Tuesday, July 8, 2025

गर्मी और उमस से परेशान लोगों की मुसीबत बढ़ा रही बिजली कटौती

अशोक मिश्र

हरियाणा में मानसून आ चुका है। बरसात भी हो रही है। लेकिन अभी पूरे हरियाणा में मानसून ने अच्छी तरह से रफ्तार नहीं पकड़ी है जिसकी वजह से लोग गर्मी और उमस से काफी परेशान हैं। ऐसी स्थिति में बार-बार लगने वाले बिजली कट परेशानी को और बढ़ा रहे हैं। बिजली कट लगने का कोई समय भी निर्धारित नहीं है। थोड़ी सी बरसात हुई, तो लग गया बिजली कट। बरसात नहीं हुई, तो भी बिजली कट से मोहलत नहीं। दिन हो या रात, बिजली किसी भी समय जा सकती है। 

ऐसी स्थिति में लोगों को परेशानी हो रही है, उसके साथ-साथ घोषित -अघोषित रूप से लगने वाले बिजली कट से उद्योगों को भी भारी परेशानी और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। ऊर्जा मंत्री विज का कहना है कि प्रदेश में बिजली के ट्रांसफार्मर की क्षति दर में भी गिरावट आई है जिससे लोगों को न्यूनतम बिजली कट का सामना करना पड़ रहा है। 

हालांकि ऊर्जा मंत्री विज का कहना है कि हरियाणा में बिजली सप्लाई को लेकर किसी किस्म की कोई दिक्कत नहीं है। दूसरों से बिजली लेने के लिए प्रदेश सरकार ने लंबे समय अवधि वाले समझौते कर रखे हैं। हरियाणा को सोलह हजार मेगावॉट बिजली की आवश्यकता होती है जिसकी पूरी व्यवस्था राज्य सरकार ने कर रखी है। सैनी सरकार कुछ ऐसी योजनाओं पर भी काम कर रही है जिससे आगामी कुछ वर्षों में बिजली की कमी को दूर किया जा सके। सन 2031 तक यानी आगामी छह साल के बीच हरियाणा के गोरखपुर गांव में देश का सबसे बड़ा परमाणु बिजली संयंत्र लगने जा रहा है। 

इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है। इस संयंत्र से 2800 मेगावाट का परमाणु बिजली उत्पादन होने का अनुमान है। इस संयंत्र में पैदा होने वाली आधी बिजली हरियाणा को मिलेगी, जिससे प्रदेश को अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा करने में काफी सहूलियत भी होगी।  इस संयंत्र के लगने से 2800 मेगावाट बिजली पैदा करने में जो प्रदूषण होता, उससे भी बचत हो जाएगी। 

परमाणु बिजली संयंत्र से किसी प्रकार के प्रदूषण का कोई खतरा नहीं रहता है। वैसे सैनी सरकार ने तारों के माध्यम से होने वाले विद्युत लॉस को कम करने में सफलता भी हासिल कर ली है। पिछले 13 वर्षों में हरियाणा की बिजली वितरण कंपनियों ने तकनीकी और वाणिज्यिक हानि को रोकने में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। वर्ष 2012-13 में बिजली हानि 29.31 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2025 में  मात्र 10.52 प्रतिशत पर आ गई है। बिजली हानि उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम में 35.60 प्रतिशत से गिरकर 9.38 प्रतिशत और दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम में 23.29 से घटकर 11.35 प्रतिशत रह गई है।

