Tuesday, February 16, 2021

चीखो मत! चीखने से कुछ नहीं होगा

 -अशोक मिश्र

चीखो मत!
चीखने से कुछ नहीं होगा
और हिंस्र हो उठेगा रक्त पिपासु भेड़िया
चीखो मत
चीखने से कुछ नहीं होगा ।
चिल्लाने से कुछ नहीं बदलने वाला
न फिजा, न निजाम, ना भेड़ियों का हृदय
कोई नहीं आएगा तुम्हें बचाने
दूर से सिर्फ तमाशा देख सकती है भीड़
द्रवित हो सकती है तुम्हारी दशा पर
लेकिन कोई नहीं करेगा साहस
तुम्हें बचाने की, रक्त पिपासु भेड़िए को भगाने की
तुम्हें खुद लड़नी होगी अपनी लड़ाई
सदियां बीत गईं
तुम्हें चीखते चिल्लाते, गुहार लगाते
अब तो कृष्ण भी नहीं आते तुम्हारी लाज बचाने
फिर किसका इंतजार, किससे गुहार
हो सके तो हथियार उठाओ
हंसिया, कुल्हाड़ी, चाकू, छुरी कुछ भी
उन पर धराओ सान
पैने करो नाखून, दांतों को नुकीले
हिंस्र भेड़िये की तरह
लेकिन तु्हें खुद नहीं बनना है भेड़िया
लड़ो कि साबित करना है तुम्हें कि कमजोर नहीं हो
लड़ो कि लड़ना है तुम्हें अपने आत्मसम्मान के लिए
लड़ो कि लड़ने के सिवा कोई चारा नहीं है तुम्हारे पास
लड़ो कि इस संसृति पर तुम्हारा भी हक है
लड़ो कि तुम्हें भी अधिकार है, जब मर्जी हो खिलखिलाकर हंस सको
लड़ो कि तुम्हें लड़ना है सदियों से हो रहे अत्याचार, शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ
लेकिन एक बात याद रखना हमेशा
तुम्हारी लड़ाई पशुता से है, रक्त पिपासा से है, गैर बराबरी से है
मानवता से नहीं।

Sunday, February 14, 2021

अभी नहीं आया समय प्रणय गीत गाने का


-अशोक मिश्र
 
सुनो!
मैं भी गाना चाहता हूं प्रेम गीत
गुनगुनाना चाहता हूं प्रणय ग्रंथ के अनपढ़े पृष्ठों को
महसूस करना चाहता हूं तुमको छूकर
मुझ तक आई सुगंधित हवाओं को
सुलझाना चाहता हूं तुम्हारी
सुलझी-अनसुलझी अलकों के
कठिन से कठिन समीकरण
कुंजों, उपवनों में हौले-हौले
बहती बासंती मादक बयार
मानो मदहोश कर देना चाहती है संपूर्ण संसृति को
उस पर तुम्हारा हंसना, खिलखिलाना, केलि करना
द्विगुणित कर देता है बसंत की मादकता को
पीपल की डालियों पर उगे नव कोपलों को
देख चकित हो रहे हैं तुम्हारे नयन
झलक रहा है तुम्हारी आंखों में उल्लास
नवकोपलों के स्वागत का
और मैं
भूल नहीं पा रहा हूं जमीन पर पड़े
सूखे, कटे-फटे, कुम्हलाए पीपल के पत्तों को
मानो, विदा लेते समय वे मुझे सौंप कर
जा रहे हों अपनी विरासत, संघर्षपूर्ण इतिहास
इन पीपल के मुरझाए और पीले पड़ गए पत्ते
मानो कह रहे हों
अभी नहीं आया समय प्रणय गीत गाने का।