Tuesday, October 29, 2013

प्रभु! फेंकू या पप्पू की पार्टी का टिकट दिलवा दो

-अशोक मिश्र
गुनहगार हनुमान जी की प्रतिमा के आगे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे थे, ‘हे भगवान! बस एक बार..सिर्फ एक बार किसी पार्टी से अपना टांका भिड़वा दो। मुझे कोई भी पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए टिकट दे दे, बस..। इतनी कृपा कर दो, अंजनी सुत। वैसे आपको तो सब मालूम ही है, आपसे इस चराचर जगत में क्या छिपा हुआ है। राष्ट्रीय लात-घूंसा पार्टी वाले अपना टिकट देने को तैयार हैं। लेकिन भगवन! इस पार्टी का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शब्द का अर्थ किसी मोहल्ले-टोले से बड़ा नहीं है। कहने को तो लात-घूंसा पार्टी राष्ट्रीय है, लेकिन उसका जनाधार सिर्फ एक मोहल्ले तक ही सिमटा हुआ है। ऐसी पार्टी का क्या राष्ट्रीय होना और क्या अंतरराष्ट्रीय होना, सब समान है।
आदरणीय पवन सुत जी! एक बात बताऊं। कामरेडों वाली एक पार्टी मेरे संपर्क में है। उसके पोलित ब्यूरो के एक सदस्य कल मुझे बता रहे थे कि अगर मैं थोड़ा सा प्रयास करूं, तो बात बन सकती है। प्रभु! इनके टिकट से चुनाव लड़ने पर एक ही दिक्कत है कि खुदा न खास्ता अगर चुनाव जीत भी गया, तो खाने-कमाने का मौका मिलेगा ही नहीं। विपक्ष में बैठकर बस कभी-कभार हल्ला गुल्ला मचाने का मौका भर मिलेगाा। अब भगवन! आप तो जानते ही हैं कि कोई भला दस-पांच करोड़ खर्च करके अगर चुनाव जीतेगा, तो संसद में बैठकर भजन-कीर्तन करने की इच्छा पालेगा नहीं। वह तो यही चाहेगा कि जहां पांच-दस करोड़ खर्च किए हैं, तो वहां हजार-पांच सौ करोड़ कमाने का जुगाड़ बने। चलिए, कामरेडों के टिकट पर चुनाव लड़ लिया, तो पार्टी किसी तरह की मदद करने से रही। जिसके घर में भूजी भांग नहीं होगी, वह दूसरों की क्या मदद करेगा। उल्टे पार्टी फंड के नाम पर शरीर पर जो कपड़ा-लत्ता होगा, वह भी उतार ले जाएंगे।’
इतना कहकर गुनाहगार सांस लेने के लिए रुके और फिर बोले, ‘किसी तरह पप्पू या फेंकू की पार्टी का टिकट दिला दो, तो मजा आ जाए। भगवन! मैं यह कतई नहीं कहता कि मेरा जीवन बेदाग रहा है। जहां देश के नेता और साधु-संतहत्या, बलात्कार, सरकारी और गैर सरकारी जमीनों पर कब्जा करने के बाद भी साफ सुथरे और चरित्रवान बने रहते हों, जनता के विकास के नाम पर बनने वाली परियोजनाओं का सारा पैसा डकारने के बाद भी सीना ठोककर दूसरों को ईमानदारी, कर्त्तव्य पारायणता और राष्ट्रहित में कार्य करने की नसीहत देते हों, तो उनके मुकाबले में मेरा अपराध बहुत तुच्छ है। केशरीनंदन! मैं मानता हूं, मैंने जिंदगी भर पाकेटमारी की है। कई बार ऐसा भी हुआ है कि गलती से किसी गरीब के पाकेट पर अपना ब्लेड चल गया है, तो मैंने वह पैसा अपने पर कभी खर्च नहीं किया। उसमें अपने मेहनत से कमाई गई रकम में से कुछ पैसा मिलाकर किसी असहाय, जरूरतमंद की मदद की है। भगवान! मैं यह सब कुछ बताकर अपने को अच्छा बताने का प्रयास नहीं कर रहा हूं, बल्कि यह जताने की कोशिश कर रहा हूं कि आज की राजनीति में कितनी गंदगी आ गई है।’
गुनाहगार ने चुपके से अपनी दोनों आंखें खोलकर इधर उधर देखा और फिर बोले, ‘वैसे तो पप्पू की पार्टी न दूध की धुली है, न फेंकू की। दोनों एक तरफ एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। अपने को जनता के रहनुमा कहने वाले कामरेडों का चरित्र भी कमोबेश पप्पू-फेंकू जैसा ही है। दरअसल, इनकी पार्टी के झंडे, नारे और नेता भले ही अलग-अलग हों, लेकिन सभी इस लूट-खसोट की व्यवस्था के संचालक बनने की होड़ में हैं। गरीब जनता के सामने एक ओर नाग नाथ हैं, तो दूसरी ओर सांप नाथ। जनता के सामने लोकतंत्र नाम का एक झुनझुना टंगा हुआ है जिसको हर पांच साल बाद बजाया जाता है। इस झुनझुने की लय और ताल पर बेचारी गरीब जनता नाचने को मजबूर हैं। भगवन! पिछले साढ़े छह दशक से लोकतंत्र में जब भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है, तो मैं भी सोचता हूं कि बुढ़ापे में एक बार डुबकी मैं भी लगा ही लूं। एक बार की डुबकी से मेरा बुढ़ापा तो सुधर ही जाएगा, दो-चार पीढ़ियों का भी काम आसानी से चलता रहेगा। आपको बस अपने इस अनन्य भक्त की इतनी मदद करनी होगी कि पप्पू या फेंकू की पार्टी के कर्ता-धर्ताओं की मति फेर दो और वे मुझे अपना उम्मीदवार बना लें। इसके बाद भी आपका काम खत्म नहीं होगा, भगवन! जिस लोकसभा सीट से मैं उम्मीदवार होऊंगा, उस क्षेत्र की जनता की मति फेरने क्या दूसरे ग्रह का कोई भगवान आएंगे? मैंने तो आपके ही भरोसे पर न जाने कितनी तरह की कल्पनाएं कर रखी हैं। सांसद बन गया, तो यह करूंगा। सांसद बन गया, तो वह करूंगा।
सब कुछ खाक में मत मिला देना, प्रभु!’ तभी हनुमान जी के गले में पड़ी माला का एक फूल पता नहीं कैसे, गुनाहगार के सिर पर आकर गिरा, तो गुनाहगार खुशी से उछल पड़े। उन्होंने ‘राम भक्त हनुमान की जय’ का जयकारा लगाया और उस फूल को बड़ी श्रद्धा से उठाकर जेब में रख लिया। वे समझ गए कि उन्हें अगले लोकसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज होने वाली पार्टी से टिकट मिलने का आश्वासन भक्तवत्सल हनुमान जी ने दिया है।

