Monday, January 31, 2011

कोहिनूर जैसा प्याज

-अशोक मिश्र

सन 2019 में भारत के किसी मोहल्ले का एक दृश्य। एक घर में मोहल्ले की चार-पांच महिलाएं बैठी पारंपरिक ढंग से गपिया रही हैं। उनके बीच शीशे के एक केस में रखा लगभग एक सौ पचहत्तर ग्राम का लाल सुर्ख प्याज अपने भाग्य पर इतरा रहा है। एक महिला ने प्याज को प्यार से निहारते हुए कहा, ‘बहन! कितने में पड़ा यह कोहिनूर जैसा प्याज?’

प्याज की मालकिन ने इतराते हुए कहा, ‘दीपो की मम्मी...दो सौ तीस रुपये पाव बिक रहा है इन दिनों प्याज। पौने दो सौ ग्राम प्याज का दाम हिसाब लगाकर देख लो। दुकानदार तो हमें लूट ही लेता...वह तो कहो, मेरी चतुराई काम आ गई। मैंने दुकानदार को डपट दिया। हमें कोई नंगा भूखा समझ रखा है क्या? हफ्ते में एकाध दिन हम भी पचास ग्राम प्याज खाते है। ठीक..ठीक बताओ। तब जाकर सही दाम लगाए। सल्लू के पापा तो बस बिटर-बिटर खड़े मेरा मुंह देखते रहे।’ यह कहकर महिला सांस लेने के लिए रुकी।

दीपो की मम्मी कुछ बोलने का प्रयास करें, उससे पहले ही मिसेज गुप्ता बोल बैठीं, ‘प्याज भी तो देखो...कितना सुर्ख है! लगता है, नासिक वाला है। एक बात कहूं, नासिक वाले प्याजों में एक अजीब-सी गंध आती है। मुझे तो उत्तर प्रदेश वाले प्याज ही अच्छे लगते हैं। मैं तो दो महीने पहले दो सौ पंद्रह ग्राम प्याज लाई थी। नासपीटे दुकानदार ने उत्तर प्रदेश वाला बताकर नासिक का प्याज थमा दिया।’ मिसेज गुप्ता की बात पूरी हो पाती इससे पहले ही मिसेज चौहान बोल उठीं, ‘चल झूठी कहीं की...साल में दो बार ही दीपावली और होली पर तेरे घर में प्याज आता है। कहती है कि दो महीने पहले प्याज लाई थी। यह तो हम लोग हैं, जो हर हफ्ते प्याज खाना अफोर्ड कर सकते हैं।’ दरअसल मिसेज गुप्ता और मिसेज चौहान में दो दिन पहले ही बच्चों को लेकर खूब झगड़ा हुआ था। ऐसे में मिसेज गुप्ता को नीचा दिखाने का अवसर भला मिसेज चौहान कैसे चूक जातीं।

‘हां...हां, तू ही तो मोहल्ले में सबसे बड़ी धन्ना सेठ है। बाकी सब भिखारी बसे हैं। दो महीने पहले ही तो दीपावली थी। मैंने इसमें गलत क्या कहा था। अरे, भूल गई जब तेरा बड़ा दामाद आया था, तो प्याज की पहली परत तुझे उधार दी थी। तब से आज तक उधार तो वापस कर नहीं सकी। बड़ी आई है हर हफ्ते प्याज खाने वाली।’ इतना कहकर मिसेज गुप्ता उठी और अपने घर चली गईं।

तभी अंदर से मर्दाना आवाज आई, ‘तुम्हारी यह प्याज प्रदर्शनी कब तक चलेगी? इतनी देर से प्याज खुले में रखा है। कहीं सड़ गया, तो समझ लेना। तलाक देकर ही छोड़ूंगा।’ प्याज की मालकिन ने शो केस सहित प्याज उठाया और यह कहते हुए अंदर रख दिया,‘बहन! अब आप लोग चलें, मुझे काफी काम करना है।’ इसी के साथ वह महिला संगोष्ठी खत्म हो गई।

