-अशोक मिश्र
मैं पिछले चौबीस घंटे से एक अजीब से तनाव से गुजर रहा हूं। कई बार समझा चुका हूं। थोक में समझाया, फुटकर समझाया। अब तो बुद्धि ही काम नहीं करती कि मैं उसे कैसे समझाऊं। मानता ही नहीं है। कई बार मैं समझा चुका हूं, उसकी मां समझा चुकी है। थक-हारकर मोहल्ले वालों की भी मदद ली, लेकिन वह हिमालय पर्वत की तरह अटल है। कहता है, ट्यूशन पढूंगा, तो फेंकू सर से, नहीं तो किसी से भी नहीं पढूंगा। दरअसल, बात मेरे बेटे की हो रही है। कल पता नहीं कब और कैसे उसने गोरखपुर वाली रैली का सजीव प्रसारण देख लिया था। वह अपने फेंकू से इतना प्रभावित हुआ कि जैसे ही प्रसारण खत्म हुआ, वह मेरे पास आया और बोला, ‘पापा! मैं फेंकू सर से ट्यूशन पढ़ूंगा।’ पहले तो मैं समझ नहीं पाया। यही बात उसने जब दूसरी बार दोहराई, तो मैंने समझा, बच्चा है। किसी ने उससे मजाक किया होगा और वह अब मुझसे मजाक कर रहा है। मैंने बात को टाल दी। शाम को घरैतिन ने उससे खाने को कहा, तो वह यह कहते हुए अपने कमरे में चला गया, ‘जब तक फेंकू सर से ट्यूशन पढ़ाने को पापा तैयार नहीं होते, तब तक मैं न खाना खाऊंगा, न स्कूल जाऊंगा। न नहाऊंगा, न धोऊंगा।’ घरैतिन ने मेरे पास आकर कहा, ‘अरे देखो..यह किससे ट्यूशन पढ़ने की बात कर रहा है।’ घरैतिन की बात सुनते ही मैं बमक उठा, ‘दिमाग खराब हो गया है उसका और तुम्हारा भी। जानती हो, वह किससे ट्यूशन पढ़ने की बात कर रहा है?’ मैंने जब घरैतिन को समझाया, तो उसने खिखियाते हुए कहा, ‘तो बात कर लीजिए न! अगर एकौ-दुई घंटा पढ़ा देंगे, तो सपूत का बेड़ा पार हो जाएगा।’
मैंने घरैतिन को डपटते हुए कहा, ‘कमाल करती हो तुम भी। वह ट्यूशन पढ़ाएंगे? उनके जिम्मे इतने काम हैं कि उसे छोड़कर तुम्हारे सपूत को पढ़ाने बैठेंगे? अरे अभी उन्हें पाकिस्तान को मजा चखाना है। भारत की सीमा को ईरान-इराक तक पहुंचा है।’ मैंने अपने बेटे को बुलाया, ‘बेटा, तुम जिससे ट्यूशन पढ़ने की बात कर रहे हो, पहली बात तो यह संभव नहीं है। अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि वह पढ़ा भी देंगे, तो तुम्हारा बेड़ा गर्क हुआ ही समझो। एक तो उनको इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र की जितनी जानकारी है, उसका लोहा तो पूरी दुनिया मानती है। तुमने भले ही पढ़ा हो कि सिकंदर झेलम तक आने के बाद लौट गया था, लेकिन तुम्हारे ये फेंकू सर सिकंदर को लखनऊ, इलाहाबाद, पटना के रास्ते गुजरात पहुंचने और गुजरातियों द्वारा कुश्ती लड़ने की बात को सिद्ध कर देंगे। उनके पास ऐसे-ऐसे इतिहासकारों की फौज है, जो विलियम शेक्सपीयर को भारतीय बता देंगे। कह देंगे कि अंग्रेज चूंकि भारतीय शब्दों का उच्चारण ठीक ढंग से नहीं कर पाते थे, इसलिए विली मियां शेख पियारे को विलियम शेक्सपीयर बना दिया। बाद में लोगों ने अंग्रेजों के इस झूठ को सही मान लिया।’ इतना कहकर मैं थोड़ी देर सांस लेने के लिए रुका।
मेरी बात सुनकर बेटा थोड़ा सा कन्विंस होता दिखा, तो मैं उत्साह से भर गया। मैंने उसे समझाया, ‘देखो बेटा! यह तो हुई उनके इतिहास ज्ञान की बातें, उनकी दूसरी बातें सुनोगे, तो तुम्हें ताज्जुब होगा कि एक व्यक्ति इतना डींग हांक सकता है। और फिर..वे बड़े आदमी हैं, इतने महत्वपूर्ण पद पर हैं, इससे भी महत्वपूर्ण पद पर उनके जाने की संभावना है। फिर वे मुझ जैसे गुमनाम व्यक्ति के बेटे को इतना समय दे पाएंगे, मुझे नहीं लगता है। इतना ही नहीं, मेरे पास इतना बूता भी तो हो कि मैं तुम्हें उनके प्रदेश ट्यूशन पढ़ने भेज सकूं। तुम्हारा नाम वहीं के किसी स्कूल में लिखवा सकूं।’
