Friday, November 30, 2012

‘ढाई आखर’ का स्कूल


-अशोक मिश्र

काफी दिनों से दिली ख्वाहिश थी कि लव गुरु मटुकनाथ चौधरी से मुलाकात की जाए, उनसे लव टिप्स लिए जाएं। लेकिन ऐसा कोई संयोग नहीं बन पा रहा था। पिछले दिनों जब लव गुरु ने लव स्कूल खोलने की घोषणा की, तो मन चिहुंक उठा। फटाफट रिजर्वेशन करवाया और जा पहुंचा पटना के बीएन (बगलोल नारायण) कालेज। वहां से पूछता-पूछता उनके घर पहुंचा। लव गुरु खटिया पर बैठे प्याज छील रहे थे और उनकी शिष्या कम जीवन संगिनी जूली बैठी तरकारी काट रही थीं। मैंने उन्हें साष्टांग प्रणाम करते हुए कहा, ‘अपनी पत्रिका के लिए आपका साक्षात्कार लेने आया हूं।’ मेरी बात सुनकर लवगुरु हिंदी साहित्य में वर्णित ‘नवोढ़ा’ नायिका की तरह शरमा गए, इस पर जूली खिलखिलाकर हंस पड़ीं। लव गुरु साक्षात्कार देने में आनाकानी करें, इससे पहले मैंने सवाल दाग दिया, ‘संत कबीर को आप कितना समझते हैं?’

लव गुरु ने कहा, ‘कबीर को मेरे अलावा इस देश में किसी और ने समझा ही नहीं है। कबीर का दर्शन तो मेरे रोम-रोम ने आत्मसात किया है। कबीरदास जी का कहना है, ‘पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।’ इसीलिए पहले पोथी पढ़ी, मास्टर हुआ। जब कॉलेज में पढ़ने आई, तो हम दोनों ढाई आखर एक साथ पढ़ने लगे।’ मैंने अगला सवाल दागा, ‘प्रेम और प्रताड़ना (मारपीट-धमकी) को किस रूप में लेते हैं आप?’ लव गुरु कुछ कहते, इससे पहले लव गुरुआइन (जूली) टपक पड़ीं, ‘ढाई आखर भाखने (बांचने) के बाद सब कुछ बेमानी हो जाता है। अब हमारे मामले में ही लीजिए। क्या-क्या नहीं हुआ? दीदी (लव गुरु की पहली पत्नी) ने हमारे मुंह पर कालिख पोती, भरे बाजार में पीटा और पिटवाया, कॉलेज से निकाले गए, लेकिन मजाल है कि हममें से कोई विचलित हुआ हो। एक बार जब प्रेम का प्याला छककर पी लिया, तो नाचना ही था। हम भी नाचे। कुछ दुनिया को दिखाने के लिए नाचे, तो कुछ प्रेम के वशीभूत होकर नाचे।’

मैंने पूछा, ‘आप कोई लव स्कूल खोलने जा रहे हैं?’ लव गुरु ने उल्लास भरे स्वर में कहा, ‘हां, खोलने जा रहे हैं ‘जूली-मटुक प्रेम कला निकेतन।’ नई पीढ़ी को प्यार का पाठ पढ़ाने की जरूरत है। कितने शर्म की बात है कि ऋषि-मुनियों के देश में नौनिहालों को प्यार का पाठ पढ़ाना पड़ रहा है। जब पूरी दुनिया जांगल्य युग में जी रही थी, तब हमारे ऋषि-मुनियों को प्रेम की महत्ता का ज्ञान था। वैसे हम जल्दी ही राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, चुनाव आयोग और प्रदेश सरकार को ज्ञापन देकर मांग करने वाले हैं कि प्रेम को राष्ट्रीय कर्म घोषित किया जाए। जिस व्यक्ति की कोई प्रेम कहानी न हो, जो प्रेममार्गी होने की वजह से पिटा न हो, उसे चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया जाए। ग्रेजुएशन में एक परचा सभी पार्टियां सिर्फ और सिर्फ प्रेमी-प्रेमिकाओं को ही अपना टिकट देकर उम्मीदवार बनाएं। हम अपनी पाठशाला में उसी को दाखिला देंगे, जो कच्चे प्रेमी-प्रेमिका होंगे। हम उन्हें संवार-निखारकर ‘स्किल्ड’ बनाएंगे।’ इसके बाद लव गुरु कुछ कहते, इससे पहले ही बीच में लव गुरुआइन टपक पड़ीं, ‘प्रेम में प्रवीण बनाने के लिए विद्यार्थियों को कुछ खास पाठ भी पढ़ाए जाएंगे। इसके लिए देश-विदेश से कुछ एक्सपर्ट भी बुलाए गए हैं। वे विद्यार्थियों को ‘कुशल प्रेमी’ बनने के कुछ खास टिप्स भी देंगे। ‘जूली-मटुक प्रेम कला निकेतन’ में आगामी वर्षों में प्रेम विषय में स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्सेज शुरू किए जाएंगे।’

