Tuesday, June 20, 2017

लौह पुरुष के अंतिम सपने का बिखर जाना

अशोक मिश्र
लौह पुरुष को रात भर नींद नहीं आई। उनकी पीड़ा का पारावार नहीं है। उन्हें आज पहली बार अपनी भलमनसाहत पर अफसोस हुआ। वट वृक्ष रूपी जो दल आज जब भारतीय राजनीति में अनंत शाखाएं फैलाए गर्वोन्नत खड़ा है, उसका बीजारोपण उन्होंने ही किया था। जब यह पौधा उगा था, तब लौह पुरुष और उनके एक अन्य साथी के रूप में दो ही पत्तियां इसमें थीं। लौहपुरुष और उनके साथी ने दल को अपनी जिजीविषा, मेहनत और कर्मठता के साथ धर्मवादी विचारधारा को सड़ा गलाकर खाद-पानी बनाया, उस वट वृक्ष को पुष्पित-पल्लवित किया। और उनका दुर्भाग्य देखिए कि एकाएक वट वृक्ष का माली ही बदल गया। उनकी प्रतिबद्धता और नीयत पर सवाल उठाए जाने लगे। नए माली ने पूरे बाग पर कब्जा कर लिया। यह वही माली था, जिसे कभी उसकी कारगुजारियों से नाराज होकर लौह पुरुष के साथी राजनीतिक वनवास दे देना चाहते थे। लेकिन यह लौह पुरुष ही थे, जो उसके सामने ढाल बनकर सामने खड़े हो गए थे।
उस माली ने बाग पर कब्जा करने के बाद सबसे पहले लौहपुरुष के पर कतरे। लौह पुरुष छटपटाकर रह गए। नए माली ने न केवल उन्हें बाग की चहारदीवारी से बाहर खदेड़ दिया, बल्कि उन्हें राजनीतिक वनवास ही दे दिया। लौह पुरुष को यह उम्मीद थी कि नया माली शायद उन्हें लौह पुरुष से शिखर पुरुष बना दे, लेकिन आज उनका यह अंतिम सपना भी टूटकर बिखर गया। वैसे सपने तो उनके कई टूटे, लेकिन यह सोचकर संतोष कर लिया, चलो..प्रधान नहीं बन पाए, तो क्या हुआ डिप्टी तो बन ही गए थे। लौहपुरुष की उपाधि तो जनता ने बड़े आदर-सम्मान के साथ दे ही दी। कहां सोचा था कि एक दिन इतिहास रचेंगे। इतिहास में नाम दर्ज हो जाएगा। नाम तो अब भी दर्ज होगा लौह पुरुष का, लेकिन हाशिये पर ढकेल दिए गए बेचारे पुरुष के तौर पर।


एक बहुत पुरानी कहावत है-जाके पैर न फटी बिंवाई, सो क्या जाने पीर पराई। लौह पुरुष का दर्द वही जान सकता है, जिसके सपने मुट्ठी से झरती रेत की तरह हाथ से निकल गए हों। भाग्य की विडंबना देखिए, जिस दल रूपी वट वृक्ष की रक्षा के लिए बेचारे लौह पुरुष जिंदगी भर कउआ हंकनी करते रहे, उसी दल के मालियों ने उन्हें यह सिला दिया। उनका आखिरी सपना भी बड़ी बेमुरौवत्ती से तोड़ दिया। आज लौह पुरुष को ठीक वैसे ही अफसोस हो रहा है, जैसे मुगल बादशाह औरंगजेब को अपनी जिंदगी की आखिरी रात में हजारों लोगों के कत्लेआम का पछतावा था। दल को खड़ा करने के लिए लौह पुरुष पूरे देश में यात्रा लेकर घूमे-फिरे, सोमनाथ तक गए। तब उम्र के हिसाब से भले ही पक्के यानी अधेड़ रहे हों, लेकिन उनका जोश और जुनून बिल्कुल कच्चा था। पूरे देश के भक्तों ने उनके इस कउआ हंकनी पर जोर-शोर से तालियां पीटी, बधाइयां दी थीं। पूरा देश लहालोट हो रहा था। उनके आगे-पीछे लोग बिछे जा रहे थे। वे जिधर मुंह उठाकर चल देते, हजारों-लाखों की भीड़ साथ चल पड़ती थी। ...और आज वह दिन है कि लौह पुरुष अपने कमरे में लेटे आंतरिक पीड़ा से कराह रहे हैं और कोई उनकी पीड़ा पर मरहम रखने वाला नहीं है।