शंकर को तीसरा नेत्र खोलने पर मजबूर मत कीजिए

 अशोक मिश्र

हिमाचल प्रदेश का सराज विधान सभा क्षेत्र 30 जून और एक जुलाई की रात बादल फटने से हुई तबाही से त्रस्त है। एक ही रात में 14 बार बादल फटने की घटना कोई सामान्य नहीं है। बादल फटने से 14 लोगों की मौत हो गई और 31 लोग लापता हैं। यह लापता लोग अब लौटकर अपने परिजनों के पास आएंगे, इसकी संभावना कतई नहीं है। शासन-प्रशासन भले ही इन्हें अभी लापता माने, लेकिन परिजनों और दूसरे लोग इन्हें मृतक मान चुके हैं। भले ही भावनात्मक रूप से इनका मन ऐसा न मानने को विवश कर रहा हो। सड़कें, पेड़, दुकान, मकान और घरों में रखा सामान सब बह गया। सरकार बादल फटने से होने वाले नुकसान का अनुमान लगा रही है, लेकिन एक मोटा-मोटा अनुमान है कि पांच सौ करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ होगा।

दो साल पहले यानी वर्ष 2023 में भी हिमाचल प्रदेश में मानसूनी बारिश ने कहर बरपाया था। कुल्लू,  मनाली और शिमला जैसे शहरों में मानसूनी बारिश ने पांच सौ लोगों की जान ले ली थी। बाद में सरकार ने बताया था कि दस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ था। वैसे पिछली बार की तरह लोगों को बचाने और उन्हें हर संभव सहायता मुहैया कराने की कोशिश हो रही है। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ लोगों की जान बचाने की हर संभव प्रयास कर रहे हैं, पहले भी करते रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है? प्रकृति ने इतना रौद्र रूप क्यों धारण कर लिया है?

अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए दुनिया भर में मशहूर हिमालयी क्षेत्र पिछले कुछ दशकों से बार-बार चेतावनी क्यों दे रहे हैं? हम हैं कि प्रकृति की चेतावनी को सुनने या उस पर ध्यान देने की जगह अपनी ही धुन में मस्त हैं। हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड, असम, त्रिपुरा जैसे पर्वतीय राज्यों में मानसून के दौरान होने वाले भूस्खलन, नदियों में आने वाली बाढ़ और ग्लेशियरों के आसपास बनी झीलों का एकाएक फटना, बताता है कि पर्वतीय क्षेत्रों को हमारा आधुनिक विकास का मॉडल पसंद नहीं आ रहा है। आज से सौ-पचास साल पहले पहाड़ों पर इस तरह की आपदाएं दशक-दो दशक में ही होती थीं। तब पर्वतीय राज्यों की आबादी कम हुआ करती थी, दूसरे राज्यों से भी लोगों का आवागमन आज के मुकाबले में बहुत ही कम हुआ करता था। पर्यावरणीय संतुलन बना रहता था।

लेकिन आज जिसे देखिए, वह पर्यटन और तीर्थाटन के नाम पर मुंह उठाए पर्वतीय राज्यों में दौड़ा चला जा रहा है। सरकार ने भी धार्मिक आस्था और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पहाड़ों का सीना छलनी करके चौड़ी-चौड़ी सड़कें बना दी है। पेड़-पौधों को काट-छांटकर कहीं फोर लेन, तो कहीं सिक्स लेन सड़कों का निर्माण करा दिया गया है। इन सड़कों के निर्माण में भी पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों के सुझावों को दरकिनार करके सड़कों का निर्माण किया गया। डायनामाइनट लगाकर पहाड़ों को तोड़ा गया। रास्ते में आने वाले पेड़-पौधों को नेस्तनाबूत कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि जो पेड़-पौधे पहाड़ों को जकड़कर उन्हें मजबूती से थामे रहते थे, पर्यावरण को पहाड़ों के अनुकूल बनाए रखते थे। वह नहीं रहे। डायनामाइट ने पहाड़ों में दरार ही दरार पैदा कर दिए। नतीजा अब यह होता है कि जरा सी बारिश होने पर बड़ी-बड़ी  पहाड़ी चट्टानें भरभराकर गिर पड़ती हैं और कुछ लोगों को अपनी चपेट में ले लेती हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के असर से अब पहाड़ भी अछूते नहीं रहे। सरकारी और गैर सरकारी प्रोजेक्ट पहाड़ के वातावरण को मटियामेट कर रहे हैं। और यह सब कुछ हो रहा है पहाड़ों पर विकास के नाम पर। 16 और 17 जून 2013 को केदारनाथ में आई आपदा याद है न। उस समय लोक निर्माण विभाग उत्तराखंड द्वारा लगवाया गया एक बोर्ड काफी चर्चा में रहा था। उस पर लिखा था, ‘रौद्र रुद्र ब्रह्मांड प्रलयति, प्रलयति प्रलेयनाथ केदारनाथम।’ जो रुद्र अपने रौद्र रूप से यानी अपना तीसरा नेत्र खोलकर पूरे ब्रह्मांड को भस्म कर देने की सामर्थ्य रखते हैं, वही भगवान रुद्र यहां केदारनाथ नाम से निवास करते हैं। तो शंकर को तीसरा नेत्र खोलने पर मजबूर मत कीजिए।