Tuesday, October 22, 2013

बोलिए, स्वामी पतितानंद जी की जय!

अशोक मिश्र 
बाप रे बाप!...बाबा होना, इतना मजेदार, रसदार और असरदार हो सकता है कि कोई भी ‘बदकार’ बाबा हो सकता है? अब तो मैं बाबा होकर ही रहूंगा। कोई भी मुझे बाबा होने से रोक नहीं सकता, एक अदद घरैतिन भी नहीं। अब तो किसी की भी नहीं सुनूंगा, चाहे कुछ भी हो जाए। दुनिया में हालाडोला (भूकंप) आ जाए या आसमान से बज्र (बिजली) गिर पड़े। कहते हैं कि महाभारत काल में जब देवव्रत ने भीष्म प्रतिज्ञा की थी, तो पूरे ब्रह्मांड में हलचल मच गई थी। मैं वही काल फिर से दोहराने जा रहा हूं। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जल्दी ही बाबा बनकर दुनिया के प्रकट होऊंगा। सीधे हिमालय से बीस-पच्चीस हजार साल से तपस्यारत रहने के बाद। (अरे...यह बात मैं नहीं कह रहा हूं। मेरे चेले-चेलियां भक्तों को यही कहकर तो लुभाएंगे। आप लोग भी न! किसी बात को बूझते नहीं हैं और बीच में टांग अड़ाने लगते हैं।) हां तो साहब...मैंने अपना नाम भी सोच लिया है, श्री श्री 1008 स्वामी पतितानंद जी महाराज। पतित कर्म करने पर भी किसी को सफाई देने की जरूरत नहीं है। नाम से ही सब कुछ जाहिर है। मेरी गारंटी है कि यह नाम जितना टिकाऊ है, उतना ही बाजार में बिकाऊ भी है। बस थोड़ी सी जरूरत है मार्केटिंग की। तो उसके लिए चेले-चेलियों की फौज तैयार कर रहा हूं। कुछ वीआईपी चेले-चेलियों को पकड़ने की कोशिश में हूं। जैसे ही कुछ मंत्री, संत्री टाइप के चेले-चेलियां फंसी कि मैं भी कृपा का परसाद बांटने लगूंगा।
मेरे कुछ मित्रों की सलाह है कि पहले कुछ विदेशी चेलियों की व्यवस्था करूं। विदेशी चेलियों के साथ होने के कई फायदे हैं। एक तो इस देश की बौड़म जनता विदेशी ठप्पे पर कुछ ज्यादा ही मुरीद रहती है। भले ही वह विदेशी मुद्रा हो, विदेशी कचरा हो या विदेशी लड़कियां। हमारे देश के ‘अक्ल के अंधे, गांठ के पूरे’ लोग बहुत जल्दी लार टपकाने लगते हैं। कुछ विदेशी चेलियां आयात करने वाली कंपनियों से संपर्क साधा है, उनके कोटेशन का अध्ययन कर रहा हूं। बहुत जल्दी ही तीन-चार कंपनियों को यह काम सौंपकर दूसरे प्रोजेक्ट में लगूंगा। दूसरा प्रोजेक्ट यह है कि कुछ गुंडेनुमा भक्तों की भर्ती करनी है, ताकि लगभग हर जिले में सरकारी और गैर सरकारी जमीनों पर कब्जा किया जा सके। हर जिले के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को अपना भक्त बना लेने से दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। वे जमीन हथियाने के मामले में कोई पंगा नहीं खड़ा करेंगे, बल्कि जमीन के वास्तविक मालिक को लतियाकर भगाने में मदद करेंगे। मैंने कुछ फैक्टरियों को किस्म-किस्म की अंगूठियां, गंडे, ताबीज बनाने का आर्डर दे दिया है। आखिर लोगों को अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए स्वामी पतितानंद जी महाराज से कृपा स्वरूप कुछ चाहिए होगा न! तो उन्हें यही गंडा, ताबीज और अंगूठियां बांटूंगा। किसी को धन चाहिए, तो अंगूठी। किसी की प्रेमिका रूठ गई, तो उसके गले में बांधने के लिए गंडा, किसी पत्नी रूठकर मायके चली गई है, तो उसके लिए गौमूत्र में डुबोकर पवित्र की गई लोहे का छल्ला। किसी को संतान चाहिए, तो उसके लिए विशेष पूजा। ...के साथ (यहां आप अपनी इच्छा के मुताबिक भर लें) एकांत साधना। सोचिए, कितना रोमांच और खुशी हो रही है बाबा होने पर मिलने वाले सुख की कल्पना करके। जब बाबा हो जाऊंगा, तो किन-किन सुखों का उपभोग करूंगा, इसकी आप और मैं अभी सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं।
दोस्तो! मैं तो अभी कल्पना करके ही इतना गदगद हूं कि रात की नींद और दिन का चैन हराम हो गया है। किसी काम में मन नहीं लग रहा है। बार-बार मन में आता है कि अरे! मैं अपने अखबार के दफ्तर में बैठकर कुछ हजार रुपल्ली के लिए कलम घिसने को पैदा हुआ हूं क्या? मेरा अवतरण इस दुनिया में ‘महान’ सु (कु) कर्मों के लिए हुआ है। हो सकता है कि पांचवेंपन में मुझे अपने इन सु (कु) कर्मों के चलते जेल भी जाना पड़े, लेकिन कोई बात नहीं। लोगों की भलाई के लिए मैं जेल क्या? अमेरिका के ह्वाइट हाउस और लंदन के बर्मिंग्घम पैलेस तक जाने को तैयार हूं। बस..इस पुनीत कार्य में एक ही अडंगे की आशंका है। इस दुनिया में सिर्फ एक ही व्यक्ति को मेरी यह उपलब्धि फूटी आंखों नहीं सुहाएगी। वह है मेरी धर्मपत्नी, मेरे बच्चों की अम्मा..। वैसे तो मैं इस दुनिया का सबसे बहादुर इंसान हूं। किसी से भी नहीं डरता। आंधी आए या तूफान, अपुन खड़े हैं सीना तान। लेकिन साहब...घरैतिन सामने हो, तो...। क्या कहा...मैं डरपोक हूं। चलिए, ज्यादा शेखी मत बघारिये, आपकी भी औकात जानता हूं। अपनी खूबसूरत साली या बचपन वाली प्रेमिका की कसम खाकर बताइएगा, पत्नी के सामने कान पकड़कर उठक बैठक लगाते है कि नहीं। लगाते हैं न! तो फिर जब सभी अपनी घरैतिन से डरते हैं, तो क्या मैं कोई गुनाह करता हूं, साहब! अरे...रे, मुझे घरैतिन की आवाज क्यों सुनाई दे रही है। लगता है, नशा उतर रहा है। दारू पीकर ऊलजुलूल सोचने के अपराध में पिटने का वक्त आ गया है।

