-अशोक मिश्र
आज सुबह चाय पिलाने के बाद बेगम ने हाथ में थैला और नेताओं के करेक्टर की तरह सड़े-गले नोट थमाकर फरमान जारी किया, 'ऊंट की तरह गले तक चाय भर चुके हों, तो घर का एक काम कर दीजिए। बाजार से सब्जी खरीद लाइए।Ó बेगम की व्यंग्यात्मक लहजे में कही गई बात चुभ गई। मैंने सचमुच ऊंट की तरह गर्दन ऊंची की और कहा, 'बेगम...जरा सुर में बात किया करो, तुम्हारा पति हूं। अगर तुम्हारा सुर ज्यादा ही बेसुरा हुआ, तो समझो तुम्हारी फाइल बाबा रामदेव की तरह निपटते देर नहीं लगेगी। अभी इतना भी बूढ़ा नहीं हुआ हूं कि दूसरी न मिल सके।Ó
बेगम ने मुझे बाहर की ओर ढकेलते हुए कहा, 'जाइए...जाइए...दिग्गी राजा की तरह बहकिए नहीं। जल्दी से सब्जी लेकर आइए, नहीं तो सिर्फ दाल-रोटी खाकर काम चलाना पड़ेगा।Ó मैंने सोचा कि कौन इसके मुंह लगे। सो, थैला और नोट लेकर बाहर निकल आया।
घर से जैसे ही बाहर निकला, किसी चमचमाती नई बीडब्ल्यूएम की तरह आगे आकर खड़ी हो गई। मैं छबीली को कई बार समझा चुका हूं कि तू भगवान भास्कर की तरह मुझे दर्शन मत दिया कर। लेकिन वह है कि किसी न किसी बहाने मुझसे टकरा ही जाती है। एक तो मेरा मूड पहले से ही बिगड़ा हुआ था। मैं उसे देखते ही भड़क उठा, 'देख छबीली...तुझे देखते ही पता नहीं क्यों मेरा दिल सत्याग्रह करने पर आमादा हो जाता है, दिमाग अनशन पर बैठ जाता है। इसलिए मुझ पर इतनी दया कर कि इस तरह दशहरे का हाथी बनकर मेरे सामने न आया कर।Ó
छबीली मेरी बात सुनकर मुस्कुराई। बोली, 'मेरी मानो, तो अपनी कुंडली लेकर किसी ज्योतिषी के पास चले जाइए। आपका कल्याण हो जाएगा। मुझे लगता है कि आपके ग्रह ठीक नहीं चल रहे हैं।Ó
मैंने तल्ख स्वर में कहा, 'पहले तो तू अपने ग्रहों को संभाल। कभी इनसे नैन मटक्का करते हैं, तो कभी उनसे। तेरी तो वही हालत है कि बुढिय़ा औरों को सीख दे और अपनी खटिया भीतर ले।Ó
मेरी बात सुनकर भी छबीली नहीं भड़की। वह मुस्कुराती हुई बोली, 'आप ग्रहों को कम मत समझिए। अपने योग गुरु स्वामी जी को ही लीजिए। उनकी कुंडली के सातवें घर में बैठा चंद्रमा तीसरे ग्रह में बैठे गुरु से टांका भिड़ा बैठा, तो उन्हें वो करना पड़ा जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की। बेचारे स्वामी जी को आधी रात में कुर्ता-सलवार पहनकर भागना पड़ा। शुक्र और राहु ने पल्टासन किया, तो बेचारे हरिद्वार में बिना खाये-पिये अनशन पर बैठे हैं। सरकार उनकी सुन नहीं रही है।Ó
छबीली की बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। घरैतिन से हुई 'किच-किचÓ और सब्जी लाने की बात भूलकर उससे बतियाने लगा। मैंने अपने चेहरे पर बत्तीस इंची मुस्कान बिखेरते हुए कहा, 'और क्या गुल खिलाते हैं तुम्हारे ये ग्रह?Ó
मेरी बात सुनकर छबीली उत्साह में आ गई। वह बोली, 'मेरे ग्रह...तुम मेरे ग्रहों की बात छोड़ो। उनकी चाल तो शुरू से ही उलटी रही है। मुझे तो चिंता स्वामी जी के ग्रहों को लेकर हो रही है। बेचारे उधर अनशन पर बैठे हैं और इधर उनके ग्रह ही उनकी भट्ठी बुझाने पर तुले हुए हैं। अब देखिए न! अगर उनके नवें घर में बैठा शनि दूसरे घर में बैठे मंगल एक दूसरे से न टकराते, तो स्वामी जी काहे को रामलीला मैदान में अनशनलीला शुरू करते। बेचारे अनशन पर बैठे इसलिए थे कि वे भी अन्ना हजारे की तरह दूसरे गांधी नहीं, तो तीसरे गांधी बन ही जाएंगे। लोग उनकी जय-जयकार करेंगे। जब वे राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लडेंगे, तो देश की जनता उन्हें सिर आंखों पर बिठाएगी। उनके मन में उपजी लालसा और अहंकार शनि के नवें घर में बैठने से ही है। अगर यह किसी तरह कूद कर चौथे घर में बैठ जाता, तो फिर समझो कि स्वामी जी के बेड़ा पार हो जाता। लेकिन अफसोस की शनि नवें घर में किसी ढीठ किरायेदार की तरह जमकर बैठा हुआ है। अब वह पांचवें घर में बुध के साथ मिलकर उनकी कंपनियों की जांच करा रहा है। उनकी ढंकी छिपी इज्जत का फालूदा बनाकर जनता में बांटने की फिराक में है।Ó इतना कहकर छबीली सांस लेने के लिए रुकी। मैंने उससे कहा, 'अगर स्वामी जी के ग्रह इतने ही कुढंगी चाल चल रहे थे, तो अब तक वे इतने फेमस कैसे हो गए।Ó
'उन्हें फेमस तो होना ही था। सच बताऊं। यह उस समय सीधे चल रहे ग्रहों का ही कमाल था कि स्वामी जी खाये-मुटाए तोंदियल लोगों को योग के नाम पर कसरत सिखाकर खूब चांदी कूट रहे थे। ये खाए-अघाए लोग भी योग के नाम पर रत्ती भर चर्बी घटाने के लिए योगगुरु..योगगुरु के नाम की माला जपते फिर रहे थे। स्वामी जी के किसी शिविर में कोई नंगा-भूखा गया हो, तो बताइए। अरे, स्वामी के कुंडली के सातवें घर में पिछले कई दशक से घर जवांई की तरह रहने वाला केतु उन्हें हजारों करोड़ रुपये का स्वामी बना गया। स्वामी जी तो शिविर में आगे बैठने, पीछे बैठने या बीच में बैठने का भी अलग से चार्ज करते थे।Ó छबीली इतना कह हंसी, तभी दरवाजे पर बेगम नजर आईं और मुझे छबीली के साथ देखकर बोलीं, 'अच्छा, तो आप अभी तक यहीं अटके हुए हैं। मैं तो सोच रही थी कि आप लौट रहे होंगे। और जनाब यहां नैन-मटक्का कर रहे हैं।Ó घरैतिन को देखकर मैं यह कहते हुए पतली गली से सब्जी मंडी की ओर दौड़ पड़ा कि 'बेटा! जल्दी से फूट लो, वरना कुंडली के राहू-केतु भरतनाट्यम करने लगेंगे। ये राहु-केतु सीधे चलें, तो बीवी से पिटवाते हैं और उल्टे चलें, तो पड़ोसन से।Ó
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