अशोक मिश्र
रामचरित मानस जैसा महाकाव्य रचने वाले गोस्वामी तुलसीदास की ही तरह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत एकनाथ का जन्म भी मूल नक्षत्र में हुआ था। एकनाथ के भी माता-पिता का इनके जन्म के बाद निधन हो गया था। कहा जाता है कि मूल नक्षत्र में पैदा होने वाले बालक के माता-पिता पर घोर विपत्ति आती है। संत एकनाथ ने महाराष्ट्र के सबसे चर्चित संत ज्ञानेश्वर की परंपरा को ही आगे बढ़ाया।
इनके पितामहं भानुदास भी बहुत बड़े संत थे। संत एकनाथ ने भावार्थ रामायण और भागवत जैसे ग्रंथ की रचना की थी। वह पैठण में रहते थे। जब संत एकनाथ की ख्याति महाराष्ट्र में बढ़ने लगी, तो कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगा। ऐसे लोग हर पल एकनाथ का बुरा करने का प्रयास करने लगे। इसके बावजूद संत एकनाथ अपनी साधना में लगे रहे।
एक दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति ने उनकी ख्याति से चिढ़कर घोषणा की कि जो संत एकनाथ को गुस्सा दिला देगा, तो उसे दो स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी। दो स्वर्ण मुद्राओं की लालच में एक गरीब किंतु बेरोजगार ब्राह्मण तैयार हो गया। वह एकनाथ के घर गया। उस समय एकनाथ पूजा कर रहे थे। वह युवक जाकर एकनाथ की गोद में बैठ गया। उसने सोचा कि ऐसा करने से एकनाथ को क्रोध आ जाएगा। लेकिन एकनाथ ने हंसते हुए कहा कि भैया! तुम से मिलकर अत्यंत आनंद आ गया। तुम्हारा प्रेम तो विलक्षण है।
दोपहर में जब एकनाथ की पत्नी गिरिजा देवी भोजन परोसने लगीं, तो युवक उनकी पीठ पर चढ़ गया। एकनाथ ने कहा कि देखो, ब्राह्मण को गिरा मत देना। तब उनकी पत्नी ने हंसते हुए कहा कि बेटा हरि को पीठ पर लादकर काम करने का अभ्यास है, तो ब्राह्मण को कैसे गिरने दूंगी। यह सुनकर युवक समझ गया कि इस दंपति को क्रोध दिलाना असंभव है। उसने दोनों से क्षमा मांगी और अपने घर चला गया।
 
 
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