‘यूजीसी, केंद्र या राज्य सरकार आपके इस निकेतन और कोर्सेज को मान्यता देगी?’ मैंने अगला सवाल दाग दिया। लव गुरु ने कहा, ‘कबीरदास जी गए थे किसी से मान्यता मांगने। अरे सरकार नहीं देगी मान्यता, तो न दे। हमें किसी सरकारी मान्यता की दरकार नहीं है। हमारी प्रेम की पाठशाला चलेगी और जरूर चलेगी। हमें इस देश के प्रेमीजन मान्यता देंगे, गांव-गांव अपने साजन को टेरती, खोजती सजनियां देंगी हमें मान्यता। हमें किसी अन्य मान्यता की तब जरूरत ही क्या रहेगी।’ मैंने लव गुरु से कहा, ‘आप दो सीटें अपनी पाठशाला में मेरे कहने पर सुरक्षित रखिएगा, एक मेरे लिए, एक मेरी छबीली के लिए। हम दोनों आपकी पाठशाला में पढ़ने जरूर आएंगे।’ लव गुरुआइन ने तपाक से कहा, ‘तुम्हें दाखिला नहीं मिल सकता है, तुम किसी भी तरह प्रेमी नहीं लगते हो।’ लव गुरुआइन की बात सुनकर मैं झट से उनके पैरों पर गिर पड़ा, ‘नहीं मुझे दाखिला दे दीजिए। नहीं...मुझे दाखिला दे दीजिए।’ यह जोर-जोर से चिल्लाते-चिल्लाते मेरी देह पसीने से लथपथ हो उठी। मेरी बीवी ने मुझे रजाई ओढ़ाने के बाद थपथपाते हुए कहा, ‘कोई बुरा सपना देखा है क्या? सो जाइए, अभी रात बहुत बाकी है।’ मैं रजाई में दुबक कर सो गया।

