अशोक मिश्र
इंसान बड़ा नहीं होता है, उसका किरदार बड़ा होता है। दुनिया में जितने भी महापुरुष या महान लोग हुए हैं, उनके जीवन वृत्तांत को यदि खंगाला जाए, तो पता चलता है कि वह जन्म से महान नहीं थे, लेकिन जीवन संघर्ष में आगे बढ़ने के दौरान वह महान हुए। उनका किरदार महान हुआ।
उन्होंने लोगों की भलाई या सुख-दुख का ध्यान रखा। जरूरत पड़ने पर उन्होंने लोगों की मदद की। ऐसी ही एक घटना नेपोलियन बोनापार्ट के जीवन की मिलती है। नेपोलियन का उदय फ्रांस क्रांति के दौरान ही हुआ था। जब फ्रांस क्रांति पूरी तरह से अराजकता की ओर बढ़ रहा था, तब आगे बढ़कर नेपोलियन ने फ्रांस की शासन सत्ता की बागडोर संभाल ली थी।
कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि यदि फ्रांस क्रांति न हुई होती, तो शायद नेपोलियन का उदय नहीं हुआ होता। एक बार की बात है। नेपोलियन की सेनाएं युद्ध लड़ रही थीं। नेपोलियन अपने शिविर में बैठा हुआ आगे की रणनीति पर विचार कर रहा था कि तभी एक सैनिक सेनापति का संदेश लेकर उसके पास पहुंचा। सैनिक काफी दूर से आाया था।
नेपोलियन के शिविर के पास पहुंचते-पहुंचते थकान से चूर घोड़ा गिरा और उसने दम तोड़ दिया। नेपोलियन ने सेनापति का पत्र पढ़ा और तुरंत जवाब लिखकर सैनिक को देते हुए कहा कि तुम्हारा घोड़ा तो मर चुका है। ऐसा करो, मेरा घोड़ा ले जाओ। यह संदेश तुरंत पहुंचना जरूरी है। सैनिक ने कहा कि आपके यह कहने से मैं फख्र महसूस कर रहा हूं। लेकिन मैं आपके घोड़े को कैसे ले जा सकता हूं। नेपोलियन ने कहा कि दुनिया में कोई ऐसा पद या वस्तु नहीं है जिसे साधारण व्यक्ति अपने पौरुष से हासिल न कर सके। यह सुनकर सैनिक हतप्रभ रह गया।
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