Saturday, July 5, 2025

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सैनी सरकार ने कसी कमर

अशोक मिश्र

वायु प्रदूषण जैसी समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारत के राज्यों में वायु प्रदूषण विकराल रूप धारण करता जा रहा है। दिल्ली में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने तो दिल्ली-एनसीआर में दस साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल चालित वाहनों को पेट्रोल पंपों पर ईंधन न देने का फैसला लिया था। 

हालांकि, राज्य सरकार ने अभी इस फैसले को लागू करने से अपने कदम वापस खींच लिए हैं। हरियाणा की सैनी सरकार ने एनसीआर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक व्यापक और बहु क्षेत्रीय कार्य योजना बनाई है। प्रदेश सरकार ने सबसे पहले पराली जलाने की समस्या से निपटने का फैसला किया है। वर्ष 2025 में किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रेरित किया जाएगा। 

पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले प्रदेश में पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं। पिछले साल सरकार ने इस मामले काफी सख्ती बरती थी। कुछ किसानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी की गई थी। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के अनुसार इस वर्ष प्रदेश में कुल 41.37 लाख एकड़ धान की खेती होने की उम्मीद है। इस खेती से प्रदेश में कुल लगभग 85.50 लाख टन पराली होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इतना ही नहीं, प्रदेश में 22.63 लाख एकड़ में बासमती और 18.74 लाख एकड़ में गैर बासमती की खेती होने का अनुमान है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में पराली को उपयोगी और किसानों के लिए लाभकारी बनाने का प्रयास किया जाएगा। 

प्रदेश सरकार ने धान की पराली को जलाने से रोकने के लिए तीन प्रमुख योजनाओं को बड़े पैमाने पर लागू करने का फैसला किया है। इसके लिए किसानों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की जा रही है। किसानों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना साबित होने वाली है। इसके तहत आठ हजार रुपये प्रति एकड़, पराली प्रबंधन के लिए 1200 रुपये प्रति एकड़ और सीधी बिजाई वाले धान के लिए साढ़े चार हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से किसानों को वित्तीय सहायता दी जा रही है। 

बस, इसके लिए किसानों को ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ पोर्टल पर आवेदन करना होगा। पोर्टल आवेदन करने से पारदर्शिता बनी रहती है। वैसे यह बात सही है कि हरियाणा हो या कोई दूसरा प्रदेश, प्रदूषण के लिए केवल पराली को जलाना ही जिम्मेदार नहीं होता है। प्रदूषण के लिए दूसरे कारण भी जिम्मेदार होते हैं। ईंट भट्ठों के साथ-साथ सड़कों पर उड़ती धूल, कचरों को जलाया जाना जैसे तमाम कार्य प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण सड़कों पर लगातार बढ़ रहे वाहन हैं जिन पर रोक लगाने की कोशिश नहीं की जा रही है।

करुणा और दया के सागर थे स्वामी महावीर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे। उनका जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तेरस को हुआ था। वैशाली गणतंत्र में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला इनके माता-पिता थे। कहा जाता है कि महावीर स्वामी का विवाह यशोदा नामक कन्या से हुआ था। इनकी एक पुत्री प्रियदर्शिनी थी जिसका विवाह राजकुमार जमाली से हुआ था। 

स्वामी महावीर ने 12 साल तक तपस्या की थी। जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार, केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद, स्वामी महावीर ने उपदेश दिया। उनके 11 गणधर (मुख्य शिष्य) थे जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे। उन्होंने पांच व्रत सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य बताए थे जो आज जैन धर्म का प्रमुख आधार है। 

एक बार की बात है। महावीर स्वामी एक वृक्ष के नीचे साधनारत थे। उनके चेहरे पर तेज था। मुखमुद्रा एकदम शांत थी। उधर कुछ उदण्ड लड़कों का समूह गुजरा। उन्होंने स्वामी जी को साधनारत देखा, तो उन्हें परिहास सूझा। एक युवक ने स्वामी जी की ओर धूल उड़ाई। 