Monday, July 7, 2025

यह छोटा काम तो मेरे लायक है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महर्षि मुद्गल प्राचीन पांचाल (वर्तमान पंजाब) राज्य के राजा भम्यरसवा के पुत्र थे। मुद्गल कुल पांच भाई थे। जब उनके पिता ने बुढ़ापे में अपने पुत्रों को राज्य कार्यभार सौंपा, तो इन पांचों भाइयों के राज्य को ही पांचाल कहा गया। विश्वामित्र के बाद राजर्षि से ब्रह्मर्षि की पदवी पाने वाले मुद्गल की अगली पीढ़ियां ब्राह्मण मानी गई। 

कहते हैं कि राजर्षि मुद्गल के वंश में आगे चलकर द्रुपद का जन्म हुआ था जिनकी पुत्री द्रौपदी थी। राजा मुद्गल का विवाह राजा नल और दमयंती की पुत्री नलयनी इंद्रसेना से हुआ था। कहा जाता है कि राजा मुद्गल को बाद में कुष्ठ रोग हो गया था। रोग के दौरान उनकी पत्नी नलयनी इंद्रसेना में खूब सेवा की थी। मुद्गल के बारे में एक बात यह भी प्रसिद्ध है कि वह राजा होते हुए भी गुरुकुल के कुल गुरु भी थे। 

एक समय की बात है। उनके आश्रम में दो ही शिष्य थे। दोनों तीक्ष्ण बुद्धि वाले और गुरु के आज्ञाकारी थे। महर्षि मुद्गल भी समान रूप से दोनों को मानते थे। धीरे-धीरे वह समय भी नजदीक आता गया, जब दोनों शिष्य शिक्षा पूरी करने वाले थे। दोनों शिष्यों में धीरे-धीरे अहंकार आता गया। वह दोनों अपने को दूसरे से श्रेष्ठ मानने लगे। इसका नतीजा यह हुआ कि दोनों एक दूसरे से ईर्ष्या रखने लगे। एक दिन ऋषि मुद्गल नदी से स्नान करके लौटे तो देखा कि आश्रम की सफाई नहीं हुई है। उनके दोनों शिष्य सो रहे हैं। 

उन्होंने दोनों को जगाया और सफाई न होने का कारण पूछा, तो एक शिष्य ने कहा कि मैं पूर्ण विद्वान हूं। यह छोटा काम मेरे लायक नहीं है। दूसरे शिष्य ने कहा कि मैं भी अपने विषय का विशेषज्ञ हूं, मैं यह काम क्यों करूं? यह सुनकर ऋषि ने झाड़ू उठाया और बोले, यह छोटा काम तो मेरे लायक है। इतना कहकर वह सफाई करने लगे। यह देखकर दोनों शिष्य्य बहुत शर्मिंदा हुए। दोनों ने माफी मांगी और उनका अहंकार धुल गया।

