Monday, November 25, 2013

हमें बदलनी है झारखंड की तस्वीर : हेमंत सोरेन

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पहली प्राथमिकता विकास

अपेक्षाओं के ढेर पर बैठे हेमंत सोरेन के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं, लेकिन जिस रफ्तार से वे इससे निपट रहे हैं, वह काबिलेतारीफ है। ऐसे में यही उम्मीद की जा सकती है कि उनके हाथ में जब तक कमान रहेगी, झारखंड प्रगति की राह पर आगे बढ़ता रहेगा...
अशोक मिश्र
‘झारखंड की मीडिया में खराब तस्वीर पेश की जा रही है। झारखंड में उतनी गड़बड़ियां नहीं हैं, जितनी बताई जा रही हैं। पिछले कुछ महीनों से झारखंड में बहुत कुछ अच्छा हुआ है और आगे भी हम बेहतर करने की कोशिश में लगे हुए हैं।’ यह कहना है झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का। दिल्ली में पत्रकारों से अनौपचारिक मुलाकात के दौरान उन्होंने यह बात कही। उन्होंने कहा कि झारखंड की स्थापना के चौदह वर्ष के बाद भी अभी वहां बहुत कुछ किया जाना बाकी
  दिल्ली में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ विचार विमर्श करते हुए ‘हमवतन’ के संपादक आरपी श्रीवास्तव, स्थानीय संपादक अशोक मिश्र और विशेष संवाददाता अनंत अमित।
है। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि वहां कुछ हुआ ही नहीं है। हां, जब भी झारखंड की बात चलती है, तो लोग इसे पिछड़ा और आदिवासी बहुल राज्य बताकर इसकी हैसियत कम आंकने की कोशिश करते हैं, जो सही नहीं है। उन्होंने कहा कि झारखंड में जितने प्राकृतिक संसाधन हैं, उनका अगर सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो झारखंड में रहने वालों की दशा और दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकता है। यहां के जंगल, जमीन और खदानें किसी सोने की खदानों से कम नहीं हैं। बस, इनका उपयोग राज्य और समाज की भलाई के लिए होना चाहिए। आदिवासी समाज के लिए अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। उन्हें उनका हक दिलाने की दिशा में सरकार लगी हुई है। जब तक आदिवासी समाज विकास की मुख्यधारा से नहीं जुड़ता, तब तक विकास का कोई मतलब नहीं है। विकास के साथ-साथ उनकी भाषा, रीति-रिवाज और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण भी जरूरी है। आदिवासी समुदाय को यह नहीं लगना चाहिए कि विकास के नाम पर राज्य सरकार योजनाओं को उन पर थोप रही है। वे विकास की धारा में सहज रूप से शामिल हों, यही हमारी प्राथमिकता है।
अफसोस है कि केंद्र सरकारों ने इन प्राकृतिक संसाधनों के बदले प्रदेश को दिया बहुत कम, जिसका नतीजा यह हुआ कि आजादी के बाद से ही यह विकास की मुख्यधारा में आने से पिछड़ गया। जिन उद्देश्यों और लक्ष्यों को लेकर झारखंड राज्य का गठन किया गया, उस लक्ष्य को हम अभी तक नहीं प्राप्त कर पाए हैं। यह भी सही है कि हमारे सामने चुनौतियां कम नहीं हैं, सीमित समय और सीमित संसाधनों में हमें काफी बड़ा लक्ष्य हासिल करना है। हम इस दिशा में कोशिश भी कर रहे हैं। हमारी सरकार इसके कारणों की पहचान के साथ-साथ किसी प्रकार के विवाद से दूर रहकर आगे बढ़कर लक्ष्य हासिल करने में विश्वास करती है।