मेरी बात सुनकर बेटा शातिराना तरीके से मुस्कुराया और बोला, ‘पापा! आप भी लंतरानी हांकने में काफी चतुर हैं। जहां तक रहने की बात है, तो मैं अहमदाबाद वाली मौसी के पास रहकर भी पढ़ सकता हूं। मैं आपकी यह बात भी मानता हूं कि फेंकू सर का सामान्य ज्ञान थोड़ा विलक्षण है। हमारे सामान्य ज्ञान से उनका सामान्य ज्ञान मैच नहीं करता। यह भी सच है कि वे इस देश के सबसे बड़े फेंकू हैं। जब वे फेंकते हैं, तो फिर यह नहीं देखते कि उनका फेंका गया तीर कहां गिरेगा। फेंकने की कला के वे महारथी ही नहीं, अतिरथी हैं। लेकिन एक बात आपने या शायद पूरे भारत ने महसूस नहीं की है। वे फेंकते कितने आत्मविश्वास के साथ हैं। उनका यही आत्मविश्वास तो काबिलेतारीफ है। वे झूठ भी बोलते हैं, तो कितनी सफाई और दमदारी के साथ। वे जब कहते हैं कि गुजरात को गुजरात बनाने के लिए छप्पन इंच का सीना चाहिए, तो वे यह नहीं सोचते कि छप्पन इंच कितने फीट के बराबर होता है। पापा! मुझे फेंकू सर से यही आत्म विश्वास सीखने जाना है। उनसे यह सीखना है कि झूठ कितनी सफाई से बोला जा सकता है। पापा! एक बात बताऊं। मैंने अपनी पाकेटमनी को बचाकर एक विजिटिंग कार्ड छपवाया है, जिसमें लिखवाया है, श्री चपरकनाती मिश्र, फ्यूचर प्राइम मिनिस्टर आॅफ इंडिया। पापा देखना, अगर फेंकू सर जैसा आत्म विश्वास मुझमें भी आ जाए, तो एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनकर रहूंगा।’ बेटे की बात सुनकर अब मेरी बोलती बंद थी।
मैं पिछले चौबीस घंटे से एक अजीब से तनाव से गुजर रहा हूं। कई बार समझा चुका हूं। थोक में समझाया, फुटकर समझाया। अब तो बुद्धि ही काम नहीं करती कि मैं उसे कैसे समझाऊं। मानता ही नहीं है। कई बार मैं समझा चुका हूं, उसकी मां समझा चुकी है। थक-हारकर मोहल्ले वालों की भी मदद ली, लेकिन वह हिमालय पर्वत की तरह अटल है। कहता है, ट्यूशन पढूंगा, तो फेंकू सर से, नहीं तो किसी से भी नहीं पढूंगा। दरअसल, बात मेरे बेटे की हो रही है। कल पता नहीं कब और कैसे उसने गोरखपुर वाली रैली का सजीव प्रसारण देख लिया था। वह अपने फेंकू से इतना प्रभावित हुआ कि जैसे ही प्रसारण खत्म हुआ, वह मेरे पास आया और बोला, ‘पापा! मैं फेंकू सर से ट्यूशन पढ़ूंगा।’ पहले तो मैं समझ नहीं पाया। यही बात उसने जब दूसरी बार दोहराई, तो मैंने समझा, बच्चा है। किसी ने उससे मजाक किया होगा और वह अब मुझसे मजाक कर रहा है। मैंने बात को टाल दी। शाम को घरैतिन ने उससे खाने को कहा, तो वह यह कहते हुए अपने कमरे में चला गया, ‘जब तक फेंकू सर से ट्यूशन पढ़ाने को पापा तैयार नहीं होते, तब तक मैं न खाना खाऊंगा, न स्कूल जाऊंगा। न नहाऊंगा, न धोऊंगा।’ घरैतिन ने मेरे पास आकर कहा, ‘अरे देखो..यह किससे ट्यूशन पढ़ने की बात कर रहा है।’ घरैतिन की बात सुनते ही मैं बमक उठा, ‘दिमाग खराब हो गया है उसका और तुम्हारा भी। जानती हो, वह किससे ट्यूशन पढ़ने की बात कर रहा है?’ मैंने जब घरैतिन को समझाया, तो उसने खिखियाते हुए कहा, ‘तो बात कर लीजिए न! अगर एकौ-दुई घंटा पढ़ा देंगे, तो सपूत का बेड़ा पार हो जाएगा।’