कांवड़ यात्रा की तैयारियों में जुटी सैनी सरकार, एडवाइजरी जारी

अशोक मिश्र

सावन महीने की शुरुआत 11 जुलाई से हो रही है। हिंदू धर्म में सावन महीने को सबसे पवित्र माह माना जाता है। पूरे सावन महीने में लय और प्रलय को एक साथ साध लेने वाले महादेव की पूजा होती है। सावन का महीना शिव जी को बहुत प्रिय है। सावन के पहले दिन से ही कांवड़ यात्राएं भी शुरू हो जाती हैं। हरियाणा में लाखों शिवभक्त कांवड़ लेने हरिद्वार जाएंगे। हरिद्वार या दूसरे पवित्र तीर्थ स्थल से गंगाजल लाकर शिव जी का अभिषेक करने वाला पहला कांवड़िया कौन था, इसके बारे में भिन्न भिन्न मिथक हैं। 

कुछ लोग मानते हैं कि परशुराम सबसे पहले कांवड़िया थे। उन्होंने ही गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल लाकर बागपत स्थित पुरा महादेव का अभिषेक किया था। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो श्रवण कुमार को पहला कांवड़िया मानते हैं। कहा जाता है कि श्रवण कुमार जब अपने माता-पिता को तीर्थयात्रा कराने के क्रम में ऊना (हिमाचल प्रदेश) में थे, तो उनके मां-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा प्रकट की। तब श्रवण कुमार हरिद्वार पहुंचे थे और वहां से गंगाजल भर कर लाए थे। 

रामभक्तों का मानना है कि भगवान राम ने झारखंड के सुल्तानगंज से गंगाजल लाकर बाबा बैजनाथ का अभिषेक किया था। प्रथम कांवड़िया वही थे। रावण और देवताओं को भी प्रथम कांवड़िया मानने वाले भी कम नहीं हैं। समुद्र मंथन के बाद विष पीने से जब शिवजी पर विष का नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा, तो रावण ने गंगाजल लाकर पुरा महादेव स्थित मंदिर में जलाभिषेक किया था। इसी प्रसंग में देवताओं के भी गंगाजल से अभिषेक करने की मान्यता है। आगामी 11 जुलाई से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा को लेकर हरियाणा सरकार ने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं। 

सरकार ने कांवड़ लाने वाले शिव भक्तों के लिए कुछ एडवायजरी जारी की है। सबसे पहली बात तो यह है कि कांवड़ यात्रियों को अपने पास अपनी आईडी जरूर रखनी चाहिए। यदि किसी कारणवश कोई दुर्घटना हो जाती है, तो उनकी पहचान आसानी से की जा सकती है, उनके परिजनों को तत्काल सूचना दी जा सकती है। इसके साथ-साथ शिवभक्तों से अपील की गई है कि वह राह चलते समय तेज आवाज में डीजे न बजाएं। इससे लोगों को काफी परेशानी हो सकती है। 

कांवड़ यात्रा पर जाने वाले लोग किसी प्रकार का हथियार लेकर न चलें। वह धर्मयात्रा पर निकले हैं किसी युद्ध यात्रा पर नहीं। धर्म के कार्य में किसी प्रकार के हथियार की क्या जरूरत है। रात में या दिन में शिवभक्तों को जब विश्राम करना हो, तो वह सड़क या सड़क किनारे रुकने की जगह रैनबसेरों या जहां सरकार ने व्यवस्था की है, वहां विश्राम करें।

Sunday, July 6, 2025

दुनिया के सारे मूर्ख मेरे गुरु हैं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अरस्तू को यूनान का सबसे महान दार्शनिक माना जाता है। उनका जन्म ईसा पूर्व  384 में हुआ था। अरस्तू के गुरु प्लेटो थे। यह प्लेटो ही महान दार्शनिक सुकरात के शिष्य थे। दुनिया के पंद्रह से बीस प्रतिशत भाग को जीत लेने वाला सिकंदर अरस्तू का शिष्य था। अरस्तू की ख्याति यूनान में ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में फैली हुई थी। उनसे मुलाकात करने दूर-दूर से लोग आते थे। 