Monday, November 26, 2012

राजनीतिक कुएं में भांग


-अशोक मिश्र
सुबह बरामदे में बैठा निठल्ला चिंतन (माफ कीजिए, निठल्लों पर चिंतन) कर ही रहा था कि छबीली ने आकर शांति भंग की। ‘यहां बैठकर आस-पड़ोस की महिलाओं को घूरने की बजाय बेटी को कभी-कभार पढ़ा दिया कीजिए। अब आपकी उम्र महिलाओं या लड़कियों को घूरने की नहीं रही।’ छबीली की बात सुनकर मैं भड़क गया, ‘उम्र की बात तो करो मत। हमारे देश में बहुत पुरानी कहावत है ‘साठा, तब पाठा।’ अभी तो मेरी उम्र मात्र बयालिस साल तीन महीने तेरह दिन की है।’ छबीली ने मुस्कुराकर कहा, ‘अपनी उम्र का सिजरा देने की बजाय बेटी का होमवर्क करा दीजिए, आपकी हम मां-बेटी पर बहुत बड़ी मेहरबानी होगी।’ मैंने सोचा कि सुबह-सुबह कौन इससे बेकार की चोंच लड़ाए। इससे बेहतर है कि बेटी को ही पढ़ा दूं। यह अभी शुरू हो जाएगी, तो फिर नान स्टाप बोलती जाएगी। कई गड़े मुर्दे उखाड़ेगी, जो जो अपनी सेहत के लिए भी अच्छा नहीं होगा। यह सोचकर मैं उठने ही वाला था कि तभी बेटी उस कमरे में आ गई। उसने मुझसे पूछा, ‘पापा! स्कूल का होमवर्क कंप्लीट करने में आपकी मदद चाहिए। हिंदी की मैम ने ‘कुएं में भांग पड़ना’ मुहावरे का उदाहरण सहित व्याख्या करके लाने को कहा है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या लिखूं। जहां तक मैं समझती हूं, जब भूल से किसी कुएं में कोई नशेड़ी पिसी हुई भांग गिरा देता है, तो उसे कुएं में भांग पड़ना कहते हैं।’
बेटी की बात सुनकर मैंने अपना माथा पीट लिया। मैंने झल्लाते हुए कहा, ‘बेटी, मैं तो देख रहा हूं, इस घर के कुएं में ही भांग पड़ी हुई है। वैसे कुएं में भांग पड़ना का अर्थ यह है कि जब किसी क्षेत्र विशेष के लोग उल्टी-सीधी हरकतें करने लगें, तो कहा जाता है कि कुएं में भांग पड़ गई है।’ मैंने उसे विस्तार से समझाने की दृष्टि से कहा, ‘अब जैसे अपनी भारतीय राजनीति को लो। इन दिनों नेताओं की हरकतें और उनके ओछे बयान को देखकर तो लगता है कि राजनीति के कुएं में भांग पड़ गई है। जिसकी जो मर्जी में आ रहा है, वही अनाप-शनाप बक रहा है। अब गडकरी को ही लो, उन्हें क्या जरूरत थी किसी के फटे में टांग अड़ाने की। अरे! आईक्यू की समानता समझाने के लिए कोई दूसरा उदाहरण नहीं सूझा था। लगे