Thursday, October 17, 2013

दाउद भैया के चैनल में नौकरी

अशोक मिश्र
आफिस से निकलते-निकलते रात के दो बज गए थे। मूंगफली के दानों को टूंगता पैदल ही घर की ओर चला जा रहा था कि चौराहे पर चार आदमियों ने रास्ता रोक लिया, ‘ओए..तेरा नाम क्या है चिरकुट!’ रास्ता रोकने वालों को बड़ी गौर से देखा। साढ़े छह-सात फुटे के दैत्याकार शरीर वाले आतंकवादी सरीखे हथियार बंद लोगों ने मुझे चारों ओर से घेर रखा था। उन्हें देखकर मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। मैंने दीन स्वर में कहा, ‘आप लोग सर्वज्ञ हैं क्या? मेरा वही नाम है जो आपने अभी उचारा है। घनानंद पिलपिलानंद चिरकुट...!’ मेरी बात सुनकर एक आदमी मुझे सबक सिखाने को आगे बढ़ा कि तभी पीछे वाले ने उसे रोकते हुए कहा, ‘नहीं..छोटे भाई...नहीं...भाई ने अपुन को इसे बड़े सम्मान के साथ लाने को कहा है। इसलिए मारपीट नक्को..सिर्फ पूछताछ सक्को (सकते हो)...।’जैसे ही मेरी समझ में यह आया कि वे अपने किसी भाई के आदेश के चलते मुझसे मारपीट नहीं करेंगे, मैं शेर हो गया। मैंने गुस्से में उन्हें फटकारते हुए कहा, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे रोकने की। तुम मुझे जानते नहीं हो। एक मिनट में अंदर हो जाओगे और कोई जमानत लेने वाला नहीं मिलेगा।’
इतना कहते ही सामने वाले ने मेरे सिर पर मुष्टिका प्रहार करते हुए कहा, ‘जिसे पूरी दुनिया की पुलिस खोज नहीं पाई, उसे तुम धमकी दे रहे हो।’ उसके मुष्टिका प्रहार करते ही मैं अपने होशोहवास खो बैठा। होश आया, तो मैं दाउद इब्राहिम के सामने था। वह सामने बैठा वाइन पी रहा था। मैंने सनसना रहे माथे को सहलाते हुए कहा, ‘यार! अकेले पी रहे हो? मुझे भी पिलाओ, उस मूड़ीकाटे ने इतनी जोर से सिर पर मारा था कि सिर अभी तक भन्ना रहा है।’ दाउद इब्राहिम ने मेरे पीछे खड़े शख्स को वाइन देने का इशारा करते हुए कहा, ‘जानते हो! जिसने तुम्हारे सिर को ठोका था, उसका नाम क्या है? शकील....छोटा शकील। उसके सम्मान करने का यही तरीका है।’दाउद की बात सुनते ही मैं कांप गया, अगर सम्मान ऐसा है, तो अपमान कैसा होगा? दाउद ने वाइन सिप करते हुए कहा, ‘सुन...मेरी बात सुन... जिसके लिए तुझे हिंदुस्तान से पाकिस्तान आयात करना पड़ा। तेरा ही नाम घनानंद पिलपिलानंद चिरकुट है न! मैंने तेरा एक आर्टिकलनुमा व्यंग्य या व्यंग्यनुमा आर्टिकल दैनिक ‘रो मत सुंदरी’ में पढ़ा था जिसकी थीम तूने पाकिस्तान के सबसे बडेÞ अखबार ‘डॉन’ के प्रसिद्ध कॉलमिस्ट सल्लू भाई घल्लू जी के लेख से चुराई थी। पात्रों की चोरी तूने अमेरिका के प्रसिद्ध अखबार ‘न्यूयार्क टाइम्स’ से की थी। तेरी काबिलियत यह थी कि तूने चुराई गई सामग्री और पात्रों को इतनी खूबसूरती से फेंटा था कि कोई भी मां का लाल तुझ पर चोरी का इल्जाम नहीं लगा सकता था। अगर तू मुंबइया फिल्मों का स्टोरी राइटर होता, तो अब तक तलहका मचा चुका होता।’ दाउद की बात सुनकर मैं अवाक रह गया। मैंने कतई नहीं सोचा था कि अंडरवर्ल्ड का डॉन भी इतना पढ़ा-लिखा है। कि वह हम जैसे टुटपुंजिया व्यंग्यकारों को भी पढ़ता और उनकी चोरी-चकारी को इंडीकेट भी करता है।
दाउद की बात सुनकर मेरे अवसान ढीले हो गए। मैंने समझा कि अब तो मैं गया। ‘ठांय’ से एक गोली चलेगी और मेरी कहानी खत्म। यहां पाकिस्तान में कौन पूछे कि घनानंद पिलपिलानंद चिरकुट की लाश गिद्ध-कौवे खा गए हैं कि बाकायदा हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार दाह संस्कार भी हुआ है। मेरी मनोभावना समझकर दाउद मुस्कुराया और बोला, ‘डर मत...तेरी फाइल निबटानी होती, तो तुझे पाकिस्तान लाने की जहमत उठाने की कोई जरूरत नहीं थी। तेरे आफिस के पास वाले चौराहे से जिन लोगों ने तुझे उठाया था, वे सिर्फ एक गोली खर्च करते और तू कब का अल्लाह को प्यारा हो गया होता। बात यह है कि मैं तुझे अपने ‘डी’ चैनल का इंडिया हेड बनाना चाहता हूं। पांच लाख सैलरी के साथ-साथ घोड़ा-गाड़ी, खूबसूरत पीए-सीए सब कुछ डी कंपनी की तरफ से। बस..तुझे करना यह है कि भारत के जितने भी नामी-गिरामी, कुख्यात-सुख्यात पत्रकार और पत्रकारिनियां हैं, उनको अपने चैनल में भर्ती करवाना। एक तेरे को छोड़कर कोई भी साफ सुथरा आदमी नक्को रखना मांगता। स्ट्रिंगर से लेकर डिप्टी चैनल हेड तक धूर्त, मक्कार, पेशेवर मुजरिम, हत्यारे होने चाहिए। जिसने दस कत्ल किए, पांच बार जेल गया, तीन बार रंगदारी वसूलते पकड़ा गया, उसको तू रिपोर्टर बना, चीफ रिपोर्टर बना, मेरे को कोई मतलब नहीं। बस, वसूली टंच होनी चाहिए। मौका लगे, तो भी दस-बीस करोड़ की आसामी पकड़ और वसूली कर। खुद कमा और चैनल को भी कमवा।’ मैंने दाउद की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘बड़े भाई! मैं एक बहुत सीधा-सादा, गली-कूंचे का मामूली व्यंग्यकार हूं। थोड़ा-थोड़ा पत्रकार भी हूं, लेकिन मैं आपका चैनल चलाने लायक नहीं हूं।’ मेरी बात सुनकर दाउद इब्राहिम मुस्कुराया और बोला, ‘देख! मेरे चैनल में भर्ती होने के लिए आवेदन नहीं करना पड़ता है। किसे रखना है, किसे नहीं रखना है, इसका चुनाव मैं करता हूं। मेरे यहं सिर्फ एप्वाइटमेंट होता है या फिर ‘ठांय’ की एक आवाज होती है और आदमी इस दुनिया से टर्मिनेट हो जाता है। इसलिए मेरी बात सुन..इंडिया जा, चैनल का हेड बनकर भर्तियां कर और चैनल आॅन एयर कर।’ इतना कहकर दाउद उठा और चला गया। उसके जाते ही पता नहीं किसने मेरे सिर   पर फिर मुष्टिका प्रहार किया और मैं बेहोश हो गया। जब होश में आया, तो अपने घर के बरामदे में पड़ा हुआ था। तो भाइयो! जिसको भी ‘डी’ चैनल में नौकरी चाहिए वह अपने आपराधिक रिकार्ड के साथ मुझे या सीधे दाउद जी को अपना सीवी भेज सकता है।