Wednesday, June 14, 2017

‘हॉफ गर्लफ्रेंड’ के चक्कर में पिटे मुसद्दी लाल

अशोक मिश्र
आज सुबह पड़ोसी मुसद्दी लाल फटे और बदरंग भीगे जूते जैसा मुंह सुजाये मेरे घर में नमूदार हुए। वे किसी सड़क हादसे का शिकार हुए वाहन की तरह टूटे-फूटे दिख रहे थे। उनका नेशनल हाईवे जैसा सुदर्शनी चेहरा किसी गिट्टी युक्त कच्ची सड़क जैसा हो गया था। आंखों और गालों के पास की सूजन ठीक वैसे ही उभरी दिखाई दे रही थी, जैसे किसी ऊबड़खाबड़ सड़क के किनारे जगह-जगह नाली की गाद निकालकर सूखने के लिए कामचोर सफाई कर्मचारी ने रख दी हो। मैंने सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘अरे भाई साहब..यह क्या हुआ? आपकी यह हालत कैसे हुई? कहीं आपने अपना स्कूटर कहीं ठोक तो नहीं दिया?’
मेरी बात सुनकर मुसद्दी लाल ने फेफड़े में गहरी सांस इस तरह खींची, मानो सारी पृथ्वी की हवा सोखकर ही मानेंगे। पहले तो वे थोड़ी देर तक अपने सूजे गाल को सहलाते रहे, जैसे कोई बुजुर्ग टॉफी या चाकलेट लेने की जिद के कारण पिटे हुए बच्चे का गाल सहलाकर उसे चुप कराने की कोशिश करता है, फिर बोले, ‘हॉफ गर्लफ्रेंड’ के चक्कर में बीवी से पिट गया, यार! मेरी बीवी भी न…एकदम अकल से पैदल है। अकल के पीछे लट्ठ लिए घूमती रहती है। सारी दुनिया बदल गई। अपना देश बदल रहा है। इंडिया से न्यू इंडिया, डिजिटल इंडिया, और न जाने कैसे-कैसे इंडिया हो रहा है। देश के युवा फुल गर्लफ्रेंड, हॉफ गर्लफ्रेंड, क्वार्टर गर्लफ्रेंड की अवधारणा को बहुत पीछे छोड़कर माइक्रो और मिनी गर्लफ्रेंड/ब्वायफ्रेंड तक आ गए हैं। लेकिन वह कमबख्त अभी तक करवाचौथ, पतिव्रता, पत्नीव्रता जैसी वाहियात बातों में उलझी हुई है।’
मैंने मुसद्दी लाल से कहा, ‘आप बातों की जलेबी तलने की बजाय साफ-साफ बताइए कि मामला क्या है? यह लाल बुझक्कड़ों की तरह पहेलियां बुझाना बंद कीजिए, समझे आप। वैसे एक बात बताऊं। इस बुढ़ापे में भी आप छबीली से नैनमटक्का करने से बाज नहीं आते हैं। यह मैं कई बार देख चुका हूं।’ मेरी बात सुनकर मुसद्दी लाल सिटपिटा गए। फिर गला खंखारकर बोले, ‘बात दरअसल यह है कि कल शाम को सब्जी खरीदते समय छबीली से मुलाकात हो गई थी। पता नहीं, मुझ पर क्या खब्त सवार हुई। मैं उससे बतियाने लगा। बात करते-करते हम दोनों सड़क के किनारे उगे पीपल के पेड़ के नीचे खड़े हो गए। वह मेरी पत्नी को दीदी कहती है, इसलिए मैंने साली समझकर इतना कहा था कि तुम मेरी हॉफ गर्लफ्रेंड बनोगी? मेरे प्रस्ताव को सुनकर वह नासपीटी हंस पड़ी। उसके लजाने, शरमाने और दांतों तले अंगुली दबाने को मैंने उसकी सहमति समझकर हाथ पकड़ लिया। इस पर भी उसने आपत्ति नहीं जताई। थोड़ी बहुत रसीली बातों के बाद हमने सब्जी खरीदी और घर आ गए। इस बीच छबीली ने आकर तुम्हारी भाभी को हॉफ गर्लफ्रेंड वाली बात बता दी। इसके अलावा क्या-क्या बताया राम जाने।’
इतना कहकर मुसद्दी लाल बोले, ‘तभी से बीवी ने पांचजन्य फूंक रखा है। घर कुरुक्षेत्र बना हुआ है। हम दोनों कौरव-पांडवों की तरह युद्धरत हैं। मेरे क्षत-विक्षत अंग देख रहे हो, यह सब छबीली को हॉफ गर्लफ्रेंड बनने का प्रस्ताव देने का नतीजा है।’ इतना कहकर मुसद्दी लाल कराहने लगे, मैं उन्हें निरीह भाव से देखता रहा।