मैंने घरैतिन को डपटते हुए कहा, ‘कमाल करती हो तुम भी। वह ट्यूशन पढ़ाएंगे? उनके जिम्मे इतने काम हैं कि उसे छोड़कर तुम्हारे सपूत को पढ़ाने बैठेंगे? अरे अभी उन्हें पाकिस्तान को मजा चखाना है। भारत की सीमा को ईरान-इराक तक पहुंचा है।’ मैंने अपने बेटे को बुलाया, ‘बेटा, तुम जिससे ट्यूशन पढ़ने की बात कर रहे हो, पहली बात तो यह संभव नहीं है। अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि वह पढ़ा भी देंगे, तो तुम्हारा बेड़ा गर्क हुआ ही समझो। एक तो उनको इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र की जितनी जानकारी है, उसका लोहा तो पूरी दुनिया मानती है। तुमने भले ही पढ़ा हो कि सिकंदर झेलम तक आने के बाद लौट गया था, लेकिन तुम्हारे ये फेंकू सर सिकंदर को लखनऊ, इलाहाबाद, पटना के रास्ते गुजरात पहुंचने और गुजरातियों द्वारा कुश्ती लड़ने की बात को सिद्ध कर देंगे। उनके पास ऐसे-ऐसे इतिहासकारों की फौज है, जो विलियम शेक्सपीयर को भारतीय बता देंगे। कह देंगे कि अंग्रेज चूंकि भारतीय शब्दों का उच्चारण ठीक ढंग से नहीं कर पाते थे, इसलिए विली मियां शेख पियारे को विलियम शेक्सपीयर बना दिया। बाद में लोगों ने अंग्रेजों के इस झूठ को सही मान लिया।’ इतना कहकर मैं थोड़ी देर सांस लेने के लिए रुका।
मेरी बात सुनकर बेटा थोड़ा सा कन्विंस होता दिखा, तो मैं उत्साह से भर गया। मैंने उसे समझाया, ‘देखो बेटा! यह तो हुई उनके इतिहास ज्ञान की बातें, उनकी दूसरी बातें सुनोगे, तो तुम्हें ताज्जुब होगा कि एक व्यक्ति इतना डींग हांक सकता है। और फिर..वे बड़े आदमी हैं, इतने महत्वपूर्ण पद पर हैं, इससे भी महत्वपूर्ण पद पर उनके जाने की संभावना है। फिर वे मुझ जैसे गुमनाम व्यक्ति के बेटे को इतना समय दे पाएंगे, मुझे नहीं लगता है। इतना ही नहीं, मेरे पास इतना बूता भी तो हो कि मैं तुम्हें उनके प्रदेश ट्यूशन पढ़ने भेज सकूं। तुम्हारा नाम वहीं के किसी स्कूल में लिखवा सकूं।’
मेरी बात सुनकर बेटा शातिराना तरीके से मुस्कुराया और बोला, ‘पापा! आप भी लंतरानी हांकने में काफी चतुर हैं। जहां तक रहने की बात है, तो मैं अहमदाबाद वाली मौसी के पास रहकर भी पढ़ सकता हूं। मैं आपकी यह बात भी मानता हूं कि फेंकू सर का सामान्य ज्ञान थोड़ा विलक्षण है। हमारे सामान्य ज्ञान से उनका सामान्य ज्ञान मैच नहीं करता। यह भी सच है कि वे इस देश के सबसे बड़े फेंकू हैं। जब वे फेंकते हैं, तो फिर यह नहीं देखते कि उनका फेंका गया तीर कहां गिरेगा। फेंकने की कला के वे महारथी ही नहीं, अतिरथी हैं। लेकिन एक बात आपने या शायद पूरे भारत ने महसूस नहीं की है। वे फेंकते कितने आत्मविश्वास के साथ हैं। उनका यही आत्मविश्वास तो काबिलेतारीफ है। वे झूठ भी बोलते हैं, तो कितनी सफाई और दमदारी के साथ। वे जब कहते हैं कि गुजरात को गुजरात बनाने के लिए छप्पन इंच का सीना चाहिए, तो वे यह नहीं सोचते कि छप्पन इंच कितने फीट के बराबर होता है। पापा! मुझे फेंकू सर से यही आत्म विश्वास सीखने जाना है। उनसे यह सीखना है कि झूठ कितनी सफाई से बोला जा सकता है। पापा! एक बात बताऊं। मैंने अपनी पाकेटमनी को बचाकर एक विजिटिंग कार्ड छपवाया है, जिसमें लिखवाया है, श्री चपरकनाती मिश्र, फ्यूचर प्राइम मिनिस्टर आॅफ इंडिया। पापा देखना, अगर फेंकू सर जैसा आत्म विश्वास मुझमें भी आ जाए, तो एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनकर रहूंगा।’ बेटे की बात सुनकर अब मेरी बोलती बंद थी।
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