दूसरे ने नुकीली लकड़ी उनके शरीर में चुभोई। तीसरे लड़के ने तो शरारत की हद ही पार कर दी। उसने स्वामी महावीर के ऊप थूक दिया। इसके बाद भी स्वामी महावीर की मुखमुद्रा में तनिक भी बदलाव नहीं आया। उनके चेहरे पर आत्मसंतोष और शांति पहले की ही तरह विद्यमान रही। महावीर की यह दशा देखकर युवक आपस में बातचीत करने लगे। 

एक ने कहा कि यह कैसा आदमी है? हमारे इतना कुछ करने पर भी यह शांत बैठा हुआ है। अब युवकों को अपने ऊपर पश्चाताप होने लगा था। उन्हें महसूस हुआ कि उन्होंने जो कुछ भी किया था, वह अच्छा नहीं था। वह युवक स्वामी महावीर के चरणों में गिर पड़े और क्षमा मांगने लगे। युवकों यह दशा देखकर स्वामी जी ने नेत्र खोले। अब भी उनकी मुखमुद्रा में कोई बदलाव नहीं आया था। स्वामी जी ने उन युवकों को क्षमा कर दिया।

Friday, July 4, 2025

किसान ने समझाया परिश्रम का महत्व

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

परिश्रम और संतोष दोनों ऐसे गुण हैं जिसकी वजह से कोई भी व्यक्ति न तो दरिद्र रह सकता है और न ही दुखी। कुछ लोग न्यूनतम सुख-सुविधाओं में भी अपना जीवन बहुत अच्छी तरह से गुजार लेते हैं। कुछ लोग तो तमाम सुख-सुविधाएं होने के बावजूद सुखी नहीं रहते हैं। 

एक  राज्य का राजा बहुत बीमार था। राजा के इलाज के लिए कई वैद्य आए, लेकिन उनको ठीक नहीं कर पाया। एक दरबारी ने एक दिन कहा कि यदि इजाजत हो, तो महाराज मैं निवेदन करूं। राजा की अनुमति मिलने के बाद उसने कहा कि यदि महाराज को किसी सुखी इंसान की कमीज पहना दी जाए, तो महाराज ठीक हो सकते हैं।

बस, फिरक्या था? तमाम अधिकारी पूरे राज्य में सुखी व्यक्ति की कमीज खोजने निकल पड़े। पूरे राज्य में अधिकारी खोजते फिरे, लेकिन उसे कोई भी सुखी व्यक्ति नहीं मिला। जिससे मिलते वह कोई न कोई दुख बता देता था। थक हारकर वे जब लौट रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक किसान जेठ की दोपहर में अपना खेत जोत रहा है। वह कुछ गुनगुनाता था और जोर का ठहाका लगाता था। अधिकारी उस किसान के पास पहुंचे और कहा कि क्या तुम सबसे सुखी व्यक्ति हो? 

उस किसान ने कहा कि हां, मैं सुखी व्यक्ति हूं। इस पर राज्य अधिकारी ने कहा कि मुझे राजा के इलाज के लिए आपकी कमीज चाहिए। इस पर किसान ने कहा कि मेरे पास तो कमीज तक नहीं है। इतना कहकर वह हंस पड़ा। वहां से लौटकर अधिकारी ने उस किसान की बात राजा को बताई। यह सुनते ही राजा उठकर बैठ गया और बोला, मैं समझ गया। सुख के सारे साधन होने के बावजूद सुखी नहीं हुआ जा सकता है।

अगली बार आना, तो मन को भी ले आना

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म (या बोधिधर्मन) पांचवीं शताब्दी में चीन गए थे। बोधिधर्म के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वह दक्षिण भारत के पल्लव वंश के किसी राजा की संतान थे। राजा बौद्ध धर्मानुयायी था। उसने अपने बेटे को बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए चीन भेजा था। यह भी कहा जाता है कि बीस-बाइस साल के बोधिधर्म अपने शिष्य के साथ जब चीन पहुंचे थे, तो वहां पर वू नाम का राजा शासन करता था।

