-अशोक मिश्र
एक दिन थोड़ा देर से आफिस पहुंचा, तो संपादक जी का हरकारा बाहर ही मिल गया। मुझे देखते ही वह पहले तो मुस्कुराया और बोला, ‘पिछले बीस-बाइस मिनट में संपादक जी सवा तेरह बार आपको पूछ चुके हैं।’ मैंने उसे घूरते हुए कहा, ‘तेरह बार तो समझ में आया, लेकिन यह सवा तेरह बार का क्या मतलब है तेरा?’ हरकारे ने बत्तीस इंची मुस्कान बिखेरते हुए कहा, ‘बात यह है गुरु! तेरह बार तो उन्होंने मुझसे पूछा कि आप आए हैं या नहीं? उसके बाद एक बार वे पूछते-पूछते रह गए। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, अरे..वो आया..। इस तरह हुआ न सवा तेरह बार पूछना।’ मैं सीधा संपादक जी के पास पहुंचा, तो वे मुझे देखते ही गुर्राए, ‘कितनी देर से आते हो? खैर..सुनो, तुम्हें अभी दिल्ली के एक गांव कलंदरपुर जाना होगा। सभी चैनलों पर बार-बार एक फ्लैश आ रहा है कि धरने पर कलंदरपुर की भैंस। तुम ऐसा करो, अभी निकल लो। मुझे पूरी स्टोरी शाम तक चाहिए। पूरी..मुकम्मल, हर एंगल के साथ। समझे।’ मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘सर जी! थोड़ी सांस ले लूं, फिर निकलता हूं।’ संपादक जी फट पड़े, ‘रास्ते में सांस लेते रहना। आज सांस नहीं भी लोगे, तो भी चलेगा। शाम तक स्टोरी नहीं मिली, तो समझ लेना कि आज के बाद सांस लेने के काबिल भी नहीं रहोगे। और सुनो..दिल्ली में आजकल बात-बात पर दिए जा रहे धरने का इसे प्रभाव भी कह सकते हो। एकाध नेताओं से भी इस पर बाइट (बयान) ले लेना। जिन दिनों गांधी जी सत्याग्रह आंदोलन कर रहे थे, केरल के किसी गाय-बछड़े या भैंस के भी सत्याग्रह करने की खबर उन दिन उड़ी थी। कोई पुराना कांग्रेसी या अस्सी-नब्बे साल का कोई बुर्जुग मिल जाए, तो उसका भी इंटरव्यू कर लेना। और बाकी..कुछ अपनी अकल भी काम में लाना। अगर थोड़ी बहुत हो, तो..।’
मन ही मन भैंस को कोसता हुआ कैमरामैन के साथ लस्त-पस्त हालत में कलंदरपुर पहुंचा। देखा, हाल में हुई बारिश की वजह से सड़क पर जमा हुए पानी में भैंस मडिया मारे (कहने का मतलब है कि चारों पैर फैलाए) बैठी है। कई चैनलों के रिपोर्टर और कैमरामैन लाइव टेलीकास्ट कर रहे थे। काफी दूर-दराज से लोग धरने पर बैठी उस भैंस को देखने आए हुए थे। कुछ पुलिस वाले बार-बार बेकाबू हो रही भीड़ को काबू में करने का अथक प्रयास कर रहे थे। एक टीवी चैनल का रिपोर्टर अपने दर्शकों को बता रहा था, ‘जैसा कि आप देख ही रहे हैं, यह काले रंग की भैंस जो पानी में लेटी हुई जलपरी जैसी लग रही है। पिछले ढाई घंटे से वह न तो कुछ बोल रही है, न ही कुछ खा-पी रही है। ऐसी जानकारी भी मिली है कि इसी भैंस की पड़नानी ने महात्मा गांधी के टाइम में केरल में सत्याग्रह आंदोलन से प्रेरित होकर बाइस दिन तक सत्याग्रह किया था। तो आइए..कलंदरपुर गांव की भैंस के मालिक राम बरन जी से पूछते हैं कि उन्हें भैंस के धरने पर बैठने का पता कब चला?’ इसके बाद कैमरा पैन होता हुआ एक मुच्छड़ पर टिक जाता है।
कैमरे का फोकस अपनी ओर होता देखकर भैंस के मालिक ने पहले तो अपनी मूंछों पर ताव दिया और फिर अभिमान के साथ बोले, ‘सुबह दूध दुहने के बाद जब मेरा बेटा शर्मीली को रोटी देने आया, तो उसने रोटी खाने से मना कर दिया।’ रिपोर्टर ने बीच में बोलते हुए कहा, ‘शर्मीली मतलब..?’