Thursday, October 10, 2013

दिल्ली में त्रिशंकु विधानसभा

‘न्यूज एक्सप्रेस’ मीडिया एकेडमी के साथ मिलकर जब ‘हमवतन’ ने दिल्ली की जनता की नब्ज को टटोला, तो कुछ चौंकाने वाले जवाब सामने आए हैं। मसलन, पिछले 15 सालों से दिल्ली पर राज कर रहीं मुख्यमंत्री शीला दीक्षित मुकाबले में तो बनी हुई हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता में जबर्दस्त गिरावट आई है। इसी तरह सरकार विरोधी माहौल होने के बावजूद भाजपा बहुमत से काफी दूर है। दरअसल, कांग्रेस और भाजपा दोनों के  खेल को बिगाड़ रही है आप। पहली बार किसी चुनाव में भाग ले रही आप को दिल्ली के 21 प्रतिशत से ज्यादा लोग पसंद कर रहे हैं। 
70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु जनादेश की संभावना बनती दिख रही है। साप्ताहिक ‘हमवतन’ और ‘न्यूज एक्सप्रेस’ मीडिया एकेडमी द्वारा 20 सितंबर से चार अक्टूबर के बीच 7, 550 मतदाताओं के बीच कराए गए सर्वे से, जो रुझान सामने आ रहे हैं, वे त्रिशंकु विधानसभा की ओर इशारा कर रहे हैं। सर्वे के मुताबिक, दिल्ली में कांग्रेस को भारी झटका लग सकता है। सर्वे का दूसरा पहलू यह भी है कि भाजपा के तमाम दावों के विपरीत उसकी भी सरकार बनने की संभावना नहीं है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भाजपा के बढ़ते कदमों को रोक रही है। साथ ही कांंग्रेस के भी कई इलाके आप के कब्जे में जाते दिख रहे हैं। ग्रामीण,  शहरी, इलाकों के युवाओं, बुजुर्गों और महिलाओं के बीच दरवाजे से दरवाजे किए गए सर्वे में कांग्रेस के पक्ष में 26 सीटें आती दिख रही हैं। भाजपा को भी इतनी ही सीटें मिलने की संभावना है। जबकि आप को 12 सीटें और अन्य दलों के बीच छह सीटें जाती दिख रही हैं। कांग्रेस के पक्ष में 29.8 फीसदी जनता विश्वास जता रही है, जबकि भाजपा के पक्ष में 36.75 फीसदी जनता वोट डालने के मूड में है। अभी एक साल के भीतर आंदोलन के गर्भ से निकली केजरीवाल की पार्टी आप को 21.20 फीसदी लोग पसंद कर रहे हैं, जबकि 12.25 फीसदी लोग अभी अन्य दलों या निर्दलीय पर यकीन कर रहे हैं। 
         दिल्ली के लोगों का मिजाज बदल रहा है। लगता है शीला दीक्षित के शासन से लोग ऊब से गए हैं। दिल्ली में 15 सालों में जो विकास हुए हैं, उससे लोग गदगद तो हैं, लेकिन महंगाई और भ्रष्टाचार की वजह से दिल्ली की जनता अब शीला दीक्षित की जगह केजरीवाल को ज्यादा तरजीह दे रही है। केजरीवाल को मुख्यमंत्री के रूप में 35.35 फीसदी जनता पसंद कर रही है,  जबकि शीला दीक्षित को अगले मुख्यमंत्री के लिए 29.4 फीसदी और विजय गोयल को मात्र 27 फीसदी लोग पसंद कर रहे हैं।
दिल्ली की जनता भले ही इस चुनाव में भाजपा को पसंद कर रही है, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल को ज्यादा तरजीह दे रहे है। भाजपा को वोट देने वाले करीब 15 फीसदी ऐसे लोग हैं, जो सीएम के रूप में केजरीवाल को पसंद कर रहें हैं। इस सर्वे का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के बड़े नेता अब तक चुनाव जीतते रहे हैं, वहां उनके खिलाफ लोगों में ज्यादा गुस्सा है। करीब दर्जन भर कांग्रेस की सीटें ऐसी हैं, जहां बड़े स्तर पर उलटफेर की संभावना है। कांग्रेस के चार मंत्रियों की हार तय मानी जा रही है, क्योंकि उनके इलाके में कहीं भाजपा के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है, तो कहीं केजरीवाल के प्रति। 
चौंकाने वाली बात यह है कि दिल्ली में भाजपा के प्रति जिन लोगों की रूचि बढ़ी है, उसके  लिए मोदी फैक्टर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। आठ विधानसभा ऐसे पाए गए हैं, जहां केवल मोदी के नाम पर भाजपा की जीत होती दिख रही है।