 उसकी इच्छा थी कि चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार हो। एक दिन राजा वू बोधिधर्म के पास पहुंचा और उनसे कहा कि मेरा मन बहुत अशांत रहता है। मन कैसे शांत होगा, इसका कोई उपाय बताएं। बोधिधर्म ने कहा कि अगली बार आना, तो अपने मन को भी साथ ले आना। राजा अचंभित रह गया कि मन क्या कोई वस्तु है, जो अगली बार आएं, तो लेते आएं। खैर, राजा चला गया। 

कुछ दिन बाद वह फिर बोधिधर्म के पास पहुंचा और बोला, महात्मन! मन तो शरीर के भीतर ही रहता है, उसे कोई बाहर से कैसे ला सकता है। इस पर बोधिधर्म ने कहा कि आप मानते हैं कि मन जैसी कोई वस्तु नहीं होती है। तो आप एक जगह शांत होकर बैठ जाएं और अपने भीतर मन को तलाशिए। राजा वू ने अपनी भीतर झांकना शुरू किया, तो उसे पता चला कि उसकी बेचैनी दूर होने लगी है। 

वह अपनी भीतर गहराई में उतरता चला गया। जब उसका ध्यान टूटा, तो उसने कहा कि मैं समझ गया कि बेचैनी को कैसे दूर किया जा सकता है। गौतम बुद्ध ने ध्यान सिखाया था। सैकड़ों सालों के बाद बोधिधर्म ने जब ध्यान को चीन पहुंचाया, तो स्थानीय प्रभाव के कारण यह चान के रूप में जाना गया। यही चान जब आगे इंडोनेशिया, जापान और दूसरे पूर्वी एशियाई देशों तक पहुंचा, तो इसका नाम फिर बदला और जेन बन गया।

अब गंगा नदी के पानी पर टिकी प्यासे हरियाणा की निगाह

अशोक मिश्र

पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज यमुना लिंक नहर को लेकर चल रहे विवाद का कोई हल निकलता दिखाई नहीं दे रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने दस जुलाई के आसपास दोनों राज्यों को एक साथ बैठकर मामले को सुलझाने को कहा है। जब पंजाब सरकार सुप्रीमकोर्ट के कई फैसलों को मानने से इनकार कर चुकी है, ऐसी स्थिति में मामले के सुलझने के चांस कम ही हैं। उधर, हरियाणा में जलसंकट गहराता जा रहा है। गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे जिले भयंकर जल संकट की चपेट में हैं। 

इस संकट से निपटने के लिए हरियाणा सरकार ने अब अपना ध्यान गंगा नदी की ओर लगाने का फैसला किया है। सैनी सरकार ने सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह गंगा का पानी उत्तर प्रदेश से हरियाणा लाने के सभी विकल्पों पर विचार करके एक रिपोर्ट तैयार करें। हालांकि गंगा का पानी उत्तर प्रदेश से लेने का विचार पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने ढाई साल पहले किया था। इस संबंध में थोड़ी बहुत कार्रवाई भी आगे बढ़ी थी। 

अब नायब सिंह सैनी ने उसी योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। वैसे उत्तर प्रदेश ने हरियाणा को पांच विकल्प सुझाए हैं जहां से गंगा का पानी लिया जा सकता है। इनमें खतौली के पास हिंडन बैरियर, बदरुद्दीन नगर, मुरादनगर और यमुनानगर के चैनल महत्वपूर्ण हैं। सरकार की तैयारियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि हरियाणा इस मामले में 2030 तक हर हालत में गंगा का पानी अपने यहां लाने की कोशिश करेगी। वैसे भी हरियाणा के पास जितना पानी है, उससे यहां के लोगों का काम पूरा नहीं पड़ रहा है। हरियाणा में इस समय हर साल 12.72 अरब घन मीटर भूजल का दोहन किया जा रहा है, जो उपलब्ध भूजल क्षमता का करीब 136 फीसदी है। 

