-अशोक मिश्र
लाला लक्ष्मी दयाल इंटर कालेज में दसवीं कक्षा की हिंदी विषय की अर्धवार्षिक परीक्षा में एक सवाल पूछा गया था, ‘सूत न कपास, जुलाहे से लट्ठम-लट्ठा’ मुहावरे का उदाहरण सहित अर्थ बताओ। इस स्कूल के एक होनहार छात्र ने मुहावरे का अर्थ बताते हुए उदाहरण दिया। भारत के किसी गांव में दो बुजुर्ग गप्प गोष्ठी जमाए बैठे थे। एक बुजुर्ग ने तंबाकू मलकर होठों के नीचे दबाने के बाद पिच्च से जमीन पर थूकते हुए कहा, ‘रामबचन! तुम यह समझो कि केजरीवाल के प्रधानमंत्री बनने की देर है, बस। इधर वे प्रधानमंत्री बने कि हम लोगों के दुख-दलिद्दर समझो दूर हो गए। गांधी बाबा (महात्मा गांधी) तो सुराज (स्वराज्य) ही लाए थे, ये तो सुराज और क्रांति दोनों ला रहे हैं। एक दवा से काम न चले, तो दूसरी दवा हाजिर है।’
रामबचन ने सिर पर बंधी पकड़ी उतारकर सिर खुजाते हुए कहा, ‘भुलावन भाई! सुराज और क्रांति सब भ्रमजाल हैं। आजादी से पहले गांधी बाबा के सुराज का बड़ा हल्ला था। आजादी तो आई, लेकिन सुराज पता नहीं कैसे रास्ता भटककर अमीरों के घर पहुंच गया और उनके घर की पहरेदारी करने लगा। जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने कहा कि वे देश की गरीब जनता के लिए ‘समाजवाद’ ला रहे हैं। वे पता नहीं कैसा समाजवाद लाए कि गरीबों की दुर्गति हो गई। उनकी बेटी ने जब गद्दी संभाली, तो ‘गरीबी हटाओ’ नारे की ओट में वे गरीबों को ही हटाने लगीं। गरीब-गुरबा त्राहि-त्राहि कर उठे। गरीबों की दुर्दशा देखकर जेपी बाबू बिलबिला उठे। उन्होंने कहा कि अब गरीबी हटाओ से काम नहीं चलेगा, संपूर्ण क्रांति करनी होगी। लेकिन भाग्य फेर देखो, कुछ दिन आंदोलन चलाने के बाद उनकी संपूर्ण क्रांति साबुन के झाग की तरह न जाने कहां बिला गई। इसके बाद बड़े-बड़े दार्शनिक आए, विचारक आए, संत आए, महात्मा आए, निरहू आए, घुरहू आए, लेकिन सब बेकार। कभी नागनाथ प्रधानमंत्री बने, तो कभी सांपनाथ। सबने हमारे दुख-दलिद्दर को दूर करने की बीन बजाई,। हमारा दुख-दलिद्दर तो दूर नहीं हुआ, लेकिन उनकी सात पीढ़ियों का दुख-दलिद्दर जरूर दूर हो गया। सबने कहा कि गरीबी दूर करना हमारी पहली प्राथमिकता है, लेकिन पिछले साठ-पैंसठ साल से दो पीढ़ियां तो इसी भ्रमजाल में जीते-जीते बूढ़ी हो गईं। आज तक न सुराज आया, न संपूर्ण क्रांति हुई। हां, हम सबकी दुर्दशा जरूर हो गई। नोन, तेल, लकड़ी जुटाने में ही पूरी जिंदगी बिला गई।’
‘केजरीवाल अन्ना हजारे के चेले हैं, अन्ना हजारे अपने को गांधी बाबा का चेला कहते हैं। तुम देखना, राम बचन! गुरु गुड़ ही रहेगा, चेला शक्कर हो जाएगा। गांधी और अन्ना का यह चेला अपने गुरुओं से कहीं आगे जाएगा। हमने तो सुना है कि हिमालय पर्वत पर पिछले सौ साल से तपस्या कर रहा कोई योगी आया था, उसने केजरीवाल को कोई सिद्ध मंत्र दिया है जिसका जाप करते ही उसकी पार्टी के सारे उम्मीदवार दूध से धुल जाएंगे। उनके चरित्र पर कोई दाग नहीं रह जाएगा। भ्रष्टाचार की ओर तो वे आंख उठाकर नहीं देखेंगे। एक हफ्ता पहले जंतर-मंतर पर केजरीवाल को देखा नहीं, केंद्र सरकार पर कैसे गरज रहे थे। एकदम सुभाष बाबू की तरह।’ राम भुलावन ने जमीन पर पास रखी लाठी उठाकर पटकते हुए कहा,‘टीवी पर मैंने देखा था, जब वे बोल रहे थे, तो उनके सिर के चारों ओर एक आभा घूमती दिखाई दे रही थी। जैसे संतों-महात्माओं के होती थी पुराने जमाने में।’
‘भुलावन भाई! ये चेला ही तो सारी खुराफात की जड़ हैं। ऊंच-नीच करते खुद हैं और फोकट में बदनाम होते हैं उनके गुरु। तुमने देखा नहीं, गांधी के चेलों ने गांधी को किस तरह बेच दिया, मानो वे घर में फालतू पड़ी रद्दी हों। देखना एक दिन अन्ना के ये चेले अन्ना को भी बेच खाएंगे।’ रामबचन के इतना कहते ही राम भुलावन तमतमाकर उठ खड़े हो गए और लाठी हाथ में ले ली, ‘चोट्टे! तूने मेरे गांधी बाबा को रद्दी कहा। तू अपने आपको समझता क्या है? तेरी सारी मस्ती अभी झाड़ता हूं।’ इतना कहकर रामभुलावन ने रामबचन के सिर पर लाठी दे मारी। सिर से खून बहता देखकर राम बचन हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाए, तो उनके बेटे घर से निकल आए और फिर गांव में दोनों पक्षों में जमकर लाठियां चलीं। कई लोगों के हाथ-पांव टूटे, सिर फूटे और पुलिस ने दोनों तरफ के दस-दस, बारह-बारह लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
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