पिछले दिनों भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की पटना रैली के दौरान हुए विस्फोट के आरोपियों के झारखंड से तार जुड़ने के मामले में उन्होंने कहा कि ये बातें बार-बार उठाकर हमारी सरकार की छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है। आज आंतकवाद, माओवाद और नक्सलवाद से प्रभावित कई राज्य हैं। आतंकी घटनााओं में शामिल समाज विरोधी तत्व इन राज्यों में भी पकड़े जा रहे हैं, लेकिन बार-बार झारखंड को ही क्यों हाईलाइट किया जा रहा है। हमारी सरकार काफी शिद्दत से नक्सलियों और आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। जो भी राज्य के विकास में अपनी भूमिका तलाशना चाहता है, हम उसका खुले दिल से स्वागत करते हैं।
बातचीत के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि चार महीने ही हमारी सरकार का गठन हुए हुआ है। इस दौरान हमने कई ऐसे कार्य किए हैं जिनकी चर्चा की जानी चाहिए, लेकिन होती नहीं है। हमारी सरकार ने पत्रकारों के लिए पांच लाख रुपये की बीमा योजना और पत्रकार कल्याण ट्रस्ट स्थापित करने की योजना साकार रूप दिया है। हमने यह महसूस किया कि पत्रकार इसी समाज का हिस्सा है और उसकी भी अपनी कुछ समस्याएं हैं। यह समुदाय समाज के सभी लोगों के हितों का ध्यान रखते हुए अपने कर्तव्य में लगा रहता है, लेकिन किसी भी सरकार ने उसकी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया। गैरमान्यता प्राप्त पत्रकार के आस्कमिक निधन या विकलांगता पर उसके परिवार को कितनी तकलीफ होती है, इसे हमारी सरकार ने महूसस किया। हमने इस दिशा में आगे बढ़कर कार्य किया और हमें सफलता भी मिली। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी भावी योजनाओं पर चर्चा करते हुए कहा कि उनकी सबसे पहली प्राथमिकता राज्य के विकास के साथ-साथ भ्रष्टाचार मुक्त माहौल का निर्माण करना है। भ्रष्टाचार की शिकायत मिलते ही हमने अधिकारियों को सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। आम जनता को बेहतर प्रशासन मिले, इसके लिए हम हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इसमें हमें काफी हद तक सफलता भी मिली है। हमारी सरकार बेरोजगार युवकों को रोजगार मुहैया कराने की दिशा में भी बड़ी जोर-शोर से लगी हुई है। झारखंड राज्य के गठन के लिए चलने वाले आंदोलन के दौरान शहीद हुए लोगों के परिजनों को सम्मान और नौकरी देने की घोषणाएं कई बार की गईं, लेकिन उन्हें नौकरी के साथ-साथ सम्मान देने का महत्वपूर्ण कार्य हमारी सरकार ने किया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बताया कि उनकी सरकार ने 65 साल से अधिक   उम्र के सभी वृद्धों को सम्मानजनक पेंशन देने की व्यवस्था की है। यह हमारा अपने बुजुर्गों के प्रति सम्मान व्यक्त करने का तरीका है। हम अपने राज्य के युवाओं को संदेश देना चाहते हैं कि जब तक हम अपने बुजुर्गों का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक परिवार और समाज का विकास संभव नहीं हैं। हमें अपने बुजुर्गों के अनुभवों का लाभ उठाना चाहिए।

मैं भी बन सकता हूं पीएम?

-अशोक मिश्र