डायनामिक ग्राउंड वॉटर रिसोर्स असेसमेंट 2024 के अनुसार, हरियाणा में सालाना भूजल पुनर्भरण क्षमता 10.32 अरब घन मीटर (बीसीएम) आंकी गई है। इसमें से 9.36 अरब घन मीटर पानी का सालाना उपयोग किया जा सकता है।  दूसरी तरफ सालाना भूजल का हो रहा दोहन भी 11.8 से बढ़कर 12.72 अरब घन मीटर तक पहुंच गया है। ऐसी स्थिति में कई जिलों में गर्मी के मौसम में पानी को लेकर त्राहि-त्राहि मच जाती है। इस स्थिति से बचने का एक उपाय यह है कि बरसात का अधिक से अधिक पानी संचित किया जाए। 

भूजल पुनर्भरण की दर बढ़ानी होगी। वैसे भी प्रदेश सरकार ने बड़े पैमाने पर कैच द रेन मुहिम चला रखी है, लेकिन यह लक्ष्य तब तक हासिल नहीं किया जा सकता है, जब तक प्रदेश का हर नागरिक इस दिशा में अपनी सक्रिय भूमिका नहीं निभाता है।

Thursday, July 3, 2025

दीन दुखियों की सेवा में आगे रहे विद्यासागर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

उन्नीसवीं सदी में बंगाल में पैदा हुए ईश्वरचंद विद्यासागर नवजागरण काल के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। वैसे तो इनका नाम ईश्वर चंद बन्द्योपाध्याय था, लेकिन संस्कृत भाषा और दर्शन में पांडित्य हासिल कर लेने की वजह से इन्हें विद्यासागर की उपाधि प्रदान की गई थी। नारी शिक्षा और विधवा विवाह के घोर समर्थक विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर 1820 में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गांव में हुआ था। 

विद्यासागर ने जीवन भर बाल विवाह के विरोध किया जिससे शुरुआत में बंगाली समाज ने उनका विरोध भी किया, लेकिन बाद में लोगों की समझ में बाल विवाह के दुष्परिणाम आ गए। एक बार की बात है। वह अपने एक साथी विद्यारत्न के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक मजदूर सड़क के किनारे पड़ा कराह रहा है। उसे हैजा हो गया था। 

सड़क पर आते जाते लोग उसे पल भर देखते और आगे बढ़ जाते। मजदूर को देखते ही विद्यासागर ने कहा कि आज हमारा सौभाग्य है। उनके मित्र विद्यारत्न ने पूछा-कैसे? तब विद्यासागर ने उस मजदूर की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस व्यक्ति को हमारी मदद की जरूरत है। हम इसकी मदद करने लायक हैं, यह हमारा सौभाग्य ही तो है। इसके बाद विद्यासागर ने उस मजदूर को अपनी पीठ पर लादा। साथ में  ने उस मजदूर की गठरी सिर पर रख ली और विद्यासागर के साथ हो लिए। 

दोनों मित्र एक ठिकाने पर पहुंचे। विद्यारत्न पास में रहने वाले एक वैद्य को बुलाने चले गए। इस बीच विद्यासागर ने उस मजदूर का शरीर पोंछा, उसे साफ सुथरे कपड़े पहनाए। वैद्य ने आकर उसे दवा दी। दोनों मित्रों ने तीन-चार दिन तक उस बीमार मजदूर की सेवा की। जब वह ठीक हो गया, तो विद्यासागर ने कुछ पैसे देकर उसे विदा कर दिया। मजदूर दोनों का आभार व्यक्त करके चला गया। आसपास रहने वालों ने विद्यासागर के इस कृत्य की सराहना की।

