण को लेकर सक्रिय संस्था आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन कंजरवेशन फार नेचर) की रिपोर्ट चौंकाती ही नहीं, प्रकृति प्रेमियों और पर्यावरणविदें को डराती भी है। आईयूसीएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में पाए जाने वाले जीवों में से एक तिहाई विलुप्त होने के कगार पर हैं। यह खतरा हर दिन बीतने के साथ बढ़ता जा रहा है। रिपोर्ट में किहांसी स्प्रे टोड के बारे में खास तौर पर चर्चा की गयी है जिसके मुताबिक मेंढक की यह प्रजाति इसलिए विलुप्त हो गयी क्योंकि जिस नदी में इनका निवास था, उस नदी के ऊपरी हिस्से पर बांध बना दिया गया। पानी के बहाव में कमी आने से ये मेंढक खत्म हो गये। ठीक ऐसा ही हमारे देश में भी हुआ। गंगा, यमुना, राप्ती और व्यास आदि नदियों और उसके किनारे रहने वाले जीव जंतु पानी कम होने की वजह से या तो नष्ट हो गये या भविष्य में नष्ट हो जायेंगे।
आईयूसीएन के रिपोर्ट के मुताबिक महासागरों की हालात काफी चिंताजनक है। रिपोर्ट से पता चलता है कि समुद्री प्रजातियों में से ज्यादातर जीव-जंतु अधिक मछली पकडऩे, जलवायु परिवर्तन, तटीय विकास और प्रदूषण की वजह से नुकसान का सामना कर रहे हैं. शार्क सहित कई समुद्री प्रजाति के जलीय जीव, छह-सात समुद्री प्रजातियों के कछुए विलुप्त होने के कगार पर हैं। चट्टान मूंगों की 845 प्रजातियों में से 27 प्रतिशत विलुप्त हो चुकी हैं, 20 प्रतिशत विलुप्त के निकट हैं। समुद्री पक्षियों पर खतरा कुछ अधिक है। स्थलीय पक्षियों के 11.8 प्रतिशत की तुलना में 27.5 प्रतिशत समुद्री पक्षियों पर विलुप्त होने के खतरा अधिक है। थार की पाटा गोह हो या फोग का पौधा, गंगा की डाल्फिन हो, हिमालय के ग्लेशियर हों या तंजानिया का का किहांसी स्प्रे मेंढक, सब पर खतरा मंडरा रहा है। भारत में 687 पौधे और इतने ही जीवों पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं।
आईयूसीएन की रेड लिस्ट बताती है कि 47,677 में से कुल 17,291 जीव प्रजातियां कब खत्म हो जायें, कहा नहीं जा सकता है। इसमें 22 प्रतिशत स्तनधारी जीव हैं, 30 प्रतिशत मेंढकों की प्रजातियां हैं, इसमें 70 प्रतिशत पौधे और 35 प्रतिशत सरीसृप जैसे जीव हैं। भारत में ही पौधे और वन्य जीवों की कुल 687 प्रजातियां लुप्त होने वाली हैं। इनमें 96 स्तनपायी, 67 पक्षी, 25 सरीसृप, 64 मछली और 217 पौधों की प्रजातियां हैं।
इन प्रजातियों पर सबसे बड़ा खतरा मुनाफा कमाने की होड़ में लगी देशी और विदेशी कंपनियों से है। जैव विविधता पर सबसे ज्यादा हमला करने वाली कंपनियां अमेरिका, रूस, चीन जैसी विकसित देशों की हैं। यही वजह है कि ये विकसित देश दुनिया भर के विकासशील देशों और उनमें बसे लोगों को आगाह कर रहे हैं कि जैव विविधता और ग्लोबल वार्मिंग के चलते इससे पृथ्वी पर एक भीषण खतरा मंडरा रहा है। बेमौसम बरसात, आंधी-पानी, बर्फबारी, भूकंप और ज्वालामुखी का सक्रिय होना, ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा है। जैव विविधता पर