अशोक मिश्र
आज सुबह पड़ोसी मुसद्दी लाल फटे और बदरंग भीगे जूते जैसा मुंह सुजाये मेरे घर में नमूदार हुए। वे किसी सड़क हादसे का शिकार हुए वाहन की तरह टूटे-फूटे दिख रहे थे। उनका नेशनल हाईवे जैसा सुदर्शनी चेहरा किसी गिट्टी युक्त कच्ची सड़क जैसा हो गया था। आंखों और गालों के पास की सूजन ठीक वैसे ही उभरी दिखाई दे रही थी, जैसे किसी ऊबड़खाबड़ सड़क के किनारे जगह-जगह नाली की गाद निकालकर सूखने के लिए कामचोर सफाई कर्मचारी ने रख दी हो। मैंने सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘अरे भाई साहब..यह क्या हुआ? आपकी यह हालत कैसे हुई? कहीं आपने अपना स्कूटर कहीं ठोक तो नहीं दिया?’
मेरी बात सुनकर मुसद्दी लाल ने फेफड़े में गहरी सांस इस तरह खींची, मानो सारी पृथ्वी की हवा सोखकर ही मानेंगे। पहले तो वे थोड़ी देर तक अपने सूजे गाल को सहलाते रहे, जैसे कोई बुजुर्ग टॉफी या चाकलेट लेने की जिद के कारण पिटे हुए बच्चे का गाल सहलाकर उसे चुप कराने की कोशिश करता है, फिर बोले, ‘हॉफ गर्लफ्रेंड’ के चक्कर में बीवी से पिट गया, यार! मेरी बीवी भी न…एकदम अकल से पैदल है। अकल के पीछे लट्ठ लिए घूमती रहती है। सारी दुनिया बदल गई। अपना देश बदल रहा है। इंडिया से न्यू इंडिया, डिजिटल इंडिया, और न जाने कैसे-कैसे इंडिया हो रहा है। देश के युवा फुल गर्लफ्रेंड, हॉफ गर्लफ्रेंड, क्वार्टर गर्लफ्रेंड की अवधारणा को बहुत पीछे छोड़कर माइक्रो और मिनी गर्लफ्रेंड/ब्वायफ्रेंड तक आ गए हैं। लेकिन वह कमबख्त अभी तक करवाचौथ, पतिव्रता, पत्नीव्रता जैसी वाहियात बातों में उलझी हुई है।’
मैंने मुसद्दी लाल से कहा, ‘आप बातों की जलेबी तलने की बजाय साफ-साफ बताइए कि मामला क्या है? यह लाल बुझक्कड़ों की तरह पहेलियां बुझाना बंद कीजिए, समझे आप। वैसे एक बात बताऊं। इस बुढ़ापे में भी आप छबीली से नैनमटक्का करने से बाज नहीं आते हैं। यह मैं कई बार देख चुका हूं।’ मेरी बात सुनकर मुसद्दी लाल सिटपिटा गए। फिर गला खंखारकर बोले, ‘बात दरअसल यह है कि कल शाम को सब्जी खरीदते समय छबीली से मुलाकात हो गई थी। पता नहीं, मुझ पर क्या खब्त सवार हुई। मैं उससे बतियाने लगा। बात करते-करते हम दोनों सड़क के किनारे उगे पीपल के पेड़ के नीचे खड़े हो गए। वह मेरी पत्नी को दीदी कहती है, इसलिए मैंने साली समझकर इतना कहा था कि तुम मेरी हॉफ गर्लफ्रेंड बनोगी? मेरे प्रस्ताव को सुनकर वह नासपीटी हंस पड़ी। उसके लजाने, शरमाने और दांतों तले अंगुली दबाने को मैंने उसकी सहमति समझकर हाथ पकड़ लिया। इस पर भी उसने आपत्ति नहीं जताई। थोड़ी बहुत रसीली बातों के बाद हमने सब्जी खरीदी और घर आ गए। इस बीच छबीली ने आकर तुम्हारी भाभी को हॉफ गर्लफ्रेंड वाली बात बता दी। इसके अलावा क्या-क्या बताया राम जाने।’
इतना कहकर मुसद्दी लाल बोले, ‘तभी से बीवी ने पांचजन्य फूंक रखा है। घर कुरुक्षेत्र बना हुआ है। हम दोनों कौरव-पांडवों की तरह युद्धरत हैं। मेरे क्षत-विक्षत अंग देख रहे हो, यह सब छबीली को हॉफ गर्लफ्रेंड बनने का प्रस्ताव देने का नतीजा है।’ इतना कहकर मुसद्दी लाल कराहने लगे, मैं उन्हें निरीह भाव से देखता रहा।
आज सुबह पड़ोसी मुसद्दी लाल फटे और बदरंग भीगे जूते जैसा मुंह सुजाये मेरे घर में नमूदार हुए। वे किसी सड़क हादसे का शिकार हुए वाहन की तरह टूटे-फूटे दिख रहे थे। उनका नेशनल हाईवे जैसा सुदर्शनी चेहरा किसी गिट्टी युक्त कच्ची सड़क जैसा हो गया था। आंखों और गालों के पास की सूजन ठीक वैसे ही उभरी दिखाई दे रही थी, जैसे किसी ऊबड़खाबड़ सड़क के किनारे जगह-जगह नाली की गाद निकालकर सूखने के लिए कामचोर सफाई कर्मचारी ने रख दी हो। मैंने सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘अरे भाई साहब..यह क्या हुआ? आपकी यह हालत कैसे हुई? कहीं आपने अपना स्कूटर कहीं ठोक तो नहीं दिया?’
