अशोक मिश्र
हां, तो बात हो रही
थी राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में राष्ट्रवादी विप्लवी नेताजी सुभाष
चंद्र बोस के खिलाफ पेश किए गए पंत प्रस्ताव के समर्थन में जय प्रकाश
नारायण और राम मनोहर लोहिया की भूमिका की। तो इस बात को अच्छी तरह समझने के
लिए जरूरी है कि हम भारतीय स्वाधीनता संग्राम को सिलसिलेवार समझें। यह पंत
प्रस्ताव क्यों, किन परिस्थितियों और किसके इशारे पर पेश किया गया था, इसे
समझने से पहले स्वाधीनता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास जान लें, तो बेहतर
होगा। अगर हम भारतीय स्वाधीनता संग्राम पर दृष्टि डालें, तो पता चलता है कि
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सबसे पहली बगावत सन 1821 में तित्तू मियां (कुछ
इतिहासकार तित्तू मीर के नाम से भी पुकारते हैं) के नेतृत्व में बंगाल में
हुई थी। पांच हजार किसानों ने ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार और शोषण के खिलाफ
बगावत की। ब्रिटिश हुकूमत और उसके नुमाइंदे जमीदार न केवल किसानों,
मजदूरों का निर्मम शोषण करते थे, बल्कि यहां से कच्चा माल ब्रिटेन ले जाकर
वहां बना सामान भारत में लाकर दोहरा मुनाफा कमाते थे। ब्रिटिश हुकूमत के
नुमाइंदे जमींदार अपने मालिक के प्रति अपनी भक्ति दिखाने के लिए किसानों और
मजदूरों का निर्मम शोषण करते थे। इस हालात से समझौता करने के सिवा उनके
पास कोई दूसरा चारा भी नहीं था। लेकिन तित्तू मियां से यह बर्दाश्त नहीं
हुआ और उसने किसानों को संगठित करना शुरू कर दिया। पांच हजार किसानों ने
अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह कर दिया। अंग्रेजी फौज और पुलिस ने
पूरे बंगाल में दमन चक्र चलाया। काफी संख्या में किसान मारे गए। बगावत विफल
होने पर बहुतों को फांसी पर लटा दिया गया। कुछ जंगलों में जा छिपे और
भूखों मारे गए। यह भारतीय स्वाधीनता संग्राम की पहली चिन्गारी थी, जो भड़की
जरूर लेकिन अपनी निहित विसंगतियों और अंतरविरोधों के चलते जल्दी ही बुझ
गई। लेकिन इससे इस सशस्त्र बगावत का महत्व कम नहीं होता है। कुछ लोग तित्तू
मियां के नेतृत्व से पहले हुए संन्यासी विद्रोह (1763 से लेकर 1820) को
स्वाधीनता संग्राम का पहला विद्रोह मानते हैं। यदि दोनों विद्रोहों के
उद्देश्य को लेकर बात करें, तो यह स्पष्ट होता है कि संन्यासी विद्रोह का
आधार अंग्रेजों द्वारा तीर्थयात्रा पर लगाया गया प्रतिबंध था। इन विद्रोही
संन्यासियों का नारा ओम वंदेमातरम था। यह सही है कि ब्रिटिश हुकूमत की शोषण
और दोहन की नीति के प्रति किसानों, मजदूरों, कुछ जमींदारों में असंतोष था।
बंगाल और बिहार के नागा और गिरि संन्यासियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ
बगावत का झंडा बुलंद इसलिए किया था क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत ने उनकी
तीर्थयात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया था। संन्यासियों ने इस प्रतिबंध के खिलाफ
आवाज बुलंद की और उनके साथ मुस्लिम फकीर, जमींदार और किसान आ मिले। और यह
विद्रोह किसी न किसी रूप में 1820 तक चलता रहा। संन्यासी विद्रोह अपने
शुरुआती दौर (1763 और उसके कुछ वर्षों तक) में जितना प्रबल था, बाद में
जैसे-जैसे समय बीतता गया कमजोर पड़ता गया। बंगाल के गवर्नर जनरल वारेन
हेस्टिंग्स ने 1820 में संन्यासी विद्रोह का पूरी तरह दमन कर दिया।
प्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1882 में आनंदमठ की रचना की।
आनंदमठ का मूल आधार यही संन्यासी विद्रोह है। इन संन्यासियों का उद्देश्य
उतना व्यापक नहीं था जितना तित्तू मीर के विद्रोह का था। तित्तू मियां और
उनके पांच हजार किसान साथी पूरे बंगाल में शोषण और दमन का खात्मा करने के
लिए उठ खड़े हुए थे। वे पूरी ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने को प्रतिबद्ध
थे।
(शेष फुरसत मिलने पर……….)
Saturday, August 8, 2020
बस यों ही बैठे ठाले-1
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