एक बार की बात है। एक विद्वान उनसे मिलने आया। उसकी बड़ी इच्छा थी कि वह सुकरात के गुरु से मिले। उनसे कुछ प्रेरणा ले। विद्वान ने मुलाकात के बाद अरस्तू से कहा कि मैं आपके गुरु से मिलना चाहता हूं। उनके कुछ वार्तालाप करना चाहता हूं। अरस्तू ने कहा कि मेरे गुरु से कोई नहीं मिल सकता है। उस विद्वान को लगा कि शायद अरस्तू के गुरु इस दुनिया में नहीं रहे। इस वजह से यह ऐसा कह रहे हैं। 

उस विद्वान ने कहा कि क्या वे अब इस दुनिया में नहीं रहे? अरस्तू ने जवाब दिया कि नहीं, उनकी मौत नहीं हो सकती है। लेकिन मेरे गुरु से मिलना संभव नहीं है। उस विद्वान ने कहा कि जब आपके गुरु की मौत नहीं हुई है, तो उनसे मिलने में क्या बाधा है? अरस्तू ने कहा कि इस दुनिया में जितने भी मूर्ख लोग हैं, वह मेरे गुरु हैं। मैं अक्सर यह सोचा करता हूं कि किन अवगुणों या बातों के चलते लोग किसी व्यक्ति को मूर्ख समझते हैं। मैं इन गुणों और बातों को अपने में देखने की कोशिश करता हूं। ऐसा करने से मैं अपने आपको मूर्ख कहलाने से बचा लेता हूं। इस तरह मैं अपना गुरु दुनिया के सभी मूर्खों को मानता हूं। 

अरस्तू की यह बात सुनकर उस व्यक्ति का अभिमान चूर-चूर हो गया क्योंकि जब वह अरस्तू से मिलने आया था, तो वह अभिमान से भरा हुआ था। वह समझ गया कि अरस्तू उसे क्या समझाना चाहते हैं।

तेज रफ्तार गाड़ी चलाने वाले कब समझेंगे ‘देर आयद दुरुस्त आयद’

अशोक मिश्र

फारसी में सदियों पुरानी एक कहावत है-देर आयद, दुरुस्त आयद। इसका मतलब है कि देर से आए, लेकिन सही सलामत आए। यह कहावत उस जमाने की है, जब आज की तरह हाई स्पीड वाली गाड़ियां नहीं हुआ करती थीं। बैलगाड़ियां, रथ, घोड़े और हाथी जैसे आवागमन के साधन हुआ करते थे। उस जमाने में भी लोग तेज रफ्तार की वजह से होने वाले हादसों से परिचित थे। लेकिन जब आज हाईस्पीड गाड़ियां बाजार में आ गई हैं, तब भी लोग तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने का रोमांच छोड़ नहीं पा रहे हैं। 

कल यानी शनिवार को सोनीपत में जन्मदिन मनाकर लौट रहे चार दोस्त हादसे का शिकार हो गए। बागपत के बिनौली गांव में रहने वाले प्रिंस का जन्मदिन था। उसने अपने तीन दोस्तों आदित्य विशाल और सचिन को मुरथल के ढाबे पर जन्मदिन मनाने के लिए बुुलाया। ढाबे में पार्टी हुई। हो सकता है कि आज के चलन के मुताबिक चारों दोस्तों ने ड्रिंक भी की हो। जब पार्टी मनाते लोगों को देर होने लगी, तो घरवालों के फोन आने लगे। 

पार्टी करके लौटते समय चालक गाड़ी को तेज रफ्तार में भगाने लगा ताकि जल्दी से जल्दी घर पहुंच जाएं। घरवालों की डांट से बचने के चक्कर में तेज रफ्तार गाड़ी फ्लाईओवर के डिवाइडर से टकराई और तीन-चार बार पलट गई। इस दौरान गाड़ी में आग भी लग गई। गाड़ी में ही फंस जाने की वजह से आदित्य तो जिंदा जल गया, बाकी तीनों दोस्तों को किसी तरह राहगीरों ने बाहर निकाला। 

