Tuesday, January 14, 2014

नेताजी का ‘कुर्सी’ चिंतन

-अशोक मिश्र
नेता जी पिछले पांच घंटे से चिंतन कर रहे थे। बाहर पत्रकारों की भीड़ चिंतन खत्म होने की प्रतीक्षा में आकुल-व्याकुल नजर आ रही थी। इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े पत्रकार बार-बार अपने दर्शकों को मकान, गेट और खिड़कियों को दिखा-दिखाकर उन्हें आश्वासन दे रहे थे कि बस नेता जी का चिंतन खत्म होने वाला है। इसके बाद हम अपने दर्शकों को बताएंगे कि उनका चिंतन किस विषय पर था और उसका क्या परिणाम निकलने वाला है? तभी मेरी निगाह नेताजी के एक खास चमचे पर पड़ी।
उसने बड़े ही एहतियात से भीड़ से अलग होने का इशारा किया, तो मैं अपनी बिरादरी का साथ छोड़कर घर के पिछवाड़े की ओर जा पहुंचा। नेता जी का चमचा खड़ा बीड़ी सूत रहा था। मैंने कहा, ‘गुरु..माजरा क्या है? नेता जी किस चिंतन में हैं? और अगर चिंतन ही करना था, तो चुपचाप कर लेते, इतना शोर-शराबा करने की क्या जरूरत थी?’ चमचे ने काफी जोर का सुट्टा मारने के बाद बीड़ी फेंकते हुए कहा, ‘यह तुम नेताजी से ही पूछ लेना। तुमसे वे अकेले में मिलना चाहते हैं।’ चमचे की बात सुनकर मैं इतना खुश हुआ, मानो कारू का खजाना मिल गया हो। मैं चमचे के पीछे चल पड़ा।
घर के पिछवाड़े से ही नेता जी के कमरे में घुसा। सोफे पर पलथी मारकर बैठे नेता जी आंखें मूंदे गहन चिंतन में थे। उनके सामने की टेबिल पर अंग्रेजी शराब की आधी खाली बोतल और आधा भरा पैग रखा हुआ था। उन्होंने आंखें बद किए ही दायां हाथ बढ़ाया और पैग उठाकर एक घूंट भरा। नेताजी का चमचा ध्यानाकर्षण के लिए खंखारा, तो उन्होंने पट से आंखें खोल दीं। मुझे देखते ही नेताजी के चेहरे का तनाव दूर हो गया। मुझे सामने के सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘आओ..तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।’ मैंने सकुचाये हुए अंदाज में कहा, ‘नेताजी..सब खैरियत तो है न!’ नेताजी ने चमचे को बाहर जाने का इशारा करते हुए कहा, ‘तुम देख ही रहे हो। देश की दशा बहुत खराब है। देश भर के गरीबों का जीवन दुश्वार होता जा रहा है। क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता। मैं अपने देश की जनता के लिए करना बहुत कुछ चाहता हूं, लेकिन क्या करूं? पिछले पांच-छह घंटों से बस यही सोच रहा हूं, बार-बार चिंतन कर रहा हूं, लेकिन हर बार सारा चिंतन प्रधानमंत्री पद पर जाकर अटक जाता है। चिंतन में पीएम की कुर्सी ही छाई रहती है। चिंतन में कुर्सी का कोई गूढ़ रहस्य है। तुम ज्योतिष विद्या में पारंगत हो, सामुद्रिक शास्त्र के महारथी हो।  चिंतन और कुर्सी का निहितार्थ तो बताओ।’ इतना कहने के बाद नेताजी ने इशारे से मुझे शराब पीने का इशारा किया, जिसे मैंने विनम्रता से इंकार कर दिया। मैंने विनम्रता से कहा, ‘नेताजी..इसका तो बस एक ही मतलब है कि आप निकट भविष्य में प्रधानमंत्री की कुर्सी को सुशोभित करने वाले हैं। अच्छा एक बात बताइए। चिंतन के दौरान कुर्सी बार-बार हिलती तो नहीं दिखाई दे रही थी?’ मेरी बात सुनकर खाली पैमाने को भरने जा रहे नेताजी उछल पड़े, ‘बस..बस..यही बात तो मुझे खाए जा रही थी। चिंतन में कुर्सी का होना तो ठीक है, ठीक क्या...बहुत ठीक है, लेकिन यह मुई कुर्सी क्यों बार-बार हिल रही है?’ मैंने झट से गंभीरता ओढ़ ली, ‘बात यह है नेताजी...आपको प्रधानमंत्री की कुर्सी मिलने के पूरे आसार हैं, लेकिन आपकी पार्टी के कुछ बड़े नेता विरोधी दलों के साथ ‘कुर्सी-कुर्सी’ खेलने में लगे हुए हैं। ये रहते तो आपके साथ हैं, लेकिन भला विरोधियों का सोचते हैं। रुपया-पैसा, पद-प्रतिष्ठा तो आपकी बदौलत हथियाते हैं, लेकिन गुण पंजा वालों के गाते हैं, कमल वालों की स्तुति करते हैं और झाडू वालों की प्रशंसा में कसीदाकारी करते हैं। आपकी बढ़ोत्तरी में यही राहु-केतु का काम कर रहे हैं। अगर आप इन पर विजय पा गए, तो समझिए कि प्रधानमंत्री की कुर्साी आपके ही घर में रखी हुई है। कहीं नहीं गई है प्रधानमंत्री पद की कुर्सी। आप तो जानते ही हैं कि मेरी ज्योतिष शास्त्र पर कितनी पकड़ है। मेरी गणना में तिल मात्र भी फर्क नहीं आ सकता है।’ मेरे इतना कहते ही नेताजी तमतमा उठे, ‘तुम कहते हो, तो अभी इन सबको निकाल बाहर करता हूं। मैं अकेला ही पार्टी चला सकता हूं।’ मैंने नेताजी को बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘ऐसा कतई मत कीजिएगा। इन सबको इतनी सफाई से ‘ढक्कन’ कीजिए कि ये किसी बोतल में लगने लायक ही नहीं रह जाएं। अभी तो आप सिर्फ इतना कीजिए, चुपचाप तमाशा देखिए।’ मेरी बात सुनकर नेताजी उठे और बोले, ‘बाहर तुम्हारी बिरादरी के काफी लोग मौजूद हैं। तुम भी घर के पिछवाड़े से निकल कर आगे आओ। मीडिया से रू-ब-रू होना है।’ मैंने हाथ जोड़े और बाहर निकल गया। सामने पहुंचा, तो नेताजी मीडिया के सामने पहुंचे और बोले, ‘राष्ट्र और राष्ट्र के करोड़ों जनों के हित में काफी चिंतन के बाद मैं थक गया हूं। इसलिए आज शाम को मेरे गांव में एक तमाशे का आयोजन किया गया। इस देश की गरीब जनता उस नाच-गाने के आयोजन में भाग लेकर राष्ट्र के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे। बस..आज मुझे इतना ही कहना है।’ इतना कहकर नेताजी फिर कमरे में जाकर चिंतन करने लगे।

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