Thursday, January 28, 2021
सिर्फ यही एक विकल्प है
Sunday, January 24, 2021
मुर्दे कभी विद्रोह नहीं करते
Wednesday, January 20, 2021
यकीन मानो
-अशोक मिश्र
हम बोलेंगे, विरोध करेंगे
तुम्हारी जनविरोधी नीतियों और शोषक व्यवस्था के खिलाफ
हम लामबंद करेंगे उन लोगों को
जिनके जिस्म और आत्मा पर दर्ज हैं तुम्हारी बर्बरता की कहानियां
हम तैयार करेंगे एक हरावल दस्ता
उन लोगों का जिनके सपनों को कुचल दिया है तुमने फौजी बूटों के तले
हम खोजते रहेंगे राख में पड़ी एक चिन्गारी
भले ही कुचल दो हमें
अपनी बख्तर बंद गाड़ियों और पैटर्न टैंकों के तले
भले ही हमें अपने परमाणु बमों में बांधकर फेंक दो अंतरिक्ष में
भले ही काट दो हमारी जुबां
ताकि निकल न सके विद्रोही स्वर
तुम्हारा दमन न सह पाने से निकलती चीख को
रोकने के लिए सिल दो होंठ भले ही
भले ही सागर में फेंक दो सारी दुनिया की कलम-दवात
बहा दो नाली में सारी स्याही
ताकि कुछ लिखा न जा सके तुम्हारे खिलाफ।
हम तब भी लिखेंगे
अपनी हड्डियां अपने साथी को देकर
ताकि वह इन हड्डियों की नोक से जमीन पर
गुफाओं की दीवारों पर
तुम्हारे महलों और अट्टालिकाओं की दीवारों के किसी कोने में
इन्कलाब लिख सके
हम अपनी मूक आंखों से कहेंगे अपनी दास्तां
कटी जुबान वाले चेहरे की भाव भंगिमा से ही
लोग अनुमान लगा लेंगे तुम्हारी बर्बरता की पराकाष्ठा का
हम मिटकर भी बो जाएंगे
बगावत की फसल, यकीन मानो।