स्वामी विवेकानंद और दाउद इब्राहिम के बीच समानता दिखलाने। जेठमलानी जी तो उनके भी चचा निकले। गडकरी की बात पर हो-हल्ला मचा, तो जेठमलानी जी ताल ठोंककर आ गए मैदान में और लगे गडकरी की ‘हत्तेरे-धत्तेरे की’ करने। फिर बोले, राम बुरे पति थे, लक्ष्मण तो एकदम निकम्मे और काहिल थे। सीताहरण के बाद जब सीता को खोजने की बात चली, तो वे हीला-हवाली करने लगे। (यह बात लिखने के लिए भाजपाई और विहिप वाले माफ करेंगे। बात आई है, तो यह लिखना पड़ रहा है।)’
इतना कहकर मैं सांस लेने के लिए रुका। बेटी बड़े गौर से मेरी बात सुन रही थी। मैंने बात को विस्तार दिया, ‘कुएं में भांग पड़ने का उदाहरण यह कोई पहला नहीं है। भारतीय राजनीति में एक मोदी जी हैं, खुद तो शादी की, चार दिन बीवी के साथ और बाद में उनका हिंदुत्व जागा, तो पत्नी को छोड़कर चले आए। कहने का मतलब यह है कि मोदी जी को ‘गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज’ है। अपनी बीवी को निरपराध त्याग देने वाले मोदी को तब कष्ट होता है, जब कोई अपनी बीवी या गर्लफ्रेंड से टूटकर प्यार करता है। शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर के प्यार को देखकर एक दिन मोदी को ताव आया और वे पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड का फतवा जारी कर बैठे। अब बेचारे मोदी की बोलती बंद है। जलता कोयला जो जीभ पर रख बैठे थे।’ बेटी अब भी बड़े ध्यान से मेरी बात सुन रही थी। मुझे अपने हिंदी ज्ञान पर कुछ गर्व सा महसूस हुआ। मैंने शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन ऊंची करते हुए कहा, ‘बेटी! अब तुम्हें क्या-क्या बताऊं। अपने प्रदेश के मुखिया के पिता जी तो सबके बाप निकले। वे कहते हैं कि महिला आरक्षण विधेयक का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि जब महिलाएं संसद में पहुंचेंगी, तो लोग सीटियां बजाएंगे। महिला आरक्षण से परकटी (महिलाएं माफ करें) यानी पढ़ी-लिखी महिलाओं और लड़कियों को ही फायदा होगा।’ यह सुनकर मेरी बेटी अपने कमरे में होमवर्क पूरा करने लगी। अगले दिन जानते हैं, मेरी बेटी ने क्या कहा, ‘आप अच्छे पापा नहीं हैं। आपने जो अर्थ और उदाहरण बताया, मैंने वही लिखा और पूरे दिन मैम और सहेलियां मेरा मजाक उड़ाती रहीं।’