कुछ समय बाद प्रिंस की उसी दिन मौत हो गई जिस दिन उसका जन्मदिन था। सचिन की भी रास्ते में मौत हो गई। बुरी तरह घायल विशाल का उपचार चल रहा है। सड़क पर तेज रफ्तार में गाड़ी चलाने का शौक मौत का कारण बनता जा रहा है। केंद्र और सभी राज्यों की सरकारें लगातार मुहिम चला रही हैं ताकि सड़कों पर होने वाले हादसों को न्यूनतम किया जा सके। सैनी सरकार भी हादसों को शून्य पर लाना चाहती है, लेकिन यह तब तक संभव नहीं है, जब तक लोग खुद इसके प्रति जागरूक नहीं होते हैं। 

हालांकि यह भी सही है कि सरकार के प्रयास करने से हादसों के आंकड़े घटे हैं, लेकिन यह आंकड़े अभी संतोषजनक नहीं हैं। हरियाणा में साल 2024 के दौरान 9806 सड़क हादसे हुए। इन हादसों में करीब 4689 लोगों की मौत हो गई, 7914 लोग घायल हुए। यह आंकड़ा साल 2023 के मुकाबले काफी कम है। खास बात यह है कि पुलिस ने साल 2024 के सड़क हादसों में घायल होने वाले 5313 लोगों को फस्ट एड की सुविधा मुहैया करवाई, वहीं 7090 घायलों को तुरंत प्राथमिक उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाया। साल 2023 में 10 हजार 168 सड़क हादसे हुए, जिनमें 5092 लोगों की मौत हुई है। साल 2022 में 11 हजार 130 सड़क हादसों में 5621 लोगों की मौत हुई थी।

Saturday, July 5, 2025

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सैनी सरकार ने कसी कमर

अशोक मिश्र

वायु प्रदूषण जैसी समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारत के राज्यों में वायु प्रदूषण विकराल रूप धारण करता जा रहा है। दिल्ली में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने तो दिल्ली-एनसीआर में दस साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल चालित वाहनों को पेट्रोल पंपों पर ईंधन न देने का फैसला लिया था। 

हालांकि, राज्य सरकार ने अभी इस फैसले को लागू करने से अपने कदम वापस खींच लिए हैं। हरियाणा की सैनी सरकार ने एनसीआर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक व्यापक और बहु क्षेत्रीय कार्य योजना बनाई है। प्रदेश सरकार ने सबसे पहले पराली जलाने की समस्या से निपटने का फैसला किया है। वर्ष 2025 में किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रेरित किया जाएगा। 

पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले प्रदेश में पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं। पिछले साल सरकार ने इस मामले काफी सख्ती बरती थी। कुछ किसानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी की गई थी। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के अनुसार इस वर्ष प्रदेश में कुल 41.37 लाख एकड़ धान की खेती होने की उम्मीद है। इस खेती से प्रदेश में कुल लगभग 85.50 लाख टन पराली होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इतना ही नहीं, प्रदेश में 22.63 लाख एकड़ में बासमती और 18.74 लाख एकड़ में गैर बासमती की खेती होने का अनुमान है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में पराली को उपयोगी और किसानों के लिए लाभकारी बनाने का प्रयास किया जाएगा। 

प्रदेश सरकार ने धान की पराली को जलाने से रोकने के लिए तीन प्रमुख योजनाओं को बड़े पैमाने पर लागू करने का फैसला किया है। इसके लिए किसानों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की जा रही है। किसानों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना साबित होने वाली है। इसके तहत आठ हजार रुपये प्रति एकड़, पराली प्रबंधन के लिए 1200 रुपये प्रति एकड़ और सीधी बिजाई वाले धान के लिए साढ़े चार हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से किसानों को वित्तीय सहायता दी जा रही है। 

