-अशोक मिश्र
छबीली को देखकर मेरी आंखें फटी रह गईं। क्या गजब का लुक था! उसने क्या पहन रखा था, यह तो मैं नहीं जानता। या यों कहें कि औरतों के परिधानों की जानकारी के मामले में मैं बचपन से ही घोंचू रहा हूं। लेकिन उसने जो कुछ भी पहन रखा था, वह मल्लिका सहरावत, राखी सावंत या मलाइका अरोड़ा खान जैसी पटाखा हीरोइनें भी शायद पहनने से इनकार कर दें। उसकी वेशभूषा देखकर मेरी आंखें आवारगी पर उतारू हो गईं। ये नामुराद आंखें उसके शरीर पर कहां-कहां भटक रही थीं, अब आपसे क्या बताऊं। यदि मेरी इकलौती घरैतिन इस मौके पर साथ होती, तो यकीन मानिए, आंखों की आवारगी के चलते मैं बीच चौराहे पर ही बीवी से पिट चुका होता।
मैंने उसे घूरते हुए पूछा, ‘शॉपिंग करने जा रही हो?’
‘नहीं...‘स्लटवॉक’ में शामिल होने जा रही हूं। तुम जैसे बेशर्मों के खिलाफ मोर्चा निकालने। तुम्हारी बेशर्मी तो मैं पिछले बीस साल से ही देख रही हूं...इस वक्त भी तुम उसी तरह दीदे फाड़-फाड़कर मुझे घूर रहे हो, जैसे पांच दिन से भूखा भिखारी हलवाई की दुकान में कड़ाही से निकल रही गर्मागरम कचौड़ी को देखता है।’ इतना कहकर छबीली बड़ी अदा से मुस्कुराई। छबीली की बात सुनकर मैं चौंक गया। अब उसके दशहरे के हाथी और राखी सांवत की तरह सज-धजकर निकलने का अर्थ समझ में आ गया था।
मैंने किसी रास्ता भूले पथिक की तरह अकबका कर पूछा, ‘क्या...स्लटवॉक? यह कौन-सी वॉक है? अब तक मार्निंग वॉक, इवनिंग वॉक, नाइट वॉक तो सुना था, लेकिन यह स्लटवॉक किस खेत की मूली है। मैं नहीं जानता!’ छबीली के सामने मैंने अपना अज्ञान प्रकट किया। मेरी अज्ञानता पर छबीली ठहाका लगाकर हंस पड़ी। उसने आंखें मटकाते हुए कहा, ‘स्लटवॉक यानी कि हम औरतों का तुम बेशर्म मर्दों के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन। जस्ट लाइक मार्च टुवार्ड्स फ्रीडम। अभी तो हम सिर्फ स्लटवॉक निकालने जा रहे हैं। तुम जैसे बेशर्मों को पहले बातों से समझाएंगे। यदि नहीं माने, तो हमारी लातें किस दिन काम आएंगी। हालांकि हम यह भी जानते हैं कि तुम जैसे बेशर्मों की संख्या इस दुनिया में काफी है। सबको ‘शर्मदार’ बनाने में समय लगेगा। इसलिए हम जब तक अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लेते, तब तक हर साल इसी दिन हम ‘स्लटवॉक डे’ मनाएंगे।’
छबीली की बात सुनकर मैं गंभीर हो गया। चेहरे पर बत्तीस इंची परमहंसी मुस्कान चिपकाते हुए कहा, ‘इसके लिए स्लट बनना क्या जरूरी है? कम से कम कपड़े पहनकर तुम क्या साबित करना चाहती हो कि यदि तुम अपने पर उतारू हो गईं, तो हम मर्दों से ज्यादा बेशर्म हो सकती हो? और फिर ऐसा करने से क्या हम ‘हयादार’ हो जाएंगे?’
छबीली ने मेरी बात काटते हुए कहा, ‘देखो। यह बहुत पुरानी कहावत है कि लोहा लोहे को काटता है। तुम कलमघसीटू, बुद्धिबेचू पत्रकार हो। इतना तो तुम समझते ही होगे कि दुनिया भर में सभी लड़कियों को तुम मर्द घूरते रहते हो, लेकिन क्या अब तक कभी किसी अखबार या चैनल पर राखी सावंत, मल्लिका सहरावत या मलाइका अरोड़ा खान जैसी लड़कियों को छेड़ने की खबर आई है? आखिर राखी सावंत जैसी लड़कियां भरे बाजार में भी क्यों नहीं छेड़ी जाती? इसका कारण कभी जानने का प्रयास किया है?’
छबीली की बात सुनकर वाकई मेरी बोलती बंद हो गई। मैं कारण सोचने पर मजबूर हो गया, लेकिन लाख बुद्धि भिड़ाने पर कारण मेरी समझ में नहीं आया। मैंने हथियार डालते हुए कहा, ‘माई डियर छबीली! तुम्हीं बता दो कि आखिर राखी को छेड़ने की हिम्मत हम मर्द क्यों नहीं जुटा पाते।’ मैंने अपने चेहरे पर बेचारगी ओढ़ ली। मेरी बात पर छबीली विजयी भाव से मुस्कुराई और चौराहे पर आते-जाते उसे घूर-घूर कर देखते मर्दों पर हेयदृष्टि डालने के बाद बोली, ‘क्योंकि राखी सावंत या मल्लिका बहन तुम लोगों से ज्यादा बेशर्म है। वह जब कम कपड़े पहनकर निकलती है, तुम्हारे चेहरे पर मर्दानगी का भाव जागने की बजाय पसीना छूटने लगता है। जब वह किसी मंच से तुम्हें नामर्द कह देती है, तो तुम आत्महत्या कर लेते हो। अब हम समझ गई हैं कि ईंट का जवाब हाथ जोड़ना नहीं, बल्कि पत्थर मारना है। अब आज से तुम लोग जितनी बेशर्मी दिखाओगे, उससे ज्यादा बेशर्म बनकर हम दिखाएंगी।’
छबीली की बात सुनकर वाकई मुझे पसीना आने लगा। मुझे लगा कि ज्यादा देर उसके आसपास खड़ा रहा, तो मेरे मोहल्ले का कोई न कोई व्यक्ति हम दोनों को बातचीत करते देख ही लेगा। अगर खुदा न खास्ता यह बात मेरी घरैतिन को बता चल गई, तो घर लौटने पर मेरा ‘स्लटवॉक’ निश्चित है। मेरे वाले ‘स्लटवॉक’ का अर्थ तो आप समझ ही गए होंगे।
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