-अशोक मिश्र
अवधी भाषी क्षेत्र के किसी गांव के किसी घर के सामने जल रहे कौरे (अलाव) के इर्द-गिर्द बैठे चार व्यक्ति आपस में बतकूचन कर रहे थे। इन लोगों के बीच में कुछ किशोर भी थे, जो इनकी बातों को बड़ी गौर से सुन और गुन रहे थे। वैसे इन किशोरों को बीच में बोलने की इजाजत नहीं थी, लेकिन बीच-बीच में ये अपनी जिज्ञासा किसी न किसी बहाने शांत कर ही लेते थे। कभी मिडिलची (आठवीं कक्षा पास) रह चुके ग्यानू काका ने खैनी फांकते हुए कहा, ‘अरे! तुम लोगों को नहीं मालूम, हमारे देश में ऐसे-ऐसे हवाई जहाज होते थे कि अब क्या बताएं। बच्चे जिद करते थे, महतारियां (माएं) अपने बच्चों को उन हवाई जहाजों पर बिठाने के बाद हाथ में मस्का-रोटी देकर कहती थी कि बच्चा..जाओ, थोड़ी देर सूरज पर कबड्डी खेल आओ, तब तक मैं घर का काम निबटा लूं। गांव भर के बच्चे हवाई जहाज पर बैठे और जहाज यह जा..वह जा..की गति से दो-तीन मिनट में सूरज पर पहुंच जाता। लड़के कबड्डी खेलते और जब यहां घर पर खाना तैयार हो जाता, तो महतारियां मुंह ऊपर करके आवाज देतीं, परमेसरा! आ जा, खाना तैयार है। थोड़ी देर में ‘सूं..ऊं.’ की आवाज होती और जहाज किसी के भी खाली खेत में उतर जाता।’
ग्यानू काका की बात सुनकर कंधई ने अपना सिर हिलाया, ‘हां..काका! हमने तो कहीं पढ़ा है कि राजा भगीरथ के पास तो ऐसा घोड़ा था, जो राजा भगीरथ के मन की बात जान लेता था। उन्हें कहां जाना है, वह बिना बताए जान जाता था। वह तो एक ही पल में सुरलोक, तो दूसरे पल ब्रह्मलोक, तो तीसरे पल ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर अपने महल में लौट आते थे। उनको इतने दूर की बातें सुनाई देती थीं कि अब क्या कहें काका! एक बार का प्रसंग है कि धतींगरासुर ने देवलोक पर आक्रमण किया। देवराज बेचारे लड़ते-लड़ते हार गए, लेकिन धतींगरासुर हार ही न माने। भागे-भागे देवता राजा भगीरथ के पास पहुंचे। उन्होंने बड़ी जोर की हांक लगाई, वहीं देवलोक में रुक, ससुर के नाती। अभी मैं वहीं पहुंचता हूं। उनकी यह आवाज पूरे ब्रह्मांड में इतनी तेज गूंजी कि उसी आवाज की धमक से धतींगरासुर के कान के पर्दे फट गए और वह वहीं मर गया।’ वहीं कौरा (अलाव) ताप रहे लोगों के बीच दबे हुए से ग्यानू काका ने कंधई की बात का अनुमोदन करते हुए कहा, ‘कंधई भाई! सुना है कि जब मोदी की सरकार आ जाएगी, तो फिर से देश में ऐसे ही हवाई जहाज चलने लगेंगे, गांव-गांव में राजा भगीरथ वाले घोड़े मिलने लगेंगे। मेरा लड़का एक दिन मोदी की पार्टी का घोषनापत्तर पढ़ रहा था। उसमें एक जगह लिख था कि पुराने समय में हमारे देश में एक बीघा खेत में सौ-सवा सौ कुंटल अनाज होता था। भाज्जपा वालों के पास वह तकनीक आज भी सुरक्षित है। जैसे ही उनकी सरकार बनी, हम लोगों की तो भइया..बस मौज ही मौज हो जाएगी।’
कौरा ताप रहे बुधई पंडित से रहा नहीं गया, ‘घंटा..मौज हो जाएगी। जो काम गान्हीं बाबा नहीं कर पाए, जवाहर लाल नहरू, इंदिरा गान्हीं नहीं कर पाईं, वह तुम्हारी भाज्जपा कैसे कर लेगी? गान्हीं से बड़ा कोई तपस्वी हुआ है इस देश में? तुम ससुर के नाती खाली झूठ कै देह धरे हो। जिंनगी भर झूठै बोले, पाटी भी झुट्ठन के जुवाइन किहे हौ? तुम्हरे ई भाज्जपा वाले खाली झूठ बोलै के अलावा कोई दूसर बात करते हैं का?’ बुधई पंड़ित ठेठ अवधी में बोल पड़े। बुधई की बात सुनते ही ग्यानू काका तमक उठे, ‘देखो पंडित! खबरदार जो भाज्जपा को झुट्ठों की पार्टी कहा। कांग्रेस वाले तो देश को लूट के घर भर लिए हैं, पिछले साठ साल से एकदम लूट मचाए हैं। बुधई पंडित, बस..