Wednesday, June 20, 2012

एक खत प्रधानमंत्री के नाम


 -अशोक मिश्र

आदरणीय प्रधानमंत्री जी, नमस्कार। सत्श्री अकाल! गुडमार्निंग। आपको अपना परिचय दे दूं। मैं एक मामूली-सा जेबतराश यानी पॉकेटमार हूं। मैं कबीरदास की तरह ‘मसि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यो नहीं हाथ’ वाली कटेगरी का थंब ग्रेजुएट (अंगूठा छाप) हूं, लेकिन अपने काम में इतना माहिर हूं कि लोग मुझे उस्ताद मुजरिम कहते हैं। मेरा दावा है कि अगर मेरी अंगुलियों के नाखून में फंसा ब्लेड सुरक्षित रहे, तो मैं आपके पर्स को भी अपना बना सकता हूं। सर जी, आप जैसे बुजुर्गों और खैरख्वाहों की दुआओं के चलते अपनी ‘क्राइम यूनिवर्सिटी’ काफी अच्छी तरह से चल रही है। एक से बढ़कर एक प्रतिभावान विद्यार्थी हर साल निकल रहे हैं। प्रधानमंत्री जी, आपको यह बात बताते हुए मुझे फख्र महसूस हो रहा है कि हमारी यूनिवर्सिटी से शिक्षित-प्रशिक्षित विद्यार्थी चोर हो सकते हैं, पॉकेटमार हो सकते हैं, गुंडे-बदमाश हो सकते हैं, लेकिन वे न तो विश्वासघाती होंगे और न ही महिलाओं से जुड़ा कोई जुर्म करते हुए पाए जाएंगे। ‘उस्ताद मुजरिम क्राइम यूनिवर्सिटी’ के कई स्टूडेंट्स तो दाऊद भाई की कंपनी में अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं। डी कंपनी के कई उम्दा शूटर्स अपने ही सिखाए हुए बच्चे हैं। प्रधानमंत्री जी, अगर मैं यह कहूं कि बड़े, छोटे और मंझोले डॉन अपनी ही यूनिवर्सिटी की छात्र रह चुके हैं, तो यह छोटा मुंह बड़ी बात होगी। यही नहीं, अपने कई चेले-चपाटे तो राजनीति में घुसे हुए हैं और आपके आशीर्वाद से अच्छा कमा-खा रहे हैं। इन चेले-चपाटों के सामने एक ही दिक्कत है, जो आपके सामने इस आशा से रखना चाहता हूं कि आप उनकी कुछ मदद करेंगे।

आदरणीय प्रधानमंत्री जी, आपको शायद जानकारी न हो कि पूरे देश में कट्टा-बंदूक, बम, चाकू-छुरी बनाने का व्यवसाय कुटीर उद्योग का रूप लेता जा रहा है। आपसे निवेदन है कि यदि इस बार संसद सत्र के दौरान विधेयक लाकर इस कथित अवैध उद्योग को कुटीर उद्योग का दर्जा दिलवा दें, तो इस देश के करोड़ों छुटभैये नेता, गली-कूंचे के गुंडे और चोर और उनके परिवार आपके ऋणी रहेंगे। आप तो अर्थशास्त्री हैं, आपको तो पता ही होगा कि सरकारी स्तर पर इसे कुटीर उद्योग का दर्जा मिलते ही सांसद, विधायक, मंत्री और नौकरशाहों के साथ-साथ कुछ बड़े घराने भी इसमें पूंजी निवेश करेंगे। इससे इस दम तोड़ते उद्योग को संजीवनी मिल जाएगी। जो नेता, अधिकारी और मंत्री अपनी काली कमाई को स्वीटजरलैंड के बैंकों में जमा कराते आ रहे हैं, कुटीर उद्योग का दर्जा मिलते ही इसमें पैसा लगाना सेफ समझने लगेंगे। आपके देश की खुफिया एजेंसियां लाख प्रयत्न करने के बाद भी इंडियन मुजाहिद्दीन, सिमी जैसे देशी और कुछ विदेशी आतंकवादी संगठनों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पकड़ नहीं पातीं, लेकिन खुफिया एजेंसियों की सक्रियता के चलते हथियार और विस्फोटक वे चीन, पाकिस्तान और अमेरिका से मंगाते हैं। अगर गोला-बारूद, बम-पिस्तौल से लेकर राकेट लांचर और एलएमजी, एमएमजी जैसी चीजें देश में ही सस्ती और रियायती दरों पर उपलब्ध हो जाएं, तो आप सोचिए कि भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार काफी बढ़ जाएगा। विदेशी आतंकी सिर्फ अपनी जेब में विदेशी करंसी और दिमाग में सीरियल बम धमाकों का प्लान लेकर आएंगे और यहां से विस्फोटक आदि खरीदकर अपनी योजना को अंजाम दे देंगे। इस उद्योग को कानूनी दर्जा न मिलने और खुफिया एजेंसियों की सक्रियता के चलते बेचारों को विस्फोटक और अन्य चीजों को पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान आदि देशों से ढोकर लाना पड़ता है।