Saturday, November 3, 2012

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना


-अशोक मिश्र
बचपन में छठवीं-सातवीं कक्षा में हिंदी के मास्टर मटुकनाथ जब बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवानाकहावत का अर्थ पूछते थे, तो मैं हमेशा गड़बड़ा क्या जाता था, पिट जाता था। कक्षा में इसका अर्थ न बता पाने वाले छात्र-छात्राओं को ठोक-पीट चुकने के बाद मास्टर मटुकनाथ कई-कई बार इसका अर्थ बताते, उदाहरण देकर समझाते, लेकिन अपने पल्ले में नहीं पड़ना था, तो नहीं पड़ा। इस कहावत का अर्थ मुझे सैफीना की शादी के बाद कहीं जाकर समझ में आया। अब तो कोई मुझसे पूछे, तो मैं उदाहरण सहित समझा सकता हूं।
वाकई, इसे कहते हैं, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। शादी पटौदी खानदान के लख्ते जिगर छोटे नवाबऔर करीना कपूर की हो रही थी, हाय-हाय मीडिया और सोशल मीडिया कर रहा था। अखबारों और टीवी चैनलों में तो सबसे पहले और एक्सक्लूसिव खबर और फोटो छापने-दिखाने की एक अंधी दौड़ मची हुई थी। सैफ अली खान और करीना ने शादी से पहले और बाद में मीडिया को कोई भाव नहीं दिया, लेकिन अखबारों ने सौ-सौ जूते खाओ, तमाशा घुसकर देखोकी तर्ज पर अपने रिपोर्ट्स और फोटोग्राफर्स तैनात कर रखे थे। वे सभी किसी मिशन की तरह हर उस जगह खबर सूंघते फिर रहे थे, जहां उन्हें कोई खबर या क्लू मिलने की थोड़ी-सी भी उम्मीद थी। अखबारों और टीवी चैनलों के ये जुझारू सिपाही इस आशा में इधर-उधर भागते फिर रहे थे कि क्या पता, कोई एक्सक्लूसिव फोटो या खबर मिल जाए, जिसे लंतरानीवाली स्टाइल में पेश करके युवाओं के दिलों की धड़कन बढ़ाई जा सके।
इस मामले में सोशल मीडिया कुछ ज्यादा ही सक्रिय दिखा। फेसबुक और ट्विटर पर तो पिछले एक महीने से सिर्फ और सिर्फ एक ही मुद्दा छाया हुआ है। कोई एक ट्वीट करता था, ‘करीना, शादी के समय जोधपुरी चप्पल के साथ-साथ कश्मीरी मोजा पहनेंगी।बस, इस ट्वीट पर कमेंट्स की होड़ लग जाती थी। दिल्ली के एक आदमी ने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘निकाह कुबूल होते ही करीना चाट खाएंगी, पाव-बड़े खाएंगी या सिर्फ पानी पीकर काम चलाएंगी।इस पोस्ट पर ढेर सारे कमेंट आए। ज्यादातर लड़कों के। इतने सारे कमेंट्स देखकर तो ऐसा लग रहा था कि हिंदुस्तान के युवाओं के लिए गरीबी, बेकारी, भुखमरी और भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा करीना-सैफ की शादी थी। एक साहब ने कमेंट किया था, ‘तुम सबसे बड़े बेवकूफ हो, न वह चाट खाएंगी, न पानी पिएंगी। बिरयानी खाकर अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करेंगी।कई बार तो ऐसे-ऐसे कमेंट आते थे कि पढ़कर मन होता था कि अपना सिर सामने की दीवार पर दे मारूं। तब तक फेसबुक पर एक नई पोस्ट आ गई, ‘करीना कपूर शादी के बाद अपने नाम के साथ खान जोड़ेंगी या कपूर ही रहने देंगी, या फिर कपूर और खान दोनों को जोड़कर काम चलाएंगी।इसके साथ ही करीना की किसी फिल्म की तस्वीर में नत्थी कर दी जाती थी। इसको लेकर फिर शुरू हो जाती थी, लाइक करने, कमेंट करने-करवाने और शेयर करने की एक अंतहीन प्रतियोगिता। करीना लवर्स क्लबनाम से फेसबुक एकाउंट खोलने वाले एक शख्स ने कमेंट पोस्ट किया, ‘करीना चाहे अपने नाम के साथ कपूर लिखे या खान, तेरे बाप का क्या जाता है?’
ठीक शादी की रात लगभग रात एक बजे मेरे एक लंगोटिया यार मिस्टर घोंचूरामने मुझे फोन किया। झुंझलाते हुए मैंने कटखने अंदाज में पूछा, ‘क्या है? अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही है, तो कम से कम दूसरों को तो सोने दो?’ उन्होंने रुआंसे स्वर में पूछा, ‘यार! यह बताओ, शादी हो गई?’ मैंने पूछा, ‘किसकी?’ उन्होंने कहा, ‘करीना की और किसकी? आज किसी और हीरोइन की शादी होने वाली थी?’ ‘हां! मेरे बाबा की है न आज! बाबा और दादी के फेरे हो रहे हैं, मैं पंडाल में खड़ा खाना खा रहा हूं। तू भी आ जा, साथ मिलकर खाते हैं।इतना कहकर मैंने अपने मोबाइल का स्विच आॅफ कर दिया। तीन दिन तक मोबाइल को आॅन करने की हिम्मत नहीं हुई। आपके साथ भी ऐसा हुआ हो, तो बताइएगा।