बस, इसके लिए किसानों को ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ पोर्टल पर आवेदन करना होगा। पोर्टल आवेदन करने से पारदर्शिता बनी रहती है। वैसे यह बात सही है कि हरियाणा हो या कोई दूसरा प्रदेश, प्रदूषण के लिए केवल पराली को जलाना ही जिम्मेदार नहीं होता है। प्रदूषण के लिए दूसरे कारण भी जिम्मेदार होते हैं। ईंट भट्ठों के साथ-साथ सड़कों पर उड़ती धूल, कचरों को जलाया जाना जैसे तमाम कार्य प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण सड़कों पर लगातार बढ़ रहे वाहन हैं जिन पर रोक लगाने की कोशिश नहीं की जा रही है।

करुणा और दया के सागर थे स्वामी महावीर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे। उनका जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तेरस को हुआ था। वैशाली गणतंत्र में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला इनके माता-पिता थे। कहा जाता है कि महावीर स्वामी का विवाह यशोदा नामक कन्या से हुआ था। इनकी एक पुत्री प्रियदर्शिनी थी जिसका विवाह राजकुमार जमाली से हुआ था। 

स्वामी महावीर ने 12 साल तक तपस्या की थी। जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार, केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद, स्वामी महावीर ने उपदेश दिया। उनके 11 गणधर (मुख्य शिष्य) थे जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे। उन्होंने पांच व्रत सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य बताए थे जो आज जैन धर्म का प्रमुख आधार है। 

एक बार की बात है। महावीर स्वामी एक वृक्ष के नीचे साधनारत थे। उनके चेहरे पर तेज था। मुखमुद्रा एकदम शांत थी। उधर कुछ उदण्ड लड़कों का समूह गुजरा। उन्होंने स्वामी जी को साधनारत देखा, तो उन्हें परिहास सूझा। एक युवक ने स्वामी जी की ओर धूल उड़ाई। 

दूसरे ने नुकीली लकड़ी उनके शरीर में चुभोई। तीसरे लड़के ने तो शरारत की हद ही पार कर दी। उसने स्वामी महावीर के ऊप थूक दिया। इसके बाद भी स्वामी महावीर की मुखमुद्रा में तनिक भी बदलाव नहीं आया। उनके चेहरे पर आत्मसंतोष और शांति पहले की ही तरह विद्यमान रही। महावीर की यह दशा देखकर युवक आपस में बातचीत करने लगे। 

एक ने कहा कि यह कैसा आदमी है? हमारे इतना कुछ करने पर भी यह शांत बैठा हुआ है। अब युवकों को अपने ऊपर पश्चाताप होने लगा था। उन्हें महसूस हुआ कि उन्होंने जो कुछ भी किया था, वह अच्छा नहीं था। वह युवक स्वामी महावीर के चरणों में गिर पड़े और क्षमा मांगने लगे। युवकों यह दशा देखकर स्वामी जी ने नेत्र खोले। अब भी उनकी मुखमुद्रा में कोई बदलाव नहीं आया था। स्वामी जी ने उन युवकों को क्षमा कर दिया।

Friday, July 4, 2025

किसान ने समझाया परिश्रम का महत्व

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

परिश्रम और संतोष दोनों ऐसे गुण हैं जिसकी वजह से कोई भी व्यक्ति न तो दरिद्र रह सकता है और न ही दुखी। कुछ लोग न्यूनतम सुख-सुविधाओं में भी अपना जीवन बहुत अच्छी तरह से गुजार लेते हैं। कुछ लोग तो तमाम सुख-सुविधाएं होने के बावजूद सुखी नहीं रहते हैं। 