सर जी, आपसे निवेदन यह है कि जिस तरह तेल कंपनियों को घरेलू और व्यावसायिक गैस सिलिंडरों, मिट्टी के तेल आदि की बिक्री पर सरकार सब्सिडी प्रदान करती है, उसी तरह कट्टा-बम उद्योग को भी रियायत दी जाए। हथियारों के उत्पादन और बिक्री पर भले ही मैन्यूफैक्चरिंग और सेल्स टैक्स वसूला जाए, लेकिन इन हथियारों को रखना और उपयोग में लाना कानूनी बना दिया जाए। मेरा तो दावा है कि हर घर में कुछ न कुछ हथियार होने का नतीजा यह होगा कि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध में निश्चित रूप से कमी आएगी। अब आदमी महिलाओं को अबला समझकर छेड़छाड़ नहीं कर पाएगा। सड़क पर चलने वाली सीधी-सादी सी दिखने वाली लड़की कब पेट में चाकू हूल दे, यही सोचकर कोई भी शोहदा उसके किनारे नहीं जाएगा। आशा है कि आप मेरी बात पर विचार करेंगे और संसद में विधेयक पेश कर बम-कट्टा उद्योग को कुटीर उद्योग का दर्जा दिलवाएंगे।


आपका ही-मुजरिम।

Friday, June 15, 2012

अक्ल और बादाम का रिश्ता

-अशोक मिश्र
किसी स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा है कि तंदुरुस्ती हजार नियामत है। इसी नियामत को बरकरार रखने के लिए प्रत्येक रविवार को हम बाप-बेटे अपने मोहल्ले के पार्क में सुबह उठकर दौड़ लगाते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि जब मैं आलस्य के चलते दौड़ने जाने में आनाकानी करता हूं, तो मेरा आठ वर्षीय बेटा ‘का चुप साधि रहा बलवाना’ की तर्ज पर मुझे मेरा बल याद दिलाता है। बेटे के उत्साह को देखते हुए मैं भी उठकर उसके साथ हो लेता हूं। अब आपको आज का ही वाकया सुनाऊं। सुबह मैं अपने बेटे के साथ पार्क की साफ-सुथरी जगह छोड़कर गड्ढों वाली जगह पर दौड़ लगा रहा था। मैं आगे था और मेरा बेटा पीछे। तभी गड्ढे में पैर पड़ने से मेरा बेटा लड़खड़ाया और मुंह के बल गिर पड़ा। उसकी कोहनी और घुटने छिल गए थे। वह रुआंसा हो उठा। तभी पीछे से मेरी पड़ोसन छबीली दौड़ती हुई आई और बेटे को उठाती हुई बोली, ‘बेटे! बादाम-शादाम खाया करो, इससे अक्ल बढ़ती है।’
छबीली की बात सुनकर मैंने पीछे देखा और दौड़कर अपने बेटे के पास आ गया। बेटे के कपड़ों में लगी धूल को झाड़ते हुए कहा, ‘बादाम खाने से नहीं, ठोकर खाने से अक्ल बढ़ती है।’ मेरी बात सुनकर छबीली ने दोनों हाथ कमर पर रखकर अ्रखाड़ में उतरने वाले पहलवान की तरह कहा, ‘अगर ठोकर खाने से अक्ल बढ़ती, तो यूपीए सरकार को बहुत पहले अक्ल आ गई होती। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे एक ही मंच पर लोकपाल बिल और कालेधन को लेकर अनशन पर न बैठते।’