मेरी बात सुनकर मुसद्दी लाल ने फेफड़े में गहरी सांस इस तरह खींची, मानो सारी पृथ्वी की हवा सोखकर ही मानेंगे। पहले तो वे थोड़ी देर तक अपने सूजे गाल को सहलाते रहे, जैसे कोई बुजुर्ग टॉफी या चाकलेट लेने की जिद के कारण पिटे हुए बच्चे का गाल सहलाकर उसे चुप कराने की कोशिश करता है, फिर बोले, ‘हॉफ गर्लफ्रेंड’ के चक्कर में बीवी से पिट गया, यार! मेरी बीवी भी न…एकदम अकल से पैदल है। अकल के पीछे लट्ठ लिए घूमती रहती है। सारी दुनिया बदल गई। अपना देश बदल रहा है। इंडिया से न्यू इंडिया, डिजिटल इंडिया, और न जाने कैसे-कैसे इंडिया हो रहा है। देश के युवा फुल गर्लफ्रेंड, हॉफ गर्लफ्रेंड, क्वार्टर गर्लफ्रेंड की अवधारणा को बहुत पीछे छोड़कर माइक्रो और मिनी गर्लफ्रेंड/ब्वायफ्रेंड तक आ गए हैं। लेकिन वह कमबख्त अभी तक करवाचौथ, पतिव्रता, पत्नीव्रता जैसी वाहियात बातों में उलझी हुई है।’
मैंने मुसद्दी लाल से कहा, ‘आप बातों की जलेबी तलने की बजाय साफ-साफ बताइए कि मामला क्या है? यह लाल बुझक्कड़ों की तरह पहेलियां बुझाना बंद कीजिए, समझे आप। वैसे एक बात बताऊं। इस बुढ़ापे में भी आप छबीली से नैनमटक्का करने से बाज नहीं आते हैं। यह मैं कई बार देख चुका हूं।’ मेरी बात सुनकर मुसद्दी लाल सिटपिटा गए। फिर गला खंखारकर बोले, ‘बात दरअसल यह है कि कल शाम को सब्जी खरीदते समय छबीली से मुलाकात हो गई थी। पता नहीं, मुझ पर क्या खब्त सवार हुई। मैं उससे बतियाने लगा। बात करते-करते हम दोनों सड़क के किनारे उगे पीपल के पेड़ के नीचे खड़े हो गए। वह मेरी पत्नी को दीदी कहती है, इसलिए मैंने साली समझकर इतना कहा था कि तुम मेरी हॉफ गर्लफ्रेंड बनोगी? मेरे प्रस्ताव को सुनकर वह नासपीटी हंस पड़ी। उसके लजाने, शरमाने और दांतों तले अंगुली दबाने को मैंने उसकी सहमति समझकर हाथ पकड़ लिया। इस पर भी उसने आपत्ति नहीं जताई। थोड़ी बहुत रसीली बातों के बाद हमने सब्जी खरीदी और घर आ गए। इस बीच छबीली ने आकर तुम्हारी भाभी को हॉफ गर्लफ्रेंड वाली बात बता दी। इसके अलावा क्या-क्या बताया राम जाने।’
इतना कहकर मुसद्दी लाल बोले, ‘तभी से बीवी ने पांचजन्य फूंक रखा है। घर कुरुक्षेत्र बना हुआ है। हम दोनों कौरव-पांडवों की तरह युद्धरत हैं। मेरे क्षत-विक्षत अंग देख रहे हो, यह सब छबीली को हॉफ गर्लफ्रेंड बनने का प्रस्ताव देने का नतीजा है।’ इतना कहकर मुसद्दी लाल कराहने लगे, मैं उन्हें निरीह भाव से देखता रहा।
बहुत बढ़िया।बधाई।
ReplyDeleteबढ़िया!
ReplyDeleteआप दोनों को उत्साहवर्धन के लिए आभार
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