अशोक मिश्र
मेरे एक पड़ोसी हैं। उनका नाम है गुदुन कुमार, लेकिन लोग उन्हें प्यार से मियां झान झरोखे प्रसाद कहते हैं। उनका यह नाम कब और क्यों पड़ा, कोई नहीं जानता। पूछने पर वे मुस्कुराकर बात को टाल जाते हैं। वैसे उनसे कोई तभी बात करता है, जब फुरसत में हो। वे दिमाग का दही कर देते हैं। एक दिन रविवार को वे सुबह-सुबह मेरे घर पधारे। मैंने उनका स्वागत करते हुए कहा, ‘आइए, मियां झान झरोखे। बहुत दिनों बाद दर्शन दिए। सब खैरियत तो है?’ वे बोले, ‘सब खैरियत तो है, लेकिन एक सवाल काफी दिनों से परेशान कर रहा है। मैंने सोचा कि आपसे पूछा जाए, शायद आपके पास कोई हल हो।’ मैंने कुछ कहने की बजाय उनकी ओर सवालिया निगाहों से देखा। वे मेरा मंतव्य समझ गए और बोले, ‘बात यह है कि कंप्यूटर में एक कीबोर्ड होता है ‘कंट्रोल’ और दूसरा होता है ‘जेड’। इन दोनों का एक साथ उपयोग करके वर्तमान से पुराने फंक्शन पर लौटा जा सकता है। मैं सोचता हूं कि यदि हम सबकी जिंदगी में भी ‘कंट्रोल जेड’ की व्यवस्था होती, तो क्या होता? मेरे कहने का मतलब समझ रहे हैं न आप!’
झान झरोखे की बात सुनकर मैं आश्चर्य से उछल पड़ा, ‘क्या गजब का आइडिया है मियां! वाकई अगर ऐसा हो जाए, मजा आए। चलो मियां, ललित कुकरेजा से पूछते हैं कि अगर उनकी जिंदगी में ‘कंट्रोल जेड’ होता, तो...?’ हम दोनों ललित के घर पहुंचे। उन्हें ‘कंट्रोल जेड’ के बारे में बताने की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि वे कंप्यूटर के माहिर हैं। मैंने झान झरोखे वाला सवाल उनके सामने रख दिया। मेरी बात सुनकर पहले तो उन्होंने चोर निगाहों से चारों तरफ देखा और बोले, ‘होता क्या? सारी पोल खुल जाती। सारे लोग एक दूसरे के सामने नंगे हो जाते। कोई भी, किसी की भी जिंदगी का ‘कंट्रोल जेड’ बटन दबाकर अतीत जान लेता।’
इतना कहकर वे हम दोनों लोगों को देखने लगे। मियां झान झरोखे ने कहा, ‘मैं मतलब नहीं समझा?’ हालांकि ललित कुकरेजा की बात मेरी समझ में पूरी तरह आ गई थी, लेकिन मैंने नादान बनना ही उचित समझा। इस पर वे बोले, ‘आपको अपनी बात समझाने के लिए मैं किसी और का उदाहरण क्यों दूं? अब जैसे मुझे ही लो। मेरी प्यारी-सी बीवी और दोनों बच्चे मुझे शराफत की पुतली समझते हैं। अगर कोई मेरी पत्नी और बच्चों से मेरी लाख बुराई करे, लेकिन उन्हें विश्वास नहीं होगा।
यही हाल मोहल्ले की औरतों और पुरुषों का है। जहां तक मैं जानता हूं, मोहल्ले के लोगों की नजर में मैं करेक्टर और ईमानदारी के मामले में चौबीस कैरेट का खरा सोना हूं। गाहे-बगाहे मेरी शराफत की चर्चा भी करते हैं। अब अगर तुम्हारी कल्पना के मुताबिक जिंदगी में ‘कंट्रोल जेड’ की व्यवस्था होती, तो मेरी बीवी को पता चल जाता कि मैंने पिछले पंद्रह साल से छबीली से टांका भिड़ा रखा है। हम लोग बचपन से ही एक दूसरे के साथ चोंच मिलाते चले आ रहे हैं। इतना ही नहीं, मेरे बॉस को पता चल जाएगा कि मैंने कब-कब बीमारी का बहाना बनाकर, झूठ बोलकर दोस्तों और परिवार के साथ मूवी देखने या शापिंग करने गया। मैंने कब और किससे आफिस के बाहर और भीतर फाइल पर चिड़िया बिठाने के बदले रोकड़ा वसूला।’
ललित अपनी बात कह ही रहे थे कि पीछे से सिंह गर्जना हुई। हम सबने पीछे घूमकर देखा। भाभी जी, यानी मिसेज ललित कुकरेजा सिंहनी की तरह गरजती और ताल ठोंकती हुई बढ़ती चली आ रही हैं। मैंने ‘कंट्रोल जेड’ के जिस साइड इफेक्ट की कल्पना की थी, वह अब साकार होने जा रही थी। मैंने सबसे पहले वहां से खिसक लेना ही उचित समझा।
मिसेज ललित को आता देख मैं चिल्लाया, ‘भागो।’ ललित जी कुछ समझ पाते, उससे पहले ही उनकी पीठ पर एक दोहत्थड़ पड़ा और वे दर्द से दोहरे हो गए। दुबले-पतले झान झरोखे तो एकदम गन्ने की तरह लहराते हुए कब रफूचक्कर हो गए, हम दोनों में से किसी को पता ही नहीं चला। ललित जी बीवी के भय से आज भी फरार हैं। किसी को कोई सुराग लगे, तो उनके बारे में जानकारी देकर भाभी जी की मदद करें, प्लीज।
मेरे एक पड़ोसी हैं। उनका नाम है गुदुन कुमार, लेकिन लोग उन्हें प्यार से मियां झान झरोखे प्रसाद कहते हैं। उनका यह नाम कब और क्यों पड़ा, कोई नहीं जानता। पूछने पर वे मुस्कुराकर बात को टाल जाते हैं। वैसे उनसे कोई तभी बात करता है, जब फुरसत में हो। वे दिमाग का दही कर देते हैं। एक दिन रविवार को वे सुबह-सुबह मेरे घर पधारे। मैंने उनका स्वागत करते हुए कहा, ‘आइए, मियां झान झरोखे। बहुत दिनों बाद दर्शन दिए। सब खैरियत तो है?’ वे बोले, ‘सब खैरियत तो है, लेकिन एक सवाल काफी दिनों से परेशान कर रहा है। मैंने सोचा कि आपसे पूछा जाए, शायद आपके पास कोई हल हो।’ मैंने कुछ कहने की बजाय उनकी ओर सवालिया निगाहों से देखा। वे मेरा मंतव्य समझ गए और बोले, ‘बात यह है कि कंप्यूटर में एक कीबोर्ड होता है ‘कंट्रोल’ और दूसरा होता है ‘जेड’। इन दोनों का एक साथ उपयोग करके वर्तमान से पुराने फंक्शन पर लौटा जा सकता है। मैं सोचता हूं कि यदि हम सबकी जिंदगी में भी ‘कंट्रोल जेड’ की व्यवस्था होती, तो क्या होता? मेरे कहने का मतलब समझ रहे हैं न आप!’
