Monday, June 27, 2011

स्वामी जी के राहु-केतु

-अशोक मिश्र

आज सुबह चाय पिलाने के बाद बेगम ने हाथ में थैला और नेताओं के करेक्टर की तरह सड़े-गले नोट थमाकर फरमान जारी किया, 'ऊंट की तरह गले तक चाय भर चुके हों, तो घर का एक काम कर दीजिए। बाजार से सब्जी खरीद लाइए।Ó बेगम की व्यंग्यात्मक लहजे में कही गई बात चुभ गई। मैंने सचमुच ऊंट की तरह गर्दन ऊंची की और कहा, 'बेगम...जरा सुर में बात किया करो, तुम्हारा पति हूं। अगर तुम्हारा सुर ज्यादा ही बेसुरा हुआ, तो समझो तुम्हारी फाइल बाबा रामदेव की तरह निपटते देर नहीं लगेगी। अभी इतना भी बूढ़ा नहीं हुआ हूं कि दूसरी न मिल सके।Ó

बेगम ने मुझे बाहर की ओर ढकेलते हुए कहा, 'जाइए...जाइए...दिग्गी राजा की तरह बहकिए नहीं। जल्दी से सब्जी लेकर आइए, नहीं तो सिर्फ दाल-रोटी खाकर काम चलाना पड़ेगा।Ó मैंने सोचा कि कौन इसके मुंह लगे। सो, थैला और नोट लेकर बाहर निकल आया।

घर से जैसे ही बाहर निकला, किसी चमचमाती नई बीडब्ल्यूएम की तरह आगे आकर खड़ी हो गई। मैं छबीली को कई बार समझा चुका हूं कि तू भगवान भास्कर की तरह मुझे दर्शन मत दिया कर। लेकिन वह है कि किसी न किसी बहाने मुझसे टकरा ही जाती है। एक तो मेरा मूड पहले से ही बिगड़ा हुआ था। मैं उसे देखते ही भड़क उठा, 'देख छबीली...तुझे देखते ही पता नहीं क्यों मेरा दिल सत्याग्रह करने पर आमादा हो जाता है, दिमाग अनशन पर बैठ जाता है। इसलिए मुझ पर इतनी दया कर कि इस तरह दशहरे का हाथी बनकर मेरे सामने न आया कर।Ó
छबीली मेरी बात सुनकर मुस्कुराई। बोली, 'मेरी मानो, तो अपनी कुंडली लेकर किसी ज्योतिषी के पास चले जाइए। आपका कल्याण हो जाएगा। मुझे लगता है कि आपके ग्रह ठीक नहीं चल रहे हैं।Ó

मैंने तल्ख स्वर में कहा, 'पहले तो तू अपने ग्रहों को संभाल। कभी इनसे नैन मटक्का करते हैं, तो कभी उनसे। तेरी तो वही हालत है कि बुढिय़ा औरों को सीख दे और अपनी खटिया भीतर ले।Ó

मेरी बात सुनकर भी छबीली नहीं भड़की। वह मुस्कुराती हुई बोली, 'आप ग्रहों को कम मत समझिए। अपने योग गुरु स्वामी जी को ही लीजिए। उनकी कुंडली के सातवें घर में बैठा चंद्रमा तीसरे ग्रह में बैठे गुरु से टांका भिड़ा बैठा, तो उन्हें वो करना पड़ा जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की। बेचारे स्वामी जी को आधी रात में कुर्ता-सलवार पहनकर भागना पड़ा। शुक्र और राहु ने पल्टासन किया, तो बेचारे हरिद्वार में बिना खाये-पिये अनशन पर बैठे हैं। सरकार उनकी सुन नहीं रही है।Ó

छबीली की बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। घरैतिन से हुई 'किच-किचÓ और सब्जी लाने की बात भूलकर उससे बतियाने लगा। मैंने अपने चेहरे पर बत्तीस इंची मुस्कान बिखेरते हुए कहा, 'और क्या गुल खिलाते हैं तुम्हारे ये ग्रह?Ó

मेरी बात सुनकर छबीली उत्साह में आ गई। वह बोली, 'मेरे ग्रह...तुम मेरे ग्रहों की बात छोड़ो। उनकी चाल तो शुरू से ही उलटी रही है। मुझे तो चिंता स्वामी जी के ग्रहों को लेकर हो रही है। बेचारे उधर अनशन पर बैठे हैं और इधर उनके ग्रह ही उनकी भट्ठी बुझाने पर तुले हुए हैं। अब देखिए न! अगर उनके नवें घर में बैठा शनि दूसरे घर में बैठे मंगल एक दूसरे से न टकराते, तो स्वामी जी काहे को रामलीला मैदान में अनशनलीला शुरू करते। बेचारे अनशन पर बैठे इसलिए थे कि वे भी अन्ना हजारे की तरह दूसरे गांधी नहीं, तो तीसरे गांधी बन ही जाएंगे। लोग उनकी जय-जयकार करेंगे। जब वे राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लडेंगे, तो देश की जनता उन्हें सिर आंखों पर बिठाएगी। उनके मन में उपजी लालसा और अहंकार शनि के नवें घर में बैठने से ही है। अगर यह किसी तरह कूद कर चौथे घर में बैठ जाता, तो फिर समझो कि स्वामी जी के बेड़ा पार हो जाता। लेकिन अफसोस की शनि नवें घर में किसी ढीठ किरायेदार की तरह जमकर बैठा हुआ है। अब वह पांचवें घर में बुध के साथ मिलकर उनकी कंपनियों की जांच करा रहा है। उनकी ढंकी छिपी इज्जत का फालूदा बनाकर जनता में बांटने की फिराक में है।Ó इतना कहकर छबीली सांस लेने के लिए रुकी। मैंने उससे कहा, 'अगर स्वामी जी के ग्रह इतने ही कुढंगी चाल चल रहे थे, तो अब तक वे इतने फेमस कैसे हो गए।Ó