मैं आफिस में बैठा कतरब्योंत कर रहा था कि एक आदमी मेरे पास आया और बोला, ‘भाई जी! मुझे आपसे कुछ सलाह करनी है। सुना है कि आप सलाह बहुत अच्छी देते हैं। आपकी जो भी फीस होगी, मैं भुगतने को तैयार हूं।’ मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और धीरे से उसके कान में फुसफुसाया, ‘आप आफिस के बाहर चाय की दुकान पर पहुंचिए, मैं आता हूं।’ थोड़ी देर बाद मैंने चाय की दुकान पर पहुंचकर उससे कहा, ‘हां..अब बताइए, आपकी क्या प्रॉब्लम है?’ उस आदमी ने चाय सुड़कते हुए कहा, ‘भाई जी..मैं पार्टी बनाना चाहता हूं। राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी..क्या मैं बना सकता हूं?’ मैंने भी चाय जोर से सुड़कते हुए कहा, ‘हिंदुस्तान में चोरों को पार्टी बनाने का हक है, छिछोरों को है, बटमारों और लुटेरों को भी यह हक हासिल है। दागियों को है, बेदागियों को है, तो फिर आपको यह हक क्यों नहीं है। आप तो भले मानुष दिखते हैं। होंगे भी, ऐसा कम से कम मुझे तो विश्वास है। ऐसे में भला आपको कौन रोक सकता है। आप शौक से बनाएं पार्टी, मुझसे भी जो मदद हो सकेगी, मैं करूंगा।’ उस आदमी ने मेरी ओर गौर से देखते हुए कहा, ‘आप शायद मुझे पहचान नहीं पाए हैं। मुझ पर एक नाबालिग से बलात्कार करने का आरोप है। पांच राज्यों की पुलिस मुझे खोज रही है। अब बताइए, मैं राजनीतिक पार्टी बना सकता हूं कि नहीं?’ उसके यह कहते ही इस सर्दी में भी मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया। मैंने कांपती आवाज में कहा, ‘हां..अब भी आप पार्टी बना सकते हैं, चुनाव लड़ सकते हैं। आप एक काम कीजिए, पहले अदालत में आत्मसमर्पण कीजिए। फिर दो-चार महीने बाद जमानत करवाइए और राजनीतिक पार्टी बनाइए। इसमें कोई रोक नहीं है।’ उस आदमी ने अपने चेहरे को मफलर से ढकते हुए कहा, ‘आपको बता दूं, मेरे पास अकूत संपत्ति है। ज्यादातर कमाया हुआ नहीं, कब्जाया हुआ है। नकली नोटों को छापने का बड़ा लंबा चौड़ा कारखाना है। अफीम से लेकर नशीले ड्रग्स तक बेचने का कारोबार मेरे संरक्षण में चलता है। देशी-विदेशी हथियारों की सप्लाई का उत्तर भारत का टेंडर मेरे ही पास है। सौ-पचास अधिकारी मेरे से हफ्ता पाते हैं। दुनिया भर के काले-गोरे धंधों को करने की मास्टर डिग्री मेरे ही विश्वविद्यालय से दी जाती है। दाउद इब्राहिम और छोटा राजन से लेकर ओसामा बिन लादेन अपनी ही यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट रह चुका है। अपनी फैमिली बैकग्राउंड के बारे में बताऊं, तो आप ताज्जुब रह जाएंगे। मेरे बापू ने तो मेरे से भी महान हैं। उनके बारे में अगर बताने लगूं, तो पूरा पोथन्ना तैयार हो जाए। फिर कभी फुरसत में मिलूंगा, तो बताऊंगा। बस, यह बताओ कि अगर लोकसभा चुनाव में मैं खड़ा हो जाऊं, तो क्या प्रधानमंत्री बन जाऊंगा? मेरे जीवन की बस एक ही तमन्ना है कि किसी तरह प्रधानमंत्री बन जाऊं। भले ही उसके लिए कितना पैसा खर्च करना पड़े। किसी को खरीदना-बेचना पड़े, निबटना-निबटाना पड़े, कोई चिंता नहीं है। बस..किसी तरह प्रधानमंत्री पद का जुगाड़ लग जाए।’ मैंने चाय का खाली कप डस्टबिन में फेंकते हुए कहा, ‘आप चिंता न करें। राजनीति में ऐसे ही लोग आते हैं। चोर-लुचक्के, बटमार, हत्यारे, बलात्कारी, छिछोरे...इनसे तो पूरी की पूरी भारतीय राजनीतिक किसी बंद कमरे में रखे कीटनाशक ‘गमकसीन’ पाउडर (रासायनिक नाम नहीं मालूम) की तरह मह-मह कर महक रही है। संविधान ने सबको चुनाव लड़ने, मंत्री-संत्री, विधायक-सांसद बनने की छूट दी है। अब यह आपकी काबिलियत है कि आप जनता से वोट कैसे हासिल करते हैं, डरा कर, धमकाकर, पुचकार कर, नोट-पानी देकर या किसी और तरीके से। अब अगर आपका कोई खेल बिगाड़ सकता है, तो ‘नोटा’ (नॉन आफ दी एबव) वाला बटन। इस ससुरा बटन न हुआ, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र हो गया। खच्च..