अपनी रुचि के हिसाब से हुनर निखार सकेंगे हरियाणा के नौनिहाल

अशोक मिश्र

स्कूलों से ड्रॉपआउट का मुख्य कारण विद्यार्थी के परिवार की आर्थिक स्थिति से जोड़ा जाता है। इसके साथ-साथ शिक्षा के प्रति अभिभावकों की अरुचि भी विद्यार्थियों के ड्रॉपआउट का एक कारण है। जिन विद्यार्थियों के माता-पिता खुद अशिक्षित हों, ऐसी स्थिति में बच्चों के ड्रॉपआउट की  आशंका कुछ बढ़ जाती है। वैसे ड्रॉपआउट का एक कारण यह भी हो सकता है कि विद्यार्थी के रुचि के अनुसार स्कूल में न पढ़ाया जा रहा हो या उन विषयों में उन्हें पढ़ने को बाध्य किया जा रहा है जिसमें उनकी रुचि ही नहीं है। 

विद्यार्थी की रुचि इतिहास पढ़ने में है, लेकिन उसके अभिभावकों या अध्यापकों ने साइंस या कॉमर्स पढ़ने के लिए मजबूर कर दिया है। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि विद्यार्थी अपनी प्रतिभा का पूर्ण प्रदर्शन नहीं कर पाएगा। हरियाणा की सैनी सरकार ने अब बच्चों की रुचि का ध्यान रखते हुए उनकी प्रतिभा को निखारने का फैसला किया है। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बच्चों को अब उनकी रुचि के अनुसार विभिन्न विषयों में शिक्षा दी जाएगी। वर्ष 2025-26 के शैक्षणिक सत्र से सरकारी स्कूलों के बच्चों को  कौशल आधारित व्यावसायिक कोर्स पढ़ाया जाएगा। सरकारी स्कूलों में अब व्यावसायिक शिक्षा, योग, नैतिक शिक्षा के साथ-साथ श्रमदान की शिक्षा दी जाएगी। 

इन विषयों की शिक्षा देने से पहले विद्यार्थी की रुचि पूछी जाएगी, जिन विषयों में वह अच्छा कर सकता है, उन्हीं विषयों में उसे आगे बढ़ाया जाएगा। इस नए प्रयोग की शुरुआत छठवीं से लेकर आठवीं कक्षा के बच्चों से की जाएगी। स्कूल की पहले से चल रहे पाठ्यक्रम के अलावा सप्ताह में पांच दिन चालीस मिनट का एक अतिरिक्त सत्र चलाया जाएगा जिसमें इस तरह की शिक्षा दी जाएगी। 

इससे उम्मीद की जानी चाहिए कि बच्चों का स्कूल से कुछ प्रतिशत ड्रॉपआउट रुकेगा। वैसे भी सैनी सरकार ने इस साल की शुरुआत से ही सरकारी स्कूलों में शून्य ड्रापआउट लक्ष्य रखा है। पूरे प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में स्कूल छोड़ देने वाले 34 हजार बच्चों को दोबारा स्कूल की चौखट तक लाने की भी कोशिश की जा रही है। हरियाणा सरकार ने 2025-26 के शैक्षणिक सत्र में ‘हर बच्चे को स्कूल वापस लाना’ और राज्य को ‘जीरो ड्रॉपआउट’ बनाने के लक्ष्य के साथ यह अभियान शुरू किया है। 

वैसे ड्रॉपआउट बच्चों को वापस स्कूल तक लाना बहुत कठिन होता है। जो बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं, वह छोटे-मोटे कामों में लग जाते हैं। वह अपने परिवार की थोड़ी बहुत मदद करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में उनका भले ही थोड़ी कमाई हो, उसे छोड़कर दोबारा कापी, कलम और किताब पकड़ना उनके लिए आसान नहीं होता है। 

Wednesday, July 2, 2025

हमेशा समय के पाबंद रहे जार्ज वाशिंगटन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

ब्रिटिश दासता से अमेरिका को 4 जुलाई 1776 को आजादी मिली। इसके बाद अमेरिका के पहले राष्ट्रपति चुने गए जार्ज वाशिंगटन। वाशिंगटन का जन्म 22 फरवरी 1732 को वर्जीनिया में हुआ था। आगस्टाइन और मैरी बॉल वाशिंगटन की छह संतानों में जार्ज पहली संतान थे। 

