Monday, July 23, 2012

‘खटमल’ करेंगे रक्तदान


-अशोक मिश्र
मित्रो! मैं आपको अपना परिचय दे दूं। मैं खटमल हूं। मेरा जीवन ही रक्त चूसने से चलता है। मेरा दावा है कि दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति ने, चाहे वह किसी भी देश का राष्ट्रपति हो, प्रधानमंत्री हो या फिर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले आम आदमी, उसने अपने जीवन में एक बार जरूर देखा होगा। मैं कुर्सियों, सोफों, बिस्तर और दीवारों के साथ-साथ कई अन्य जगहों पर भी पाया जाता हूं। आपको बहुत पहले का एक मजेदार किस्सा बताऊं। एक व्यक्ति के कंधे पर चढ़कर उत्तर प्रदेश के किसी गांव-देहात के बाजार में जाने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस मेले में एक खूबसूरत हीरोइन दिख गई। मेले के माहौल की वजह से मैं रोमांटिक हो चला था। मैं रेंगता हुआ, हीरोइन के जमीन पर लटक रहे दुपट्टे पर से होता हुआ चोली में पहुंच गया। चोली में पंहुचते ही पता नहीं क्यों और कैसे, मुझे शरारत सूझ गई। मैंने चुपके से काट लिया। हीरोइन तिलमिलाकर गा उठी, ‘बीच बजरिया खटमल काटे, कैसे निकालूं चोली से।’
तो अब आप इस किस्से से मेरे सब जगह मौजूद रहने की खासियत से परिचित हो ही गए होंगे। अगर मैं आपको अपने सर्वत्र मौजूदगी को इस तरह समझाऊं कि मैं ‘हिग्स फील्ड’ में अदृश्य रूप में  मौजूद रहने वाले हिग्स बोसॉन कणों की तरह हूं, जो मौजूद तो हर जगह रहता है, लेकिन वैज्ञानिकों को विशेष भौतिक वस्तु परिस्थितियों यानी प्रयोगशालाओं में ही दिखाई देता है, तो मेरा ख्याल है कि आप बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। एक बात मैं आपको और बता दूं। मेरी इस खास प्रवृत्ति पर अभी तक वैज्ञानिकों की दृष्टि नहीं पड़ी है। मैं जब चाहे, अपना रूपांतरण भी कर सकता हूं। आपको विश्वास नहीं हो रहा है, तो आपने आसपास के वातावरण को गौर से देखिए, आपको मेरी मौजूदगी का एहसास हो जाएगा।
अजी आपको मेरे रूपांतरित स्वरूप को तलाशना चाहें, तो राजनीति में सबसे ज्यादा मिलेंगे। कुछ लोग तो ‘खटमली’ प्रवृत्ति को इस तरह अख्तियार कर बैठे हैं, मानो वे पैदायशी खटमल हों। कुर्सी की चाह में पार्टी और आलाकमान से खटमल की तरह चिपके रहे, जोड़-जुगत करके किसी तरह अगर कुर्सी मिल गई, उससे चिपक गए। एक बार कुर्सी से चिपकने का मौका क्या मिला, लगे अपनी वंश वृद्धि करने। वंश वृद्धि हुई, तो पूरे कुनबे के साथ लगे आम आदमी का खून चूसने। दूसरे खटमल लाख चिल्लाते रहें कि तुम्हारा पेट भर गया हो, तो हमें भी मौका दो, लेकिन ये दूसरों को तब तक मौका नहीं देते, जब तक कुर्सी से ढकेल नहीं दिए जाते। नौकरशाही अर्थात् ब्यूरोक्रेसी का और भी बुरा हाल है। कई ब्यूरोक्रेट्स तो आम आदमी का इतनी बुरी तरह से रक्त शोषण करते हैं कि हम खटमलों को भी शर्मिंदा होना पड़ता है। तब हम वास्तविक खटमलों को लगने लगता है कि निरीह आदमियों के साथ कुछ ज्यादा ही ज्यादती हो रही है। सो, हमने पिछले दिनों ‘वास्तविक और कायांतरित खटमलों’ ने मिलकर एक मीटिंग बुलाई थी। इस मीटिंग का निष्कर्ष यह निकला कि हम लोग जिनका रक्त शोषण करते हैं, उनमें से ज्यादातर एनीमिया (खून कम होने की बीमारी) से पीड़ित हैं। ऐसे रक्त शोषितों में खून बनने की प्रक्रिया फिर से शुरू हो, इसके लिए जरूरी है कि उनकी नशों में थोड़ा-बहुत रक्त हो, इसलिए हम सबने मिलकर रक्त शोषितों के हित में रक्तदान का फैसला लिया है। जिस व्यक्ति को रक्त चाहिए, वह निस्संकोच हमसे संपर्क कर सकता है।
मित्रो! आप जानते ही हैं कि हम खटमल निरपेक्ष भाव से जो भी मिल जाता है, उसका रक्त शोषण करते हैं। इस मामले में हम जाति-धर्म, भाषा-प्रांत, अमीर-गरीब या ब्लड ग्रुप का भेदभाव नहीं करते हैं। हर तरह का ब्लड ग्रुप हमारे लिए सुपाच्य है। हमारी नशों में बहने वाला रक्त पांचवें किस्म का ब्लड ग्रुप बन जाता है जिसमें सभी किस्म के एंटीबॉडी और एंटीजन समान मात्रा में मौजूद रहते हैं। हां, धार्मिक, सीधा-सादा और परोपकारी व्यक्ति अगर हमारा खून चढ़ाए जाने के बाद चोर, कपटी, विश्वासघाती, देशद्रोही या आपराधिक प्रवृत्ति का हो जाए, तो इसके लिए हम किसी भी तरह से दोषी नहीं होंगे। ये सारे गुण आप लोगों के रक्त से होकर ही हम खटमलों तक पहुंचे हैं। खुदा हाफिज!