से गला काट देगा आप जैसे लोगों का। वैसे तो हमारे देश के राजनीतिक गलियारे दागियों से हमेशा आबाद रहे हैं। आप क्या...आपके बाप तक देश और प्रदेश की सत्ता हथिया चुके हैं।’ मैंने देखा कि बाप कहने पर उसकी भौंहें तनने लगी थीं। सो, मैंने व्याख्या करते हुए कहा, ‘आपके बाप से मेरा मतलब है कि अपराध की दुनिया में आपसे चार जूता आगे रहने वाले लोग तक सत्ता हासिल करके मौज मार चुके हैं। इधर जब से माननीय अदालत दागियों को लेकर सख्त हुई है, तब से थोड़ा दिक्कत पैदा होने लगी है। जब तक आपको सजा नहीं सुनाई जाती और आप जेल में नहीं हैं, तब तक तो चांस कहीं गया नहीं है।’मेरी बात सुनते ही उस आदमी ने कहा, ‘बस..बस..आपकी बात मेरी समझ में आ गई। जनता को भरमाने, डराने-धमकाने का जिम्मा मेरा रहा। वैसे अब तक अपने आश्रम में मैं अपने भक्तों को भरमाता ही तो रहा हूं। मेरा इतना प्रभाव है कि लोग सौ-पांच सौ करोड़ रुपये पानी की तरह बहाने को तैयार हैं। बस, उन्हें यह लगना चाहिए कि मेरी पार्टी बहुमत में आ सकती है और मैं प्रधानमंत्री बन सकता हूं। इसके बाद तो वे जितना खर्च करेंगे, उससे पचास गुना ज्यादा वे कमा ही लेंगे।’ इतना कहकर वह आदमी उठा, जेब से उसने रिवाल्वर निकाला और मुझे गोली मारते हुए कहा, ‘सॉरी दोस्त! मैं पकड़ा इसलिए नहीं गया, क्योंकि सुबूत नहीं छोड़ता।’ उसके और अपने हिसाब से तो मैं मर ही गया था, लेकिन चाय वाले ने अस्पताल   पहुंचाकर मुझे बचा लिया।

Tuesday, November 19, 2013

सलाह के साइड इफेक्ट

-अशोक मिश्र
एक सप्ताह पहले मेरे पास मेरा अंडरवियर फ्रेंड खुराफात चंद ‘बकवासी’ आया। अंडरवियर फ्रेंड बोले तो लंगोटिया यार, नर्म सचिव। बकवासी काफी उदास था। उसका बॉस आए दिन किसी न किसी बहाने रपटाता, डांटता रहता है। दोस्तो! रपटाने की कोशिश तो मेरा बॉस भी करता है, लेकिन मैं हूं कि रपटता ही  नहीं। और अगर कहीं खुदा न खास्ता किसी दिन रपट भी जाऊं, तो रपट पड़े, तो ‘हर गंगे’ वाली कहावत चरितार्थ कर लेता हूं। मैंने उससे कहा, ‘देख तुझमें आत्म विश्वास की कमी है। तू अपना आत्म विश्वास बढ़ा। इसके लिए सबसे पहले तो अमेरिकन टी शर्ट के साथ अफ्रीकन लुंगी पहन। क्या गजब का लुक दिखेगा तेरे पर।
मैडोना ने पहना था न एक बार। उसका भी बॉस उससे खफा रहता था, लेकिन बीड़ू...एक दिन वह अमेरिकन कंपनी ‘बेटा टी पी’ की शर्ट और अफ्रीकन कंपनी ‘लातो मारतो’ की लुंगी पहनकर आफिस क्या गया, उसका बॉस ऐसा रपटा..ऐसा रपटा कि वह बॉसगीरी ही भूल गया। बीड़ू..बस एक बार..एक बार तू मेरा यह फार्मूला आजमाकर देख। बॉस क्या..तेरे आफिस के आसपास काम करने वाली सारी लड़कियां तुझे देखकर एकदम फ्लैट न हो जाएं, तो कहना। अगर किसी दिन बॉस की बॉसिनी आफिस आ जाएं, तो तू शरीर पर वह डियो छिड़ककर क्या नहाकर जा जिसकी ब्रांडिंग अपने फेवरेट फिल्म स्टार सल्लू भाई करते हैं। फिर देखियो कमाल।’
मैं सांस लेने के लिए रुका ही था कि मेरा दोस्त खुराफात चंद गुर्रा उठा, ‘तू मेरा दोस्त है या दुश्मन? अभी तो बॉस डांटता-डपटता ही है, तेरा कहा किया, तो नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा। तू मरवाएगा किसी दिन मुझे, पक्का विश्वास हो गया है। और फिर तेरा यह मैडोना पुल्लिंग है या स्त्री लिंग? तू पढ़ता-लिखता तो है नहीं, बस कलम घसीटू पत्रकार बना फिरता है। मैडोना का पूरा नाम है मैडोना लुईस चिकोने। बहुत बड़ी फिल्म स्टार हैं वे।’ मैंने भी उसे घूरते हुए कहा, ‘अबे चमगादड़! क्या फर्क पड़ता है कि मैडोना स्त्री है या पुरुष? बात कॉन्फि डेंस की है। कितनी कान्फिडेंस से मैं स्त्री को पुरुष और पुरुष को स्त्री बनाता जा रहा हूं। मेरी जबान लड़खड़ाई, अपनी कमअक्ली के बारे में सोचकर? नहीं न...सोच मुझमें ऐसा क्या है जो तेरे में नहीं है। मेरी मां ने बचपन से ही मुझे दूध कम कान्फिडेंस ज्यादा पिलाया है। आधी कटोरी दूध में पाव भर धनिये का रस मिलाकर पिलाती थी मुझे। किसी ने उनसे कह रखा था कि विश्व विजेता सिकंदर ने भी इंडिया आने के बाद दूध और दही के मिश्रण में धनिये का रस मिलाकर पिया था। अपने फेंकू भाई तो बकरी के दूध में धनिये और पुदीने का रस मिलाकर रोज पीते हैं। सबसे पहले सबसे पहले तो तू ये देशी और सस्ते रेजर और जेल से दाढ़ी रेतना बंद कर। इंग्लैंड की फेमस कंपनी का रेजर और जेल इस्तेमाल कर। देशी रेजरों और साबुनों से दाढ़ी मूंड़कर अपना स्टैंडर्ड मत गिरा। सबके सब बदल डाल। अपने घर की चड्ढी-बनियान से लेकर पैंट-बुश्शर्ट तक। दादी, काकी नानी से लेकर अम्मा-बप्पा तक। पत्नी-बच्चों से लेकर गर्लफ्रेंड्स तक। फिर देखो कमाल। दादी नानी को ग्रैंड मॉम, काकी, मामी, मौसी को आंटी, रमुआ की अम्मा, गीता की मम्मी को डियर, डार्लिंग, जानू कहकर तो देखो, कैसा रोमांच पैदा होता है अंतस में। गर्लफ्रेंड तो भूलकर देशी मत रखना। मुझे देख, आज तक देशीवालियों को घास ही नहीं डाली, विदेशी भाव ही नहीं देती, इसलिए अपना स्टेट्स तो मेनटेन है। तू बेवजह छबीली, नुकीली, रंगीली के चक्कर में अपना टाइम खोटा कर रहा है, पामेला, कैली, बैली जैसियों की कल्पना कर, फिर देख कितना मजा आता है। मोक्ष की प्राप्ति जैसा आनंद। खुराफात चंद बकवासी ने मेरी बात सुनकर गहरी सांस ली और बिना कुछ बोले उठकर चला गया। कल मेरे एक दूसरे मित्र ने बताया कि खुराफात चंद बकवासी पिछले कई दिनों से अस्पताल में भर्ती है। मैं मित्रतावश उससे मिलने अस्पताल गया। सिर और दोनों पैरों में पट्टियां बंधी हुई थीं।मुझे देखते ही बकवासी उठा और पास में रखा मोटा डंडा उठाकर लंगड़ाते हुए दौड़ा लिया। मैंने भागते हुए कहा, ‘अबे तू कहीं पागल तो नहीं हो गया है?’ खुराफात चंद ने फेंककर डंडा मारते हुए कहा, ‘हां..मैं पागल हो गया हूं और इस पागलपन में तेरी जान लेकर छोडूंगा। नालायक! तेरे चक्कर में अम्मा-बप्पा से पिटा ही पिटा, बीवी ने भी जमकर ठुकाई की। तेरे जैसा दोस्त तो किसी दुश्मन का भी न हो कसाई! मैंने तो सिर्फ अम्मा-बप्पा की जगह डैड-मॉम और बीवी को डार्लिंग कहकर क्या संबोधित किया कि लोगों ने समझा कि मेरे सिर पर ब्रह्म सवार हो गया है। लोग ओझा के पास ले जाने लगे, तो मैंने विरोध किया। लोगों ने समझा बरम (ब्रह्म पिशाच) विरोध कर रहा है। इसी बीच किसी ने कहा कि इन्हें पीटो तो बरम को चोट पहुंचेगी और वह भाग खड़ा होगा। बस फिर क्या था? अम्मा ने सिर पर लट्ठ जमाया, तो बीवी ने बरम भगाने के चक्कर में मेरी दोनों टांगें तोड़ दी।’ सलाह के साइड इफेक्ट समझ में आते ही मैंने वहां से खिसक लेने में ही भलाई समझी।

Wednesday, November 13, 2013

प्रधानमंत्री को माफी मांगनी चाहिए

-अशोक मिश्र