   हालांकि जनता क ा रुझान चुनाव होते-होते बदलते रहते हैं, लेकिन इस सर्वे से यह पता चलता है कि दिल्ली में जो 15 सालों में विकास हुए हैं, वह भ्रष्टाचार और महंगाई के नीचे दबते दिख रहे हैं। शीला आज भी लोगों की पसंद हैं और लोग मानते भी हैं कि दिल्ली में विकास हुए हैं, लेकिन महंगाई, बेकारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों ने कांग्रेस की जमीन को कमजोर किया है।
     सर्वे में कुछ अलग-अलग पहलुओं पर भी लोगों की राय जानने की कोशिश की गई। कांग्रेस से अगले मुख्यमंत्री के रूप में कौन बेहतर साबित हो सकता है? इस सवाल के जवाब में जो लोगों की राय मिली है, उसमें कांगे्रस के भीतर शीला दीक्षित सबसे ऊपर हैं।
31 फीसदी लोग शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, सुभाष चोपड़ा को 11 फीसदी लोग पसंद कर रहे हैं। 22 फीसदी लोगों की पसंद मुख्यमंत्री के रूप में जयप्रकाश अग्रवाल हैं, तो 36 फीसदी लोगों ने किसी अन्य को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही है।
यही हाल भाजपा के भीतर भी है। हालांकि भाजपा ने अभी अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन जिस तरह से प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल को प्रोजेक्ट करने की बात हो रही है, वह भाजपा के पक्ष में नहीं है। विजय गोयल को मुख्यमंत्री के रूप में 24 फीसदी लोग पसंद कर रहे हैं, जबकि 47 फीसदी लोग सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाह रहे हैं। भाजपा अगर सुषमा स्वराज के नजरिये से चुनाव को देखती है, तो भाजपा को और सीटें मिलने की संभावना बढ़ सकती है। 11 फीसदी लोग हर्षवर्धन को और 18 फीसदी लोग किसी अन्य को भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में पसंद कर रहे हैं।
  दिल्ली के इस सर्वे में भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार अन्य संभावित प्रधानमंत्री प्रत्याशियों में सबसे आगे निकलते दिख रहे हैं। दिल्ली की 52.7 फीसदी जनता मोदी को अगला प्रधानमंत्री बनाने के  पक्ष में हैं, दूसरे नंबर पर राहुल गांधी हैं। उनके पक्ष में 28.15 फीसदी जनता खड़ी है। सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बने, इसकी चाहत 6.25 फीसदी लोगों में है। दिल्ली के इस सर्वे में छह फीसदी लोग बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, जबकि लालकृष्ण आडवाणी के पक्ष में तीन फीसदी और मुलायम सिंह यादव और मायावती के पक्ष में दो-दो फीसदी लोग समर्थन में हैं। 



सर्वे रिपोर्ट
‘हमवतन’ एवं ‘न्यूज एक्सप्रेस’ मीडिया एकेडमी द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनाव पर सर्वे-2013
-सर्वे की अवधि ( 20 सितंबर से 04 अक्टूबर)
-कुल विधानस सीट- 70
-कुल जनमत संग्रह- 7550
पार्टी             लोगों की राय (में)                संभावित सीटें
कांग्रेस              29.8             -             26
भाजपा              36.75            -             26
आप                21.20            -              12
अन्य                12.25            -              6
   -  त्रिशंकु विधानसभा के आसार
- कांग्रेस को हानि, भाजपा की बढ़त पर झाडू का अडंÞगा
- किसी भी दल को बहुमत नहीं
भाजपा में सीएम के रूप में कौन है
जनता की पसंद (प्रतिशत में) 
विजय गोयल -     24 
हर्षवर्धन-           11
सुषमा स्वराज-       47
अन्य-              18
युवाओं की पसंद
मोदी -           58
राहुल -           42

