अशोक मिश्र
एक बहुत पुरानी फारसी कहावत है कि हिम्मते मर्दा मददे खुदा। कहते हैं कि जो आदमी अपनी कोशिश करना नहीं छोड़ता है, उसकी मदद खुदा भी करता है। खुदा या ईश्वर उन्हीं का साथ देता है जो प्रयास करना नहीं छोड़ते हैं। इस बात को साबित किया अमेरिकन धाविका बेट्टी राबिनसन्स ने।
उन्होंने अपने जीवन में तमाम परेशानियां झेलीं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। नतीजा यह हुआ कि वह अमेरिका की महान धाविका बनीं। बेट्टी राबिनसन्स का जन्म 23 अगस्त 1911 को अमेरिका में हुआ था। जब वह 15 साल की थीं, तो उन्हें स्कूल से घर आने-जाने के लिए ट्रेन पकड़ना पड़ता था। एक दिन वह स्कूल से लेट हो गईं, तो ट्रेन पकड़ने के लिए उन्होंने दौड़ना शुरू किया। संयोग से उनके पीछे उनके अध्यापक चार्ल्स प्राइज भी आ रहे थे।
वह खुद एक एथलीट रह चुके थे। बेट्टी को दौड़ते देखकर उन्हें लगा कि यदि वह प्रशिक्षण हासिल करे, तो बेहतरीन रनर हो सकती है। उन्होंने प्रशिक्षण दिया और नतीजा यह हुआ कि 30 मार्च 1928 को सौ मीटर रेस की चैंपियन हेलेन फिल्की को मुकाबले में दूसरे स्थान पर रहीं, लेकिन जल्दी ही उसने फिल्की को हरा दिया। बेट्टी ने उसी साल एम्सटर्डम ओलिंपिक के लिए क्लालीफाई भी कर लिया और सौ मीटर दौड़ में वह अमेरिका की पहली ओलिंपिक स्वर्ण पदक विजेता बनीं।
लेकिन सन 1931 में किस्मत ने उनके साथ बड़ा भद्दा मजाक किया। हवाई यात्रा के दौरान हुए हादसे में उनकी पैर और बांह की हड्डियां टूट गईं। डॉक्टरों ने कहा कि अब वह चल नहीं पाएंगी। लेकिन बेट्टी ने हार नहीं मानी। पहले उन्होंने चलना शुरू किया, फिर दौड़ना। चार साल बाद बर्लिन ओलिंपिक में फिर दौड़ी और दूसरा स्वर्ण पदक हासिल किया। अमेरिका के खेल जगत में उनका नाम बड़े सम्मान से आज भी लिया जाता है।
सच में हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा ।
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