Wednesday, January 6, 2016

प्रभु जी! यात्रियों की आदत मत बिगाडि़ए...

-अशोक मिश्र
हद हो गई यार! हमारे रेलमंत्री को लोगों ने क्या पैंट्री कार का इंचार्ज, गब्बर सिंह या सखी हातिमताई समझ रखा है? जिसे देखो, वही ट्वीट कर रहा है, 'प्रभु जी! मैं फलां गाड़ी से सफर कर रही हूं। गाड़ी में मेरे बच्चे ने गंदगी फैला दी है। जरा अपने किसी सफाई कर्मचारी को भेज दीजिए न, बहुत दिक्कत हो रही है।Ó कोई एसएमएस भेजकर गुहार लगा रहा है, 'मंत्री जी, मैं एक विकट समस्या में फंस गई हूं। बात दरअसल यह है कि मेरा बच्चा दूध नहीं पी रहा है, आकर एक कंटाप जड़ दीजिए तो, शायद आपके ही डर से दूध पी ले। मैं तो समझाते-समझाते थक गई हूं।' कोई फेसबुक पर लिख रहा है, 'प्रभु जी! जल्दी-जल्दी में टिकट नहीं ले पाई थी, जरा चार टिकट का प्रबंध करवा दीजिए, प्लीज।' इस देश का तो भगवान ही मालिक है। एक बार प्रभु जी ने किसी की मदद क्या कर दी, लोगों ने उन्हें फोकटिया समझ लिया है। अरे देश के रेल मंत्री हैं, कोई मामूली बात है। उनके सामने सौ झंझट हैं, हजारों लफड़े हैं। कहीं रेल की पटरियां बिछवानी हैं, तो कहीं रेल इंजन कारखाना लगवाना है। उन्हें यह भी देखना है कि क्या किया जाए जिससे रेलवे को फायदा हो। प्रभु जी के सामने एक अजीब मुसीबत है। रेलवे को घाटा हो जाए, तो विरोधी दल वाले नाकों में दम कर देंगे। अक्षमता का आरोप लगाएंगे। 'रेल मंत्री इस्तीफा दो..रेल मंत्री इस्तीफा दो' का नारा लगाएंगे। अगर रेल विभाग फायदे में आ गया, तो झट से दूसरा आरोप विरोधी दलों के पास तैयार है। रेल मंत्री ने तो  रेल यात्रियों को एकदम से दुह लिया। इतना किराया बढ़ा दिया कि बेचारे यात्रियों का दम ही निकल गया। कर लो बात..फायदा हो, तब भी विरोध, नुकसान हो, तब भी विरोध। किसी भी तरह उन्हें चैन नहीं। ऊपर से रेल विभाग में इतने सारे मुलाजिम हैं, वे भी आए दिन हाय-हाय करते रहते हैं, 'तनख्वाह बढ़ाओ..तनख्वाह बढ़ाओ।' इतना बड़ा देश है, रेलवे का इतना बड़ा महकमा है। सब को सुधारना है। अब अगर ऐसे ही लोग ट्विटर पर, फेसबुक पर डिमांड करने लगेंगे, तो फिर हो गया काम। सुधर गई रेलवे की दशा-दिशा।
और प्रभु जी! आपसे बस इतनी ही शिकायत है कि आप इस देश की जनता को काहे इतना भाव दे रहे हैं। आपने रेलगाड़ी में महिला से बदतमीजी कर रहे शोहदों को पकड़वा दिया, बहुत बढिय़ा किया। आप बस ऐसे ही कामों पर ध्यान दीजिए। कोई शोहदा, चोर-डाकू यात्रियों को परेशान न करने पाए। बाकी एसएमएस, ट्विटर या फेसबुक से दूध-दही मंगाने वालों को भाव मत दीजिए। आप इन लोगों की फितरत को नहीं जानते हैं। अंगुली पकड़ाएंगे, तो ये 'पहुंचा' पकडऩे को तैयार रहते हैं। आपने भले ही दया भावना या अपनी जिम्मेदारी समझकर किसी के ट्वीट पर उसकी मदद की हो, उसके बेटी-बेटे के लिए दूध की व्यवस्था कर दी हो, लेकिन प्लीज...आगे से ऐसा मत कीजिए। जो लोग जनरल और स्लीपर कंपार्टमेंट में गाय-बैल की तरह ठसाठस भरकर यात्रा के आदी हैं, उनको आप मुफ्तखोर मत बनाइए। ये हैं ही इसी काबिल। इनकी तो मानसिकता है कि चमड़ी चली जाए, दमड़ी न जाए।  सभी गाडिय़ों में स्लीपर और एसी के इतने डिब्बे लगाए गए हैं, लेकिन यात्रा करेंगे जनरल डिब्बे में। तो मरो। अब हाथ पकड़कर कोई स्लीपर या एसी टिकट खरीदवाने से रहा। अगर इनको ट्विटर या फेसबुक पर चलती ट्रेन में कुछ मंगाने की लत लग गई, तो कल ये आपको ट्वीट करके चिकन-बिरयानी की डिमांड करेंगे। बियर, ह्विस्की, रम के लिए एसएमएस करेंगे। फिर चखना भी मांगेंगे। आप कहां-कहां तक इनकी डिमांड पूरी करेंगे। आप आजिज आ जाएंगे। यह देश और रेलवे विभाग जैसे चल रहा है, चलने दीजिए, प्लीज!