बढ़ते संकट के चलते दुनिया भर में समुद्र, नदियों, पहाड़ों और मैदानों में रहने वाले हजारों जीवों का संकट खतरे में हैं। जीव-जंतुओं की हजारों प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं, हजारों विलुप्त होने के कगार पर हैं। यह बात भी सही है। मजेदार बात तो यह है कि इस बात को चीख वही लोग कह रहे हैं, जो जैव विविधता पर लगातार बढ़ रहे खतरे और ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा दोषी हैं। विकसित देश दुनियाभर में स्थापित अपनी कंपनियों के माध्यम से न तो जैव विविधता के दोहन पर रोक लगाने को और न ही ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारण कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन को कम करने को तैयार हैं। वे विकासशील देशों को प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम करने और कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन घटाने की घुड़की देते रहते हैं।
भारत में सरकार की लापरवाही और लोगों की अनभिज्ञता के चलते जैव विविधता पर खतरा कुछ ज्यादा ही मंडरा रहा है। सरकार के ढुलमुल रवैया का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि भारत के दक्षिण पूर्व में स्थित मन्नार की खाड़ी से करोड़ों रुपये का समुद्री शैवाल निर्यात करने वाली कंपनी पेप्सी राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के दबाव के चलते रायल्टी दे भी तो सिर्फ 38 लाख रुपये। अभी पिछले महीने पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने एक कार्यक्रम में बड़े गर्व से कहा था कि पेप्सी से हुए करार के तहत समुद्री शैवाल के निर्यात के लिए उससे 38 लाख रुपये की रायल्टी हासिल की गयी है। इस राशि को उस स्थानीय समुदाय के बीच वितरित किया जायेगा, जहां से पेप्सी कंपनी समुद्री शैवाल का निर्यात करती है। करोड़ों रुपये का सालाना कारोबार करने वाली कंपनी से सिर्फ 38 लाख रुपये की रायल्टी वसूल लेना वाकई काबिलेतारीफ है। पेप्सी जैसी विभिन्न कंपनियां जिस समुद्री शैवाल का सिंगापुर, मलेशिया और अन्य देशों में निर्यात करती हैं, उस शैवाल को भारत के दक्षिण पूर्व में स्थित मन्नार की खाड़ी से निकाला जाता है। मन्नार की खाड़ी के आसपास रहने वालों के बीच जब यह रायल्टी (38 लाख रुपये) वितरित किये जायेंगे, तो स्थानीय समुदाय के लोगों को कितनी रकम प्राप्त होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इससे इनका कितना भला हो पायेगा, यह भी विचारणीय प्रश्न है।
अब दुनिया के 193 देशों के प्रतिनिधि आगामी अक्टूबर 2010 में जापान के नागोया शहर में जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय संधि करने जा रहे हैं। इससे पहले विभिन्न मुद्दों पर आम सहमति बनाने को जुलाई 2010 में कनाडा के मांट्रियाल में एक बैठक होगी। इन दोनों बैठकों में जो भी फैसले होंगे, उसके आधार पर नई दिल्ली में सन 2012 के अक्टूबर महीने में होने वाली कॉप-11 (कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज) की 