-अशोक मिश्र
आदरणीय प्रधानमंत्री जी, नमस्कार। सत्श्री अकाल! गुडमार्निंग। आपको अपना परिचय दे दूं। मैं एक मामूली-सा जेबतराश यानी पॉकेटमार हूं। मैं कबीरदास की तरह ‘मसि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यो नहीं हाथ’ वाली कटेगरी का थंब ग्रेजुएट (अंगूठा छाप) हूं, लेकिन अपने काम में इतना माहिर हूं कि लोग मुझे उस्ताद मुजरिम कहते हैं। मेरा दावा है कि अगर मेरी अंगुलियों के नाखून में फंसा ब्लेड सुरक्षित रहे, तो मैं आपके पर्स को भी अपना बना सकता हूं। सर जी, आप जैसे बुजुर्गों और खैरख्वाहों की दुआओं के चलते अपनी ‘क्राइम यूनिवर्सिटी’ काफी अच्छी तरह से चल रही है। एक से बढ़कर एक प्रतिभावान विद्यार्थी हर साल निकल रहे हैं। प्रधानमंत्री जी, आपको यह बात बताते हुए मुझे फख्र महसूस हो रहा है कि हमारी यूनिवर्सिटी से शिक्षित-प्रशिक्षित विद्यार्थी चोर हो सकते हैं, पॉकेटमार हो सकते हैं, गुंडे-बदमाश हो सकते हैं, लेकिन वे न तो विश्वासघाती होंगे और न ही महिलाओं से जुड़ा कोई जुर्म करते हुए पाए जाएंगे। ‘उस्ताद मुजरिम क्राइम यूनिवर्सिटी’ के कई स्टूडेंट्स तो दाऊद भाई की कंपनी में अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं। डी कंपनी के कई उम्दा शूटर्स अपने ही सिखाए हुए बच्चे हैं। प्रधानमंत्री जी, अगर मैं यह कहूं कि बड़े, छोटे और मंझोले डॉन अपनी ही यूनिवर्सिटी की छात्र रह चुके हैं, तो यह छोटा मुंह बड़ी बात होगी। यही नहीं, अपने कई चेले-चपाटे तो राजनीति में घुसे हुए हैं और आपके आशीर्वाद से अच्छा कमा-खा रहे हैं। इन चेले-चपाटों के सामने एक ही दिक्कत है, जो आपके सामने इस आशा से रखना चाहता हूं कि आप उनकी कुछ मदद करेंगे।
आदरणीय प्रधानमंत्री जी, आपको शायद जानकारी न हो कि पूरे देश में कट्टा-बंदूक, बम, चाकू-छुरी बनाने का व्यवसाय कुटीर उद्योग का रूप लेता जा रहा है। आपसे निवेदन है कि यदि इस बार संसद सत्र के दौरान विधेयक लाकर इस कथित अवैध उद्योग को कुटीर उद्योग का दर्जा दिलवा दें, तो इस देश के करोड़ों छुटभैये नेता, गली-कूंचे के गुंडे और चोर और उनके परिवार आपके ऋणी रहेंगे। आप तो अर्थशास्त्री हैं, आपको तो पता ही होगा कि सरकारी स्तर पर इसे कुटीर उद्योग का दर्जा मिलते ही सांसद, विधायक, मंत्री और नौकरशाहों के साथ-साथ कुछ बड़े घराने भी इसमें पूंजी निवेश करेंगे। इससे इस दम तोड़ते उद्योग को संजीवनी मिल जाएगी। जो नेता, अधिकारी और मंत्री अपनी काली कमाई को स्वीटजरलैंड के बैंकों में जमा कराते आ रहे हैं, कुटीर उद्योग का दर्जा मिलते ही इसमें पैसा लगाना सेफ समझने लगेंगे। आपके देश की खुफिया एजेंसियां लाख प्रयत्न करने के बाद भी इंडियन मुजाहिद्दीन, सिमी जैसे देशी और कुछ विदेशी आतंकवादी संगठनों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पकड़ नहीं पातीं, लेकिन खुफिया एजेंसियों की सक्रियता के चलते हथियार और विस्फोटक वे चीन, पाकिस्तान और अमेरिका से मंगाते हैं। अगर गोला-बारूद, बम-पिस्तौल से लेकर राकेट लांचर और एलएमजी, एमएमजी जैसी चीजें देश में ही सस्ती और रियायती दरों पर उपलब्ध हो जाएं, तो आप सोचिए कि भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार काफी बढ़ जाएगा। विदेशी आतंकी सिर्फ अपनी जेब में विदेशी करंसी और दिमाग में सीरियल बम धमाकों का प्लान लेकर आएंगे और यहां से विस्फोटक आदि खरीदकर अपनी योजना को अंजाम दे देंगे। इस उद्योग को कानूनी दर्जा न मिलने और खुफिया एजेंसियों की सक्रियता के चलते बेचारों को विस्फोटक और अन्य चीजों को पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान आदि देशों से ढोकर लाना पड़ता है।
सर जी, आपसे निवेदन यह है कि जिस तरह तेल कंपनियों को घरेलू और व्यावसायिक गैस सिलिंडरों, मिट्टी के तेल आदि की बिक्री पर सरकार सब्सिडी प्रदान करती है, उसी तरह कट्टा-बम उद्योग को भी रियायत दी जाए। हथियारों के उत्पादन और बिक्री पर भले ही मैन्यूफैक्चरिंग और सेल्स टैक्स वसूला जाए, लेकिन इन हथियारों को रखना और उपयोग में लाना कानूनी बना दिया जाए। मेरा तो दावा है कि हर घर में कुछ न कुछ हथियार होने का नतीजा यह होगा कि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध में निश्चित रूप से कमी आएगी। अब आदमी महिलाओं को अबला समझकर छेड़छाड़ नहीं कर पाएगा। सड़क पर चलने वाली सीधी-सादी सी दिखने वाली लड़की कब पेट में चाकू हूल दे, यही सोचकर कोई भी शोहदा उसके किनारे नहीं जाएगा। आशा है कि आप मेरी बात पर विचार करेंगे और संसद में विधेयक पेश कर बम-कट्टा उद्योग को कुटीर उद्योग का दर्जा दिलवाएंगे।
आपका ही-मुजरिम।
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