Tuesday, July 10, 2012

सेकेंड हैंड जवानी


-अशोक मिश्र
मेरे पड़ोस में रहते हैं  चचा गबोधर। चचा गबोधर मेरे कोई सगे-संबंधी नहीं हैं। जब से इस मोहल्ले में आया हूं, उन्हें चचा कहता आ रहा हूं। मेरी पत्नी भी उन्हें चचा कहती है, मेरे बेटी-बेटा भी उन्हें चचा ही कहते हैं। खुदा न खास्ता, अगर आज मेरे मरहूम वालिद जन्नतनशीं न हुए होते, तो वे भी उन्हें चचा ही कहते। मेरे कहने का मतलब यह है कि वे मोहल्ले के ही नहीं, पूरे जिले के चचा हैं। कई बार तो मजा तब आता है, जब कब्र में पांव लटकाए पचहत्तर वर्षीया ‘युवा’ परदादी उन्हें चचा कहती हैं, तो वे बेचारे खिसिया जाते हैं। लेकिन यह खिसियाहट मात्र कुछ ही क्षण रहती है। वे पहले की तरह फिर सामान्य हो जाते हैं। चचा गबोधर हम युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं। उनकी लोकप्रियता का कारण उनकी खुशमिजाजी और रसिकपना है। वे ऐसी-ऐसी रसीली बातें करते हैं कि उनके पास से उठने का मन ही नहीं करता है।
रविवार की शाम को मैं उनके घर में बैठा चाय सुड़कते हुए पकौड़े भकोस रहा था। चचा की बातें ‘चटनी’ का काम कर रही थीं। अपनी पड़ोसिन छबीली और रसीली को लेकर चचा गबोधर बड़े तरन्नुम में आलाप भर रहे थे। तभी उनके बारह वर्षीय बेटे ‘डमडम’ ने प्रवेश किया। डमडम को देखते ही चचा अपनी बात कहते-कहते रुक गए। चचा ने बेटे डमडम को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा, तो बेटे ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘पापा! जुम्मन अंकल से एक सवाल पूछना था।’ मैंने अपने मुंहबोले ‘भाई कम भतीजे’ की मदद करने की नीयत से तपाक से कहा, ‘हां...हां बेटे! पूछो क्या पूछना है?’
‘अंकल! आज सुबह चैनल पर फिल्म ‘कॉकटेल’ का एक गाना आ रहा था। उस गाने में सैफ अंकल से साथ दीपिका आंटी और एक दूसरी आंटी (जिनका नाम मुझे नहीं मालूम है।) बड़ी लिपट-चिपटकर गाती हैं ‘नहीं चाहिए मुझको तेरी सेकेंड हैंड जवानी। उसके साथ ही तुक भिड़ाने को ‘ऐंड जवानी’, ‘तेरी बैंड जवानी’ जैसे शब्द आते हैं, मैं लाख सिर खपाने के बावजूद अब तक ‘सेकेंड हैंड जवानी’ का अर्थ नहीं जान पाया हूं। अंकल, आप मुझे क्या उदाहरण सहित इस सेकेंड हैंड जवानी का अर्थ समझा देंगे।’ डमडम का सवाल सुनते ही मेरे ही नहीं, चचा गबोधर के हाथ के तोते उड़ गए। तमतमा उठे चचा। वे बेटे को डांटने वाले ही थे कि मैंने उन्हें चुप रहने का इशारा करते हुए कहा, ‘बेटे! तुम अभी छोटे हो। तुम्हें इन सब गानों के चक्कर में पड़कर अपनी पढ़ाई बरबाद मत करो।’