11वीं बैठक में जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय संधि होगी जिसका पालन करने को सभी वार्ताकार बाध्य होंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि दिल्ली में होने वाली कॉप-11 की बैठक का नतीजा वही तो नहीं होगा जो अभी कुछ महीने पहले ग्लोबल वार्मिंग को लेकर कोपेनहेगन में होने वाली बैठक का हुआ था। अपने-अपने हितों की सुरक्षा को लेकर अड़े विकसित देशों के अडिय़ल रवैये के चलते कोपेनहेगन में होने वाली यह बैठक सफल नहीं हो पायी थी।

चिरकुट

'नहीं...मैं जो कह रहा हूं। उसे समझो। मुझे कभी 'क्रासÓ करने की कोशिश सपने में भी मत करना।Ó राजेंद्र को विनम्र होते देख दुर्गेश के क्रोध का पारा चढऩे लगा था।
शिवाकांत अपनी सीट पर बैठा यह कौतुक देख सुन रहा था। उसे राजेंद्र से सहानुभूति हो रही थी। अभी कुछ ही देर पहले वह समाचार संपादक तिवारी के सामने लगभग ऐसी ही परिस्थितियों से जूझ रहा था। इस वजह से राजेंद्र के प्रति सहानुभूति मानव स्वभाव के अनुरूप थी। वह अपनी सीट से उठा और दुर्गेश के सामने आ खड़ा हुआ। उसने बिना पूछे सामने पड़ी एक कुर्सी घसीटी और विराजमान हो गया। डा. दुर्गेश ने उसकी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। उसने डा. दुर्गेश से कहा, 'क्या डा. साहब! अब जाने भी दीजिए...कहां आप...? लखनऊ की पत्रकारिता जगत के वटवृक्ष और कहां प्रशिक्षु संवाददाता राजेंद्र...जर्नलिज्म के क्षेत्र में नवांकुर... यह आपको क्या क्रास करेगा।...और फिर जब आपका बड़े-बड़े बाल बांका नहीं कर सके, तो फिर यह बेचारा प्रशिक्षु संवाददाता आपका क्या 'उखाड़Ó लेगा।Ó
शिवाकांत ने मजाक करते हुए कहा। वह राजेंद्र की ओर घूमा, 'जाओ यार! खबरें लिखो। सुप्रतिम आता ही होगा।...खबरें न मिलने पर वह भी 'झांय-झांयÓ करेगा।Ó शिवाकांत ने 'झांय-झांयÓ शब्द पर जोर दिया।
शिवाकांत के बीच में पडऩे से राजेंद्र ने मुक्ति की सांस ली। शिवाकांत की इसी आदत से कुछ वरिष्ठ नाराज रहते थे। जब भी कोई वरिष्ठ अपने किसी कनिष्ठ साथी को 'कसनेÓ की कोशिश करता, वह बीच में पड़कर कनिष्ठ साथी को बचा लेता। इससे वरिष्ठ सहकर्मी आहत हो जाते। उन्हें लगता कि कनिष्ठ के सामने उसे औकात बताने की कोशिश की जा रही है। शिवाकांत का मामले के बीच कूद पडऩा, उन्हें आहत कर जाता। कई बार तो साथियों से झगड़ा होते-होते बचता। उसके दूसरे साथी कभी संकेतों ेसे, तो कभी खुलकर समझाते, लेकिन वह इस मामले में चिकना घड़ा घड़ा साबित होता। कई बार वह मूड ठीक होने पर स्वीकार भी करता कि उसका लोगों के मामले में टांग अड़ाना अनुशासन की दृष्टि से गलत है। लेकिन जैसे ही कोई मामला उसके सामने आता, एक अजीब सी सनक उस पर सवार हो जाती। वह अपनी उस बात को भूल जाता और वरिष्ठ साथियों से पहले की तरह भिड़ जाता। उसके शुभचिंतक समझाते, 'देखो! अपने से कनिष्ठ साथियों के सख्ती से पेश आना, उन्हें थोड़ा बहुत प्रताडि़त करना, उत्पीडऩ नहीं है। यह अनुशासन बनाये रखने को जरूरी है। यह सब तो पत्रकारिता के निजाम का एक हिस्सा है। ऐसा होता आया है, भविष्य में भी इस पर रोक लगने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती। और फिर यह मानवाधिकारों के हनन का भी कोई मामला नहीं है जिसके पीछे तुम लट्ठ लेकर घूमो। तो फिर तुम बेवजह सिरदर्द क्यों मोल लेते हो।Ó