महिलाओं की पसंद 
राहुल  -            62
मोदी-               48
कांग्रेस में सीएम के रूप में जनता की पसंद (प्रतिशत में) 
शीला दीक्षित  -        31 
सुभाष चोपड़ा -         11
जयप्रकाश अग्रवाल-      22
अन्य         -        36

देश का प्रधानमंत्री कौन बने? लोगों की राय (प्रतिशत में) 
नरेंद्र मोदी-            52.7 
राहुल गांधी-           28.15
सोनिया गांधी-         6.25
नीतीश कुमार-          6
लालकृष्ण आडवाणी-     3
मुलायम सिंह यादव-     2
मायावती        -      2
दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन बने, इस पर जनता की राय (प्रतिशत में)
केजरीवाल      -       35.35
शीला दीक्षित    -       29.4
विजय गोयल   -        27.05

पार्टियों के बारे में लोगों की राय

प्रश्न 05 -  सबसे भ्रष्ट पार्टी लोगों की नजर में
    कांग्रेस      भाजपा      सभी पार्टियों
     48         41          11

प्रश्न 07 - दिल्ली की प्रमुख समस्या लोगों की नजर में
    भ्रष्टाचार      बेरोजगारी     पानी/बिजली     महिलाओं से छेड़छाड़
    48           28           17              7
प्रश्न 08 - क्या अपराधियों को टिकट मिलना चाहिए?
   नहीं           हां       नहीं पता
   87            3        10
प्रश्न 10 - दिल्लीवासियों की नजर में देश की समस्या
  भ्रष्टाचार   आतंकवाद    बेरोजगारी   महंगाई
  41        20        33           14
प्रश्न 11 -लोगों की नजर में राजनीति कैसी हो?
  सेक्युलर      धार्मिक    विकास 
   83         11        6
 प्रश्न- 12 -किस आधार पर वोट देंगे
  पार्टी के नाम पर               उम्मीदवार के नाम पर 
   78                          22
 प्रश्न -13-विकास के बारे में दिल्ली की जनता की राय 
 विकास हुआ है          विकास नहीं हुआ          नहीं जानते
  73                       18                           9
 प्रश्न -14 क्या शीला दीक्षित को हटना चाहिए? 
  हां              नहीं                 नहीं जानते
  46              49                   5
प्रश्न - 16 क्या आप अपने विधायक से खुश हैं?
  हां             नहीं                   पता नहीं
  34             57                    9
प्रश्न- 19 दिल्ली पुलिस का कार्य कैसा है? 
 अच्छा          बेकार               मालूम नहीं
  33            52                15
प्रश्न - 20 देश के दूसरे इलाके में हाल में हुए दंगे जनता की नजर में
 राजनीतिक      सांप्रदायिक         नहीं जानते 
   73           22                5

Tuesday, October 8, 2013

महिलाओं का ‘राइट टू रिजेक्ट’