चार महीना रुको.. नरसिंह भगवान का अवतार हो चुका है। दो-चार महीने में कांग्रेसी असुरन की राजनीति का नाश नरसिंह भगवान करने वाले हैं। कांग्रेसी चोट्टन की राजनीति का खात्मा नहीं होगा, तब तक इस देश में रामराज्य नहीं आ सकता।’ इतना सुनते ही बुधई पंडित ने घर-परिवार के लोगों को आवाज देते हुए कहा, ‘अरे रामेंद्रा! जरा उठाय लाव तौ लट्ठ। अबहीं इनका बताइत है कि कौन किसका नाश करेगा। ई ग्यानवा जिंदगी भर झूठ की फसल बोता रहा, अब झूठ-झूठ बात कहकर हम सबका भरमावत है। इसका जब तक दिमाग हम ठिकाने नहीं लगा देंगे, तब तक पानी भी पीना हमारे लिए हराम है।’ बुधई पंडित के घर से दोनों बेटे हाथों में लाठी लिए निकल आए और ग्यानू के साथ-साथ कंधई की मां-बहन से नजदीकी रिश्ता कायम करते हुए जमीन पर लट्ठ पटकने लगे। देखते ही देखते दोनों पक्ष के लोग लाठी, भाला, बल्लम लेकर जमा होने लगे।
और फिर वही हुआ, जिसकी आप सभी लोग इस समय कल्पना कर रहे हैं। इस आधुनिक महाभारत में मरा तो कोई नहीं, लेकिन सिर सिर्फ दो लोगों के फूटे, सिर्फ तीन लोगों के हाथों और पैरों की हड्Þडी टूटी, सात लोगों को अस्पताल में उन चोटों के लिए भर्ती कराना पड़ा, जो बाहर से तो नहीं दिखते थे, लेकिन भीतर ही भीतर चोटहिल थे। दोनों पक्ष के बारह लोग थाने की हवालात में जमा हैं। उन्नीस लोग अपना घर-बार छोड़कर फरार हैं। पुलिस इनके नाते-रिश्तेदारों के घरों में छापे मार रही है, दबिश दे रही है। इस मार-पीट में बसपा और सपा के समर्थक भी कूद पड़े हैं क्योंकि बतकूचन के दौरान हुए महाभारत में दो यादव और पांच दलित जातियों के लोग भी घायल हुए थे। ये सभी कुछ ज्यादा नहीं, बीचबचाव करने आए थे। गांव की सियासत में अभी फिलहाल गर्मी है।
अवधी भाषी क्षेत्र के किसी गांव के किसी घर के सामने जल रहे कौरे (अलाव) के इर्द-गिर्द बैठे चार व्यक्ति आपस में बतकूचन कर रहे थे। इन लोगों के बीच में कुछ किशोर भी थे, जो इनकी बातों को बड़ी गौर से सुन और गुन रहे थे। वैसे इन किशोरों को बीच में बोलने की इजाजत नहीं थी, लेकिन बीच-बीच में ये अपनी जिज्ञासा किसी न किसी बहाने शांत कर ही लेते थे। कभी मिडिलची (आठवीं कक्षा पास) रह चुके ग्यानू काका ने खैनी फांकते हुए कहा, ‘अरे! तुम लोगों को नहीं मालूम, हमारे देश में ऐसे-ऐसे हवाई जहाज होते थे कि अब क्या बताएं। बच्चे जिद करते थे, महतारियां (माएं) अपने बच्चों को उन हवाई जहाजों पर बिठाने के बाद हाथ में मस्का-रोटी देकर कहती थी कि बच्चा..जाओ, थोड़ी देर सूरज पर कबड्डी खेल आओ, तब तक मैं घर का काम निबटा लूं। गांव भर के बच्चे हवाई जहाज पर बैठे और जहाज यह जा..वह जा..की गति से दो-तीन मिनट में सूरज पर पहुंच जाता। लड़के कबड्डी खेलते और जब यहां घर पर खाना तैयार हो जाता, तो महतारियां मुंह ऊपर करके आवाज देतीं, परमेसरा! आ जा, खाना तैयार है। थोड़ी देर में ‘सूं..ऊं.’ की आवाज होती और जहाज किसी के भी खाली खेत में उतर जाता।’
ग्यानू काका की बात सुनकर कंधई ने अपना सिर हिलाया, ‘हां..काका! हमने तो कहीं पढ़ा है कि राजा भगीरथ के पास तो ऐसा घोड़ा था, जो राजा भगीरथ के मन की बात जान लेता था। उन्हें कहां जाना है, वह बिना बताए जान जाता था। वह तो एक ही पल में सुरलोक, तो दूसरे पल ब्रह्मलोक, तो तीसरे पल ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर अपने महल में लौट आते थे। उनको इतने दूर की बातें सुनाई देती थीं कि अब क्या कहें काका! एक बार का प्रसंग है कि धतींगरासुर ने देवलोक पर आक्रमण किया। देवराज बेचारे लड़ते-लड़ते हार गए, लेकिन धतींगरासुर हार ही न माने। भागे-भागे देवता राजा भगीरथ के पास पहुंचे। उन्होंने बड़ी जोर की हांक लगाई, वहीं देवलोक में रुक, ससुर के नाती। अभी मैं वहीं पहुंचता हूं। उनकी यह आवाज पूरे ब्रह्मांड में इतनी तेज गूंजी कि उसी आवाज की धमक से धतींगरासुर के कान के पर्दे फट गए और वह वहीं मर गया।’ वहीं कौरा (अलाव) ताप रहे लोगों के बीच दबे हुए से ग्यानू काका ने कंधई की बात का अनुमोदन करते हुए कहा, ‘कंधई भाई! सुना है कि जब मोदी की सरकार आ जाएगी, तो फिर से देश में ऐसे ही हवाई जहाज चलने लगेंगे, गांव-गांव में राजा भगीरथ वाले घोड़े मिलने लगेंगे। मेरा लड़का एक दिन मोदी की पार्टी का घोषनापत्तर पढ़ रहा था। उसमें एक जगह लिख था कि पुराने समय में हमारे देश में एक बीघा खेत में सौ-सवा सौ कुंटल अनाज होता था। भाज्जपा वालों के पास वह तकनीक आज भी सुरक्षित है। जैसे ही उनकी सरकार बनी, हम लोगों की तो भइया..बस मौज ही मौज हो जाएगी।’
कौरा ताप रहे बुधई पंडित से रहा नहीं गया, ‘घंटा..मौज हो जाएगी। जो काम गान्हीं बाबा नहीं कर पाए, जवाहर लाल नहरू, इंदिरा गान्हीं नहीं कर पाईं, वह तुम्हारी भाज्जपा कैसे कर लेगी? गान्हीं से बड़ा कोई तपस्वी हुआ है इस देश में? तुम ससुर के नाती खाली झूठ कै देह धरे हो। जिंनगी भर झूठै बोले, पाटी भी झुट्ठन के जुवाइन किहे हौ? तुम्हरे ई भाज्जपा वाले खाली झूठ बोलै के अलावा कोई दूसर बात करते हैं का?’ बुधई पंड़ित ठेठ अवधी में बोल पड़े। बुधई की बात सुनते ही ग्यानू काका तमक उठे, ‘देखो पंडित! खबरदार जो भाज्जपा को झुट्ठों की पार्टी कहा। कांग्रेस वाले तो देश को लूट के घर भर लिए हैं, पिछले साठ साल से एकदम लूट मचाए हैं। बुधई पंडित, बस..चार महीना रुको.. नरसिंह भगवान का अवतार हो चुका है। दो-चार महीने में कांग्रेसी असुरन की राजनीति का नाश नरसिंह भगवान करने वाले हैं। कांग्रेसी चोट्टन की राजनीति का खात्मा नहीं होगा, तब तक इस देश में रामराज्य नहीं आ सकता।’ इतना सुनते ही बुधई पंडित ने घर-परिवार के लोगों को आवाज देते हुए कहा, ‘अरे रामेंद्रा! जरा उठाय लाव तौ लट्ठ। अबहीं इनका बताइत है कि कौन किसका नाश करेगा। ई ग्यानवा जिंदगी भर झूठ की फसल बोता रहा, अब झूठ-झूठ बात कहकर हम सबका भरमावत है। इसका जब तक दिमाग हम ठिकाने नहीं लगा देंगे, तब तक पानी भी पीना हमारे लिए हराम है।’ बुधई पंडित के घर से दोनों बेटे हाथों में लाठी लिए निकल आए और ग्यानू के साथ-साथ कंधई की मां-बहन से नजदीकी रिश्ता कायम करते हुए जमीन पर लट्ठ पटकने लगे। देखते ही देखते दोनों पक्ष के लोग लाठी, भाला, बल्लम लेकर जमा होने लगे।
और फिर वही हुआ, जिसकी आप सभी लोग इस समय कल्पना कर रहे हैं। इस आधुनिक महाभारत में मरा तो कोई नहीं, लेकिन सिर सिर्फ दो लोगों के फूटे, सिर्फ तीन लोगों के हाथों और पैरों की हड्Þडी टूटी, सात लोगों को अस्पताल में उन चोटों के लिए भर्ती कराना पड़ा, जो बाहर से तो नहीं दिखते थे, लेकिन भीतर ही भीतर चोटहिल थे। दोनों पक्ष के बारह लोग थाने की हवालात में जमा हैं। उन्नीस लोग अपना घर-बार छोड़कर फरार हैं। पुलिस इनके नाते-रिश्तेदारों के घरों में छापे मार रही है, दबिश दे रही है। इस मार-पीट में बसपा और सपा के समर्थक भी कूद पड़े हैं क्योंकि बतकूचन के दौरान हुए महाभारत में दो यादव और पांच दलित जातियों के लोग भी घायल हुए थे। ये सभी कुछ ज्यादा नहीं, बीचबचाव करने आए थे। गांव की सियासत में अभी फिलहाल गर्मी है।
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