Wednesday, October 1, 2025

स्कूलों में बच्चों के साथ होने वाली बर्बर घटनाएं चिंताजनक

अशोक मिश्र

पानीपत के जाटल स्थित एक निजी स्कूल में जो कुछ भी सात वर्षीय बच्चे के साथ हुआ, वह निंदनीय और चिंताजनक है। स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाला बच्चा होमवर्क करके नहीं लाया था। स्कूल की प्रिंसिपल ने उस बच्चे को पहले तो खुद धमकाया और फिर सजा देने के लिए स्कूल के बस ड्राइवर को सौंप दिया। उस ड्राइवर ने ऊपरी मंजिल में बच्चे को ले जाकर रस्सियों से बांधकर उल्टा लटका दिया और फिर बुरी तरह मारा-पीटा। 

वैसे तो यह घटना बाइस अगस्त की है, लेकिन इसका खुलासा अब हुआ है। मामले ने तूल तब पकड़ा जब बच्चे को खिड़की के सहारे उल्टा लटकाने और मार-पीट का वीडियो वायरल हुआ। जब लड़के की मां ड्राइवर के घर पर शिकायत लेकर पहुंची, तो ड्राइवर घर पर नहीं मिला, लेकिन उसने बीस-पच्चीस लोगों को छात्र की मां को डराने धमकाने के लिए उसके घर भेज दिया। अब जब मामले ने तूल पकड़ लिया है, तो इस मामले में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने निष्पक्ष जांच करने को कहा है। 

आरोपी प्रिंसिपल  और ड्राइवर गिरफ्तार कर लिए गए हैं। आगे की कार्रवाई की जा रही है। हरियाणा में ही नहीं, ऐसी घटनाएं देश के विभिन्न राज्यों में यदा-कदा सामने आती रहती हैं। ऐसी स्थितियां समाज को झकझोर देती हैं। दरअसल, सच बात तो यह है कि आज के शिक्षक अपने छात्र-छात्राओं के प्रति संवेदनहीन हो गए हैं। यही वजह है कि न्यायालय और सरकार ने स्कूलों में बच्चों के साथ मारपीट करने पर रोक लगा दी है। क्योंकि पिछले एकाध दशकों में कुछ बर्बर घटनाएं समाज के सामने आई थीं। ऐसा नहीं है कि स्कूलों या प्राचीनकाल के गुरुकुलों में शिक्षक अपने शिष्यों को शारीरिक दंड नहीं देते थे। 

बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए हर तरह के उपाय उपयोग में लाए जाते थे। कबीरदास ने कहा भी है कि गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़-गढ़ काढ़े खोट, अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट। पहले के गुरु अपने शिष्यों को जो सजा देते थे, उसके मूल में उनका उद्देश्य अपने शिष्यों को सुधारना होता था। वह उनके भले के लिए शारीरिक दंड देते थे। लेकिन वह अपने शिष्यों को असीम प्यार भी देते थे। वह उनका भविष्य सुधारने के लिए कोई भी प्रयास करने से भी नहीं चूकते थे। लेकिन आज शिक्षक शिक्षक नहीं रहा, सेवा प्रदाता हो गया है। सरकारी या गैर सरकारी स्कूलों में नौकर हो गया है। 

इसमें सरकार की व्यवस्था भी कहीं न कहीं दोषी जरूर है। इस महंगाई और बेरोजगारी के दौर में अध्यापक को दस-बारह हजार रुपये देकर लाखों रुपये कमाने वाले स्कूल संचालकों का रवैया भी ठीक नहीं रहता है। इससे अध्यापकों में भी एक किस्म की हताशा, आक्रोश और झुंझलाहट पाई जा रही है। ऐसी घटनाएं इसी का परिणाम है। यदि निजी स्कूलों में भी सरकारी स्कूलों के समान वेतन और सुविधाएं मिलें, तो शायद अध्यापकों के मन का आक्रोश कम हो और ऐसी घटनाएं न हों।

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