Wednesday, October 1, 2025

डरो नहीं, डटकर मुकाबला करो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वामी विवेकानंद जब भी मौका मिलता था, हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते रहते थे। उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें अनवरत ज्ञान प्राप्त करते रहने की प्रेरणा दी थी। वह अपने गुरु को मानते भी बहुत थे। वैसे भी परमहंस धार्मिक मामलों के परम विद्वान थे। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के निधन के बाद स्वामी विवेकानंद अपने आपको काफी अकेला महसूस करने लगे थे। 

इसलिए उन्होंने भ्रमण पर जाने का निश्चय किया। वह देश के कई राज्यों में भ्रमण करते हुए काशी पहुंचे। काशी से उनका काफी लगाव भी था। काशी में उनको मानने वाले भी बहुत थे। यही वजह थी कि वह बार-बार काशी आना पसंद भी करते थे। काशी आने के बाद उन्होंने विश्वनाथ का दर्शन करने का फैसला किया। उन दिनों स्वामी विवेकानंद एक लंबा सा अंगरखा भी पहनते थे। 

सिर पर साफा भी बांधते थे। पढ़ने-लिखने का शौक होने की वजह से उनकी जेब में किताबें और कागज भी भरे होते थे। विश्वनाथ मंदिर पहुंचने पर वहां मौजूद बंदरों ने समझा कि उनकी जेबों में खाने-पीने की वस्तुएं हैं। उन बंदरों ने स्वामी जी को घेर लिया। स्वामी जी डर गए। जैसे ही वह आगे बढ़ते बंदर उनकी ओर लपकते थे। जब वह रुक जाते थे, तो बंदर भी एक निश्चित दायरा बनाकर रुक जाते थे। एक साधु बड़े गौर से यह देख रहा था। उसने स्वामी विवेकानंद से कहा, डरो नहीं, मुकाबला करो। 

विपत्ति पड़ने पर कभी घबराना नहीं चाहिए। इन बंदरों के सामने डटकर खड़े हो जाओ, यह भाग जाएंगे। स्वामी जी ने ऐसा ही किया, तो बंदर कुछ देर बाद भाग खड़े हुए। इसके बाद स्वामी जी ने जब भी कहीं गलत होता देखा, उसका विरोध किया। संकटों का डटकर मुकाबला किया।

स्कूलों में बच्चों के साथ होने वाली बर्बर घटनाएं चिंताजनक

अशोक मिश्र

पानीपत के जाटल स्थित एक निजी स्कूल में जो कुछ भी सात वर्षीय बच्चे के साथ हुआ, वह निंदनीय और चिंताजनक है। स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाला बच्चा होमवर्क करके नहीं लाया था। स्कूल की प्रिंसिपल ने उस बच्चे को पहले तो खुद धमकाया और फिर सजा देने के लिए स्कूल के बस ड्राइवर को सौंप दिया। उस ड्राइवर ने ऊपरी मंजिल में बच्चे को ले जाकर रस्सियों से बांधकर उल्टा लटका दिया और फिर बुरी तरह मारा-पीटा। 

वैसे तो यह घटना बाइस अगस्त की है, लेकिन इसका खुलासा अब हुआ है। मामले ने तूल तब पकड़ा जब बच्चे को खिड़की के सहारे उल्टा लटकाने और मार-पीट का वीडियो वायरल हुआ। जब लड़के की मां ड्राइवर के घर पर शिकायत लेकर पहुंची, तो ड्राइवर घर पर नहीं मिला, लेकिन उसने बीस-पच्चीस लोगों को छात्र की मां को डराने धमकाने के लिए उसके घर भेज दिया। अब जब मामले ने तूल पकड़ लिया है, तो इस मामले में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने निष्पक्ष जांच करने को कहा है। 

आरोपी प्रिंसिपल  और ड्राइवर गिरफ्तार कर लिए गए हैं। आगे की कार्रवाई की जा रही है। हरियाणा में ही नहीं, ऐसी घटनाएं देश के विभिन्न राज्यों में यदा-कदा सामने आती रहती हैं। ऐसी स्थितियां समाज को झकझोर देती हैं। दरअसल, सच बात तो यह है कि आज के शिक्षक अपने छात्र-छात्राओं के प्रति संवेदनहीन हो गए हैं। यही वजह है कि न्यायालय और सरकार ने स्कूलों में बच्चों के साथ मारपीट करने पर रोक लगा दी है। क्योंकि पिछले एकाध दशकों में कुछ बर्बर घटनाएं समाज के सामने आई थीं। ऐसा नहीं है कि स्कूलों या प्राचीनकाल के गुरुकुलों में शिक्षक अपने शिष्यों को शारीरिक दंड नहीं देते थे। 

बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए हर तरह के उपाय उपयोग में लाए जाते थे। कबीरदास ने कहा भी है कि गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़-गढ़ काढ़े खोट, अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट। पहले के गुरु अपने शिष्यों को जो सजा देते थे, उसके मूल में उनका उद्देश्य अपने शिष्यों को सुधारना होता था। वह उनके भले के लिए शारीरिक दंड देते थे। लेकिन वह अपने शिष्यों को असीम प्यार भी देते थे। वह उनका भविष्य सुधारने के लिए कोई भी प्रयास करने से भी नहीं चूकते थे। लेकिन आज शिक्षक शिक्षक नहीं रहा, सेवा प्रदाता हो गया है। सरकारी या गैर सरकारी स्कूलों में नौकर हो गया है। 

इसमें सरकार की व्यवस्था भी कहीं न कहीं दोषी जरूर है। इस महंगाई और बेरोजगारी के दौर में अध्यापक को दस-बारह हजार रुपये देकर लाखों रुपये कमाने वाले स्कूल संचालकों का रवैया भी ठीक नहीं रहता है। इससे अध्यापकों में भी एक किस्म की हताशा, आक्रोश और झुंझलाहट पाई जा रही है। ऐसी घटनाएं इसी का परिणाम है। यदि निजी स्कूलों में भी सरकारी स्कूलों के समान वेतन और सुविधाएं मिलें, तो शायद अध्यापकों के मन का आक्रोश कम हो और ऐसी घटनाएं न हों।