Sunday, October 19, 2025

गृहस्थ जीवन में बिठाना होगा सामंजस्य

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

संत कबीरदास भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन वह समाज को बहुत गहराई से समझते थे। दार्शनिक जगत में भी उनका बेहतरीन दखल था। वह पाखंड को बहुत नापसंद करते थे। यही वजह है कि कई सौ साल पहले रची गई उनकी कविताएं आज भी समाज का मार्गदर्शन करती है। 

एक बार की बात है। एक युवक उनसे यह मार्गदर्शन लेने आया कि उसे विवाह करके गृहस्थ आश्रम में जाना चाहिए या संन्यासी हो जाना चाहिए। कबीरदास ने किसी प्रकार का प्रवचन देने की जगह उसे व्यावहारिक रूप से समझाने की बात सोची। उस समय दोपहर था। उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा कि दीपक जला लाओ। उनकी पत्नी ने सहज भाव से दीपक जलाकर उनके पास रख दिया। 

थोड़ी देर बीतने के बाद उनकी पत्नी दो गिलास में दूध लाकर दोनों को दे दिया। कुछ देर बात उनकी पत्नी ने कबीरदास से पूछा कि दूध मीठा है या और चीनी लाऊं। तब तक युवक थोड़ा दूध पी चुका था। उसने पाया कि दूध में चीनी की जगह नमक डाला गया था। कबीरदास ने बड़े शांत भाव से कहा कि नहीं, दूध मीठा है। यह सुनकर युवक आश्चर्यचकित रह गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि खारे दूध को कबीरदास मीठा क्यों बता रहे हैं। 

तब कबीरदास ने उस युवक से कहा कि यदि तुम गृहस्थ जीवन में ऐसी स्थितियों का सामना कर सकते हो, तो विवाह कर लो। मेरी पत्नी जानती थी कि भरपूर उजाला है, लेकिन मेरे कहने पर वह दीपक जला लाई। उसने कुछ नहीं पूछा। यदि मैं उससे कहता कि दूध में नमक पड़ा है, तो उसे अच्छा नहीं लगता। उसकी कमियों को बड़ी सहजता से मैंने स्वीकर कर लिया। जीवन में दोनों को एक दूसरे के साथ ऐसे ही रहना होगा।

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