प्रधानमंत्री जी! कुछ तो बोलिए


-अशोक मिश्र
आदरणीय प्रधानमंत्री जी, सतश्री अकाल। पिछले काफी दिनों से द्विविधा में था। कई बार सोचा कि आपको पत्र लिखूं। सोचता था कि जब आपको अपने ही मंत्रियों के स्याह-सफेद कारनामे पर निगाह डालने और अपने दागी मंत्रियों को बदलने की फुरसत नहीं है, तो मेरे जैसे आम आदमी के आम खत की क्या बिसात है। लेकिन जब आपने ‘सब कुछ बदल डालूंगा’ की गर्जना करके मामूली फेरबदल किया, तो मैंने आपको पत्र लिखने की हिम्मत जुटा ली। प्रधानमंत्री जी, आपकी तस्वीर चैनलों या समाचार पत्र-पत्रिकाओं में जब भी छपी देखता हूं, तो मुझे किसी कवि की नौकरशाहों पर लिखी एक कविता की कुछ पंक्तियां याद आ जाती हैं, ‘आप अफसर हैं, बड़ी खुशी की बात/आप अफसर हैं बड़ी खुशी की बात/आपके चश्मे से सोचा था कम देखते हैं/आप सुनते भी नहीं, बड़ी खुशी की बात।’ उस्ताद मुजरिम बताते हैं कि आप राजनीति में आने से पहले सचमुच बहुत बड़े अफसर रहे हैं। राजनीति में आने के बाद आपने देखना और सुनना ही नहीं, बल्कि बोलना तक छोड़ दिया है। सच बताऊं, प्रधानमंत्री जी! मैं आपकी इसी खूबी का मुरीद हूं। आपकी एक चुप्पी, सवालों की आबरू जो रखती है। यह मंत्र वाकई काफी कारगर है। इसी मंत्र को जपकर मैं आजकल अपने सिर पर आई बला को टालने में सफल हो रहा हूं।
सर, आपको एक बात बताऊं। जब मैं छोटा था, स्कूल में बोलने के चलते अपनी टीचर और सहपाठियों से पिट जाता था। बड़ा हुआ, तो गली-मोहल्लों के लड़कों और अपने भाइयों से बोलने के चलते ही ठोक दिया जाता था। कई बार तो इतना पीटा गया कि हल्दी पीने की नौबत तक आ गई। खुदा न खास्ता, शादी के बाद भी यही दुर्गुण मेरे पिटने का कारण बना। कई बार घरैतिन से हुई ‘जूतम पैजार’ इस मोड़ तक पहुंची कि हम दोनों एक दूसरे को ‘जूते में दाल’ बांटने लगे। कभी घरैतिन पिटीं, तो कभी मैं। लेकिन अब मैं काफी मजे में हूं। आपकी ही तरह मैंने देखना, सुनना और बोलना छोड़ दिया है। बीवी कहती है, चार किलो आलू लाना, तो मैं यह नहीं पूछता कि इतने आलू का करना क्या है? बीवी अगर कहे कि चलती ट्रेन के आगे कूदकर इस पार से उस पार निकल कर दिखाओ, तो यकीन मानिए कि बीवी की ‘हाय-हाय, किचकिच’ से बेहतर है कि ट्रेन के आगे कूद जाऊं। प्रधानमंत्री जी! अब मैं अपने अनुभव यह समझ सकता हूं कि आपके कम बोलने, सुनने और देखने की शुरुआत घर से ही हुई होगी। आंटी जी (मिसेज प्रधानमंत्री) ने वही स्थितियां पैदा की होंगी, जो आज मेरी पत्नी ने मेरी कर दी है। वो कहा गया है न! खग जाने खग की ही भाषा। तो मैं आपकी पीड़ा समझ सकता हूं।
लेकिन प्रधानमंत्री जी! छोटा मुंह बड़ी बात कहूं। मेरे बोलने, सुनने और देखने की शक्ति का ह्रास होने से सिर्फ मेरा व्यक्तिगत नुकसान है। आप हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं। आपके बोलने का मतलब है कि इस देश के सवा सौ करोड़ लोग बोल रहे हैं। आपके सुनने का मतलब है कि किसी बात को पूरा एक जीवंत देश सुन रहा है। आप कोई मामूली आदमी नहीं हैं। आप हमारे देश की आन-बान और शान हैं। लेकिन अफसोस कि आप मूक, बधिर का अभिनय करते-करते सचमुच मूक और बधिर हो गए हैं। यह न तो आपके लिए फायदेमंद है, न ही देश के लिए। आपके न बोलने का ही नतीजा है कि आपके ही मंत्रियों में से कोई कोयला खा कर पेट भर रहा है, तो कोई टूजी स्पेक्ट्रम। कोई ‘आदर्श’ घोटाला कर रहा है, तो कोई थोरियम घोटाला।
आपके कुछ सिपहसालार तो ऐसे-ऐसे कच्चे हैं कि उन्हें घोटाला करना भी नहीं आता है। महज सत्तर-बहत्तर लाख रुपये के लिए अपनी इज्जत दांव पर लगाते फिर रहे हैं। कई बार मीडिया में जो खबरें आईं, उससे लगा कि आप सब बदल डालेंगे, लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ। आपने हाथ पैर धोकर कह दिया कि पूरा चेहरा धुल गया है। चेहरा ऐसे थोड़े न धुला करता है। बदलना है, तो सब कुछ बदल डालिए। यह क्या कि आपने कुछ प्यादे बदल दिए और कहा कि बदलाव हो गया। अरे जनाब! राजा और वजीर तो वही पुराने वाले हैं। ऐसे में लोग आपको ललकार रहे हैं। आपको कमजोर, डमी पीएम और न जाने क्या-क्या कह रहे हैं। आपकी शान में गुस्ताखियां कर रहे हैं, इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आप अपनी जड़ता तोड़िए। बोलिए, कुछ तो बोलिए। आपका ही-उस्ताद गुनहगार।