‘नहीं अंकल! स्कूल में मेरी गर्लफ्रेंड शोशो है न, उसको भी इसका मतलब बताना है। कल उसी ने तो मुझसे पूछा था इसका मतलब।’ डमडम ने मासूमियत से सफाई दी। पता नहीं क्यों, मुझे लगा कि अगर अभी बच्चे की उत्सुकता शांत नहीं की गई, तो वह किसी और से पूछेगा। दूसरा उसको क्या बताएगा, इसकी क्या गारंटी है। मैंने समझाने वाले लहजे में कहा, ‘जब किसी व्यक्ति की शादी हो जाती है और बाद में वह किसी लड़की से इश्क या शादी करने की सोचता है, तो उस लड़की के लिए उस व्यक्ति की जवानी सेकेंड हैंड हो जाती है।’ मेरी बात सुनकर डमडम कुछ गंभीर हुआ। उसने अपनी नाक पर गिर आए चश्मे को दुरुस्त करते हुए कहा, ‘अंकल! मैं समझ गया। अब मैं शोशो को भी इसका अर्थ संदर्भ सहित बता सकता हूं।’
मैंने उत्सुकता जताई, ‘क्या समझ गए?’ उसने उत्साहपूर्वक कहा, ‘अब जैसे उस गाने में सैफ अंकल और दीपिका और दूसरी वाली आंटी का ही मामला लें। चूंकि सैफ अंकल की शादी अमृता आंटी से एक बार हो चुकी है, तो सैफ अंकल की जवानी दीपिका और दूसरी वाली आंटी के लिए फर्स्ट हैंड तो नहीं रही न। उन दोनों आंटियों के लिए सैफ अंकल तो सेकेंड हैंड ही हुए न। एक उदाहरण और बताऊं, अंकल! अभी थोड़ी देर पहले आप और पापा छबीली और रसीली आंटी के बारे में ‘गल्लां-बातां’ (बातचीत) कर रहे थे। छबीली और रसीली आंटी के लिए मैं तो फर्स्ट हैंड हूं और ये दोनों आंटियां मेरे लिए सेकेंड हैं, लेकिन आप दोनों वे दोनों और उन दोनों के लिए आप दोनों सेकेंड हैंड ही हैं।’ इतना कहकर डमडम मुस्कुराता हुआ कमरे से बाहर चला गया। उसके जाते ही चचा गबोधर फट पड़े, ‘मियां जुम्मन! यह नई पीढ़ी तो समझो, निकम्मी निकल गई। इस पीढ़ी से अब मुझे तो कोई उम्मीद रही नहीं, एकदम बेकार है यह नई पीढ़ी। इसके अभी से पर निकल आए हैं।’ चचा गबोधर लगभग आधे घंटे तक नई पीढ़ी को उपदेश देते रहे और मैं चुपचाप सुनता रहा।

