अशोक मिश्र
कल शाम को सब्जी मंडी में आलू खरीदते समय अपने पड़ोसी मुसद्दीलाल से मुलाकात हो गई। उन्हें देखते ही मैं चौंक गया। वे एकदम कांग्रेस की तरह लग रहे थे, एकदम लुटे-पिटे से। मैं उनकी बांह पकड़कर भीड़ से अलग ले गया। चेहरे को गौर से निहारते हुए कहा, 'भाई साहब! यह क्या हुआ?Ó वे धीरे से फुसफुसाए, 'पिट गए थे..यार!Ó उनकी इस स्वीकारोक्ति से मैं चौंक उठा। कारण कि वे बिना किसी लाग-लपेट के अपने पिटने की बात स्वीकार कर रहे थे। पिटने की बात सुनते ही मुझे हंसी आ गई। मुझे उनकी उस बुरी दशा पर भी हंसी-ठिठोली सूझ गई, 'किससे पिट गए? छबीली से?Ó
बेचारे मुसद्दीलाल ने निरीह भाव से जवाब दिया, 'नहीं...तुम्हारी भाभी से..Ó उनके मुंह से यह निकलते ही मेरी हंसी छूट गई। मैंने कहा, 'अपनी किसी सखी-सहेली के साथ वेलेंटाइन वीक मना रहे थे या सर्दी में ही फगुनाहट ज्यादा जोर मार गई? वैसे अभी वेलेंटाइन डे या होली तो बहुत दूर है!Ó मेरी बात सुनते ही मुसद्दीलाल गुर्रा उठे, 'मैं तुम्हारी तरह हथेली पर दिल रखकर नहीं घूमता। कुछ सालों बाद घर में बहुभाषी कवि सम्मेलन का प्रस्ताव रखा था पत्नी के सामने। प्रस्ताव तो बिना सदन में पेश हुए ही खारिज हो गया, पिटाई हो गई, सो अलग से।Ó
मुसद्दीलाल तो आज धमाके पर धमाके किए जा रहे थे। मैंने किसी कछुए की तरह गंभीरता ओढ़ ली, 'पर भाई..घर में कवि सम्मेलन कराने की बात में ऐसा क्या है कि भाभी जी आपको पीटने लगीं। यह तो अच्छी बात है कि घर में कवि सम्मेलन हो और मोहल्ले-टोले के लोग उसका आनंद उठाएं। आप मुझे पूरी बात बताइए।Ó
मुसद्दीलाल ने गहरी सांस खींची और कहने लगे, 'आज रात में मैंने तुम्हारी भाभी से कहा, मैं पंद्रह-बीस सालों बाद घर में ही दस भाषाओं का कवि सम्मेलन कराने की योजना बना रहा हूं। तुम्हारी भाभी ने पूछा, कैसे? तो मैंने कहा कि दो बच्चे तो पहले से ही हमारे हैं। आठ बच्चे और पैदा कर लेते हैं। इनको पढ़ा-लिखाकर विभिन्न देशों में सेटल कर देते हैं। ये सारे बच्चे जिस देश में रहेंगे, वहां की लड़के-लड़कियों से शादी कर लेंगे। जब बेटे-बेटियां हमारी बहुओं और दामादों के साथ छुट्टियां मनाने हमारे पास आया करेंगे, तो दस भाषाओं का कवि सम्मेलन वैसे ही हमारे घर में हो जाया करेगा। एक बहू चीनी भाषा बोलेगी, दूसरी अंग्रेजी। एक दामाद रूसी बोलेगा, दूसरा फ्रेंच। सोचो..कितना मजा आएगा। मैं तो अभी से इसकी कल्पना करके रोमांच महसूस कर रहा हूं। बस..अभी मेरा प्रस्ताव पूरा भी नहीं हुआ था कि तुम्हारी भाभी ने सिरहाने रखा हुआ पीतल का लोटा मेरे सिर पर पटकते हुए कहा, नासपीटे! दो बच्चों को पैदा करने, पालने-पोसने में ही मेरी दुर्गति हुई जा रही है, तुझे दस बच्चे पैदा करने की सूझ रही है। खुद..पैदा कर सकता है, तो दो दर्जन बच्चे पैदा कर ले। मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन खबरदार..अब अगर दोबारा बच्चों के बारे में सपने में भी सोचा, तो....। इसके बाद क्या हुआ होगा..तुम समझ सकते हो।Ó मुसद्दीलाल की बात सुनकर मेरा मुंह लटक गया।
No comments:
Post a Comment