अशोक मिश्र
दोनों ओर की टीमें घरेलू मैदान पर अपना-अपना मोर्चा संभाल चुकी थीं। वेलेनटाइन डे के पावन मौके पर यह एक नए किस्म का क्रिकेट मैच स्वत: ही आयोजित हो गया था। इसके लिए किसी स्पांसर की भी जरूरत नहीं पड़ी। इस मैच का सबसे मजेदार नियम यह था कि कोई भी जब चाहे बॉलिंग कर सकता था और जब चाहे बैटिंग। बाकी खिलाड़ी कभी इस ओर से, तो कभी दूसरी से फील्डिंग कर लेते थे। कहने का मतलब यह है कि बॉलिंग या बैटिंग करने का हक दोनों तरफ के कप्तानों को ही था। बाकी सब फील्डर थे।
बात दरअसल यह थी कि मेरे पड़ोसी मुसद्दीलाल और उनकी पत्नी छबीली ने वेलेंटाइन डे के मौके पर एक दूसरे को बड़े प्यार से उपहार दिया और एक दूसरे को निजी किस्म की शुभकामना दी। छबीली ने अपना उपहार बड़े नाजुक किस्म के नखरे के साथ बेटी-बेटे को दिखाया। तभी बेटे ने अंपायर की भूमिका निभाते हुए नो बॉल का इशारा करते हुए कहा, '....पर मम्मी! ऐसा ही गिफ्ट बाजू वाली आंटी को किसी अंकल ने दिया है। वह भी थोड़ी देर पहले। आंटी..सबको दिखा भी रही थीं।Ó बस फिर क्या था? वेलेंटाइन डे का सारा बुखार एक पल में ही उतर गया। जन्मजात प्रतिद्वंद्वी देश के बॉलर की तरह छबीली ने आरोपों की शॉर्टपिच बॉल फेंकी, 'मैं समझ गई..उस कलमुंही को किस नासपीटे ने यह गिफ्ट दिया है। क्यों जी..तुम्हें शर्म नहीं आती। पराई औरतों के साथ नैन-मटक्का करते हुए।Ó
मुसद्दीलाल ने भी शॉर्टपिच बॉल को जरा सा हुक करके बाउंड्री की तरफ उछालते हुए कहा, 'ज्यादा बकवास मत कर..तुम औरतें शक की घुट्टी जन्म से ही पीकर आती हो क्या? मैं अपनी इकलौती साली को हाजिर-नाजिर मानकर कहता हूं कि यह गिफ्ट-शिफ्ट देने का काम बेलज्जत काम मैंने नहीं किया है।Ó मुसद्दीलाल अब भी अपनी पत्नी की आक्रामक बॉलिंग को हलके में ले रहे थे। साली की बात आते ही छबीली ने फुलटॉस फेंकी, 'खबरदार..जो मेरी बहन को इस मामले में घसीटा।Ó इतना कहकर वे कमरे की ओर लपकी और मुसद्दीलाल द्वारा दिया गया गिफ्ट लाकर उनके सिर पर पटकते हुए कहा, 'यह भी ले जाकर अपनी उस बुढिय़ा खूसट वेलेंडाइन (वेलेंटाइन का विलोम) को दे आओ। उसे तो तुम दीदे फाड़-फाड़कर ऐसे देखते हो, मानो कभी औरत देखी ही नहीं थी।Ó यह फुलटॉस मुसद्दीलाल के लिए खतरनाक साबित हुआ और वे आउट हो गए। तभी पिच पर घुस आए किसी उत्पाती दर्शक की तरह बेटी ने मोबाइल हाथ में थामे प्रवेश किया, 'मम्मी..मम्मी..मौसा जी का फोन..लो बात कर लो।Ó बस फिर क्या था? बस फिर क्या था? मुसद्दीलाल ने बॉलिंग संभाल ली। उन्होंने पत्नी छबीली की ओर यार्कर फेंकते हुए कहा, 'कर लो..कर लो..अपने जिज्जू से बातें..कभी मायके जाने पर मुझसे इतने प्यार से बातें नहीं की होगी जितने प्यार से अपने जिज्जू से बतियाती हो। तुम जीजा-साली में क्या खिचड़ी पक रही है, क्या मैं नहीं जानता?Ó तभी सामने वाले घर में बर्तन तोडऩे, गमला पटकने की आवाज आने लगी। पता चला कि वहां भी घरेलू क्रिकेट मैच चालू है, तो इन दोनों ने अपना मैद रद्द कर दिया।