काफी धुआंधार प्रेस कान्फ्रेंस चल रही थी। राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता चतुरानंद कह रहे थे, ‘आप सोचिए, आज अगस्त क्रांति दुर्घटना ग्रस्त हुई है, कल शताब्दी या राजधानी का नंबर हो सकता है। यह किसकी गलती है? प्रधानमंत्री की। प्रधानमंत्री न ठीक से देश चला पा रहे हैं, न उनके शासन में रेलगाड़ियां सही चल रही हैं। जैसी मनमानी प्रधानमंत्री कर रहे हैं, वैसी ही मनमानी पर रेलगाड़ियां, बसें और हवाई जहाज उतारू हैं। आज ही हिमाचल प्रदेश में बस खाई में गिरने से पांच आदमियों की असमय मौत हो गई।
इसमें किसका दोष है? साफ तौर पर प्रधानमंत्री का। अगर सड़कें ठीक तरह से बनी होतीं, तो यह हादसा नहीं होता। मैंने पता किया है, हिमाचल की वह सड़क प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क विकास परियोजना के तहत बनी थी। प्रधानमंत्री को इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए या तो अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए अथवा पूरे राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए। अगर दो-चार दिन में प्रधानमंत्री ने माफी नहीं मांगी या इस्तीफा नहीं दिया, तो राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के कार्यकर्ता सड़कों पर उतरेंगे, राष्ट्रव्यापी आंदोलन करेंगे। हमारे कार्यकर्ता प्रधानमंत्री को मजबूर कर देंगे कि वे अपने पद से इस्तीफा दें।’
तभी दैनिक झमामझ टाइम्स के संवाददाता ने उनसे पूछा, ‘चतुरानंद जी! पिछले दिनों उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में आए ‘फेलिन’ के बारे में आपकी पार्टी क्या सोचती है?’ चतुरानंद जी पहले तो मुस्कुराए और बोले, ‘इसके लिए भी केंद्र सरकार दोषी है। दोषी इस मायने में है कि प्रधानमंत्री को फेलिन से बात करनी चाहिए थी, उसको मनाना चाहिए था। अगर वह आने पर इतना ही उतारू था, तो उसको राष्ट्रीय मेहमान का दर्जा दिया जा सकता था, तब शायद वह नहीं होता, जो हुआ था। पूरी दुनिया के सामने इतनी जगहंसाई नहीं होती? प्रधानमंत्री को पूरे राष्ट्र से खासकर हमारी राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के अध्यक्ष से माफी मांगनी चाहिए।’ राष्ट्रीय मासिक ‘मुंह-पेट’ के संवाददाता ने बीच में अवरोध पैदा किया, ‘लेकिन फेलिन तो तूफान का नाम है। प्रधानमंत्री उस तूफान से कैसे बात कर सकते थे? उसको कैसे रोक सकते थे? उस तूफान पर प्रधानमंत्री का क्या वश चल सकता था?’ पल भर के लिए प्रवक्ता चतुरानंद अकबकाए और फिर धूर्ततापूर्वक बोले, ‘चलो माना कि तूफान को वे रोक नहीं सकते थे। लेकिन इस्तीफा तो दे सकते थे? देश की जनता से माफी तो मांग सकते थे? आपको याद है, लाल बहादुर शास्त्री जी जब रेल मंत्री थे, तो रेल हादसा होने पर उन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था कि नहीं? नैतिकता भी तो कोई चीज होती है कि नहीं। क्या लाल बहादुर शास्त्री जी कोई उस रेलगाड़ी के ड्राइवर थे? नहीं न! लेकिन उनकी नैतिकता देखिए, उन्होंने इस्तीफा देने में एक भी पल नहीं लगाया था। फेलिन जब आया, तो अपने प्रधानमंत्री क्या कर रहे थे? विदेश यात्रा पर गए हुए थे। जब आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, झारखंड जैसे प्रदेश तूफान का बड़ी बहादुरी से सामना कर रहे थे, तब हमारे माननीय प्रधानमंत्री विदेश में सो रहे थे क्योंकि उस समय रात के ढाई बजे थे। जब देश पर संकट आया हो, तो कोई भी प्रधानमंत्री सो कैसे सकता है? अब कई प्रदेशवासियों के संकट के समय सोने के मामले में प्रधानमंत्री का इस्तीफा तो बनता है न!’
