Monday, January 27, 2014

पापा! ‘फेंकू’ सर से पढूंगा ट्यूशन

-अशोक मिश्र
मैं पिछले चौबीस घंटे से एक अजीब से तनाव से गुजर रहा हूं। कई बार समझा चुका हूं। थोक में समझाया, फुटकर समझाया। अब तो बुद्धि ही काम नहीं करती कि मैं उसे कैसे समझाऊं। मानता ही नहीं है। कई बार मैं समझा चुका हूं, उसकी मां समझा चुकी है। थक-हारकर मोहल्ले वालों की भी मदद ली, लेकिन वह हिमालय पर्वत की तरह अटल है। कहता है, ट्यूशन पढूंगा, तो फेंकू सर से, नहीं तो किसी से भी नहीं पढूंगा। दरअसल, बात मेरे बेटे की हो रही है। कल पता नहीं कब और कैसे उसने गोरखपुर वाली रैली का सजीव प्रसारण देख लिया था। वह अपने फेंकू से इतना प्रभावित हुआ कि जैसे ही प्रसारण खत्म हुआ, वह मेरे पास आया और बोला, ‘पापा! मैं फेंकू सर से ट्यूशन पढ़ूंगा।’ पहले तो मैं समझ नहीं पाया। यही बात उसने जब दूसरी बार दोहराई, तो मैंने समझा, बच्चा है। किसी ने उससे मजाक किया होगा और वह अब मुझसे मजाक कर रहा है। मैंने बात को टाल दी। शाम को घरैतिन ने उससे खाने को कहा, तो वह यह कहते हुए अपने कमरे में चला गया, ‘जब तक फेंकू सर से ट्यूशन पढ़ाने को पापा तैयार नहीं होते, तब तक मैं न खाना खाऊंगा, न स्कूल जाऊंगा। न नहाऊंगा, न धोऊंगा।’  घरैतिन ने मेरे पास आकर कहा, ‘अरे देखो..यह किससे ट्यूशन पढ़ने की बात कर रहा है।’ घरैतिन की बात सुनते ही मैं बमक उठा, ‘दिमाग खराब हो गया है उसका और तुम्हारा भी। जानती हो, वह किससे ट्यूशन पढ़ने की बात कर रहा है?’ मैंने जब घरैतिन को समझाया, तो उसने खिखियाते हुए कहा, ‘तो बात कर लीजिए न! अगर एकौ-दुई घंटा पढ़ा देंगे, तो सपूत का बेड़ा पार हो जाएगा।’
मैंने घरैतिन को डपटते हुए कहा, ‘कमाल करती हो तुम भी। वह ट्यूशन पढ़ाएंगे? उनके जिम्मे इतने काम हैं कि उसे छोड़कर तुम्हारे सपूत को पढ़ाने बैठेंगे? अरे अभी उन्हें पाकिस्तान को मजा चखाना है। भारत की सीमा को ईरान-इराक तक पहुंचा है।’ मैंने अपने बेटे को बुलाया, ‘बेटा, तुम जिससे ट्यूशन पढ़ने की बात कर रहे हो, पहली बात तो यह संभव नहीं है। अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि वह पढ़ा भी देंगे, तो तुम्हारा बेड़ा गर्क हुआ ही समझो। एक तो उनको इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र की जितनी जानकारी है, उसका लोहा तो पूरी दुनिया मानती है। तुमने भले ही पढ़ा हो कि सिकंदर झेलम तक आने के बाद लौट गया था, लेकिन तुम्हारे ये फेंकू सर सिकंदर को लखनऊ, इलाहाबाद, पटना के रास्ते गुजरात पहुंचने और गुजरातियों द्वारा कुश्ती लड़ने की बात को सिद्ध कर देंगे। उनके पास ऐसे-ऐसे इतिहासकारों की फौज है, जो विलियम शेक्सपीयर को भारतीय बता देंगे। कह देंगे कि अंग्रेज चूंकि भारतीय शब्दों का उच्चारण ठीक ढंग से नहीं कर पाते थे, इसलिए विली मियां शेख पियारे को विलियम शेक्सपीयर बना दिया। बाद में लोगों ने अंग्रेजों के इस झूठ को सही मान लिया।’ इतना कहकर मैं थोड़ी देर सांस लेने के लिए रुका।