मैंने छबीली को घूरते हुए कहा, ‘क्या मतलब? अन्ना और बाबा रामदेव का मामले को बादाम से क्या लेना देना है।’ छबीली मेरी बात सुनकर पहले तो मुस्कुराई और फिर बोली, ‘इन दोनों की एकता का बादाम से नहीं, लेकिन अक्ल से तो लेना-देना है। दरअसल, मेरी समझ में बाबा और अन्ना की दोस्ती रहीमदास के दोहे ‘कहि रहीम कैसे निभे, केर-बेर के संग, वे डोलत रस आपने उनके फाटत अंग’ को पूरी तरह से चरितार्थ कर रही है। अभी कुछ ही दिन पहले का उदाहरण लें। बाबा और अन्ना ने दिल्ली में एक साथ अनशन किया। बाबा रामदेव ने कहा कि किसी की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जाएगी। लेकिन अन्ना हजारे के चेले-चपाटों ने सारा गुड़ गोबर कर दिया। वे लगे एक-एक मंत्रियों का नाम गिनाने। फलां मंत्री ने इतने का घोटाला किया, अमुक ने इतने की कमाई की। जबकि सच बताऊं। बाबा रामदेव सुबह उठकर सबसे पहले सात-आठ बादाम की गिरी खाते हैं, एक लोटा पानी पीते हैं। उनका दिमाग कितना तेज चलता है। उन्हें मालूम है कि सियासत और व्यापार को एक साथ कैसे साधा जाता है। यह बादाम खाने का ही नतीजा है कि उन्होंने अपनी एक टांग सियासत की चौखट में फंसा रखा है, तो दूसरी टांग के सहारे खड़े होकर योग का व्यापार कर रहे हैं, स्वदेशी के नाम पर कई तरह के उत्पाद बाजार में धड़ल्ले से बेच रहे हैं।’
इतना कहकर छबीली सांस लेने के लिए रुकी। फिर उसने मेरे बेटे के सिर को सहलाते हुए कहना शुरू किया, ‘बादाम सेवन के चलते ही रामलीला ग्राउंड पर पिछले साल हुए ‘सलवार-सूट’ कांड के बाद बाबा रामदेव सतर्क हो चुके थे। उन्हें एहसास हो चुका था कि यदि सरकार अपनी पर उतर आए, तो वह किसी की भी भट्ठी बुझा सकती है। यदि वजह थी कि इस बार उन्होंने किसी भी मंत्री के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा। उन्होंने तो यहां तक कहा कि पूज्य मैडम के पास जाऊंगा कालेधन के खिलाफ अलख जगाने। फलां आदरणीय नेताजी के पास जाऊंगा उनकी मदद मांगने। उधर अन्ना हजारे की टीम को ले लीजिए। मुंबई अनशन फ्लाप होने यानी समर्थकों के ठुकराने के बाद भी नहीं संभले। उनके चेले-चपाटे हर महीने को अगस्त जैसा मानकर दंभ में फूले जा रहे हैं। कभी सांसदों को चोर-लुटेरा, डाकू और बलात्कारी बता रहे हैं, तो कभी उन्हें भ्रष्टाचारी। इस आपसी सिर फुटौव्वल का नतीजा क्या हुआ? लोगों के सामने आ गया कि इन दोनों की दोस्ती ‘केर-बेर’ की दोस्ती जैसी है।’ इतना कहकर छबीली ने मेरे बेटे को ‘बॉय-बॉय’ किया। मुझे ठेंगा दिखाया और पार्क में टहल रहे लोगों पर मुस्कान की बिजलियां गिराती आगे बढ़ गई।

