Thursday, October 2, 2025

विश्वेश्वरैया को पढ़ाना पड़ा ट्यूशन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का नाम भारत के महान इंजीनियरों में गिना जाता है। भारत में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रारंभिक विकास का श्रेय विश्वेश्वरैया को ही दिया जाता है। विश्वेश्वरैया के पिता संस्कृत के विद्वान थे, लेकिन धनाभाव के कारण विश्वेश्वरैया को अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के लिए ट्यूशन पढ़ाना पड़े। विश्वेश्वरैया की बाद में मैसूर रियासत ने मदद की और उन्हें पूना पढ़ने के लिए भेजा। 

विश्वेश्वरैया ने इंजीनियरिंग की डिग्री की परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया। देश आजाद होने पर भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करने का फैसला किया। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद उनसे पूर्व परिचित थे और उनकी विद्वता के प्रशंसक भी थे। विश्वेश्वरैया भारत सरकार की ओर से आयोजित होने वाले अलंकरण समाहोर में भाग लेने के लिए दिल्ली आए। 

उनकी राष्ट्रपति भवन में ठहरने की व्यवस्था की गई। एक भव्य समारोह में उन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया। तीसरे दिन अपना सारा सामान बांधकर विश्वेश्वरैया ने राष्ट्रपति से जाने की इजाजत मांगी। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उनसे कुछ दिन और ठहरने को कहा। दरअसल, राजेंद्र प्रसाद उनसे कुछ मामलों में चर्चा करना चाहते थे। 

तब विश्वेश्वरैया ने विनम्रता से कहा कि अभी  आप मुझे इजाजत दें, जब आप आदेश करेंगे, चर्चा के लिए हाजिर हो जाऊंगा। उन दिनों राष्ट्रपति भवन में किसी मेहमान के तीन तक ही ठहरने की परंपरा थी।  राष्ट्रपति ने कहा कि तीन दिन ठहरने का नियम पुराना है और वह बदल दिया गया है। लेकिन विश्वेश्वरैया नहीं माने और दिल्ली में ही कुछ दिन रहे, लेकिन नियम तोड़ना उनको गंवारा नहीं था।

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