शिवाकांत उखड़ जाता, 'निजाम का हिस्सा नहीं 'येÓ है।Ó वह एक अंग विशेष का नाम लेकर अपना गुस्से का इजहार करता।
दुर्गेश पांडेय ने राजेंद्र को अपनी सीट पर जाने का इशारा किया, तो वह कारागार से छूटे बंदी की तरह भाग निकला। डा. दुर्गेश ने चारों ओर निगाह दौड़ायी और फिर आगे की ओर झुकते हुए मंद स्वर में बोले, 'तुम बड़े मौके पर आये शिवाकांत.... बेवजह अपने कनिष्ठ साथियों को डांटने-डपटने की अपनी आदत तो है नहीं, यह तो तुम जानते ही हो। लेकिन क्या करें, यह सब करना पड़ता है। कभी अपना हित साधने के लिए, तो कभी संपादक, डेस्क इंचार्ज या मालिक के कहने पर। शायद तुम्हें मालूम हो, इन दिनों राजेंद्र से सुप्रतिम अवस्थी किसी बात पर नाराज है। सुबह की मीटिंग में मामूली-सी गलती पर सुप्रतिम एक घंटे तक राजेंद्र को हौंकता रहा। बाद में मुझसे भी कहा कि मैं भी उसे बात-बेबात पर हौंकता रहूं।Ó
शिवाकांत मन ही मन मुस्कुराया। उसने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया। कुछ देर बाद उसने पूछ ही लिया, 'पर गुरु...हौंकने का कोई कारण तो होगा। कोई भला बेवजह किसी को क्यों हौंकेगा?Ó
'कारण...कारण तो बस एक ही है और वह है 'डग्गा।Ó परसों एक टेक्सटाइल मिलवालों की ने एक प्रेस कान्फ्रेेंस बुलाई थी...ताज होटल में। आदित्य सोनकर की गैरमौजूदगी में यह बीट राजेंद्र देखता है। आदित्य उस दिन छुट्टी पर था। सुप्रतिम उस कान्फ्रेेंस में पीयूष को भेजना चाहता था, लेकिन राजेंद्र अड़ गया,'मेरी बीट है...मैं ही जाऊंगा, वरना इस बीट की कोई खबर कवर नहीं करूंगा।Ó मजबूरन सुप्रतिम को राजेंद्र की बात माननी पड़ी। तभी से सुप्रतिम राजेंद्र से खार खाया हुआ है।Ó
'लेकिन इसमें डग्गा कहां से आ गया?Ó
'इसमें डग्गा ही तो आया..Ó दुर्गेश ने मेज पर पड़ी पिन उठाकर दांत खुरचते हुए कहा, 'मिलवालों ने डग्गे में अच्छी क्वालिटी की एक लोई और सूटपीस दिया था। पीयूष कान्फ्रेेंस में जाता, तो फोटो के साथ खबर लगवाने का आश्वासन देकर दो-दो अदद डग्गे ले आता। एक अपने लिए...दूसरा सुप्रतिम के लिए...। लेकिन राजेंद्र यह डग्गा खुद हजम कर गया और डकार भी नहीं ली। आदित्य सोनकर का मामला सुप्रतिम और प्रदीप तिवारी से सेट है। डग्गा मिलने पर वह सुप्रतिम को बता देता है। पंद्रह दिन बाद तीनों मिलकर सारे 'डग्गेÓ आपस में बांट लेते हैं। लेकिन गड़बड़ उसी दिन होती है, जिस दिन यह बीट राजेंद्र के पास होती है। राजेंद्र डग्गे में हिस्सा देने को तैयार नहींहोता। मैंने कई बार संकेतों से समझाया भी कि कौन सी तुम्हारे बाप की कमाई से डग्गा आता है। दे दिया करो उसमें से हिस्सा..लेकिन वह माने तब न! राजेंद्र लालची भी तो बहुत है।Ó