एक  राज्य का राजा बहुत बीमार था। राजा के इलाज के लिए कई वैद्य आए, लेकिन उनको ठीक नहीं कर पाया। एक दरबारी ने एक दिन कहा कि यदि इजाजत हो, तो महाराज मैं निवेदन करूं। राजा की अनुमति मिलने के बाद उसने कहा कि यदि महाराज को किसी सुखी इंसान की कमीज पहना दी जाए, तो महाराज ठीक हो सकते हैं।

बस, फिरक्या था? तमाम अधिकारी पूरे राज्य में सुखी व्यक्ति की कमीज खोजने निकल पड़े। पूरे राज्य में अधिकारी खोजते फिरे, लेकिन उसे कोई भी सुखी व्यक्ति नहीं मिला। जिससे मिलते वह कोई न कोई दुख बता देता था। थक हारकर वे जब लौट रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक किसान जेठ की दोपहर में अपना खेत जोत रहा है। वह कुछ गुनगुनाता था और जोर का ठहाका लगाता था। अधिकारी उस किसान के पास पहुंचे और कहा कि क्या तुम सबसे सुखी व्यक्ति हो? 

उस किसान ने कहा कि हां, मैं सुखी व्यक्ति हूं। इस पर राज्य अधिकारी ने कहा कि मुझे राजा के इलाज के लिए आपकी कमीज चाहिए। इस पर किसान ने कहा कि मेरे पास तो कमीज तक नहीं है। इतना कहकर वह हंस पड़ा। वहां से लौटकर अधिकारी ने उस किसान की बात राजा को बताई। यह सुनते ही राजा उठकर बैठ गया और बोला, मैं समझ गया। सुख के सारे साधन होने के बावजूद सुखी नहीं हुआ जा सकता है।

अगली बार आना, तो मन को भी ले आना

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म (या बोधिधर्मन) पांचवीं शताब्दी में चीन गए थे। बोधिधर्म के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वह दक्षिण भारत के पल्लव वंश के किसी राजा की संतान थे। राजा बौद्ध धर्मानुयायी था। उसने अपने बेटे को बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए चीन भेजा था। यह भी कहा जाता है कि बीस-बाइस साल के बोधिधर्म अपने शिष्य के साथ जब चीन पहुंचे थे, तो वहां पर वू नाम का राजा शासन करता था।

 उसकी इच्छा थी कि चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार हो। एक दिन राजा वू बोधिधर्म के पास पहुंचा और उनसे कहा कि मेरा मन बहुत अशांत रहता है। मन कैसे शांत होगा, इसका कोई उपाय बताएं। बोधिधर्म ने कहा कि अगली बार आना, तो अपने मन को भी साथ ले आना। राजा अचंभित रह गया कि मन क्या कोई वस्तु है, जो अगली बार आएं, तो लेते आएं। खैर, राजा चला गया। 

कुछ दिन बाद वह फिर बोधिधर्म के पास पहुंचा और बोला, महात्मन! मन तो शरीर के भीतर ही रहता है, उसे कोई बाहर से कैसे ला सकता है। इस पर बोधिधर्म ने कहा कि आप मानते हैं कि मन जैसी कोई वस्तु नहीं होती है। तो आप एक जगह शांत होकर बैठ जाएं और अपने भीतर मन को तलाशिए। राजा वू ने अपनी भीतर झांकना शुरू किया, तो उसे पता चला कि उसकी बेचैनी दूर होने लगी है। 

वह अपनी भीतर गहराई में उतरता चला गया। जब उसका ध्यान टूटा, तो उसने कहा कि मैं समझ गया कि बेचैनी को कैसे दूर किया जा सकता है। गौतम बुद्ध ने ध्यान सिखाया था। सैकड़ों सालों के बाद बोधिधर्म ने जब ध्यान को चीन पहुंचाया, तो स्थानीय प्रभाव के कारण यह चान के रूप में जाना गया। यही चान जब आगे इंडोनेशिया, जापान और दूसरे पूर्वी एशियाई देशों तक पहुंचा, तो इसका नाम फिर बदला और जेन बन गया।