मेरी बात सुनकर बेटा थोड़ा सा कन्विंस होता दिखा, तो मैं उत्साह से भर गया। मैंने उसे समझाया, ‘देखो बेटा! यह तो हुई उनके इतिहास ज्ञान की बातें, उनकी दूसरी बातें सुनोगे, तो तुम्हें ताज्जुब होगा कि एक व्यक्ति इतना डींग हांक सकता है। और फिर..वे बड़े आदमी हैं, इतने महत्वपूर्ण पद पर हैं, इससे भी महत्वपूर्ण पद पर उनके जाने की संभावना है। फिर वे मुझ जैसे गुमनाम व्यक्ति के बेटे को इतना समय दे पाएंगे, मुझे नहीं लगता है। इतना ही नहीं, मेरे पास इतना बूता भी तो हो कि मैं तुम्हें उनके प्रदेश ट्यूशन पढ़ने भेज सकूं। तुम्हारा नाम वहीं के किसी स्कूल में लिखवा सकूं।’
मेरी बात सुनकर बेटा शातिराना तरीके से मुस्कुराया और बोला, ‘पापा! आप भी लंतरानी हांकने में काफी चतुर हैं। जहां तक रहने की बात है, तो मैं अहमदाबाद वाली मौसी के पास रहकर भी पढ़ सकता हूं। मैं आपकी यह बात भी मानता हूं कि फेंकू सर का सामान्य ज्ञान थोड़ा विलक्षण है। हमारे सामान्य ज्ञान से उनका सामान्य ज्ञान मैच नहीं करता। यह भी सच है कि वे इस देश के सबसे बड़े फेंकू हैं। जब वे फेंकते हैं, तो फिर यह नहीं देखते कि उनका फेंका गया तीर कहां गिरेगा। फेंकने की कला के वे महारथी ही नहीं, अतिरथी हैं। लेकिन एक बात आपने या शायद पूरे भारत ने महसूस नहीं की है। वे फेंकते कितने आत्मविश्वास के साथ हैं। उनका यही आत्मविश्वास तो काबिलेतारीफ है। वे झूठ भी बोलते हैं, तो कितनी सफाई और दमदारी के साथ। वे जब कहते हैं कि गुजरात को गुजरात बनाने के लिए छप्पन इंच का सीना चाहिए, तो वे यह नहीं सोचते कि छप्पन इंच कितने फीट के बराबर होता है। पापा! मुझे फेंकू सर से यही आत्म विश्वास सीखने जाना है। उनसे यह सीखना है कि झूठ कितनी सफाई से बोला जा सकता है। पापा! एक बात बताऊं। मैंने अपनी पाकेटमनी को बचाकर एक विजिटिंग कार्ड छपवाया है, जिसमें लिखवाया है, श्री चपरकनाती मिश्र, फ्यूचर प्राइम मिनिस्टर आॅफ इंडिया। पापा देखना, अगर फेंकू सर जैसा आत्म विश्वास मुझमें भी आ जाए, तो एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनकर रहूंगा।’ बेटे की बात सुनकर अब मेरी बोलती बंद थी।

Tuesday, January 21, 2014

ससुर के नातियों की महाभारत

-अशोक मिश्र
अवधी भाषी क्षेत्र के किसी गांव के किसी घर के सामने जल रहे कौरे (अलाव) के इर्द-गिर्द बैठे चार व्यक्ति आपस में बतकूचन कर रहे थे। इन लोगों के बीच में कुछ किशोर भी थे, जो इनकी बातों को बड़ी गौर से सुन और गुन रहे थे। वैसे इन किशोरों को बीच में बोलने की इजाजत नहीं थी, लेकिन बीच-बीच में ये अपनी जिज्ञासा किसी न किसी बहाने शांत कर ही लेते थे। कभी मिडिलची (आठवीं कक्षा पास) रह चुके ग्यानू काका ने खैनी फांकते हुए कहा, ‘अरे! तुम लोगों को नहीं मालूम, हमारे देश में ऐसे-ऐसे हवाई जहाज होते थे कि अब क्या बताएं। बच्चे जिद करते थे, महतारियां (माएं) अपने बच्चों को उन हवाई जहाजों पर बिठाने के बाद हाथ में मस्का-रोटी देकर कहती थी कि बच्चा..जाओ, थोड़ी देर सूरज पर कबड्डी खेल आओ, तब तक मैं घर का काम निबटा लूं। गांव भर के बच्चे हवाई जहाज पर बैठे और जहाज यह जा..वह जा..की गति से दो-तीन मिनट में सूरज पर पहुंच जाता। लड़के कबड्डी खेलते और जब यहां घर पर खाना तैयार हो जाता, तो महतारियां मुंह ऊपर करके आवाज देतीं, परमेसरा! आ जा, खाना तैयार है। थोड़ी देर में ‘सूं..ऊं.’ की आवाज होती और जहाज किसी के भी खाली खेत में उतर जाता।’