दोनों ओर की टीमें घरेलू मैदान पर अपना-अपना मोर्चा संभाल चुकी थीं। वेलेनटाइन डे के पावन मौके पर यह एक नए किस्म का क्रिकेट मैच स्वत: ही आयोजित हो गया था। इसके लिए किसी स्पांसर की भी जरूरत नहीं पड़ी। इस मैच का सबसे मजेदार नियम यह था कि कोई भी जब चाहे बॉलिंग कर सकता था और जब चाहे बैटिंग। बाकी खिलाड़ी कभी इस ओर से, तो कभी दूसरी से फील्डिंग कर लेते थे। कहने का मतलब यह है कि बॉलिंग या बैटिंग करने का हक दोनों तरफ के कप्तानों को ही था। बाकी सब फील्डर थे।
बात दरअसल यह थी कि मेरे पड़ोसी मुसद्दीलाल और उनकी पत्नी छबीली ने वेलेंटाइन डे के मौके पर एक दूसरे को बड़े प्यार से उपहार दिया और एक दूसरे को निजी किस्म की शुभकामना दी। छबीली ने अपना उपहार बड़े नाजुक किस्म के नखरे के साथ बेटी-बेटे को दिखाया। तभी बेटे ने अंपायर की भूमिका निभाते हुए नो बॉल का इशारा करते हुए कहा, '....पर मम्मी! ऐसा ही गिफ्ट बाजू वाली आंटी को किसी अंकल ने दिया है। वह भी थोड़ी देर पहले। आंटी..सबको दिखा भी रही थीं।Ó बस फिर क्या था? वेलेंटाइन डे का सारा बुखार एक पल में ही उतर गया। जन्मजात प्रतिद्वंद्वी देश के बॉलर की तरह छबीली ने आरोपों की शॉर्टपिच बॉल फेंकी, 'मैं समझ गई..उस कलमुंही को किस नासपीटे ने यह गिफ्ट दिया है। क्यों जी..तुम्हें शर्म नहीं आती। पराई औरतों के साथ नैन-मटक्का करते हुए।Ó
मुसद्दीलाल ने भी शॉर्टपिच बॉल को जरा सा हुक करके बाउंड्री की तरफ उछालते हुए कहा, 'ज्यादा बकवास मत कर..तुम औरतें शक की घुट्टी जन्म से ही पीकर आती हो क्या? मैं अपनी इकलौती साली को हाजिर-नाजिर मानकर कहता हूं कि यह गिफ्ट-शिफ्ट देने का काम बेलज्जत काम मैंने नहीं किया है।Ó मुसद्दीलाल अब भी अपनी पत्नी की आक्रामक बॉलिंग को हलके में ले रहे थे। साली की बात आते ही छबीली ने फुलटॉस फेंकी, 'खबरदार..जो मेरी बहन को इस मामले में घसीटा।Ó इतना कहकर वे कमरे की ओर लपकी और मुसद्दीलाल द्वारा दिया गया गिफ्ट लाकर उनके सिर पर पटकते हुए कहा, 'यह भी ले जाकर अपनी उस बुढिय़ा खूसट वेलेंडाइन (वेलेंटाइन का विलोम) को दे आओ। उसे तो तुम दीदे फाड़-फाड़कर ऐसे देखते हो, मानो कभी औरत देखी ही नहीं थी।Ó यह फुलटॉस मुसद्दीलाल के लिए खतरनाक साबित हुआ और वे आउट हो गए। तभी पिच पर घुस आए किसी उत्पाती दर्शक की तरह बेटी ने मोबाइल हाथ में थामे प्रवेश किया, 'मम्मी..मम्मी..मौसा जी का फोन..लो बात कर लो।Ó बस फिर क्या था? बस फिर क्या था? मुसद्दीलाल ने बॉलिंग संभाल ली। उन्होंने पत्नी छबीली की ओर यार्कर फेंकते हुए कहा, 'कर लो..कर लो..अपने जिज्जू से बातें..कभी मायके जाने पर मुझसे इतने प्यार से बातें नहीं की होगी जितने प्यार से अपने जिज्जू से बतियाती हो। तुम जीजा-साली में क्या खिचड़ी पक रही है, क्या मैं नहीं जानता?Ó तभी सामने वाले घर में बर्तन तोडऩे, गमला पटकने की आवाज आने लगी। पता चला कि वहां भी घरेलू क्रिकेट मैच चालू है, तो इन दोनों ने अपना मैद रद्द कर दिया।
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