Sunday, January 23, 2011

लालू के बिंदास बोल

-अशोक मिश्र
अपने बिहार शिरोमणि लालू भाई जब भी बोलते हैं, बिंदास बोलते हैं। उनके बिंदास बोल का मुरीद तो मैं तब से हूं, जब उन्होंने कहा था, ‘तनी कुछ दिन रुका, पटना की सड़कों को हेमामालिनी के गाल की तरह चिकना बना दूंगा।’ हालांकि यह कभी हुआ नहीं। पटना की सड़कें आज भी अपनी किस्मत को रो रही हैं। हां, तब पहली बार लगा था कि चलो, हिंदुस्तान की सियासत में कोई बिंदास बोलने वाला तो पैदा हुआ। जिस समय की बात मैं कर रहा हूं, उस युग में राजनीति की ऐसी भाषा नहीं हुआ करती थी। राजनीतिक दलों पर कड़ी से कड़ी टिप्पणी करने से पहले विरोधी कई बार सोचते थे और तब ‘तोल मोल कर’ बोलते थे। लेकिन लालू भाई ने एक नई भाषा ईजाद की। वैसे अपने लालू भाई जो कुछ भी करते हैं, बिंदास ही करते हैं। चारा घोटाले का आरोप लगा, तो बिंदास बोले, ‘हम कोई पशु-डांगर हैं का, जो चारा खा गए। जावा कहीं और ढूंढा चारा-वारा।’ वैसे तो विश्वास नहीं होता कि लालू भइया ने चारा खाया होगा। लेकिन यह भी उनके कलेजे की बात है कि चारा खाया भी, तो बिंदास खाया। आज तक साबित नहीं हो पाया कि करोड़ों रुपये का चारा कौन खा गया। अब तक तो करोड़ों रुपये यही पता करने में खर्च हो गए कि आखिर वह चारा गया कहां? कौन खा गया, लालू भइया या उनके तबेले में पली भैंसें।
काफी दिनों से मैं लालू भइया के बिंदास बोल का इंतजार कर रहा था। इधर उनके बोलने की आवृत्ति कुछ कम हो गई है। अब उम्र भी हो गई है। जवानी वाली बात रह भी नहीं। वैसे भी वे बिंदास बोल के लिए नई पीढ़ी को मौका देना चाहते हैं। अफसोस की बात तो यह है कि नई पीढ़ी में इतना जिगरा किसी के पास दिखता नहीं है। सो, कभी-कभार लालू जी बोल देते हैं। उनके बोलने से ही पता चलता है कि अभी वे चुके नहीं हैं। उनकी ऊर्जा अभी बरकरार है। अभी कल ही तो उन्होंने पटना में देश के एक नामी गिरामी स्वामी को कहा है कि वे बौरा गए हैं। ये स्वामी जी कोई स्वामी भीमानंद या नित्यानंद जैसे नहीं हैं। योग के बढ़िया कारोबारी हैं। उनकी देश-विदेश में तूती बोलती है। खूब खा-पीकर मुटा गए लोगों को कपालभाति और कंकालभाति क्रिया समझाते हैं। स्वामी जी का दोष सिर्फ इतना है कि उन्होंने बलात्कारियों और भ्रष्टाचारियों को फांसी देने की मांग की थी। हालांकि स्वामी जी के इस बयान के पीछे मंशा चर्चा में बने रहने की थी, लेकिन उनके बौरा जाने की जानकारी देकर भाई लालू बाजी मार ले गए।
वैसे अगर यह मान लिया जाए कि स्वामी जी सचमुच बौरा गए हैं, तो इसमें उनका भी कोई दोष नहीं है। कुछ ही दिनों में फागुन आने वाला है। जिस प्रकार सूर्य निकलने से पहले रश्मियां आकर यह संकेत दे देती हैं कि सूर्य निकलने वाला है। ऐसा ही फागुन का मामला है। फागुन के सारथि ऋतुराज बसंत तो बस दरवाजे पर दस्तक देने वाले हैं। कहते हैं कि फागुन में बाबा भी बौरा जाते हैं। सत्तर-अस्सी वर्षीय बाबा भी देवर लगने लगते हैं। अंग-अंग कथक और भंगड़ा करने लगता है। बासंती बयार उनकी बूढ़ी हड्डियों को कड़कड़ाने पर मजबूर कर देती है। ऐसे में अगर स्वामी जी भी बौरा गए हैं, तो इसके लिए वे कतई दोषी नहीं हैं। निगोड़ी प्रकृति के फंदे में इस बार स्वामी जी फंसे हैं, कल कोई और फंसेगा। बस फाल्गुन आने दीजिए। पोपले मुंह वाली अस्सी वर्षीया भाभियां कुछ ही दिन पहले ब्याही गई नवयौवनाओं को भी मात न दे दें, तो कहना। भई, कोई कुछ भी कहे, स्वामी जी के बौराने में कम से कम मैं तो उनका दोष नहीं मानता। लालू भाई आपका क्या खयाल है?

