Tuesday, October 14, 2025

दीपावली पर मिट्टी के दीये खरीदें कारीगरों के घरों में भी करें उजाला

अशोक मिश्र

पांच पर्वों के समूह में दीपावली सबसे ज्यादा मायने रखती है। धनतेरस से शुरू होने वाला पर्व भैया दूज पर जाकर खत्म होता है। दीपावली की रात गांव से लेकर शहर तक जगमगाते हैं। सच कहा जाए तो दीपावली शब्द दीप+ अवलि से मिलकर बना है। इसका मतलब है दीप मालिकाएं, दीपों की पंक्तियां। दीप सभी जानते हैं कि मिट्टी से बनाए जाते हैं। कहा जाता है कि चौदह साल का वनवास काटकर जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे, तो इस खुशी में अयोध्या के निवासियों ने अपने घरों को दीपक जलाकर खुशी मनाई थी। 

दीपावली उसी परंपरा की द्योतक है। दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीपक की बहुत मान्यता है। सदियों से हमारे देश में मिट्टी के दीपक ही उपयोग में लाए जाते रहे हैं। सामान्य दिनों में भी घर में रोशनी करने के लिए मिट्टी के दीए ही जलाए जाते रहे हैं। तब लालटेन या बिजली जैसी सुविधाएं नहीं थीं। सामाजिक परंपराएं और व्यवस्थाएं ऐसी थी कि मिट्टी के खिलौने, दीपक, घड़ा और अन्य चीजें बनाकर प्रजापति परिवार गांव और शहर वालों को उपलब्ध कराता था। बदले में समाज उनकी समस्त जरूरतों की पूर्ति करता था। 

वह भी अन्य लोगों की तरह सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत करते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब लोग बिजली की छालरें और अन्य वस्तुओं का उपयोग करते हैं जिसकी वजह से अब मिट्टी के दीयों की खरीदारी बहुत कम हो गई है। दो-तीन दशक पहले प्रजापति परिवार करवाचौथ के बाद ही मिट्टी के खिलौनों और दीपक को बनाने का काम शुरू कर देते थे। गांवों और शहरों में प्रजापति परिवार इस काम में जुट जाता था। लाखों दीये बनाकर वह बेचते थे। इसके साथ मिट्टी के रंग बिरंगे खिलौने भी भारी संख्या में बेच लेते थे। 

इसके उनका गुजारा चल जाता था। तब मिट्टी के लिए भी ग्राम पंचायत या खेत मालिक को कीमत नहीं देनी पड़ती थी। लोग सहयोगवश अपने खेत से मिट्टी निकालने की इजाजत दे देते थे। यह लोग तालाब की मिट्टी का भी उपयोग किया करते थे। लेकिन अब दीये बनाने के लिए एक ट्राली मिट्टी के लिए उन्हें तीन से चार हजार रुपये देने पड़ते हैं। एक मिट्टी का दीया बनाने में औसतन तीस से चालीस पैसे की लागत आती है। इसको बेचने पर भी मुश्किल से पंद्रह बीस पैसे का मुनाफा होता है। 

हर साल दीपावली के अवसर पर मिट्टी के दीयों और खिलौनों की मांग घटती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण चीन और अपने देश में बनने वाली बिजली की लड़ियां और अन्य सजावट के सामान हैं। हरियाणा के प्रजापतियों ने सरकार से उन्हें विशेष पैकेज देने की मांग की है। यदि सरकार उन्हें विशेष पैकेज दे दे, तो उनकी दशा में सुधार आ सकता है। केंद्र और प्रदेश सरकार जब स्वदेशी अपनाने की अपील कर रही है, ऐसी स्थिति में चाइनीज लड़ियों की जगह मिट्टी के दीये खरीदकर इनकी हालत सुधारी जा सकती है।

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