बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
किसी सज्जन आदमी को धोखा देना बहुत आसान है, लेकिन उस धोखे को ज्यादा दिन तक कायम रखना या ज्यादा दिनों तक धोखा दे पाना आसान नहीं है। एक न एक दिन पोलपट्टी जरूर खुल जाती है। जो व्यक्ति धोखा खाता है, वह भविष्य में किसी की मदद आदि नहीं करता है क्योंकि वह सोचता है कि अगला व्यक्ति भी धोखेबाज है। ऐसे में कई बार सच्चे आदमी पर भी लोग विश्वास नहीं कर पाते हैं।
एक बार की बात है। एक राजा के दरबार में एक ठग आया। उसने चिकनी चुपड़ी बातों से राजा को प्रभावित कर लिया। उसने ऐसा जाहिर किया कि मानो वह बहुत बड़ा ज्योतिषी हो। राजा ने उसकी बातों से प्रभावित होकर उसे राज ज्योतिषी का पद दे दिया। हालांकि राजा के मंत्री ने इसका विरोध भी किया, लेकिन राजा ने मंत्री की बात नहीं सुनी। यह देखकर मंत्री चुप रह गया।
कुछ दिन बाद राजा को खबर मिली कि पड़ोसी राजा उस पर हमला करने वाला है। उसने राज ज्योतिषी से पड़ोसी राजा को पराजित करने का उपाय पूछा। राज ज्योतिषी बने ठग ने कहा कि एक कुंतल कोयला जलाने के बाद जितना धुआं बने, उतना लोहा मुझे दे दीजिए। मैं एक दिव्यास्त्र बना दूंगा जिससे कोई भी आपको पराजित नहीं कर पाएगा। राजा और दरबारी उसकी बात सुनकर चकित रह गए।
तब मंत्री ने कहा कि एक कुंतल कोयला जलाने पर जितनी राख बचेगी, उसको तौलने पर जो कमी आएगी, उतना ही धुआं निकलेगा। यह सुनकर राज ज्योतिषी चुप रह गया। तब मंत्री ने कहा कि एक उपाय यह है कि यदि राज ज्योतिषी एक जलता हुआ कोयला हाथ पर रख लें, तो राज्य सुरक्षित रहेगा। यह सुनकर ठग राजा के पैरों पर गिर पड़ा और माफी मांगी। राजा ने उसे क्षमा करने की जगह कारागार में डलवा दिया।
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