Saturday, January 22, 2011

बुझ गई ‘स्वामी’ जी की भट्ठी

-अशोक मिश्र

आज सुबह-सुबह छबीली से चौराहे पर मुलाकात हो गयी। सुनहरी धूप की तरह खिली छबीली खूब सजी-धजी नजर आ रही थी। यह सज-धज किसी जवान स्त्री की नहीं, बल्कि किसी जोगन की तरह थी। उसने माथे पर बड़ा-सा टीका लगाने के साथ किसी स्वामी जी के नाम वाला दुपट्टा ओढ़ रखा था। मैंने हंसते हुए कहा, ‘क्या बात है, ‘साध्वी’ बनने का इरादा है या मेरे प्यार में जोगन? आज से दस-बारह साल पहले जब मैं तेरे साथ जोगी बनकर गली-गली, गांव-गांव घूमने को तैयार था, तब तू भाव ही नहीं देती थी। आज जब एक अदद बीवी घर लाकर बिठा चुका हूं, तो तू मेरे प्यार में जोगन बनने जा रही है?’छबीली ने मुंह बिचकाते हुए कहा, ‘नासपीटे! तू जब भी मुंह खोलेगा, बुरा ही बोलेगा। तेरे प्यार में जोगन बने मेरा ठेंगा। मैं तो स्वामी मुसद्दीलाल का प्रवचन सुनने जा रही हूं। बड़े सिद्ध महात्मा हैं, उनका प्रवचन सुनने से सारे पाप धुल जाते हैं। तू भी मेरे साथ चल और अपने पाप धो ले।’

मुझे छबीली की कमअक्ली पर हंसी आ गयी। मैंने उसे समझाने की नीयत से कहा, ‘पहली बात तो यह है कि मैंने कभी कोई पाप ही नहीं किया है, जिसे धोने की चिंता में घुलता फिरूं। तू भी इन ढोंगी साधुओं के चक्कर में कहां पड़ गयी। ये उस तरह के साधु-महात्मा न होवे हैं, जैसे पहले होते थे। अब तो ज्यादातर संत-महात्माओं में कोई नित्यानंद होता है, तो कोई भीमानंद। कोई भागवताचार्य के वेश में अश्लील सीडी का कारोबार करता है। नाम के साथ या आगे-पीछे ‘आनंद’ शब्द जोड़ लेने से कोई ‘विवेकानंद’ नहीं हो जाता। विवेकानंद बनने के लिए त्याग करना पड़ता है, मोह-माया से विरक्त होना पड़ता है। जिस स्वामी मुसद्दीलाल के तू कसीदे काढ़ रही है, उन्हें मैं जानता हूं। स्वामी मुसद्दीलाल महिला से छेड़छाड़ के जुर्म में दो महीने तक जेल की हवा खा चुका है। पहले यह बस और ट्रेनों में मूंगफली बेचता फिरता था। अब संत बनकर तुम जैसी भक्तिनों को बेच रहा है।’

मेरी बात सुनकर छबीली ने कानों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘शिव॥शिव...तू तो पक्का संत विरोधी है। स्वामी मुसद्दीलाल की तुलना तू इन अधर्मियों से करता है। मुझे अब पक्का विश्वास हो गया है, तू मरने पर नरक जरूर जाएगा। तुझे शर्म नहीं आती, ऐसे महान स्वामियों के बारे में दुष्प्रचार करते हुए।’छबीली की बात सुनकर मेरा मन हुआ कि पागलों की तरह हंसता रहूं। लेकिन मैंने अपनी मनोभावना पर काबू करते हुए मजाक के स्वर में कहा, ‘अगर तू मेरी चेली बनने को तैयार हो जाए, तो मैं भी स्वामी बनने को तैयार हूं। सच्ची...अगर मैं स्वामी बन जाऊं, तो भीमानंद और नित्यानंद जैसे स्वामियों की दुकान बंद हो जाएगी। वैसे भी इस धंधे में अपने पास से कुछ नहीं लगाना पड़ता है। बस॥अगर आप थोड़े से हैंडसम हों, महिलाओं और लड़कियों को अपनी बोलचाल से प्रभावित करने की क्षमता रखते हों, तो समझो कि आपकी धर्म की दुकान चल निकली। इसके साथ ही एकाध बड़े नामी-गिरामी देशी-विदेशी चेले-चपाटे हों, तो समझो ‘सोने में सुहागा’ हो गया। इन तथाकथित बड़ों को अपने साथ जोड़ने का मतलब है कि दुकान चलने की गारंटी मिल गई। अब स्वामी नित्यानंद, भीमानंद या अपने ब्रजवासी भागवताचार्य को ही लो, इनके साथ थोक के भाव विदेशी चेले-चेलियां जुड़े हुए थे। ये देशी-विदेशी चेले इन स्वामियों का मुफ्त प्रचार करते थे।’ मैं सांस लेने के लिए पलभर को रुका और फिर चेहरे पर परमहंसी मुस्कान लाते हुए कहा, ‘अगर मैं संत या भागवताचार्य बना, तो विदेश दौरे पर तुझे जरूर ले जाऊंगा। तू मेरी चेली बनेगी?’