हालांकि उनके अपने माता-पिता से आजीवन खराब संबंध रहे। आगस्टाइन की पहली पत्नी जेन बटलर की चार संतानों में से सबसे बड़े बेटे लारेंस से उनके संबंध काफी अच्छे रहे। अमेरिका को ब्रिटिश दासता से मुक्त कराने में जार्ज वाशिंगटन का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। बात उस समय की है, जब वह अमेरिका के राष्ट्रपति थे। एक दिन उनसे मिलने के लिए कुछ मेहमान आने वाले थे। 

राष्ट्रपति वाशिंगटन समय के बहुत पाबंद थे।
नियत समय पर जब मेहमान नहीं पहुंचे, तो उन्होंने भोजन करना शुरू कर दिया। आधा भोजन कर लेने के बाद जब मेहमान पहुंचे, तो उनके लिए प्लेटें लगाई गईं। इसी बीच राष्ट्रपति वाशिंगटन भोजन कर चुके थे। उन्हें भोजन के बाद कमांडरों की मीटिंग में जाना था। भोजन करते ही उनके सेक्रेटरी ने बताया कि आपको इसी समय कमांडरों की मीटिंग के लिए जाना है, तो वह तुरंत चले गए। 

वहां पहुंचकर उन्हें पता चला कि अमेरिका के एक हिस्से में विद्रोह हो गया है। विद्रोही काफी हैं और वह जन हानि भी पहुंचा सकते हैं। तत्काल वाशिंगटन ने अपने सैनिक कमांडरों के साथ नीतियां बनाई और उस पर अमल करने का निर्देश दिया। 

समय पर जानकारी मिल जाने से विद्रोह की आग को ठंडा कर दिया गया। जब यह बात मेहमानों को पता चली तो वह एक बार फिर वाशिंगटन से मिलने पहुंचे और देर से आने के लिए क्षमा मांगी। वाशिंगटन ने कहा कि जिनके ऊपर देश और समाज की जिम्मेदारी होती है, उन्हें समय का पाबंद रहना चाहिए।

मेलों-उत्सवों में जनभागीदारी बढ़ाने के लिए सौ करोड़ रुपये का प्रावधान


अशोक मिश्र

हाट और मेले भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान रहे हैं। देश में सदियों से हाट-मेले लगते आए हैं। इन हाट-मेलों में जहां लोगों का मनोरंजन होता था, वहीं लोग अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीदते थे। वैसे तो मेले किसी तीज-त्यौहार पर लगते थे। वहीं हाट एक किस्म का लगने वाला बाजार हुआ करता था। प्राचीनकाल में हमारे ज्यादातर तीज-त्यौहार खेती-किसानी से ही जुड़े होते थे। इस वजह से किसान और अन्य लोग अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीद लेते थे। किसान अपनी उपज हाट-मेलों में बेचकर अपनी मेहनत को नकदी में बदल लेता था। यह सिलसिला आधुनिक बाजार के विकसित होने से पहले तक चलता रहा। 

मॉल और चमकती-दमकती दुकानों का दौर शुरू होने पर हाट-मेलों की चमक फीकी पड़ती गई। नतीजा यह हुआ कि अब देश के गांवों में भी लगने वाले साप्ताहिक बाजार भी खत्म होते जा रहे हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर हरियाणा सरकार ने सूरजकुंड मेला दशहरा और दीपावली के बीच एक बार फिर आयोजित करने का फैसला किया है। सीएम नायब सैनी ने प्रदेश में तीज-त्यौहारों, मेलों और उत्सवों में जनभागीदारी बढ़ाने के लिए सौ करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। 