ग्यानू काका की बात सुनकर कंधई ने अपना सिर हिलाया, ‘हां..काका! हमने तो कहीं पढ़ा है कि राजा भगीरथ के पास तो ऐसा घोड़ा था, जो राजा भगीरथ के मन की बात जान लेता था। उन्हें कहां जाना है, वह बिना बताए जान जाता था। वह तो एक ही पल में सुरलोक, तो दूसरे पल ब्रह्मलोक, तो तीसरे पल ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर अपने महल में लौट आते थे। उनको इतने दूर की बातें सुनाई देती थीं कि अब क्या कहें काका! एक बार का प्रसंग है कि धतींगरासुर ने देवलोक पर आक्रमण किया। देवराज बेचारे लड़ते-लड़ते हार गए, लेकिन धतींगरासुर हार ही न माने। भागे-भागे देवता राजा भगीरथ के पास पहुंचे। उन्होंने बड़ी जोर की हांक लगाई, वहीं देवलोक में रुक, ससुर के नाती। अभी मैं वहीं पहुंचता हूं। उनकी यह आवाज पूरे ब्रह्मांड में इतनी तेज गूंजी कि उसी आवाज की धमक से धतींगरासुर के कान के पर्दे फट गए और वह वहीं मर गया।’ वहीं कौरा (अलाव) ताप रहे लोगों के बीच दबे हुए से ग्यानू काका ने कंधई की बात का अनुमोदन करते हुए कहा, ‘कंधई भाई! सुना है कि जब मोदी की सरकार आ जाएगी, तो फिर से देश में ऐसे ही हवाई जहाज चलने लगेंगे, गांव-गांव में राजा भगीरथ वाले घोड़े मिलने लगेंगे। मेरा लड़का एक दिन मोदी की पार्टी का घोषनापत्तर पढ़ रहा था। उसमें एक जगह लिख था कि पुराने समय में हमारे देश में एक बीघा खेत में सौ-सवा सौ कुंटल अनाज होता था। भाज्जपा वालों के पास वह तकनीक आज भी सुरक्षित है। जैसे ही उनकी सरकार बनी, हम लोगों की तो भइया..बस मौज ही मौज हो जाएगी।’
कौरा ताप रहे बुधई पंडित से रहा नहीं गया, ‘घंटा..मौज हो जाएगी। जो काम गान्हीं बाबा नहीं कर पाए, जवाहर लाल नहरू, इंदिरा गान्हीं नहीं कर पाईं, वह तुम्हारी भाज्जपा कैसे कर लेगी? गान्हीं से बड़ा कोई तपस्वी हुआ है इस देश में? तुम ससुर के नाती खाली झूठ कै देह धरे हो। जिंनगी भर झूठै बोले, पाटी भी झुट्ठन के जुवाइन किहे हौ? तुम्हरे ई भाज्जपा वाले खाली झूठ बोलै के अलावा कोई दूसर बात करते हैं का?’ बुधई पंड़ित ठेठ अवधी में बोल पड़े। बुधई की बात सुनते ही ग्यानू काका तमक उठे, ‘देखो पंडित! खबरदार जो भाज्जपा को झुट्ठों की पार्टी कहा। कांग्रेस वाले तो देश को लूट के घर भर लिए हैं, पिछले साठ साल से एकदम लूट मचाए हैं। बुधई पंडित, बस..चार महीना रुको.. नरसिंह भगवान का अवतार हो चुका है। दो-चार महीने में कांग्रेसी असुरन की राजनीति का नाश नरसिंह भगवान करने वाले हैं। कांग्रेसी चोट्टन की राजनीति का खात्मा नहीं होगा, तब तक इस देश में रामराज्य नहीं आ सकता।’ इतना सुनते ही बुधई पंडित ने घर-परिवार के लोगों को आवाज देते हुए कहा, ‘अरे रामेंद्रा! जरा उठाय लाव तौ लट्ठ। अबहीं इनका बताइत है कि कौन किसका नाश करेगा। ई ग्यानवा जिंदगी भर झूठ की फसल बोता रहा, अब झूठ-झूठ बात कहकर हम सबका भरमावत है। इसका जब तक दिमाग हम ठिकाने नहीं लगा देंगे, तब तक पानी भी पीना हमारे लिए हराम है।’ बुधई पंडित के घर से दोनों बेटे हाथों में लाठी लिए निकल आए और ग्यानू के साथ-साथ कंधई की मां-बहन से नजदीकी रिश्ता कायम करते हुए जमीन पर लट्ठ पटकने लगे। देखते ही देखते दोनों पक्ष के लोग लाठी, भाला, बल्लम लेकर जमा होने लगे।
