Wednesday, October 8, 2025

नहीं मांगी इब्राहिम खान गार्दी ने माफी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

इब्राहिम खान गार्दी का जीवन वतनपरस्ती और वफादारी की एक बेमिसाल  गाथा की तरह है। उनकी मृत्यु 14 जनवरी 1764 को ईरानी लुटेरे अहमदशाह अब्दाली की कैद में हुई थी। अब्दाली ने उनके शरीर के टुकड़े करवा दिए थे। गार्दी ने पांडिचेरी के फ्रांसीसी गवर्नर डे ला गार्डे टू डे बुस्सी से सैन्य प्रशिक्षण हासिल किया था। वह फ्रेंच भाषा के भी जानकार हो गए थे। इब्राहिम गार्दी सबसे पहले निजाम हैदराबाद के यहां काम करते थे। 

निजाम हैदराबाद की कुल सेना दो हजार सैनिकों की थी। लेकिन सन 1760 में उन्होंने मराठा साम्राज्य के पेशवा की सेना में काम करना मंजूर कर लिया। वह तोपखाने के इंचार्ज के साथ-साथ दस हजार सैनिकों के सेनापति बनाए गए। पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को ईरानी लुटेरे अहमदशाह अब्दाली के हाथों करारी शिकस्त मिली और गार्दी को ईरानी सेना ने गिरफ्तार कर लिया। 

एक दिन गार्दी को अब्दाली के सामने पेश किया गया। अब्दाली ने गार्दी से पूछा कि तुमने निजाम हैदराबाद की नौकरी क्यों छोड़ दी। गार्दी ने जवाब दिया कि उनका व्यवहार उचित नहीं था। तब अब्दाली ने कहा कि तुमने मुसलमान होकर फिरंगी जुबान सीखी और मराठों का साथ दिया। तुम्हें माफ कर दूंगा अगर तुम माफी मांग लो। गार्दी ने पूछा कि मैं किस बात की माफी मांगूं? 

अब्दाली को गुस्सा आया, उसने कहा कि तुम जानते हो किसके सामने खड़े हो? गार्दी का तीखा जवाब था-ईरानी लुटेरे के सामने। अब्दाली ने कहा कि अफसोस है कि तुमने मुसलमान होकर जिंदगी बर्बाद कर ली। गार्दी का जवाब था कि जो अपने मुल्क से विश्वासघात करे, बेगुनाहों का खून बहाए, वह मुसलमान हो ही नहीं सकता है। यह जवाब सुनकर अब्दाली बहुत क्रोधित हुआ। इसके बाद इब्राहिम खान गार्दी को मार दिया गया।

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