महात्मा गांधी ने स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही कहा था कि स्वदेशी अपनाओ। इसके लिए उन्होंने देश की जनता को विदेशी वस्त्रों से लेकर तमाम उत्पादों का बहिष्कार करने की अपील की थी। नतीजा यह हुआ कि ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिल गई थी। देश की बहुसंख्यक आबादी ने स्वदेशी वस्त्रों से लेकर विभिन्न उत्पादों को अपनाना शुरू कर दिया था। आज जब हम अमेरिका, चीन और अन्य देशों का एक आयात दबाव महसूस कर रहे हैं, तो ऐसी स्थिति में जरूरी हो गया है कि हम अपने स्वदेशी उत्पादों का ही उपयोग करें।
फरीदाबाद के सूरजकुंड मेले में लगभग इसी बात को दोहराते हुए सीएम नायब सिंह सैनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का है। विकसित राष्ट्र का सपना तभी पूरा होगा, जब हम स्वदेशी वस्तुओं को अपनाएंगे। स्वदेशी अपनाने की भावना को लेकर ही सूरजकुंड में दीवाली मेला आयोजित किया गया है जो सात अक्टूबर तक चलेगा। इस दौरान देश के विभिन्न राज्यों से शिल्पकार और कलाकार अपने उत्पादों को बेचने के लिए सूरजकुंड दीवाली मेले में आए हुए हैं।
हमें वही सामान खरीदना चाहिए, जो मेड इन इंडिया हो। भारत का इतिहास बताता है कि हमारा देश तब बहुत अधिक समृद्ध था, जब यहां उत्पादन हर घर में होता था। स्वदेशी उत्पादों की बदौलत ही भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। सम्राट समुद्रगुप्त के शासनकाल में भारत का व्यापार दूर-दूर के देशों में फैला हुआ था। बड़ी-बड़ी नौकाओं से यूरोप तक भारत का व्यापार होता था। आज एक बार फिर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने और दूसरे देशों में व्यापार करने की आवश्यकता है।
इससे जहां लोगों को रोजगार मिलेगा, वहीं भारत को विदेशी मुद्रा भी मिलेगी। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए सूरजकुंड मेले में स्वदेशी वस्तुएं बिक्री के लिए लाई गई हैं। दरअसल, देश और प्रदेश में लगने वाले मेले विविधता में एकता का प्रतीत होते हैं। जब दूसरे राज्यों के व्यापारी, कला शिल्पी और कलाकार अपने उत्पादों को लेकर सूरजकुंड मेले में आते हैं, तो यहां के लोग दूसरे प्रदेशों की कला, संस्कृति और रीति रिवाजों से परिचित होते हैं।
वहीं दूसरे प्रदेशों के लोग भी हरियाणा की समृद्ध संस्कृति, कला और शिल्प आदि से भी परिचित होते हैं। इस सांस्कृतिक आदान प्रदान से लोगों में प्रेमभाव बढ़ता है, एकता की भावना मजबूत होती है। सौहार्द बढ़ता है और इससे देश और प्रदेश मजबूत होता है। सूरजकुंड में आयोजित होने वाले मेलों का भी यही उद्देश्य रहता है कि लोग एक दूसरे से परिचित हों, एक दूसरे राज्यों में व्यापार की प्रगति हो। यही उन्नति का सम्यक मार्ग भी है।
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