और फिर वही हुआ, जिसकी आप सभी लोग इस समय कल्पना कर रहे हैं। इस आधुनिक महाभारत में मरा तो कोई नहीं, लेकिन सिर सिर्फ दो लोगों के फूटे, सिर्फ तीन लोगों के हाथों और पैरों की हड्Þडी टूटी, सात लोगों को अस्पताल में उन चोटों के लिए भर्ती कराना पड़ा, जो बाहर से तो नहीं दिखते थे, लेकिन भीतर ही भीतर चोटहिल थे। दोनों पक्ष के बारह लोग थाने की हवालात में जमा हैं। उन्नीस लोग अपना घर-बार छोड़कर फरार हैं। पुलिस इनके नाते-रिश्तेदारों के घरों में छापे मार रही है, दबिश दे रही है। इस मार-पीट में बसपा और सपा के समर्थक भी कूद पड़े हैं क्योंकि बतकूचन के दौरान हुए महाभारत में दो यादव और पांच दलित जातियों के लोग भी घायल हुए थे। ये सभी कुछ ज्यादा नहीं, बीचबचाव करने आए थे। गांव की सियासत में अभी फिलहाल गर्मी है।

Tuesday, January 14, 2014

नेताजी का ‘कुर्सी’ चिंतन

-अशोक मिश्र
नेता जी पिछले पांच घंटे से चिंतन कर रहे थे। बाहर पत्रकारों की भीड़ चिंतन खत्म होने की प्रतीक्षा में आकुल-व्याकुल नजर आ रही थी। इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े पत्रकार बार-बार अपने दर्शकों को मकान, गेट और खिड़कियों को दिखा-दिखाकर उन्हें आश्वासन दे रहे थे कि बस नेता जी का चिंतन खत्म होने वाला है। इसके बाद हम अपने दर्शकों को बताएंगे कि उनका चिंतन किस विषय पर था और उसका क्या परिणाम निकलने वाला है? तभी मेरी निगाह नेताजी के एक खास चमचे पर पड़ी।
उसने बड़े ही एहतियात से भीड़ से अलग होने का इशारा किया, तो मैं अपनी बिरादरी का साथ छोड़कर घर के पिछवाड़े की ओर जा पहुंचा। नेता जी का चमचा खड़ा बीड़ी सूत रहा था। मैंने कहा, ‘गुरु..माजरा क्या है? नेता जी किस चिंतन में हैं? और अगर चिंतन ही करना था, तो चुपचाप कर लेते, इतना शोर-शराबा करने की क्या जरूरत थी?’ चमचे ने काफी जोर का सुट्टा मारने के बाद बीड़ी फेंकते हुए कहा, ‘यह तुम नेताजी से ही पूछ लेना। तुमसे वे अकेले में मिलना चाहते हैं।’ चमचे की बात सुनकर मैं इतना खुश हुआ, मानो कारू का खजाना मिल गया हो। मैं चमचे के पीछे चल पड़ा।
घर के पिछवाड़े से ही नेता जी के कमरे में घुसा। सोफे पर पलथी मारकर बैठे नेता जी आंखें मूंदे गहन चिंतन में थे। उनके सामने की टेबिल पर अंग्रेजी शराब की आधी खाली बोतल और आधा भरा पैग रखा हुआ था। उन्होंने आंखें बद किए ही दायां हाथ बढ़ाया और पैग उठाकर एक घूंट भरा। नेताजी का चमचा ध्यानाकर्षण के लिए खंखारा, तो उन्होंने पट से आंखें खोल दीं। मुझे देखते ही नेताजी के चेहरे का तनाव दूर हो गया। मुझे सामने के सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘आओ..तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।’ मैंने सकुचाये हुए अंदाज में कहा, ‘नेताजी..सब खैरियत तो है न!’ नेताजी ने चमचे को बाहर जाने का इशारा करते हुए कहा, ‘तुम देख ही रहे हो। देश की दशा बहुत खराब है। देश भर के गरीबों का जीवन दुश्वार होता जा रहा है। क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता। मैं अपने देश की जनता के लिए करना बहुत कुछ चाहता हूं, लेकिन क्या करूं? पिछले पांच-छह घंटों से बस यही सोच रहा हूं, बार-बार चिंतन कर रहा हूं, लेकिन हर बार सारा चिंतन प्रधानमंत्री पद पर जाकर अटक जाता है। चिंतन में पीएम की कुर्सी ही छाई रहती है। चिंतन में कुर्सी का कोई गूढ़ रहस्य है। तुम ज्योतिष विद्या में पारंगत हो, सामुद्रिक शास्त्र के महारथी हो।  