भैंस के मालिक राम बरन ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘शर्मीली मतलब..यह हमारी भैंस। इसे हम बड़े प्यार से शर्मीली बोलते हैं। मेरा बेटा इसे इतना प्यार करता है कि वह स्कूल जाने से पहले अपना नाश्ता पहले इसे खिलाता है, फिर खुद खाता है। शर्मीली को बहुत प्यार करता है मेरा बेटा। हां, मैं बता रहा था कि सुबह जब मेरा बेटा रोटी खिलाने आया, तो शर्मीली ने रोटी नहीं खाई। मेरे बेटे ने पूछा, बप्पा ने कल दूध कम देने पर तुम्हें दो डंडे लगाए थे, उसके विरोध में क्या धरने पर बैठी हो? बस..भइया! बेटे के पूछते ही शर्मीली ने ‘हां’ में गर्दन हिला दी और सड़क पर बने इस गड़हे में आकर बैठ गई। तब से यह यहीं बैठी हुई है। मेरे बेटे और शर्मीली के बीच यह वार्तालाप चल रहा था, तो सामने से एक रिपोर्टर गुजर रहा था। उसने अपने मोबाइल पर यह सब कुछ रिकार्ड किया और अपने चैनल पर चला दिया। तब से लोगों का सैलाब उमड़ा पड़ रहा है।’
लोगों की बात सुनकर मैंने सोचा, जब इतनी दूर तक आया हूं, तो मैं भी एक छोटा-सा इंटरव्यू कर ही लेता हूं। मैंने मधुर स्वर में शर्मीली को संबोधित करते हुए कहा, ‘राजमहिषी जी! पानी से बाहर निकल आइए, आपको ठंड लग जाएगी। बाहर आकर धरने पर बैठने का कारण बताइए।’ भैंस ने मेरे सवाल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह बैठी दायें-बायें, तो कभी ऊपर-नीचे अपना मुंह हिलाती रही। तभी भीड़ को हटाकर एक व्यक्ति ने मामले में दखल दिया।
‘आप लोग पीछे हटिए, मुझे देखने दीजिए’ कहते हुए उसने भैंस का मुंह पकड़कर मुआयना किया और कैमरे के सामने आकर बोला, ‘मैं पशु चिकित्सक हूं। मैं गारंटी से कह सकता हूं कि भैंस धरने-वरने पर नहीं बैठी है। इसे मुंहपका रोग हो गया है जिसकी वजह से यह खा नहीं पा रही है।’ उसके इतना कहते ही चैनलों के रिपोर्टरों और कैमरामैनों ने शरमाकर अपना तामझाम समेट लिया।
एक दिन थोड़ा देर से आफिस पहुंचा, तो संपादक जी का हरकारा बाहर ही मिल गया। मुझे देखते ही वह पहले तो मुस्कुराया और बोला, ‘पिछले बीस-बाइस मिनट में संपादक जी सवा तेरह बार आपको पूछ चुके हैं।’ मैंने उसे घूरते हुए कहा, ‘तेरह बार तो समझ में आया, लेकिन यह सवा तेरह बार का क्या मतलब है तेरा?’ हरकारे ने बत्तीस इंची मुस्कान बिखेरते हुए कहा, ‘बात यह है गुरु! तेरह बार तो उन्होंने मुझसे पूछा कि आप आए हैं या नहीं? उसके बाद एक बार वे पूछते-पूछते रह गए। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, अरे..वो आया..। इस तरह हुआ न सवा तेरह बार पूछना।’ मैं सीधा संपादक जी के पास पहुंचा, तो वे मुझे देखते ही गुर्राए, ‘कितनी देर से आते हो? खैर..सुनो, तुम्हें अभी दिल्ली के एक गांव कलंदरपुर जाना होगा। सभी चैनलों पर बार-बार एक फ्लैश आ रहा है कि धरने पर कलंदरपुर की भैंस। तुम ऐसा करो, अभी निकल लो। मुझे पूरी स्टोरी शाम तक चाहिए। पूरी..मुकम्मल, हर एंगल के साथ। समझे।’ मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘सर जी! थोड़ी सांस ले लूं, फिर निकलता हूं।’ संपादक जी फट पड़े, ‘रास्ते में सांस लेते रहना। आज सांस नहीं भी लोगे, तो भी चलेगा। शाम तक स्टोरी नहीं मिली, तो समझ लेना कि आज के बाद सांस लेने के काबिल भी नहीं रहोगे। और सुनो..दिल्ली में आजकल बात-बात पर दिए जा रहे धरने का इसे प्रभाव भी कह सकते हो। एकाध नेताओं से भी इस पर बाइट (बयान) ले लेना। जिन दिनों गांधी जी सत्याग्रह आंदोलन कर रहे थे, केरल के किसी गाय-बछड़े या भैंस के भी सत्याग्रह करने की खबर उन दिन उड़ी थी। कोई पुराना कांग्रेसी या अस्सी-नब्बे साल का कोई बुर्जुग मिल जाए, तो उसका भी इंटरव्यू कर लेना। और बाकी..कुछ अपनी अकल भी काम में लाना। अगर थोड़ी बहुत हो, तो..।’