-अशोक मिश्र 
रविवार को सुबह थोड़ी देर से उठा। उठते ही घरैतिन के सुलोचनी चेहरे के दर्शन नहीं हुए, तो मैंने अपनी बेटी से पूछा, ‘तेरी मां नहीं दिखाई दे रही है। कहीं मेरे देर तक सोते रहने के विरोध में धरने-वरने पर तो नहीं बैठ गई हैं।’ बारह वर्षीय बेटी ने पानी के साथ चाय का प्याला पकड़ाते हुए मुस्कुराकर कहा, ‘नहीं पापा! आज सुबह से ही मोहल्ले की आंटीज आई हुई हैं। उन्हीं से बातें कर रही हैं। शायद उनकी छोटी-मोटी बैठक हो रही है।’ मैंने पानी पीने के बाद चाय का प्याला उठाया और बरामदे की ओट में कुर्सी लगाकर बैठकर अखबार पढ़ने लगा। दीवार के दूसरी तरफ थोड़ा सा खुला स्थान था, जहां पड़ी पांच-छह कुर्सियों पर ये महिलाएं विराजमान थीं। पड़ोस वाली मिसेज सुलोचना कह रही थीं, ‘जिज्जी! यह तो गलत है न! सारे मर्द एक जैसे नहीं होते। माना कि मेरा मर्द थोड़ा टेढ़ा है। दिन में एक बार जब तक ‘तू-तू, मैं-मैं’ नहीं कर लेता, तब तक उसे खाना नहीं हजम होता। लेकिन प्यार भी तो कितना करता है। सबके सामने भले ही गुर्राए, लेकिन बाद में कान पकड़कर माफी भी तो मांगता है। थोड़ी-सी बात पर पति को रिजेक्ट कर देना शायद सही नहीं होगा। पति को रिजेक्ट करने का राइट मिलते ही कई बार ‘राइट’ भी रिजेक्ट हो जाएंगे। यह तो बेचारे पति पर अत्याचार होगा न!’
मिसेज सुलोचना की बात पूरी होने से पहले ही चंदेलिन भाभी ने कहा, ‘ज्यादा ‘म्याऊं म्याऊं’ मत करो। अभी पिछले हफ्ते ही दारू पीकर आया था, तो किस तरह तुम्हें और बच्चो ंको रुई की तरह धुन कर रख दिया था। तब तुम किस तरह बछिया की तरह बिलबिला रही थीं। वह तो कहो कि अंकिता के पापा मेरा थोड़ा लिहाज करते हैं, तो उसने तुम्हें पीटना बंद कर दिया था। बड़ी आई भतार की तरफदारी करने वाली। चंदेल मुझे बात-बात पर आंख दिखाते हैं। घर से निकाल दूंगा, खाना-कपड़ा मैं देता हूं, जैसा कहता हूं, वैसा करो। कई बार तो ‘हत्तेरे की, धत्तेरे की’ भी हो जाती है। सोचो, अगर हम औरतों के पास राइट टू रिजेक्ट जैसा हथियार होता, तो क्या चिंटू के पापा, बबिता के पापा, सोनी के पापा, नमिता के पापा हम औरतों को आंख दिखा पाते। मैं तो कहती हूं कि ज्यादा सोच-विचार करने से कोई फायदा नहीं। सीधे चलते हैं मुख्यमंत्री आवास, वहां मुख्यमंत्री की पत्नी के नेतृत्व में धरना प्रदर्शन करते हैं। वहां भी बात न बने, तो सीधे दिल्ली चलते हैं। प्रधानमंत्रानी (प्रधानमंत्री की पत्नी) को ज्ञापन सौंपते हैं और उनसे कहते हैं कि जब तक यह बिल संसद में पास नहीं होता, तब तक वे भी सारे कामों में हड़ताल रखें।’ चंदेलिन ने ‘सारे’ शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया। चंदेलिन की बात सुनते ही मेरे होश उड़ गए। मैं समझ गया कि अगर ये महिलाएं सफल हो गईं, तो हम पुरुषों के सिर पर गाज गिरने वाली है। बदहवासी में अखबार मेरे हाथ से छूटकर गिर गया। मैं कान लगाकर उनकी बातें सुनने लगा।
‘जिया..(जिज्जी का अपभ्रंश)..राइट टू रिजेक्ट मामले को काफी ठोंक-बजा लेना ही ठीक होगा। कहीं ऐसा न हो कि लेने के देने पड़ जाएं।’ यह मेरी पत्नी की आवाज थी। वह कह रही थीं, ‘अब मेरा ही उदाहरण लो। वैसे तो हम दोनों में कोई मतभेद ज्यादा दिन तक नहीं टिकता। कारण कि जिस दिन बात ‘तू-तू, मैं-मैं’ और हाथापाई तक पहुंचती हैं, तो मैं भी पीछे नहीं रहती। वे एक जमाते हैं, तो आधा जमाने में मैं भी पीछे नहीं रहती। थोड़ी देर मुंह फुलाकर हम दोनों मामले को रफा-दफा कर देते हैं। कई बार मैं ही पहल कर लेती हूं, तो कभी वे। नहीं हुआ, तो बच्चे बीच में आकर समझौता करवा देते हैं। अगर राइट टू रिजेक्ट लागू हो गया, तो जाहिर सी बात है कि मैं दबंग हो जाऊंगी। अभी तो वे एक सुनाते हैं, तो मैं दो सुनाकर अपने काम में लग जाती हूं। जब एक बार रिजेक्ट कर दूंगी, तो फिर क्या होगा? फिर तो...?’ घरैतिन के ‘तो...’ कहते ही वहां सन्नाटा छा गया। मुझे भी गुस्सा आया, ‘जो बात पर्दे के भीतर रहनी चाहिए, वह भी यह सारे मोहल्ले की औरतों के बीच बैठी गा रही है। मेरी क्या इज्जत रह जाएगी इन औरतों के सामने?’ मन ही मन मैंने भगवान से दुआ की, ‘हे भगवान! सबसे पहले तो मुझे ‘राइट टू रिजेक्ट’ का अधिकार दिला दो, ताकि इस बददिमाग औरत की अकल ठिकाने लगा दूं।’
‘सुनौ रामू की अम्मा! यह चोंचला छोड़ो। जैसा चल रहा है, वैसा चलने दो। हमने तो अपनी जिंदगी ऊंच-नींच, नरम-गरम काट लई। अब बुढ़ापे मा बुढ़वा का कैसे छोड़ देई। मर्द को छोड़ना-रखना, कोई बच्चों का खेल है क्या?’ मेरे घर के पीछे रहने वाली रामदेई काकी की यह आवाज थी, ‘ई पंडिताइन बहूरिया, ठीक कहती हैं। एक बार छोड़ै के बाद कौन मुंह लेकर उनके सामने जाएंगे।’ चंदेलिन गरजती हुई आवाज में बोलीं, ‘काकी! आपकी जिंदगी बीत गई, इससे आप सोचती हैं कि मुझे क्या लेना देना है राइट टू रिजेक्ट का। आप उन बहिनों के बारे में सोचो, जिनकी जिंदगी इन मर्दों ने नरक बना दी है। और जहां तक मर्दों के साथ होने वाले अत्याचार की बात है, तो हम सरकार से राइट टू रिकाल का भी हक साथ ही मांग रहे हैं न! अगर ऐसा लगा कि हमसे कोई गलत फैसला हो गया है, तो दूसरे हाथ में उन्हें वापस बुलाने का अधिकार तो रहेगा ही। देखो काकी! आप चाहे जो कहो, अब हम औरतों को राइट टू रिजेक्ट और राइट टू रिकॉल के   हक से कोई महरूम नहीं कर सकता। हम इसे लेकर रहेंगे। भले ही इसके लिए कुछ भी करना पड़े।’ इसके बाद चीनी मिट्टी के बने कप-प्लेटों के खड़कने की आवाज आने लगी। इससे मुझे लगा कि बेटी ने वहां उपस्थित महिलाओं को चाय देना शुरू कर दिया है। मैं समझ गया कि इनकी सभा समाप्त हो गई है। मैं उठकर अपने नित्य के काम में लग गया।