Sunday, July 1, 2012

तीन करोड़ का चूहा


-अशोक मिश्र
जांच अधिकारी मिस्टर मुसद्दी लाल ने चौकीदार कल्लन मियां से पूछा, ‘तीन करोड़ का गेहूं गायब हो गया और तुम्हें पता नहीं चला?’ कल्लन मियां ने पान की पीक गेहूं की बोरियों पर थूकते हुए कहा, ‘साहब! इस देश से बहुत कुछ गायब हो जाता है, किसी को कुछ पता चलता है क्या? फिर तीन करोड़ रुपये के गेहूं की क्या बिसात है!’
‘क्या मतलब?’ मुसद्दी लाल चौंक पड़े, ‘तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?’ कल्लन मियां दांतों के बीच फंसी मोटी सुपाड़ी को चबाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘सर, आप अधिकारी हैं। मेरी नौकरी आपकी कलम की मोहताज है। आप चाहें, तो मेरी नौकरी ले सकते हैं और चाहें, तो बचा सकते हैं। लेकिन सर! एक बात पूछूं? इस देश के नेताओं की नैतिकता, सेवा और लोककल्याण की भावना कब गायब हो गई, आपको पता चला? अधिकारियों की कर्तव्य परायणता नामक चिड़िया कब फुर्र हो गई, किसी को पता चला? भ्रष्टाचार रूपी बाज ने देखते ही देखते सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, अधिकारियों से लेकर हम चपरासियों की ईमानदारी को निगल लिया, आपको या देश के किसी नागरिक को पता चला? दूर क्यों जाते हैं? मेरे पड़ोसी जुम्मन मियां की बेटी को कल भरे चौराहे से कोई उठा ले गया, जिन पर हम सबकी सुरक्षा का भार था, उसे पता चला? नहीं न! ठीक उसी तरह इस गोदाम से कब तीन करोड़ रुपये के गेहूं गायब हो गए, हमें पता नहीं चला।’
इस पूछताछ के दौरान गोदाम के अफसर और अन्य कर्मचारी हाथ बांधे जांच अधिकारी मुसद्दी लाल के आगे पीछे डोल रहे थे। ये गोदाम के अधिकारी और कर्मचारी चाहते थे कि मुसद्दी लाल कुछ ले-देकर मामले को रफा-दफा कर दें, लेकिन मुसद्दी लाल थे कि पूरे मामले को बेपर्दा करने पर ही उतारू थे। उन्होंने कल्लन को घूरते हुए कहा, ‘मियां! कुछ भी हो, तुम्हें तो यह बताना ही पड़ेगा कि तीन करोड़ के गेहूं आखिरकार गए कहां? यह गेहूं तुम लोगों ने या तो किसी ब्लैकमार्केटिए या बिस्कुट कंपनी को बेच दिया है या फिर खुद खा गए हो। चलो, मान लिया कि तुम लोगों की लापरवाही से यह गेहूं सड़ गया है, तो तुम लोग यह सड़ा हुआ गेहंू ही क्यों नहीं दिखा देते। मैं अपनी रिपोर्ट में लिख दूंगा। तुम लोग भी बच जाओगे और मेरी जांच भी पूरी हो जाएगी।’
कल्लन मियां को ऐसी जांचों का अच्छा खासा तजुर्बा था। वहीं, बगल में खड़े बड़े बाबू घबराहट में बार-बार जीभ फिराकर होठों को तर कर रहे थे क्योंकि चौकीदार के बाद पूछताछ उनसे ही होने वाली थी। कल्लन के मुंह की सुपारी शायद अब तक छोटे-छोटे टुकड़ों में तब्दील हो चुकी थी। उन्होंने ‘पिच्च’ से एक बार फिर बोरियों पर थूकते हुए कहा, ‘साहब! सच बताऊं। जितना भी गेहूं गायब है, वह सारा गेहूं चूहे खा गए हैं। अगर बाकी बचे गेहूं की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं होती, इसे भी चूहे खा जाएंगे और हम आप बस हाथ मलते रह जाएंगे।’
मुसद्दी लाल यह सुनकर उछल पड़े, ‘क्या चूहे खा गए? यह कैसे हो सकता है। कोई दो-चार किलो गेहूं तो था नहीं कि उसे चूहे खा जाएं और किसी को पता भी नहीं चले। यह पूरे तीन-चार सौ मीट्रिक टन गेहूं का मामला है। इतना गेहूं चूहे कैसे खा सकते हैं। कितने चूहों ने खाया होगा इतना सारा गेहूं?’ मुसद्दी लाल की बात सुनकर कल्लन मियां हंस पड़े, ‘साहब! इस देश में जिधर निगाह दौड़ाइए, मुझे तो चूहे ही चूहे नजर आते हैं। अरे! पूरे देश को चूहों ने कुतर कर रख दिया है और आप चूहों की संख्या पूछते हैं। आप किसी भी महकमे की कार्यप्रणाली देख लें। ऊपर से नीचे तक चूहे ही चूहे भरे हुए हैं। कोई कागज कुतर रहा है, तो कोई देश की पूरी अर्थव्यस्था को कुतरने में लगा हुआ है। कोई सरकारी योजनाओं को कुतर रहा है, तो कोई जनता की जेब। छत्तीसगढ़ में तो डॉक्टरों को कुछ नहीं मिला, तो वे औरतों की बच्चेदानी ही कुतर गए। अब आप कहां-कहां तक चूहेदानी लगाकर इन चूहों को पकड़ते फिरेंगे।’ इतना कहकर कल्लन मियां बगलवाले स्टोर में गए और एक चूहादानी लेकर लौटे। उसमें एक भारी भरकम चूहा कैद था। उन्होंने जांच अधिकारी मुसद्दी लाल को थमाते हुए कहा, ‘साहब! इस चूहे को ले जाइए और सरकारी खजाने में इसे जमाकर दीजिए। अपनी जांच रिपोर्ट में लिख दीजिए कि यही वह चूहा है जो तीन करोड़ रुपये के गेहूं खा गया है।’ इतना कहकर कल्लन मियां एक तरफ खड़े होकर पान चबाने लगे और मुसद्दी लाल कभी कल्लन को, तो कभी चूहे को निहारते रहे।