'उन्हें फेमस तो होना ही था। सच बताऊं। यह उस समय सीधे चल रहे ग्रहों का ही कमाल था कि स्वामी जी खाये-मुटाए तोंदियल लोगों को योग के नाम पर कसरत सिखाकर खूब चांदी कूट रहे थे। ये खाए-अघाए लोग भी योग के नाम पर रत्ती भर चर्बी घटाने के लिए योगगुरु..योगगुरु के नाम की माला जपते फिर रहे थे। स्वामी जी के किसी शिविर में कोई नंगा-भूखा गया हो, तो बताइए। अरे, स्वामी के कुंडली के सातवें घर में पिछले कई दशक से घर जवांई की तरह रहने वाला केतु उन्हें हजारों करोड़ रुपये का स्वामी बना गया। स्वामी जी तो शिविर में आगे बैठने, पीछे बैठने या बीच में बैठने का भी अलग से चार्ज करते थे।Ó छबीली इतना कह हंसी, तभी दरवाजे पर बेगम नजर आईं और मुझे छबीली के साथ देखकर बोलीं, 'अच्छा, तो आप अभी तक यहीं अटके हुए हैं। मैं तो सोच रही थी कि आप लौट रहे होंगे। और जनाब यहां नैन-मटक्का कर रहे हैं।Ó घरैतिन को देखकर मैं यह कहते हुए पतली गली से सब्जी मंडी की ओर दौड़ पड़ा कि 'बेटा! जल्दी से फूट लो, वरना कुंडली के राहू-केतु भरतनाट्यम करने लगेंगे। ये राहु-केतु सीधे चलें, तो बीवी से पिटवाते हैं और उल्टे चलें, तो पड़ोसन से।Ó

हाईवे पर 'रामदेव' ढाबा

-अशोक मिश्र

पिछले काफी दिनों से पता नहीं क्यों विरक्ति का भाव मन में पैदा हो रहा था। बाबा होने का ख्याल मन में घर करता जा रहा था। वैसे भी बाबाओं के ठाट-बाट देखकर मुझे बाबा होना कोई बुरा नहीं लग रहा था। बाबा तो मैं तब भी बनना चाहता था, जब छबीली से टांका भिड़े दो साल हो गए थे और छबीली का बाप अपनी बेटी का हाथ मुझे सौंपने को तैयार नहीं हो रहा था। अपनी विरक्ति और बाबा बनने की बात छबीली को बताई तो वह उछल पड़ी, 'वाह गुरु! क्या आइडिया सूझा है तुम्हें। तुम बाबा बनो और मैं तुम्हारी चेलिन।'

मैंने डपटते हुए कहा, 'खबरदार! जो तुमने मेरे साथ सटने का प्रयास किया। जब मैं तुम्हारे पीछे पागल बना घूम रहा था, तब तो तुम अपने बाप के पाले में बैठी चोर-सिपाही का गेम खेल रही थी। अब जब मैं भगवान से लौ लगाने जा रहा हूं, तो मेनका बनकर मेरा तप भंग करना चाहती है। तुझे किस आधुनिक इंद्र ने मेरे पीछे लगा दिया है।'
'ओए...बाबा की दुम! अन्ना हजारे की तरह ज्यादा भाव मत खा। थोड़ा-सा मुंह क्या लगा लिया, अपने को रामदेव समझने लग पड़ा। मैं तो तेरे साथ क्या, तेरी ही गाड़ी में हरिद्वार तक जाऊंगी। देखती हूं, तू मेरा क्या बिगाड़ लेता है।' अब छबीली अपनी औकात में आ गई थी। छबीली जब भी अपनी औकात में आती है, मैं अपनी औकात भूल जाता हूं।

सो, मैंने हथियार रखते हुए कहा, 'ठीक है। मेरे साथ चल, लेकिन मेरी प्रमुख चेलिन तू नहीं बनेगी... हां।'
बात तय हो गई। मैंने अपने पड़ोस में रहने वाले लंगोटिया यार मुसद्दीलाल को पकड़ा और उनकी गाड़ी लेकर हरिद्वार के लिए निकल पड़ा। निकलते समय सोचा था कि यदि अपनी वहां कोई सेटिंग हो गई, तो बाबा बन जाऊंगा। यदि कोई सेटिंग नहीं हुई, तो घूम-फिरकर लौट आऊंगा। हरिद्वार पहुंचते-पहुंचते दोपहर हो गई। भूख काफी तेज लग आई थी। छबीली के पेट में तो चूहों ने बाकायदा पोस्टर-बैनर लेकर अनशन शुरू कर दिया था। गाड़ी रफ्तार में भागी चली जा रही थी कि एकाएक छबीली जोर से चिल्लाई, 'रोको...गाड़ी रोको...!'