Tuesday, October 1, 2013

‘लातयोग’ की आशंका

-अशोक मिश्र
उस्ताद गुनहगार के घर पहुंचा, तो देखा कि ज्योतिषाचार्य मुसद्दीलाल मेज पर अपना पोथी-पत्रा बिछाए गंभीर चिंतन में डूबे हुए हैं। मुझे देखकर भी उन्होंने अनदेखा कर दिया और अपनी गणना में लगे रहे। कभी वे कुछ अंगुलियों पर गिनते, कभी सामने रखे पासे को गुनहगार की जन्मपत्री पर फेंकते और जो नंबर आता, उसे नोट करके फिर जोड़ने-घटाने लगते। मुझे देखते ही उस्ताद गुनहगार चुपचाप एक कोने में बैठ जाने का इशारा किया। चरण स्पर्श करने पर सिर्फ बुदबुदाकर रह गए। मैंने कहा, ‘उस्ताद! अपनी जन्म पत्री सुधरवा रहे हैं क्या? जन्म पत्री सुधरवाने से आप कोई पीएम इन वेटिंग नहीं हो जाएंगे। आप पाकेटमार हैं, पाकेटमार ही रहेंगे।’
मेरी बात सुनते ही उस्ताद गुनहगार बमक (भड़क) उठे, ‘तुम अपनी चोंच बंद ही रखो, तो अच्छा है। हर मामले में टांग अड़ाना अच्छा नहीं होता। कभी-कभी टांग टूट जाया करती है।’  मैं उस्ताद की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गया। मैंने विनीत स्वर में कहा, ‘उस्ताद! कोई खता हुई क्या? मैंने तो सिर्फ परिहास किया था।’ मेरे अढतालिस कैरेटी विनय को देखते हुए उनका लहजा सहज हुआ। वे बोले, ‘चुपचाप कुछ देर बैठो। पंडित जी को अपना काम करने दो।’ मैंने गांधी जी के एक बंदर की तरह अपना मुंह दोनों हाथों से बंद किया और चुपचाप एक कोने में बैठ गया। ज्योतिषाचार्य मुसद्दीलाल पता नहीं क्या ‘अगड़म-बगड़म’ बुदबुदाते रहे और अंगुलियों पर गिनती करते रहे। काफी देर बाद वे गंभीर स्वर में बोले, ‘उस्ताद जी! आपकी कुंडली में राजयोग तो है, लेकिन थोड़ा वक्री है। सातवें घर में बैठे बुध, तीसरे घर में बैठे शुक्र और नवें घर में बैठे चंद्र एक सीध में आते से दिख रहे हैं, लेकिन बुध के थोड़ा-सा तिरछा हो जाने से राजयोग वक्री हो गया है। अगर आपकी कुंडली का बुध सातवें के बजाय छठवें घर में होता, तो सन 2014 का राजयोग आपकी ही किस्मत में लिखा था। न तो पप्पू आपका मुकाबला कर सकता है, न फेंकू। दोनों टुकुर-टुकुर सत्ता सुंदरी को सिर्फ ताकते रह जाते और सत्ता सुंदरी आगे बढ़कर आपके गले में जयमाल डालकर आपका वरण कर लेती।’ मुसद्दीलाल की बात सुनकर उस्ताद गुनहगार घबरा गए। उन्होंने कमरे की बाहर बने किचन की ओर ताकते हुए कहा, ‘क्या पंडित जी! प्रधानमंत्री बनने से पहले ही मेरा जनाजा निकालने का इरादा है क्या? यह जयमाल, भयमाल और वरण-शरण की उपमा से बाज आइए। कहीं इस घर की मालकिन ने सुन लिया, तो देश में ‘राइट टू रिकॉल’ लागू हो या नहीं, इस घर में अवश्य लागू हो जाएगा। अभी कल ही मेरी एक अदद बीवी कह रही थी कि अगर हम औरतों को भी शादी-विवाह के मामले में ‘राइट टू रिकॉल’और ‘राइट टू रिजेक्ट’ जैसे अधिकार मिले होते, तो मैं आपको कबका रिजेक्ट कर चुकी होती। आपको जो कहना हो, सीधे-सीधे कहिए। बातों की जलेबी मत बनाइए।’
गुनहगार की बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। पिटने के डर से ठहाका लगाने के बजाय थोबड़े पर बत्तीस इंची मुस्कान सजा ली। ज्योतिषी मुसद्दीलाल ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘बात दरअसल यह है, उस्ताद जी! दूसरे घर में बैठा राहु आपकी अंतरात्मा पर भारी पड़ रहा है जिसके चलते निकट भविष्य में ‘लातयोग’ की आशंका है। यह लात आपको पार्टी से भी पड़ सकती है और जीवन संगिनी से भी। आपका पांचवें घर में बैठे बृहस्पति की आपके पूर्वजन्म से ही दसवें घर में जमे बैठे केतु से नजर लड़ रही है। केतु और बृहस्पति की यह युगलबंदी आपको किसी परस्त्री से छेड़छाड़ का आरोपी बना सकती है। याचक, अगर तीन सप्ताह तक किसी स्त्री से मिलने परहेज कर सकें, तो संभव है कि वक्री राजयोग सीधा हो जाए। यहां तक कि अपनी व्याहता पत्नी से भी।’ मुसद्दीलाल की बात सुनकर उस्ताद गुनहगार को गुस्सा आ गया, ‘अबे तुझे ज्योतिषी किसने बना दिया है। तू राजयोग से पहले मृत्युयोग की व्यवस्था कर रहा है। तीन सप्ताह क्या, एक भी दिन अगर पत्नी से नहीं मिला, तो वह शक के आधार पर मेरी हत्या कर देगी। प्रधानमंत्री बनने से पहले ही स्वर्गवासी हो जाऊंगा। एक तो उसे मेरे अच्छे चालचलन को लेकर पहले से ही शक है। बात-बात पर ताने मारती है। किसी महिला से बात भी कर लूं, तो तीन दिन तक घर में चूल्हा तक नहीं चलता। तीन सप्ताह गायब रहा, तो मेरी क्या गति-दुर्गति होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। आप सुबह से बहुत भेजा खा चुके, दिमाग ही पंचर कर दिया सुबह-सुबह। आप अपनी दक्षिणा लीजिए और दूसरा शिकार पकड़िये। मुझे नहीं बनना है पीएम-शीएम।’ इतना कहकर  उस्ताद गुनहगार ने ग्यारह रुपये मुसद्दीलाल की दायीं हथेली पर रखे और हाथ जोड़ लिए। मैं बैठा-बैठा यह तमाशा देखता रहा।