-अशोक मिश्र
सुबह बरामदे में बैठा निठल्ला चिंतन (माफ कीजिए, निठल्लों पर चिंतन) कर ही रहा था कि छबीली ने आकर शांति भंग की। ‘यहां बैठकर आस-पड़ोस की महिलाओं को घूरने की बजाय बेटी को कभी-कभार पढ़ा दिया कीजिए। अब आपकी उम्र महिलाओं या लड़कियों को घूरने की नहीं रही।’ छबीली की बात सुनकर मैं भड़क गया, ‘उम्र की बात तो करो मत। हमारे देश में बहुत पुरानी कहावत है ‘साठा, तब पाठा।’ अभी तो मेरी उम्र मात्र बयालिस साल तीन महीने तेरह दिन की है।’ छबीली ने मुस्कुराकर कहा, ‘अपनी उम्र का सिजरा देने की बजाय बेटी का होमवर्क करा दीजिए, आपकी हम मां-बेटी पर बहुत बड़ी मेहरबानी होगी।’ मैंने सोचा कि सुबह-सुबह कौन इससे बेकार की चोंच लड़ाए। इससे बेहतर है कि बेटी को ही पढ़ा दूं। यह अभी शुरू हो जाएगी, तो फिर नान स्टाप बोलती जाएगी। कई गड़े मुर्दे उखाड़ेगी, जो जो अपनी सेहत के लिए भी अच्छा नहीं होगा। यह सोचकर मैं उठने ही वाला था कि तभी बेटी उस कमरे में आ गई। उसने मुझसे पूछा, ‘पापा! स्कूल का होमवर्क कंप्लीट करने में आपकी मदद चाहिए। हिंदी की मैम ने ‘कुएं में भांग पड़ना’ मुहावरे का उदाहरण सहित व्याख्या करके लाने को कहा है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या लिखूं। जहां तक मैं समझती हूं, जब भूल से किसी कुएं में कोई नशेड़ी पिसी हुई भांग गिरा देता है, तो उसे कुएं में भांग पड़ना कहते हैं।’
बेटी की बात सुनकर मैंने अपना माथा पीट लिया। मैंने झल्लाते हुए कहा, ‘बेटी, मैं तो देख रहा हूं, इस घर के कुएं में ही भांग पड़ी हुई है। वैसे कुएं में भांग पड़ना का अर्थ यह है कि जब किसी क्षेत्र विशेष के लोग उल्टी-सीधी हरकतें करने लगें, तो कहा जाता है कि कुएं में भांग पड़ गई है।’ मैंने उसे विस्तार से समझाने की दृष्टि से कहा, ‘अब जैसे अपनी भारतीय राजनीति को लो। इन दिनों नेताओं की हरकतें और उनके ओछे बयान को देखकर तो लगता है कि राजनीति के कुएं में भांग पड़ गई है। जिसकी जो मर्जी में आ रहा है, वही अनाप-शनाप बक रहा है। अब गडकरी को ही लो, उन्हें क्या जरूरत थी किसी के फटे में टांग अड़ाने की। अरे! आईक्यू की समानता समझाने के लिए कोई दूसरा उदाहरण नहीं सूझा था। लगे स्वामी विवेकानंद और दाउद इब्राहिम के बीच समानता दिखलाने। जेठमलानी जी तो उनके भी चचा निकले। गडकरी की बात पर हो-हल्ला मचा, तो जेठमलानी जी ताल ठोंककर आ गए मैदान में और लगे गडकरी की ‘हत्तेरे-धत्तेरे की’ करने। फिर बोले, राम बुरे पति थे, लक्ष्मण तो एकदम निकम्मे और काहिल थे। सीताहरण के बाद जब सीता को खोजने की बात चली, तो वे हीला-हवाली करने लगे। (यह बात लिखने के लिए भाजपाई और विहिप वाले माफ करेंगे। बात आई है, तो यह लिखना पड़ रहा है।)’
इतना कहकर मैं सांस लेने के लिए रुका। बेटी बड़े गौर से मेरी बात सुन रही थी। मैंने बात को विस्तार दिया, ‘कुएं में भांग पड़ने का उदाहरण यह कोई पहला नहीं है। भारतीय राजनीति में एक मोदी जी हैं, खुद तो शादी की, चार दिन बीवी के साथ और बाद में उनका हिंदुत्व जागा, तो पत्नी को छोड़कर चले आए। कहने का मतलब यह है कि मोदी जी को ‘गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज’ है। अपनी बीवी को निरपराध त्याग देने वाले मोदी को तब कष्ट होता है, जब कोई अपनी बीवी या गर्लफ्रेंड से टूटकर प्यार करता है। शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर के प्यार को देखकर एक दिन मोदी को ताव आया और वे पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड का फतवा जारी कर बैठे। अब बेचारे मोदी की बोलती बंद है। जलता कोयला जो जीभ पर रख बैठे थे।’ बेटी अब भी बड़े ध्यान से मेरी बात सुन रही थी। मुझे अपने हिंदी ज्ञान पर कुछ गर्व सा महसूस हुआ। मैंने शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन ऊंची करते हुए कहा, ‘बेटी! अब तुम्हें क्या-क्या बताऊं। अपने प्रदेश के मुखिया के पिता जी तो सबके बाप निकले। वे कहते हैं कि महिला आरक्षण विधेयक का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि जब महिलाएं संसद में पहुंचेंगी, तो लोग सीटियां बजाएंगे। महिला आरक्षण से परकटी (महिलाएं माफ करें) यानी पढ़ी-लिखी महिलाओं और लड़कियों को ही फायदा होगा।’ यह सुनकर मेरी बेटी अपने कमरे में होमवर्क पूरा करने लगी। अगले दिन जानते हैं, मेरी बेटी ने क्या कहा, ‘आप अच्छे पापा नहीं हैं। आपने जो अर्थ और उदाहरण बताया, मैंने वही लिखा और पूरे दिन मैम और सहेलियां मेरा मजाक उड़ाती रहीं।’
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