ड्राइवर ने हड़बड़ाकर गाड़ी रोक दी। मैंने देखा कि दायीं तरफ एक ढाबा था। ढाबे का नाम था 'रामदेव ढाबा।' मैं चौंक गया। मेरे मन में एक संदेह ने सिर उठाया कि कहीं यह ढाबा अपने योगगुरु स्वामी जी का कोई नया वेंचर तो नहीं है। छबीली गाड़ी रुकते ही लपककर फाइव स्टार होटल से भी ज्यादा आलीशान ढाबे पर पहुंची और रिसेप्शन के सामने रखे कीमती सोफे पर ढह गई। रिसेप्शन पर बैठी बाला के अलौकिक सौंदर्य को देखकर मैं दहशत में आ गया। मन ही मन 'राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवनसुत नामा' का जाप कर मन में उठ रहे विकारों को दमित करने और 'साधु' बनने का प्रयास करते हुए कहा, 'माते! हम दोनों तुच्छ प्राणी बिभुक्षित (भूखे) हैं। हमें भक्षणार्थ को कुछ मिलेगा।'

उस बाला ने अमृतमयी वाणी में कहा, 'बिभुक्षित हो, तो पहले अपनी वासनाओं का भक्षण करो, विकारों को उदरस्थ करो। अपनी तृष्णाओं का पान करो। भूख मिट जाएगी।' रिसेप्शनिष्ट ने नहले पर दहला जड़ते हुए कहा। यह सुनते ही भूख से बिलबिला रही छबीली बौखला उठी। उसने चिघाड़ते हुए कहा, 'ओ साध्वी की बच्ची! यहां हमारे पेट में चूहे कूद रहे हैं और तू हमें ज्ञान पिला रही है। यह बता तेरे इस ढाबे में खाने को क्या-क्या है?'

मशीनी अंदाज में उस बाला ने बताना शुरू किया, 'योग कोफ्ता, योग पुलाव, लंबितासन रोटी, विलंबित नॉन, पल्टासन भुजिया, फ्राइड मकरासन दाल विद बटर, नैन-मटक्का चटनी....'

'बस...बस...यह तू खाने का आइटम बता रही है या किसी हेल्थ क्लब में सिखाये जा रहे आसनों की जानकारी दे रही है।' छबीली के दिमाग का पारा नीचे आने को तैयार ही नहीं था।

छबीली की बात सुनकर रिसेप्शनिष्ट ने शांत भाव से कहा, 'मैडम...यह हमारे ढाबे का मेन्यू है। यहां परोसे जाने वाले हर व्यंजन का एक औषधिय गुण है। यह आम ढाबे में परोसे जाने वाला खाना नहीं है। अब आप योग कोफ्ता को ही लें। इसे खाने से पहले व्यक्ति भले ही सन्नी देओल की तरह कहता फिरता रहा हो कि जब दस किलो का हाथ पड़ता है, तो आदमी उठता नहीं उठ जाता है। लेकिन योग कोफ्ता खाने के बाद व्यक्ति पुलपुला हो जाता है। अंदर से खाली, लेकिन बाहर से भरा हुआ दिखता है। पल्टासन भुजिया खाने वाली महिलाओं के सिर्फ बेटा ही होगा, इसकी गारंटी हमारा ढाबा लेता है। हमारे ढाबे की नैन मटक्का चटनी खाने से रूठी हुई प्रेमिका या पत्नी अपना गुस्सा थूककर मान जाती है।' मैंने हस्तक्षेप किया, 'आज की खास रेसिपी क्या है?'

'मंच कूद हलवा, सलवार-कुर्ता पहन खीर...' रिसेप्शनिष्ट ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

छबीली ने मेरा हाथ पकड़कर बाहर खींचते हुए कहा, 'भूख से भले ही मैं मर जाऊं। लेकिन इस ढाबे का पानी तक नहीं पीना है। चलो यहां से।' और मैं कटी पतंग के साथ लटकने वाली डोर की तरह छबीली के साथ खिंचता हुआ गाड़ी तक आया और छबीली ने धक्का देकर मुझे गाड़ी में ठूंसा और ड्राइवर से कहा, 'चलो...वापस चलो। हो गई संत और साध्वी बनने की इच्छा पूरी।' ड्राइवर ने गाड़ी वापस लौटा दी।