चिंतन और कुर्सी का निहितार्थ तो बताओ।’ इतना कहने के बाद नेताजी ने इशारे से मुझे शराब पीने का इशारा किया, जिसे मैंने विनम्रता से इंकार कर दिया। मैंने विनम्रता से कहा, ‘नेताजी..इसका तो बस एक ही मतलब है कि आप निकट भविष्य में प्रधानमंत्री की कुर्सी को सुशोभित करने वाले हैं। अच्छा एक बात बताइए। चिंतन के दौरान कुर्सी बार-बार हिलती तो नहीं दिखाई दे रही थी?’ मेरी बात सुनकर खाली पैमाने को भरने जा रहे नेताजी उछल पड़े, ‘बस..बस..यही बात तो मुझे खाए जा रही थी। चिंतन में कुर्सी का होना तो ठीक है, ठीक क्या...बहुत ठीक है, लेकिन यह मुई कुर्सी क्यों बार-बार हिल रही है?’ मैंने झट से गंभीरता ओढ़ ली, ‘बात यह है नेताजी...आपको प्रधानमंत्री की कुर्सी मिलने के पूरे आसार हैं, लेकिन आपकी पार्टी के कुछ बड़े नेता विरोधी दलों के साथ ‘कुर्सी-कुर्सी’ खेलने में लगे हुए हैं। ये रहते तो आपके साथ हैं, लेकिन भला विरोधियों का सोचते हैं। रुपया-पैसा, पद-प्रतिष्ठा तो आपकी बदौलत हथियाते हैं, लेकिन गुण पंजा वालों के गाते हैं, कमल वालों की स्तुति करते हैं और झाडू वालों की प्रशंसा में कसीदाकारी करते हैं। आपकी बढ़ोत्तरी में यही राहु-केतु का काम कर रहे हैं। अगर आप इन पर विजय पा गए, तो समझिए कि प्रधानमंत्री की कुर्साी आपके ही घर में रखी हुई है। कहीं नहीं गई है प्रधानमंत्री पद की कुर्सी। आप तो जानते ही हैं कि मेरी ज्योतिष शास्त्र पर कितनी पकड़ है। मेरी गणना में तिल मात्र भी फर्क नहीं आ सकता है।’ मेरे इतना कहते ही नेताजी तमतमा उठे, ‘तुम कहते हो, तो अभी इन सबको निकाल बाहर करता हूं। मैं अकेला ही पार्टी चला सकता हूं।’ मैंने नेताजी को बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘ऐसा कतई मत कीजिएगा। इन सबको इतनी सफाई से ‘ढक्कन’ कीजिए कि ये किसी बोतल में लगने लायक ही नहीं रह जाएं। अभी तो आप सिर्फ इतना कीजिए, चुपचाप तमाशा देखिए।’ मेरी बात सुनकर नेताजी उठे और बोले, ‘बाहर तुम्हारी बिरादरी के काफी लोग मौजूद हैं। तुम भी घर के पिछवाड़े से निकल कर आगे आओ। मीडिया से रू-ब-रू होना है।’ मैंने हाथ जोड़े और बाहर निकल गया। सामने पहुंचा, तो नेताजी मीडिया के सामने पहुंचे और बोले, ‘राष्ट्र और राष्ट्र के करोड़ों जनों के हित में काफी चिंतन के बाद मैं थक गया हूं। इसलिए आज शाम को मेरे गांव में एक तमाशे का आयोजन किया गया। इस देश की गरीब जनता उस नाच-गाने के आयोजन में भाग लेकर राष्ट्र के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे। बस..आज मुझे इतना ही कहना है।’ इतना कहकर नेताजी फिर कमरे में जाकर चिंतन करने लगे।

Wednesday, January 8, 2014

न खाऊंगा, न खाने दूंगा

अशोक मिश्र 