Monday, January 4, 2016

नए वर्ष में व्यंग्यकारों के तारे-सितारे

-अशोक मिश्र
नया साल व्यंग्यकारों के लिए बड़ा चौचक रहने वाला है। नए वर्ष में व्यंग्यकारों की कुंडली के सातवें घर में बैठा राहु पांचवें घर के बुध से राजनीतिक गठबंधन कर रहा है। अत: संभव है कि प्रधानमंत्री और देश के 66 फीसदी राज्यों के मुख्यमंत्री व्यंग्यकार हो जाएं या फिर राजनीतिक उठापटक के चलते व्यंग्यकार ही प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री हो जाएं। वैसे इनके व्यंग्यकार होने की संभावना सिर्फ 57 फीसदी ही है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की कुंडली के नौवें घर में बैठा राहु दूसरे घर में बैठे केतु से मिल उलट-फेर करने के मूड में है। बस, यही गठबंधन उनके खिलाफ साजिश रच सकता है। ऐसे में यदि प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्री राज्य के दो दर्जन व्यंग्यकारों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लें या फिर उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दे दें, तो राहु और केतु के गठबंधन के प्रभाव को कम किया जा सकता है। वैसे 43 फीसदी संभावना यह भी है कि नए वर्ष में व्यंग्यकारों को साहित्य से लेकर देश की राजनीति तक का कबाड़ा करने का मौका हासिल हो। इसके लिए  उन्हें प्रति सप्ताह 'सत्ता प्राप्ति महायज्ञ' करना होगा। 
अब तक जो संपादक व्यंग्य के नाम पर मुंह सिकोड़ लेते थे, उन्हें असाहित्यिक मानते थे, व्यंग्यकारों को समाज का सबसे निकम्मा व्यक्ति मानते थे, उनके मनोभावों में परिवर्तन होगा। ऐसा व्यंग्यकारों की कुंडली के पहले घर में बैठे शुक्र महाराज की कृपा के चलते होगा। शुक्र प्रबल होने के चलते पूरे वर्ष पुरुष व्यंग्यकारों पर 'पत्नीयात पिटन योग' (पत्नी से पीटे जाने का योग) प्रभावी रहेगा। इसलिए पुरुष व्यंग्यकारों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी चेलियों और प्रेमिकाओं से दो कोस दूर रहें। चेलियों या प्रेमिकाओं के आसपास भी पाए जाने पर पत्नी से पीटे जाने का खतरा पूरे वर्ष बना रहेगा। 
पुरुष व्यंग्यकार जातक अपनी सालियों और सलहजों से चार फुट दूरी से बात करें, शिष्ट हास-परिहास की इजाजत नौवें घर में बैठे बृहस्पति महाराज दे रहे हैं, लेकिन जहां ज्यादा लल्लो-चप्पो की, तो ससुराल में ही पत्नी के क्रोध रूपी आरडीएक्स से मान-सम्मान के परखच्चे उड़ जाने का अंदेशा है। महिला व्यंग्यकार जातकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने देवरों, ननदोइयों और जीजाओं से बतियाने, हंसी-ठिठोली करने से नए वर्ष में परहेज करें, वरना पति के अविवाहित साली से प्रेम  प्रदर्शित करने के प्रबल योग हैं। इस वर्ष उनकी कुंडली के नौवें घर में बैठा बृहस्पति चौथे घर में बैठे मंगल से 'रहस्य उद्घाटक योग' बना रहा है।
नए वर्ष में व्यंग्यकारों के तारे-सितारे इतने प्रबल हैं कि वे हर पत्रिका, अखबार, टीवी चैनलों तक पर पूरे वर्ष छाये रहेंगे। चैनलों पर चलने वाले बहस-मुबाहिसे में उन्हें राजनेताओं से ज्यादा रुतबा हासिल होगा। वे जो कुछ कह देंगे, वही फाइनल होगा। पत्र-पत्रिकाओं में तो उनके जो जलवे होंगे, उसका कहना ही क्या है। कुछ संपादक तो अपने संपादकीय पेज से लेख, चिट्ठी-पत्री और संपादकीय गायब करके सिर्फ व्यंग्य ही छापेंगे। नियमित व्यंग्य लिखने वालों को अग्रिम भुगतान ही नहीं करेंगे, बल्कि वे पत्र-पत्रिकाएं जो अब तक कम संसाधन और रुपये-पैसे की कमी का रोना रोकर व्यंग्यकारों को टरका देती थीं, वे भी सारे खर्चे रोककर पहले व्यंग्यकारों का मानदेय देंगी और उसके बाद छपाई का भुगतान करेंगी। देश में प्रकाशित होने वाले सभी भाषाओं के दैनिक समाचार पत्र पहले पेज पर व्यंग्य ही छापा करेंगे। देश की पत्रकारिता में नया वर्ष 'व्यंग्य क्रांति' की सूत्रपात करेगा। नया वर्ष व्यंग्यकारों के लिए इतना प्रबल है कि देश के जितने भी सरकारी-गैर सरकारी सम्मान हैं, उनके नाम बदल दिए जाएंगे। सारे सम्मान या तो व्यंग्यकारों के नाम पर दिए जाएं या फिर व्यंग्यकारों को ही दिए जाएंगे। व्यंग्यकारों को बस इतना एहतियात बरतना होगा कि वे फिलहाल साल भर एक दूसरे की टांग-खिंचाई अभियान को तत्काल स्थगित कर दें या फिर हमेशा के लिए विराम लगा दें।