मन ही मन भैंस को कोसता हुआ कैमरामैन के साथ लस्त-पस्त हालत में कलंदरपुर पहुंचा। देखा, हाल में हुई बारिश की वजह से सड़क पर जमा हुए पानी में भैंस मडिया मारे (कहने का मतलब है कि चारों पैर फैलाए) बैठी है। कई चैनलों के रिपोर्टर और कैमरामैन लाइव टेलीकास्ट कर रहे थे। काफी दूर-दराज से लोग धरने पर बैठी उस भैंस को देखने आए हुए थे। कुछ पुलिस वाले बार-बार बेकाबू हो रही भीड़ को काबू में करने का अथक प्रयास कर रहे थे। एक टीवी चैनल का रिपोर्टर अपने दर्शकों को बता रहा था, ‘जैसा कि आप देख ही रहे हैं, यह काले रंग की भैंस जो पानी में लेटी हुई जलपरी जैसी लग रही है। पिछले ढाई घंटे से वह न तो कुछ बोल रही है, न ही कुछ खा-पी रही है। ऐसी जानकारी भी मिली है कि इसी भैंस की पड़नानी ने महात्मा गांधी के टाइम में केरल में सत्याग्रह आंदोलन से प्रेरित होकर बाइस दिन तक सत्याग्रह किया था। तो आइए..कलंदरपुर गांव की भैंस के मालिक राम बरन जी से पूछते हैं कि उन्हें भैंस के धरने पर बैठने का पता कब चला?’ इसके बाद कैमरा पैन होता हुआ एक मुच्छड़ पर टिक जाता है।
कैमरे का फोकस अपनी ओर होता देखकर भैंस के मालिक ने पहले तो अपनी मूंछों पर ताव दिया और फिर अभिमान के साथ बोले, ‘सुबह दूध दुहने के बाद जब मेरा बेटा शर्मीली को रोटी देने आया, तो उसने रोटी खाने से मना कर दिया।’ रिपोर्टर ने बीच में बोलते हुए कहा, ‘शर्मीली मतलब..?’
भैंस के मालिक राम बरन ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘शर्मीली मतलब..यह हमारी भैंस। इसे हम बड़े प्यार से शर्मीली बोलते हैं। मेरा बेटा इसे इतना प्यार करता है कि वह स्कूल जाने से पहले अपना नाश्ता पहले इसे खिलाता है, फिर खुद खाता है। शर्मीली को बहुत प्यार करता है मेरा बेटा। हां, मैं बता रहा था कि सुबह जब मेरा बेटा रोटी खिलाने आया, तो शर्मीली ने रोटी नहीं खाई। मेरे बेटे ने पूछा, बप्पा ने कल दूध कम देने पर तुम्हें दो डंडे लगाए थे, उसके विरोध में क्या धरने पर बैठी हो? बस..भइया! बेटे के पूछते ही शर्मीली ने ‘हां’ में गर्दन हिला दी और सड़क पर बने इस गड़हे में आकर बैठ गई। तब से यह यहीं बैठी हुई है। मेरे बेटे और शर्मीली के बीच यह वार्तालाप चल रहा था, तो सामने से एक रिपोर्टर गुजर रहा था। उसने अपने मोबाइल पर यह सब कुछ रिकार्ड किया और अपने चैनल पर चला दिया। तब से लोगों का सैलाब उमड़ा पड़ रहा है।’
लोगों की बात सुनकर मैंने सोचा, जब इतनी दूर तक आया हूं, तो मैं भी एक छोटा-सा इंटरव्यू कर ही लेता हूं। मैंने मधुर स्वर में शर्मीली को संबोधित करते हुए कहा, ‘राजमहिषी जी! पानी से बाहर निकल आइए, आपको ठंड लग जाएगी। बाहर आकर धरने पर बैठने का कारण बताइए।’ भैंस ने मेरे सवाल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह बैठी दायें-बायें, तो कभी ऊपर-नीचे अपना मुंह हिलाती रही। तभी भीड़ को हटाकर एक व्यक्ति ने मामले में दखल दिया।
‘आप लोग पीछे हटिए, मुझे देखने दीजिए’ कहते हुए उसने भैंस का मुंह पकड़कर मुआयना किया और कैमरे के सामने आकर बोला, ‘मैं पशु चिकित्सक हूं। मैं गारंटी से कह सकता हूं कि भैंस धरने-वरने पर नहीं बैठी है। इसे मुंहपका रोग हो गया है जिसकी वजह से यह खा नहीं पा रही है।’ उसके इतना कहते ही चैनलों के रिपोर्टरों और कैमरामैनों ने शरमाकर अपना तामझाम समेट लिया।
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