मेरी बात सुनते ही छबीली हत्थे से उखड़ गयी। बोली, ‘शीशे में अपना मुंह देखकर आ। चला है संत बनने। तू चेहरे से ही असंत लगता है। संत क्या खाक बनेगा।’ हम दोनों के बीच चल रही प्रेम रस से सराबोर वार्ता आगे बढ़ती कि छबीली के पड़ोस में रहने वाला स्वामी मुसद्दीलाल का प्रमुख चेला अभयानंद दिख गया। उसके मुंह पर हवाइयां उड़ रही थी। उसने पास आकर छबीली से कहा, ‘दीदी...तू आश्रम मत जाइयो। अब प्रवचन नहीं होगा। स्वामी जी को पुलिस तस्करी और बलात्कार के आरोप में पकड़ ले गयी है। लगता है कि स्वामी जी की भट्ठी बुझ गई।’ यह सुनते ही छबीली स्वामी मुसद्दीलाल को गालियां देती घर लौट गई।

Monday, January 17, 2011

डंडा बरसाने को बढ़ जाएगी पुलिस

अशोक मिश्र
उस्ताद मुजरिम ने आते ही मेरे सिर पर बम फोड़ दिया, ‘बेटा! बस कुछ ही दिन की बात है। मैं मुख्यमंत्री बनने वाला हूं। लोग सभाओं में मेरी जय-जयकार किया करेंगे। जनता दरबार में खैरात मांगने के लिए लाइन लगाएंगे। तू भी मेरे सामने हाथ बांधकर खड़ा होगा भिखमंगों की तरह। तब मैं पहचानूँगा या नहीं, इस बारे में मैं अभी कुछ नही कह सकता।’
‘आप क्या कह रहे हैं, मेरी समझ में नहीं आ रहा है।’ मैंने जमुहाई लेते हुए कहा, ‘आपने आज सुबह-सुबह ही शिव की बूटी तो नहीं चढ़ा ली।’
उस्ताद मुजरिम के चेहरे पर परमहंसी मुस्कुराहट आ गयी, ‘कल शाम को दिल्ली में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में प्रधानमंत्री ने ‘अपराधिस्तान’ राज्य बनाने को मंजूरी दे दी है। इधर राज्य का गठन हुआ, उधर मैं मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए राजभवन पहुंच जाऊंगा। तुम तो जानते ही हो, पिछले बीस साल से अपराधिस्तान आंदोलन का नेतृत्व कर रहा हूं। अब तो मौज हो जाएगी। देश के जितने भी छटे हुए गुंडे, बदमाश, जेबकतरे और लंपट हैं, उनको अपराधिस्तान में लाकर बसाऊंगा। सोचो...कितना मजा आएगा, जब किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री सड़कों पर किसी की जेब काटने के बाद गर्व से कहेगा कि आज मैंने पांच लोगों की पाकेटमार कर दो हजार रुपये कमाए।’
उस्ताद की बात सुनकर मैं उकताहट महसूस करने लगा, ‘ जेब और गला तो आज भी केंद्र और प्रदेश के मंत्री, सांसद, विधायक और अधिकारी काटते रहते हैं। यदि अपराधिस्तान में भी यही सब कुछ होगा, तो इसमें नई बात क्या होगी। एक बात मेरी समझ में तो आई नहीं और वह यह कि आज अखबारों में ऐसी कोई खबर तो छपी नहीं है। न ही मंत्रिमंडल की बैठक के बारे में किसी अखबार या चैनल पर कल कोई खबर थी। फिर यह बैठक कहां से हो गई।’मैंने देखा कि मेरी इस बात से उस्ताद मुजरिम के चेहरे पर कोई भाव नहीं उभरा। वे तपाक से बोले, ‘नहीं हुई है, तो आज या कल में हो जाएगी। यह पक्की खबर है कि एकाध दिन में मेरा अपराधिस्तान बनने का सपना पूरा होने वाला है। मेरा सूत्र मुझे गलत खबर नहीं दे सकता है। वैसे आज सुबह ही दिल्ली बात हुई थी। मुझे लगता है कि उसने कहा होगा, कब बैठक होगी और मैंने सुन लिया होगा कि कल बैठक हुई थी। खैर..कोई बात नहीं। जब बीस साल इंतजार किया, तो दो-तीन दिन इंतजार करने में क्या बुराई है।’