‘चतुरानंद जी! जब आपकी पार्टी सत्ता में थी, तो आपकी पार्टी के प्रधानमंत्री ने कभी इस्तीफा नहीं दिया? जबकि उनके शासनकाल में भी हत्याएं हुर्इं, बच्चियों और महिलाओं से बलात्कार हुए, कई बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश हुआ। आपकी पार्टी के कई सांसद कैमरे के सामने रिश्वत लेते पकड़े गए। तब कहां चली गई थी आपकी नैतिकता?’ एक संवाददाता ने सवाल पूछा। चतुरानंद ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा, ‘तब विपक्षियों ने साजिश रची थी। वे हमारी पार्टी की सरकार को बदनाम करना चाहते थे। हमारी पार्टी की नीतियां तब भी सही थीं और आज भी सही हैं। खोट विपक्ष में बैठे लोगों में थी। वे जानबूझकर हमारी पार्टी के सांसदों को पैसा पकड़ाते थे और बाद में हो-हल्ला मचाते थे। इसमें मीडिया के भी कुछ लोग शामिल थे। जब तक हमारी पार्टी की सरकार रही, हमने किसी को भी देश का पैसा लूटने नहीं दिया। आज हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं, अगर अगले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी की सरकार बनी, तो सबको लूटने का मौका समान रूप से दिया जाएगा। इस मामले में हमारी पार्टी की नीतियां सबसे अलग हैं। अगर हमसे कुछ बचेगा, तो सबको मिलेगा न! देश में जितने भी बनिया-बक्काल और पूंजीपति हैं, पहले उन्हें लूटने-खसोटने का मौका दिया जाएगा। उनसे अगर कहीं कुछ बच गया, तो उसके बाद नौकरशाही का नंबर लगेगा। हां, देश के लोग यह विश्वास रखें, पांच साल बीतते-बीतते लगुओं-भगुओं का नंबर आ ही जाएगा। आखिर कोई कितना लूटेगा? साल-दो साल में लूटने वाला थक ही जाएगा और कहेगा, ‘बस अब मुझसे नहीं लूटा जाता।’ इतना कहकर राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के प्रवक्ता उठे और बोले, ‘अब प्रेस कान्फ्रेंस खत्म। बाकी सवाल अगली बार के लिए। हां, आप लोग स्वल्पाहार जरूर करके जाएं। यदि मन हो, तो अपने बाल-बच्चों के लिए भी ले जा सकते हैं।’ इसके बाद चतुरानंद चलते बने।

Thursday, November 7, 2013

हाय..हाय.. सोने का सपना टूट गया

अशोक मिश्र 
बचपन में जब भी कहता था कि कल मैं यह करूंगा, वह करूंगा। इतनी पढ़ाई करूंगा, उतनी पढ़ाई करूंगा। तो थंब ग्रेजुएट (अंगूठा टेक) मेरी अम्मा तुरंत डांटती थीं, ‘नासपीटे! अभी से क्यों गा रहा है। कल जितनी पढ़ाई करनी होगी, कर लेना। पहले से ही बनाई गई योजना कभी पूरी नहीं होती। देख लेना, कल ऐन मौके पर कोई न कोई बखेड़ा खड़ा हो जाएगा और तेरा पढ़ना-लिखना धरा का धरा रह जाएगा।’ और सचमुच, कुछ न कुछ ऐसा हो जाता था कि मैं सोचा गया काम नहीं कर पाता था। अम्मा की बातें तब केवल अंधविश्वास लगती थीं, लेकिन अब महसूस होता है कि अम्मा कितना सही कहती थीं। कितना कुछ सोच रखा था? दोस्तों से भी वायदा कर रखा था कि उन्हें भी उसमें से कुछ हिस्सा दूंगा। मेरे यार-दोस्त तो इतना उत्साहित थे कि उन्होंने इसके लिए एक भारी भरकम पार्टी की व्यवस्था कर रखी थी। अगर आप लोग घरैतिन को न बताने का वायदा करें, तो एक महीन बात बताऊं। उस भारी भरकम पार्टी में कुछ डांस-वांस का भी प्रोग्राम था। अब यह मत पूछिएगा कि किसका? जब सपना ही टूट गया, तो कहकर क्या करेंगे। यह बात ढकी-छिपी है, तो अब ढकी ही रहने दीजिए। मुझे तो अब वाकई बहुत गुस्सा आ रहा है। जी चाहता है कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया वालों की दाढ़ी नोच लूं। (अगर वे मेरी तरह दाढ़ी रखते हों, तो) कितना सपना दिखाया था इन नासपीटे चैनल वालों ने। वहां इतनी ओबी वैनों को लाकर खड़ा कर दिया था कि लगता था कि ओबी वैन्स का कोई पुराना स्टाक हो और कबाड़ में बेचने के लिए लाया गया हो।