उस्ताद मुजरिम के घर पहुंचा, तो पूरे मकान में सन्नाटा पसरा हुआ था। मैं उस्ताद मुजरिम को खोजता हुआ, आगे बढ़ा, तो देखा कि उस्ताद मुजरिम अपने आराध्य हनुमान जी के सामने हाथ जोड़े प्रार्थना कर रहे हैं। मैं दरवाजे पर खड़ा हो गया। वे हनुमान जी से विनती कर रहे थे, ‘हे भगवन! इन मतिमंदों, कूढ़मगजों, अक्ल के अंधों और बेवकूफों को समझाइए। इन्हें अक्ल दीजिए मारुतिनंदन। भला बताओ, आज जब कमाने-खाने का मौका आया, तो इनके सिर पर एक अजीब सी खब्त सवार हो गई है। एकदम खब्तुलहवासों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। कहते हैं, न खाऊंगा, न खाने दूंगा। अंजनिपुत्र! भला यह भी कोई बात हुई। इनकी बचकानी बातों पर विरोधी मुंह छिपाकर हंसते हैं। वे सामने आकर कहते हैं, ऐसा करो, तो जानूं। वैसा करो, तो मानूं। हमारे नेता जब ऐसा और वैसा कर देते हैं, तो विरोधी मीडिया और आम जनता के सामने आकर चिल्लाने लगते हैं कि देखा..देखा..इसने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया। भगवन! अब आपसे कुछ छिपा तो है नहीं। इस संसार में ऐसी कौन सी बात है, जो आपसे छिपी हुई हो। इन मंदअक्लों को विश्वास ही नहीं था कि वे इतनी भारी संख्या में जीतकर चले आएंगे। जीत क्या गए, बौरा ही गए। एक तो पहले से ही ये लोग भारतीय राजनीति के लिए टेढ़े थे, जीतने के बाद तो और भी टेढ़े हो गए। पहले तो सिर्फ टेढ़े थे, लेकिन चलते सीधा थे। अब तो जीतने के बाद टेढ़े-टेढ़े चलने भी लगे। इनके टेढ़े चलने से भारतीय राजनीति की पूरी व्यवस्था ही डगमगा गई। आप तो जानते ही हैं भगवन! इनके टेढ़े चलने से भ्रष्टाचार के समुद्र में ज्वार-भाटा आने लगा है। भ्रष्ट व्यवस्था के देवराजों (इंद्र आदि देवगणों) के सिंहासन हिलने लगे हैं। अब आप ही इनकी रक्षा कर सकते हैं। भगवन! आपसे विनती है कि या तो सचमुच भ्रष्टाचार का इस देश से खात्मा कर दो या फिर इन बेवकूफों की मति फेर दो।’
इतना कहकर उस्ताद मुजरिम ने हनुमान जी के माथे पर सिंदूर का लेप लगाते हुए कहा, ‘हे पवनसुत! आप तो जानते हैं कि मैं जिंदगी भर पाकेटमार रहा। देश के नामी गिरामी शख्सियत से लेकर कल्लू पनवाड़ी तक की जेब पर हाथ साफ किया है। अंगुलियों में फंसे ब्लेड के सहारे मैंने जिंदगी भर अपनी आजीविका चलाई। खुद खाया और दूसरों का भी पेट भरा। बुढ़ापे में सोचा था कि चुनाव ही लड़ लूं। सो, दिल्ली आ गया। किसी तरह जुगाड़ करके टिकट हथियाया। कुछ तिकड़म, कुछ चालबाजी और कुछ भाग्य ने साथ दिया, तो जीत भी गया। मेरे चुनाव क्षेत्र के जितने भी पाकेटमार, चोर-उचक्के, ठग, अपराधी थे, उन्होंने मेरा खूब जमकर प्रचार किया। ज्यादातर आपराधिक प्रवृत्ति के लोग या तो मेरे चेले निकले या फिर मेरे गुरु भाइयों के चेले-चपाटे। सो, कुछ आपकी कृपा से, कुछ चेले-चपाटों की दया से और कुछ नासमझ जनता की दया-भावना के चलते काफी समर्थन मिला। अपना एक चेला तो हारने या जीतने पर गोली-बम की फुलझड़ियां छोड़ने पर भी आमादा था, लेकिन मैंने उससे कह दिया, खबरदार... जो हल्ला-गुल्ला किया तो। मैं इस देश का आम आदमी हूं, भले ही पाकेटमार हूं तो क्या हुआ। लेकिन भगवन! ऐसा चुनाव जीतने से क्या फायदा हुआ। सारा गुड़ गोबर कर दिया। भला आप ही बताइए, इस देश से भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है क्या? गरीबी, बेकारी, भुखमरी और शोषण-दोहन की अकाल मौत हो सकती है क्या?