मैंने उस्ताद मुजरिम को गौर से देखा। वे इस बात को लेकर जिस तरह आश्वस्त नजर आ रहे थे, उससे मुझे लगा कि शायद उनकी बात सही हो। मैंने कहा, ‘आप कहते हैं कि अपराधिस्तान प्रदेश में मंत्री, मुख्यमंत्री और विधायक से लेकर सरकारी कर्मचारियों को अपराध करने की छूट होगी। मुझे तो लगता है कि यह छूट तो आज भी मिली हुई है। अच्छा आप ही बताइए, इतने घपले-घोटाले हुए, सत्ता और विपक्ष की इतनी ‘तू-तू..मैं-मैं’ हुई, लेकिन आज तक किसी को सजा भी हुई? विपक्ष में रहने वाले भ्रष्टाचार को लेकर सरकार की टांग खींचते हैं। लेकिन जब अपनी सरकार बनती है, तो चुप्पी साध लेते हैं। ये नेता, मंत्री, अधिकारी आदि किसी मायने में मुजरिमों से कम हों, तो बताइए।’ मैंने धारा प्रवाह बोलते हुए कहा, ‘अच्छा उस्ताद, थोड़ी देर के लिए मान लिया कि अपराधिस्तान बनने जा रहा है। तो नये राज्य में ऐसा क्या होगा, जो अन्य राज्यों से अलग होगा।’
मेरी यह बात सुनते ही उस्ताद मुजरिम भड़क उठे, ‘कैसी बेवकूफों जैसी बातें करते हो। अरे, अपराधिस्तान बनते ही उनको उनका अपना मुख्यमंत्री यानी मैं मिल जाऊंगा। राज्य छोटा होने से संसाधनों का दोहन अच्छी तरह से हो सकेगा। राज्य का विकास करने में आसानी होगी। अभी जिन क्षेत्रों में शासन-प्रशासन के हाथ नहीं पहुंच पाते हैं, वहां तक उनकी पहुंच आसान हो जाएगी।’
मुझे लगा कि उस्ताद मुजरिम कुछ ज्यादा ही बोल गए है। उनकी बातें मुझे हाजमोला खाने के बावजूद पच नहीं रही थीं। मैंने तल्ख लहजे में कहा, ‘उस्ताद! एक बात बताऊं। अगर अपराधिस्तान बन गया, तो क्या होगा? हमारे सिर पर डंडा बरसाने के लिए नए प्रदेश के नाम पर पुलिस में भर्तियां होंगी, पुलिस, अर्धसैनिक बल आदि की संख्या बढ़ जाएगी। नया जिला या प्रदेश बनने पर नया कारागार भी बनेगा, ताकि शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने पर शांति और सुरक्षा के नाम पर लोगों को उसमें ठूंसा जा सके। अदालत बनेगी, ताकि जनता को कानून के डंडे से हांका जा सके। हम पर डंडा, लाठी बरसाने का आदेश देने वाले आईएएस और पीसीएस अफसर बढ़ जाएंगे। नेताओं, अफसरों और पूंजीपतियों के लिए लूटने-खसोटने के अवसर बढ़ जाएंगे। मंत्रियों और अफसरों का खर्चा जनता की पीठ पर लाद दिया जाएगा। इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा।’ उस्ताद मुजरिम कुछ देर तक मेरी बात सुनकर सोचते रहे। फिर बोले, ‘ बात तो तुम्हारी किसी हद तक सही है, लेकिन इसके बावजूद अपराधिस्तान बनकर रहेगा। मेरा बीस साल का सपना यों ही नहीं टूट सकता।’ इतना कहकर उस्ताद झटके से उठे और बिना चाय पिये चलते बने।