दिन भर चैनलों पर बतकूचन चलती रहती थी। एक चैनल का तो यह भी दावा था कि इतना सोना निकलेगा कि अगर देश की जनता में सबको बांटा गया, तो हर एक व्यक्ति को पसेरी-पसेरी सोना जरूर मिल जाएगा। सोचा था कि आधा पसेरी सोना घरैतिन को देकर हाथ झाड़ लूंगा। वह तो छंटाक भर सोना देखकर ही अपने को धन्य मान लेगी। बाकी सोने के लिए मैंने अपनी कुछ सहेलियों (महिला मित्रों यानी गर्ल फ्रेंड्स) को आश्वासन दे रखा था। अब उन सहेलियों के सामने कौन-सा मुंह लेकर जाऊंगा? पिटवा दी न मेरी भद? कर दिया न कबाड़ा मेरी इज्जत का? मैंने सपने में भी नहीं सोचा कि एक सपना...संत बाबा का सिर्फ एक सपना मेरी इज्जत का फालूदा बनाकर लोगों में बांट देगा खाने के लिए। अब तो मुझे अपने पर गुस्सा आ रहा है कि मैंने उस नामुराद सपने को सच मानकर इतना हसीन और रंगीन सपना क्यों देखा? आपको बताऊंगा, तो आप हंसेंगे। जब आॅर्कियोलाजिकल सर्वे आॅफ इंडिया ने खुदाई शुरू की थी, तो उसके बगल में चल रहे भजन-कीर्तन में मैंने भी पूरे दिन गला फाड़-फाड़कर भजन गाया था, मन्नत मांगी थी। धन की देवी लक्ष्मी जी की मूर्ति को हाजिर नाजिर मानकर मैंने प्रतिज्ञा की थी कि अगर चैनल वालों के कहे मुताबिक पसेरी भर सोना मिला, तो कम से कम तोला-दो तोला आपको भी भेंट करूंगा। यह मनौती मानने के बाद विश्वास था कि आरबीआई के गर्वनर की तरह लक्ष्मी मैया पसेरी भर सोना मिलने की गारंटी तो ले ही लेंगी। कल रात जब लक्ष्मी जी के वाहन उल्लूक राज मेरे सपने में आए, तो मैं खुशी के मारे उछल पड़ा था।
मैंने उल्लूक राज के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा था, ‘उल्लूक महाराज! दीपावली से चार दिन पहले ही दर्शन दे दिए? लक्ष्मी जी कहां हैं? दिखाई नहीं दे रही हैं? सब खैरियत तो है न! विष्णुधाम से लक्ष्मी मैया ने मेरे लिए कोई मैसेज वगैरह तो नहीं भेजा है? आपको क्यों तकलीफ दी मैया ने? एक एसएमएस कर देंती या फिर फोन ही कर देंती। लक्ष्मी मैया के पास मोबाइल सुविधा तो है न कि पुराने जमाने की तरह अभी भी मोबाइल, इंटरनेट वगैरह का अभाव है। ओह समझा, पानी में तार बिछाने में दिक्कत आ रही होगी।’ मेरी बात सुनकर उल्लूक राज जी मुस्कुराये थे। वे कुछ देर तक मुझे घूरते रहे और फिर उड़ गए। मैं सपने में चिल्लाया, ‘अरे लक्ष्मी जी का संदेश तो बताते जाओ, उल्लू महाराज!’ सपने में शायद जोर से चिल्लाया था। मेरी आवाज सुनकर घरैतिन की नींद टूट गई थी। वे बड़बड़ाने लगीं, ‘दिन भर तो छत पर बैठकर घूरने से पेट नहीं भरा, तो अब सपना भी देखने लगे।’ दरअसल, बात यह है कि लक्ष्मी दो घर छोड़कर मेरे मोहल्ले में रहती है। अब सोचता हूं, तो लगता है कि उल्लू महाराज मुझे सपने में आकर चेताने आए थे, बेटा सपने के चक्कर में उल्लू मत बन। जिसने भी सपने पर विश्वास किया, उसकी नैया बीच मझधार में डूबती है। विश्वास न हो, तो कांग्रेस के मंत्री से पूछ लो जिन्होंने सपने पर विश्वास करके खुदाई का फरमान जारी करवाया था। हाय..हाय..डौंडिया खेड़ा...हाय राजा राव राम बक्स सिंह..और उनका अकूत खजाना।