नहीं हो सकती..कम से कम इस पूंजीवादी व्यवस्था में तो नहीं हो सकती। यह आप भी जानते हैं, मैं भी जानता हूं और हमारे देश के वे सभी नेता जानते हैं, जो गरीबी, बेकारी, भुखमरी आदि दूर करने का वायदा करते हैं। इस बात को अगर कोई नहीं समझता है, तो वह है इस देश का आम आदमी। इस देश की कूढ़मगज जनता।’
‘भगवन! चुनाव लड़ते समय सोचा था, बुढ़ापे में विधायक बनकर कुछ कमा-खा लूंगा। भ्रष्ट व्यवस्था के सहारे बेटियों की किसी अच्छे खासे भ्रष्ट और कमाऊ लड़कों से शादी व्याह करके अपना बोझ हलका कर लूंगा। लड़कों को भी किसी कायदे का धंधा पकड़ा दूंगा। अनाप-शनाप घूस-घास लेकर कुछ पैसा जमा कर लूंगा, ताकि बुढ़ापा चैन से कट सके। लेकिन इन खब्ती लोगों ने मेरे उन सपनों पर पानी फेर दिया। पता नहीं कैसे इन सबके दिमाग में भ्रष्टाचार विरोधी कीड़ा पैदा हो गया और लगे सबको गरियाने। देखते ही देखते देश के हातिमताई बन गए। इनके हातिमताईपने की आड़ में मैंने भी सोचा कि नफा उठा लूंगा। अब जीतने के बाद इनका सादगी भरा रवैया देखकर तो ऐसा लग रहा है कि छप्पन व्यंजन से भरी थाली में किसी ने एक मुट्ठी धूल डाल दी हो।
भगवान! आपसे मेरी यह करबद्ध प्रार्थना है कि इनकी मति ही फेर दो। इनके दिमाग में घुसे भ्रष्टाचार विरोधी कीड़े को किसी भी तरह मार दो, मरवा दो या फिर आप कहें, तो यमराज जी से कुछ निवेदन करूं। बस, इन सबके दिमाग में घुसा वह कीड़ा मरना चाहिए। ऐसा होते ही अपनी तो बल्ले-बल्ले हो जाएगी।’ इतना कहकर उस्ताद मुजरिम ने हनुमान जी के चरण स्पर्श किए और पूजागृह से बाहर आ गए। मैंने आगे बढ़कर उस्ताद के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद ग्रहण किया और बिना कुछ कहे-सुने घर लौट आया।

Friday, January 3, 2014

तुम क्या करोगे..बाबा जी का ठुल्लू?

अशोक मिश्र 
चुनावी महासंग्राम चल रहा था। ‘राष्ट्रीय लूट-खसोट पार्टी’ के स्टार प्रचारक भकोसानंद अपनी पार्टी के पीएम पद के दावेदार गुनहगार की जनसभा को संबोधित कर रहे थे, ‘भाइयो और बहनो! आजादी के चालीस साल तक इस देश पर शासन करने वाली पार्टी कहती है कि उसने देश की जनता को मनरेगा दिया, सूचना का अधिकार दिया, फूड सिक्योरिटी बिल का तोहफा दिया। मैं कहता हूं, इस देश की जनता को तुमने क्या समझ रखा है, भिखारी? तुमने दिया और जनता ने ले लिया। चालीस साल तक जनता को लूटने वाली पार्टी कहती है कि उसने देश के गरीबों को तीन रुपये किलो चावल, दो रुपये किलो गेहूं और एक रुपये में मोटा अनाज दिया। भाइयो और बहनो!  इस देश का गरीब कोई गाय-बैल है क्या? जिस अनाज को गाय-बैल खाने से भी इंकार कर दें, उस अनाज को बांटकर गरीबों को गाय-बैल से भी बदतर बना दिया है। मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! इसी देश में एक भगवा पार्टी है। उसने देखा कि उसके प्रतिद्वंद्वी सस्ता अनाज बांटकर बाजी मार ले जा रहे हैं, तो उस पार्टी की राज्य सरकारों ने गाय-बैलों का चारा गरीबों को खिलाने के नाम पर और सस्ता कर दिया। भगवा पार्टी की राज्य सरकारों ने गरीब जनता रूपी गाय-बैलों को एक रुपये में उनका चारा देने की घोषणा की है। भाइयो और बहनो! मैं इन दोनों पार्टियों से पूछना चाहता हूं कि उन्होंने देश की आम जनता को समझ क्या रखा है? वह इनकी भीख पर जिंदा रहेगी?’