झान झरोखे की बात सुनकर मैं आश्चर्य से उछल पड़ा, ‘क्या गजब का आइडिया है मियां! वाकई अगर ऐसा हो जाए, मजा आए। चलो मियां, ललित कुकरेजा से पूछते हैं कि अगर उनकी जिंदगी में ‘कंट्रोल जेड’ होता, तो...?’ हम दोनों ललित के घर पहुंचे। उन्हें ‘कंट्रोल जेड’ के बारे में बताने की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि वे कंप्यूटर के माहिर हैं। मैंने झान झरोखे वाला सवाल उनके सामने रख दिया। मेरी बात सुनकर पहले तो उन्होंने चोर निगाहों से चारों तरफ देखा और बोले, ‘होता क्या? सारी पोल खुल जाती। सारे लोग एक दूसरे के सामने नंगे हो जाते। कोई भी, किसी की भी जिंदगी का ‘कंट्रोल जेड’ बटन दबाकर अतीत जान लेता।’
इतना कहकर वे हम दोनों लोगों को देखने लगे। मियां झान झरोखे ने कहा, ‘मैं मतलब नहीं समझा?’ हालांकि ललित कुकरेजा की बात मेरी समझ में पूरी तरह आ गई थी, लेकिन मैंने नादान बनना ही उचित समझा। इस पर वे बोले, ‘आपको अपनी बात समझाने के लिए मैं किसी और का उदाहरण क्यों दूं? अब जैसे मुझे ही लो। मेरी प्यारी-सी बीवी और दोनों बच्चे मुझे शराफत की पुतली समझते हैं। अगर कोई मेरी पत्नी और बच्चों से मेरी लाख बुराई करे, लेकिन उन्हें विश्वास नहीं होगा।
यही हाल मोहल्ले की औरतों और पुरुषों का है। जहां तक मैं जानता हूं, मोहल्ले के लोगों की नजर में मैं करेक्टर और ईमानदारी के मामले में चौबीस कैरेट का खरा सोना हूं। गाहे-बगाहे मेरी शराफत की चर्चा भी करते हैं। अब अगर तुम्हारी कल्पना के मुताबिक जिंदगी में ‘कंट्रोल जेड’ की व्यवस्था होती, तो मेरी बीवी को पता चल जाता कि मैंने पिछले पंद्रह साल से छबीली से टांका भिड़ा रखा है। हम लोग बचपन से ही एक दूसरे के साथ चोंच मिलाते चले आ रहे हैं। इतना ही नहीं, मेरे बॉस को पता चल जाएगा कि मैंने कब-कब बीमारी का बहाना बनाकर, झूठ बोलकर दोस्तों और परिवार के साथ मूवी देखने या शापिंग करने गया। मैंने कब और किससे आफिस के बाहर और भीतर फाइल पर चिड़िया बिठाने के बदले रोकड़ा वसूला।’
ललित अपनी बात कह ही रहे थे कि पीछे से सिंह गर्जना हुई। हम सबने पीछे घूमकर देखा। भाभी जी, यानी मिसेज ललित कुकरेजा सिंहनी की तरह गरजती और ताल ठोंकती हुई बढ़ती चली आ रही हैं। मैंने ‘कंट्रोल जेड’ के जिस साइड इफेक्ट की कल्पना की थी, वह अब साकार होने जा रही थी। मैंने सबसे पहले वहां से खिसक लेना ही उचित समझा।
मिसेज ललित को आता देख मैं चिल्लाया, ‘भागो।’ ललित जी कुछ समझ पाते, उससे पहले ही उनकी पीठ पर एक दोहत्थड़ पड़ा और वे दर्द से दोहरे हो गए। दुबले-पतले झान झरोखे तो एकदम गन्ने की तरह लहराते हुए कब रफूचक्कर हो गए, हम दोनों में से किसी को पता ही नहीं चला। ललित जी बीवी के भय से आज भी फरार हैं। किसी को कोई सुराग लगे, तो उनके बारे में जानकारी देकर भाभी जी की मदद करें, प्लीज।
awesome............
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