Tuesday, June 5, 2012

जिंदगी में ‘कंट्रोल जेड’ मतलब पंगा

अशोक मिश्र 
मेरे एक पड़ोसी हैं। उनका नाम है गुदुन कुमार, लेकिन लोग उन्हें प्यार से मियां झान झरोखे प्रसाद कहते हैं। उनका यह नाम कब और क्यों पड़ा, कोई नहीं जानता। पूछने पर वे मुस्कुराकर बात को टाल जाते हैं। वैसे उनसे कोई तभी बात करता है, जब फुरसत में हो। वे दिमाग का दही कर देते हैं। एक दिन रविवार को वे सुबह-सुबह मेरे घर पधारे। मैंने उनका स्वागत करते हुए कहा, ‘आइए, मियां झान झरोखे। बहुत दिनों बाद दर्शन दिए। सब खैरियत तो है?’ वे बोले, ‘सब खैरियत तो है, लेकिन एक सवाल काफी दिनों से परेशान कर रहा है। मैंने सोचा कि आपसे पूछा जाए, शायद आपके पास कोई हल हो।’ मैंने कुछ कहने की बजाय उनकी ओर सवालिया निगाहों से देखा। वे मेरा मंतव्य समझ गए और बोले, ‘बात यह है कि कंप्यूटर में एक कीबोर्ड होता है ‘कंट्रोल’ और दूसरा होता है ‘जेड’। इन दोनों का एक साथ उपयोग करके वर्तमान से पुराने फंक्शन पर लौटा जा सकता है। मैं सोचता हूं कि यदि हम सबकी जिंदगी में भी ‘कंट्रोल जेड’ की व्यवस्था होती, तो क्या होता? मेरे कहने का मतलब समझ रहे हैं न आप!’
झान झरोखे की बात सुनकर मैं आश्चर्य से उछल पड़ा, ‘क्या गजब का आइडिया है मियां! वाकई अगर ऐसा हो जाए, मजा आए। चलो मियां, ललित कुकरेजा से पूछते हैं कि अगर उनकी जिंदगी में ‘कंट्रोल जेड’ होता, तो...?’ हम दोनों ललित के घर पहुंचे। उन्हें ‘कंट्रोल जेड’ के बारे में बताने की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि वे कंप्यूटर के माहिर हैं। मैंने झान झरोखे वाला सवाल उनके सामने रख दिया। मेरी बात सुनकर पहले तो उन्होंने चोर निगाहों से चारों तरफ देखा और बोले, ‘होता क्या? सारी पोल खुल जाती। सारे लोग एक दूसरे के सामने नंगे हो जाते। कोई भी, किसी की भी जिंदगी का ‘कंट्रोल जेड’ बटन दबाकर अतीत जान लेता।’
इतना कहकर वे हम दोनों लोगों को देखने लगे। मियां झान झरोखे ने कहा, ‘मैं मतलब नहीं समझा?’ हालांकि ललित कुकरेजा की बात मेरी समझ में पूरी तरह आ गई थी, लेकिन मैंने नादान बनना ही उचित समझा। इस पर वे बोले, ‘आपको अपनी बात समझाने के लिए मैं किसी और का उदाहरण क्यों दूं? अब जैसे मुझे ही लो। मेरी प्यारी-सी बीवी और दोनों बच्चे मुझे शराफत की पुतली समझते हैं। अगर कोई मेरी पत्नी और बच्चों से मेरी लाख बुराई करे, लेकिन उन्हें विश्वास नहीं होगा।
यही हाल मोहल्ले की औरतों और पुरुषों का है। जहां तक मैं जानता हूं, मोहल्ले के लोगों की नजर में मैं करेक्टर और ईमानदारी के मामले में चौबीस कैरेट का खरा सोना हूं। गाहे-बगाहे मेरी शराफत की चर्चा भी करते हैं। अब अगर तुम्हारी कल्पना के मुताबिक जिंदगी में ‘कंट्रोल जेड’ की व्यवस्था होती, तो मेरी बीवी को पता चल जाता कि मैंने पिछले पंद्रह साल से छबीली से टांका भिड़ा रखा है। हम लोग बचपन से ही एक दूसरे के साथ चोंच मिलाते चले आ रहे हैं। इतना ही नहीं, मेरे बॉस को पता चल जाएगा कि मैंने कब-कब बीमारी का बहाना बनाकर, झूठ बोलकर दोस्तों और परिवार के साथ मूवी देखने या शापिंग करने गया। मैंने कब और किससे आफिस के बाहर और भीतर फाइल पर चिड़िया बिठाने के बदले रोकड़ा वसूला।’
ललित अपनी बात कह ही रहे थे कि पीछे से सिंह गर्जना हुई। हम सबने पीछे घूमकर देखा। भाभी जी, यानी मिसेज ललित कुकरेजा सिंहनी की तरह गरजती और ताल ठोंकती हुई बढ़ती चली आ रही हैं। मैंने ‘कंट्रोल जेड’ के जिस साइड इफेक्ट की कल्पना की थी, वह अब साकार होने जा रही थी। मैंने सबसे पहले वहां से खिसक लेना ही उचित समझा।
मिसेज ललित को आता देख मैं चिल्लाया, ‘भागो।’ ललित जी कुछ समझ पाते, उससे पहले ही उनकी पीठ पर एक दोहत्थड़ पड़ा और वे दर्द से दोहरे हो गए। दुबले-पतले झान झरोखे तो एकदम गन्ने की तरह लहराते हुए कब रफूचक्कर हो गए, हम दोनों में से किसी को पता ही नहीं चला। ललित जी बीवी के भय से आज भी फरार हैं। किसी को कोई सुराग लगे, तो उनके बारे में जानकारी देकर भाभी जी की मदद करें, प्लीज।