कुछ ही दिनों में सर्दियां आ जाएंगी। हलकी सर्दी पड़ने लगी है। इसके बावजूद हरियाणा के कुछ जिलों में प्रदूषण की समस्या काफी गंभीर हो गई है। दिल्ली और हरियाणा सरकार ने अभी से सावधानी बरतनी शुरू कर दी है। दिल्ली एनसीआर में ग्रेप वन लागू कर दिया गया है। तीन दिन बाद दीपावली है। दीपावली पर वैसे भी प्रदूषण अपनी चरम सीमा पर होता है।
हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने कुछ दिनों के लिए ग्रीन पटाखों को जलाने की इजाजत दी है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में लोग ग्रीन पटाखे ही खरीदेंगे और उसको चलाएंगे। ग्रीन पटाखों की आड़ में प्रदूषित करने वाले पटाखे भी खरीदे-बेचे जाएंगे। इसे रोक पाना सरकार के वश में नहीं है। दिल्ली सरकार ने तो प्रदूषण कम करने के लिए कृत्रिम बरसात कराने की पूरी तैयारी कर ली है।
यदि दिल्ली में जरूरत महसूस की गई, तो कृत्रिम बरसात भी कराई जा सकती है। हरियाणा में जो एहतियातन कदम उठाए जा सकते हैं, वह सरकार उठा रही है और भविष्य में भी उठाएगी। सबसे पहले तो राज्य सरकार ने पराली को जलाने से रोकने के लिए प्रत्येक पचास किसानों पर एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की है, ताकि खेतों में जलने वाली पराली पर ध्यान रखा जा सके। यदि कोई किसान पराली जलाता हुआ पाया जाए, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। वैसे प्रदेश सरकार ने धान की कटाई करने वाले कम्बाइन हार्वेस्टर्स पर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट यूनिट लगवाना अनिवार्य कर दिया है।
यदि कोई कंबाइन हार्वेस्टर मालिक इस आदेश का उल्लंघन करता हुआ पाया गया तो उसका हार्वेस्टर जब्त कर लिया जाएगा। इतना ही नहीं, हार्वेस्टर संचालक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वैसे जो किसान अपने खेत की पराली को नहीं जलाएंगे, उन किसानों को ईनाम भी दिया जाएगा। इससे पराली को खेतों में न जलाने की प्रेरणा मिलेगी। राज्य के कई जिलों में निर्माण कार्यों की वजह से भी प्रदूषण गहराता जा रहा है। कहीं पर सड़क निर्माण हो रहा है, तो कहीं पर कई मंजिली इमारतों का निर्माण किया जा रहा है। यह सब कुछ उन क्षेत्रों में भी हो रहा है जिन जिलों में ग्रेप वन लागू है।
ग्रेप वन वाले जिलों में ढाबों, रेस्टोरेंट आदि में भट्टी खुलेआम जल रही है। कोई उसकी जांच करने वाला नहीं है। कई बड़े उद्योगों में भी कोयले का उपयोग हो रहा है, लेकिन सरकारी आदेश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। यह भी सही है कि कुछ इलाकों में ऐसे उद्योगों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। इसके बावजूद यह यही है कि पूरे प्रदेश में प्रदूषण के चलते सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में सांस, हृदय और त्वचा संबंधी बीमारियों के शिकार मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इन रोगियों में बच्चे और बूढ़ों की संख्या काफी है। सबसे ज्यादा प्रदूषण का प्रभाव इन्हीं लोगों पर दिखाई देता है।
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