Saturday, October 11, 2025

हरियाणा के प्रशासनिक तंत्र का दो खेमों में बंटना चिंताजनक

अशोक मिश्र

हरियाणा वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरण कुमार की आत्महत्या एक दुखद घटना है। इस मामले में जो भी आरोपी हैं, उनकी जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी गई है। जो दोषी पाया जाए, उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए। लेकिन इस दुखद घटना के बाद का परिदृश्य चिंताजनक है। घटना को लेकर ब्यूरोक्रेसी से लेकर राजनीतिक हलके में माहौल गरम है। 

घटना ने पूरे प्रशासनिक तंत्र को झकझोरकर रख दिया है। सात अक्टूबर को आईजी वाई पूरण कुमार ने आत्महत्या से पहले पत्र लिखकर प्रदेश के 14-15 पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर दलित होने के कारण उन्हें परेशान करने का आरोप लगाया। उन्होंने जिस तरह रोहतक एसपी नरेंद्र बिजारणिया से लेकर डीजीपी शत्रुजीत कपूर सहित आईपीएस और आईएएस पर जातीय आधार पर परेशान करने और गाली-गलौज करने का आरोप लगाए हैं, वह आश्चर्यजनक है। 

हरियाणा के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी मामले में चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी सहित 14 पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर मामला दर्ज हुआ है। अपने पत्र में पूरण कुमार ने जिस तरह थोक के भाव आरोप लगाया है, उनके आरोपों पर सहज विश्वास नहीं हो रहा है। नौकरशाही पर भ्रष्टाचार के आरोप तो आए दिन लगते ही रहते हैं। लेकिन पत्र में जो आईजी वाई पूरण कुमार ने लिखा है, उस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। पूरा महकमा हाथ धोकर किसी एक अधिकारी के पीछे पड़ जाए और सरकार और मीडिया को इसकी भनक तक न लगे, विश्वसनीय नहीं लगता है। 

हो सकता है कि एकाध अधिकारियों ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया भी हो। किसी मुद्दे को लेकर बहस या गाली-गलौज भी हुई हो, लेकिन पूरा प्रशासनिक तंत्र उनके खिलाफ था, इस पर कौन विश्वास करेगा। उनके साथ ज्यादती हो रही थी, तो वह अदालत की शरण में भी जा सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा करने की जगह आत्महत्या की राह चुनी। आत्महत्या के बाद उपजे हालात की वजह से आईपीएस, आईएएस, एचसीएस अधिकारी दो गुटों में बंट गए हैं। प्रशासनिक हलकों में यह भी चर्चा है कि बुधवार की रात चंडीगढ़ में दलित अधिकारियों ने एक गुप्त बैठक भी की है। 

यदि इस मामले को जल्दी से जल्दी सुलझाया नहीं गया, तो प्रशासनिक तंत्र में जो गांठ पड़ेगी, उसका प्रभाव न केवल कामकाज पर पड़ेगा, बल्कि जनहित के कार्य भी प्रभावित होंगे। वैसे प्रदेश की विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को तूल देने में लगी हुई हैं। उन्होंने मुद्दे को एक अवसर की तरह लपक लिया है। अब वह दलित बनाम सवर्ण की आड़ में प्रदेश सरकार पर हमलावर हैं। शोषण और उत्पीड़न के चलते दलित अधिकारी की आत्महत्या से बेहतरीन मुद्दा उन्हें और कहां मिल सकता है।

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