अशोक मिश्र
लियो नार्डो दा विंची केवल एक चित्रकार ही नहीं थे, वह महान वैज्ञानिक, ड्राफ्ट्समैन, सिद्धांतकार, इंजीनियर और मूर्तिकार भी थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1452 को इटली के विंसी शहर में हुआ था। दा विंची के माता-पिता ने इनके पैदा होने के एक साल बाद अलग हो गए थे और अलग-अलग विवाह कर लिया था।
विंची का बचपन काफी परेशानियों के बीच बीता। 14 साल की उम्र में विंची ने फ्लोरेंस के एक ख्याति प्राप्त मूर्तिकार का स्टैंड ब्वाय बन गया था। यही से उनमें चित्रकला और मूर्तिकला में रुचि पैदा हुई थी। एक बार की बात है। उन्हें इटली के एक गिरिजाघर की दीवारों पर चित्र बनाने का काम दिया गया।
उन्होंने यह काम स्वीकार कर लिया। वह गिरिजाघर जाते और कुछ देर दीवारों को देखने के बाद वह लोगों के चेहरों को गौर से देखने लगते। ऐसा काफी दिनों तक चला। कुछ लोगों को लगा कि विंची आलसी हो गए हैं। वह काम करना नहीं चाहते हैं। कुछ लोगों ने इसकी शिकायत राजा से कर दी। राजा ने लियोनार्डो को दरबार में बुलाया और चित्र बनाने में हो रही देरी का कारण पूछा।
विंची ने मुस्कुराते हुए कहा कि रेखाएं तब तक नहीं बोलेंगी, जब तक मैं उन्हें समझ न लूं। मैं कोई आलसी नहीं हूं, धैर्यवान हूं। राजा उनकी बात को समझ गया। उसने लियोनार्डो को अपनी इच्छा से काम करने को स्वतंत्र कर दिया। इस काम में कई साल लग गए। लेकिन जब उनका चित्र पूरा हुआ, तो पूरा मिलान शहर आश्चर्यचकित रह गया। उनके चित्र की एक-एक रेखाएं बोलती सी लग रही थीं। चित्र के हर चेहरे पर रंगों की नहीं, बल्कि जीवन की गति थी। वैसे लियोनार्डो का सबसे अनमोल कृति द लास्ट सपर मानी जाती है।
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