Tuesday, September 17, 2019

मकड़ी और सत्ता

-अशोक मिश्र
मकड़ी
कभी नहीं बनाती
बिल, घर या घोसले
बुनती है सिर्फ जाल।
कभी गौर से देखो
किसी कुशल कारीगर की तरह
मकड़ी को चुपचाप
जाल बुनते हुए
उसकी एकाग्रता, दक्षता और कार्यकुशलता
पर मुग्ध हो जाने का मन करेगा।
कितना सुंदर होता है मकड़जाल
मचल उठेगा दिल
उसकी कारीगरी की सराहना करने को
मकड़जाल
बहुत आकर्षित करता कीट पतंगों को
वे उसके आकर्षण में खिंचे चले आते हैं
अपनी जान गंवाने को।
सत्ता भी ऐसे ही तैयार करती है मकड़जाल
एक समानता भी होती है
सत्ता और मकड़ी के जाल में
दोनों धीरे-धीरे चूसते हैं रक्त
जाल में फंसे अपने शिकार का।
शिकार चाहे सत्ता के हों या मकड़ी के
जाल में फंसने के बाद बहुत छटपटाते हैं
लेकिन निकल नहीं सकते।
सत्ता और मकड़ी के जाल में
होती है एक और समानता
बड़े शिकार कभी नहीं फंसते
न सत्ता के जाल में
न मकड़ी के जाल में।
17 सितंबर 2019

1 comment:

  1. सत्ता और मकड़ी के जाल की फ़ितरत एक जैसी. बढ़िया कविता 🌹

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