इतना कहकर भकोसानंद जी ने रुमाल से अपना मुंह पोछा और फिर कहा, ‘मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! आपने आजादी के 66-67 साल में कभी सांपनाथ को दिल्ली की कुर्सी पर बिठाया, तो कभी नागनाथ को। आप बस एक बार...सिर्फ एक बार हमारी ‘राष्ट्रीय लूट-खसोट पार्टी’ पर भरोसा करके देखिए, हमारी पार्टी के उम्मीदवार गुनहगार जी को प्रधानमंत्री बनाकर देखिए, इस देश में वह सब कुछ होगा, जो आप चाहते हैं। हमारी पार्टी का दावा है कि गाय-बैलों का चारा तीन रुपये या एक रुपये में क्यों? मुफ्त में क्यों नहीं बांटा जा सकता है। हमारी पार्टी की सरकार बनी, तो देश की सत्तर फीसदी आबादी को गेहूं, चावल, सब्जी, तेल ही नहीं, बल्कि खाना बनाने के लिए लकड़ी, उपले और गैस तक मुफ्त दिए जाएंगे। आप अपने घरों में जितनी भी चाहें बिजली-पानी खर्च कर सकते हैं। आप अगर नहाने धोने में बीस लीटर पानी खर्च करते हैं, तो आप म्लेच्छ हैं, आपको नहाने-धोने की आदत नहीं है। आप सौ लीटर पानी खर्च कीजिए, दो सौ लीटर खर्च कीजिए, आपसे इसका शुल्क  नहीं लिया जाएगा। आापके घरों में पानी बिल्कुल फ्री आएगा। आप कमरे में एक बल्ब जलाएं, हीटर जलाएं, गर्मी के दिनों में भी आप हीटर जलाकर अपना कच्छा-बनियान सुखाइए, सरकार को कोई परेशानी नहीं होगी। अगर आपके घर में कोई सरकारी आदमी बिल लेकर आता है, तो उसको पीटिए। हां, हत्या मत कीजिए। किसी सरकारी आदमी को ठोकने-पीटने का हक तो आपके पास है, लेकिन हत्या करने का नहीं। आपके घर रोज पुलिस वाला आकर पूछेगा, ‘भाई साहब! आपको  कोई दिक्कत तो नहीं है?’ ऐसी होगी पुलिस और पुलिसिया व्यवस्था। बस.. हमारी पार्टी की सरकार बनने दीजिए।’
इतना कहकर भकोसानंद जी थोड़ी देर के लिए रुके। फिर बोले, ‘आप चिंता मत कीजिए। अरष्टाचार-भ्रष्टाचार नहीं रुकने वाला इस देश से। हमारी पार्टी की सरकार आई, तो संसद और विधानसभाओं में विधेयक पारित करवाकर भ्रष्टाचार को कानूनी तौर पर मान्यता दिलाई जाएगी। अरे वह भी कोई देश है, जहां किसी तरह का भ्रष्टाचार न होता हो, लूट-खसोट न होती हो। भाइयो और बहनो! मैं आप सब लोगों से एक बात पूछना चाहता हूं। अगर पूरे देश में रामराज्य आ जाए, इस देश के सारे लोग सद्चरित्र, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ हो जाएंगे। तो क्या अच्छा लगेगा? दुनिया एकदम बेरंग नहीं हो जाएगी? देश की सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर आपको पिछले छह-सात दशक से बेवकूफ बना रही हैं। हमारी पार्टी ‘राष्ट्रीय लूट-खसोट पार्टी’ खुलेआम घोषणा करती है कि इस देश का अगर विकास हो सकता है, तो सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार से। अगर आपके मोहल्ले की सड़क बननी है, तो भ्रष्ट अधिकारी कुछ ले-देकर दो हफ्ते में बनवा देगा। नहीं तो, बैठे रहिए दस-पांच साल तक ईमानदारी का राग अलापते। अपके मोहल्ले की सड़क बनाने के नाम पर एक तसला गिट्टी तक नहीं गिरेगी।’ तभी हाईस्कूल के एक छात्र ने भकोसानंद जी से पूछा, ‘नेता जी! मेरे मम्मी-पापा मुझे रोज पॉकेट मनी नहीं देते हैं। तो क्या आपकी सरकार छात्र-छात्राओं को पॉकेटमनी भी दिलाएगी?’ बीच में टोके जाने से खफा भकोसानंद जी ने गरजते हुए कहा, ‘जिसका भी यह बच्चा है, वह और ऐसे तमाम लोग एक बात अच्छी तरह से समझ लें। जब सब कुछ हमारी ही सरकार कर देगी, तो आप लोग क्या करेंगे..बाबा जी का ठुल्लू? अरे! जब लूटने की, खसोटने की, भ्रष्टाचार करने की पूरी छूट दे दी, तो अब गोदामों से माल लूटकर आपके घर भी पहुंचाया जाए क्या? अरे..इतनी मेहनत तो आप लोगों को करनी ही पडेÞगी?’ इतना कहकर भकोसानंद जी ने अपना भाषण खत्म किया और दूसरी सभा में शामिल होने चले गए।