उन्होंने पर्यटन एवं विरासत विभाग, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के साथ समन्वय करके ऐसे सभी मेलों का आयोजन करने का निर्देश दिया है ताकि प्रदेश के सभी वर्गों के लोग इन मेलों में आकर सामाजिक सौहार्द को मजबूत कर सकें। दरअसल, सूरजकुंड मेले के आयोजन के पीछे प्रदेश सरकार की मंशा यह है कि एक तो इसी बहाने देश और प्रदेश के लोग एक दूसरे के साथ मिलकर उत्साहपूर्ण माहौल का निर्माण करते हैं। वहीं, देश और विदेश के हस्तशिल्प के कारीगर अपने उत्पादों को यहां बेचकर कमाई करते हैं। 

देश के विभिन्न राज्यों के हस्तशिल्प कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। इसका फायदा यह होता है कि देश की विभिन्न संस्कृतियों और रीति रिवाजों से मेले में आने वाले लोगों का परिचय होता है। वह अपनी संस्कृति और परंपराओं का भी प्रदर्शन करते हैं जिससे दूसरे राज्यों के लोग भी परिचित होते हैं। यह अनेकता में एकता का परिचय देने वाला एक बहुत बड़ा आयोजन बन जाता है। वैसे सूरजकुंड मेले का इतिहास 1987 से शुरू होता है, जब हरियाणा पर्यटन विभाग ने भारतीय हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इस मेले की शुरुआत की थी। 

यह मेला हर साल फरवरी में फरीदाबाद में आयोजित किया जाता है। इसका नाम दसवीं शताब्दी में तोमर वंश के राजा सूरजपाल द्वारा बनवाए गए जलाशय के नाम पर रखा गया है। अब इस मेले का आयोजन साल में दो बार होगा।

Tuesday, July 1, 2025

ऐसी सजा दो कि दिमाग बीस साल काम न करे

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

एंटोनियो फ्रांसेस्को ग्राम्स्की, जी हां! यही वह नाम है जिसके विचारों को सुनकर इटली का तानाशाह मुसोलिनी कांप उठा था। मुसोलिनी ने ग्राम्स्की पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया था। ग्राम्स्की का जन्म 22 जनवरी 1891 में एलेस में सार्डिनिया द्वीप पर हुआ था। 

यह अपने मां-पिता की सात बेटों में से चौथे थे। इनके पिता फ्रांसेस्को ग्राम्स्की को गबन का दोषी ठहराकर जब जेल में डाल दिया गया, तो मजबूरन ग्राम्स्की को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। बाद में सन 1911 में उन्होंने ट्यूरिन विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति जीती और अपनी पढ़ाई पूरी की। ग्राम्स्की जैसे-जैसे युवा होते गए, उनका झुकाव कम्युनिस्ट विचारधारा की ओर होने लगा। 

उन्हें महसूस होने लगा था कि इटली में अब एक कम्युनिस्ट पार्टी की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने उस समय के कुछ नामचीन नेताओं से इस बारे में चर्चा की। अंतत: 1921 में इटली में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की गई। ग्राम्स्की के विचार मार्क्सवादी और लेनिनवादी विचारधारा से पूरी तरह मेल नहीं खाते थे। वह एक तरह के अधिनायकवाद को सत्ता के लिए अनिवार्य अंग मानते थे। इटली की संसद में खड़े होकर उन्होंने जो कहा था, वह इस बात को साबित करते हैं। 

उन्होंने संसद में कहा था कि सत्ता केवल हथियारों से नहीं चलती है। यह संस्कृति, शिक्षा, मीडिया और नैतिकता के रास्ते दिलों में उतारी जाती है, तभी सत्ता टिकती है।  उनका यह भाषण सुनकर इटली का तानाशाह मुसोलिनी भयभीत हो गया। ग्राम्स्की पर विभिन्न आरोप  लगाकर सजा दी गई। जज ने अपने आदेश में कहा कि ऐसी सजा दी जाए कि इसका दिमाग बीस साल तक काम न करे। जेल में रहते हुए स्वास्थ्य बिगड़ने से 27 अप्रैल 1937 में मृत्यु हो गई।