Sunday, July 1, 2012

तीन करोड़ का चूहा


-अशोक मिश्र
जांच अधिकारी मिस्टर मुसद्दी लाल ने चौकीदार कल्लन मियां से पूछा, ‘तीन करोड़ का गेहूं गायब हो गया और तुम्हें पता नहीं चला?’ कल्लन मियां ने पान की पीक गेहूं की बोरियों पर थूकते हुए कहा, ‘साहब! इस देश से बहुत कुछ गायब हो जाता है, किसी को कुछ पता चलता है क्या? फिर तीन करोड़ रुपये के गेहूं की क्या बिसात है!’
‘क्या मतलब?’ मुसद्दी लाल चौंक पड़े, ‘तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?’ कल्लन मियां दांतों के बीच फंसी मोटी सुपाड़ी को चबाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘सर, आप अधिकारी हैं। मेरी नौकरी आपकी कलम की मोहताज है। आप चाहें, तो मेरी नौकरी ले सकते हैं और चाहें, तो बचा सकते हैं। लेकिन सर! एक बात पूछूं? इस देश के नेताओं की नैतिकता, सेवा और लोककल्याण की भावना कब गायब हो गई, आपको पता चला? अधिकारियों की कर्तव्य परायणता नामक चिड़िया कब फुर्र हो गई, किसी को पता चला? भ्रष्टाचार रूपी बाज ने देखते ही देखते सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, अधिकारियों से लेकर हम चपरासियों की ईमानदारी को निगल लिया, आपको या देश के किसी नागरिक को पता चला? दूर क्यों जाते हैं? मेरे पड़ोसी जुम्मन मियां की बेटी को कल भरे चौराहे से कोई उठा ले गया, जिन पर हम सबकी सुरक्षा का भार था, उसे पता चला? नहीं न! ठीक उसी तरह इस गोदाम से कब तीन करोड़ रुपये के गेहूं गायब हो गए, हमें पता नहीं चला।’
इस पूछताछ के दौरान गोदाम के अफसर और अन्य कर्मचारी हाथ बांधे जांच अधिकारी मुसद्दी लाल के आगे पीछे डोल रहे थे। ये गोदाम के अधिकारी और कर्मचारी चाहते थे कि मुसद्दी लाल कुछ ले-देकर मामले को रफा-दफा कर दें, लेकिन मुसद्दी लाल थे कि पूरे मामले को बेपर्दा करने पर ही उतारू थे। उन्होंने कल्लन को घूरते हुए कहा, ‘मियां! कुछ भी हो, तुम्हें तो यह बताना ही पड़ेगा कि तीन करोड़ के गेहूं आखिरकार गए कहां? यह गेहूं तुम लोगों ने या तो किसी ब्लैकमार्केटिए या बिस्कुट कंपनी को बेच दिया है या फिर खुद खा गए हो। चलो, मान लिया कि तुम लोगों की लापरवाही से यह गेहूं सड़ गया है, तो तुम लोग यह सड़ा हुआ गेहंू ही क्यों नहीं दिखा देते। मैं अपनी रिपोर्ट में लिख दूंगा। तुम लोग भी बच जाओगे और मेरी जांच भी पूरी हो जाएगी।’
कल्लन मियां को ऐसी जांचों का अच्छा खासा तजुर्बा था। वहीं, बगल में खड़े बड़े बाबू घबराहट में बार-बार जीभ फिराकर होठों को तर कर रहे थे क्योंकि चौकीदार के बाद पूछताछ उनसे ही होने वाली थी। कल्लन के मुंह की सुपारी शायद अब तक छोटे-छोटे टुकड़ों में तब्दील हो चुकी थी। उन्होंने ‘पिच्च’ से एक बार फिर बोरियों पर थूकते हुए कहा, ‘साहब! सच बताऊं। जितना भी गेहूं गायब है, वह सारा गेहूं चूहे खा गए हैं। अगर बाकी बचे गेहूं की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं होती, इसे भी चूहे खा जाएंगे और हम आप बस हाथ मलते रह जाएंगे।’
मुसद्दी लाल यह सुनकर उछल पड़े, ‘क्या चूहे खा गए? यह कैसे हो सकता है। कोई दो-चार किलो गेहूं तो था नहीं कि उसे चूहे खा जाएं और किसी को पता भी नहीं चले। यह पूरे तीन-चार सौ मीट्रिक टन गेहूं का मामला है। इतना गेहूं चूहे कैसे खा सकते हैं। कितने चूहों ने खाया होगा इतना सारा गेहूं?’ मुसद्दी लाल की बात सुनकर कल्लन मियां हंस पड़े, ‘साहब! इस देश में जिधर निगाह दौड़ाइए, मुझे तो चूहे ही चूहे नजर आते हैं। अरे! पूरे देश को चूहों ने कुतर कर रख दिया है और आप चूहों की संख्या पूछते हैं। आप किसी भी महकमे की कार्यप्रणाली देख लें। ऊपर से नीचे तक चूहे ही चूहे भरे हुए हैं। कोई कागज कुतर रहा है, तो कोई देश की पूरी अर्थव्यस्था को कुतरने में लगा हुआ है। कोई सरकारी योजनाओं को कुतर रहा है, तो कोई जनता की जेब। छत्तीसगढ़ में तो डॉक्टरों को कुछ नहीं मिला, तो वे औरतों की बच्चेदानी ही कुतर गए। अब आप कहां-कहां तक चूहेदानी लगाकर इन चूहों को पकड़ते फिरेंगे।’ इतना कहकर कल्लन मियां बगलवाले स्टोर में गए और एक चूहादानी लेकर लौटे। उसमें एक भारी भरकम चूहा कैद था। उन्होंने जांच अधिकारी मुसद्दी लाल को थमाते हुए कहा, ‘साहब! इस चूहे को ले जाइए और सरकारी खजाने में इसे जमाकर दीजिए। अपनी जांच रिपोर्ट में लिख दीजिए कि यही वह चूहा है जो तीन करोड़ रुपये के गेहूं खा गया है।’ इतना कहकर कल्लन मियां एक तरफ खड़े होकर पान चबाने लगे और मुसद्दी लाल कभी कल्लन को, तो कभी चूहे को निहारते रहे।

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