Saturday, February 28, 2015

घरैतिन का कैजुअल लीव

अशोक मिश्र 
मैं जैसे ही आफिस से घर पहुंचा, चाय की प्याली के साथ एक कागज थमाकर घरैतिन फिर किचन में घुस गईं। मैंने चाय की प्याली उठाई और चुस्कियां लेकर पीने लगा। थोड़ी देर बाद मेरी निगाह उस कागज पर गई, तो उत्सुकतावश मैंने उसे उठा लिया। उसे पढ़ते ही मेरे अवसान ढीले हो गए। मैं बौखलाकर चिल्लाया, 'अमां यार घरैतिन! यह क्या है?Ó घरैतिन ने किचन से ही ऊंचे सुर में जवाब दिया, 'लीव अप्लीकेशन..आपको पढऩा नहीं आता है क्या? पढ़ लीजिए, मैंने कारण भी लिखा है।Ó मैं उस कागज को लेकर किचन के दरवाजे पर खड़ा हो गया, 'अमां यार..यह क्या बात हुई..और फिर..तुम कोई कांग्रेस की उपाध्यक्ष हो कि जब चाहे छुट्टी ले लो..अज्ञातवास में चली जाओ? कोई छुट्टी-वुट्टी नहीं मिलेगी...समझी!Ó
मेरी बात सुनकर घरैतिन हंस पड़ी, 'परिवार के माननीय अध्यक्ष और मेरे पतिदेव जी...मैंने आपसे छुट्टी मांगी नहीं है। बस आपको सूचित किया है, ताकि कल आपसे कोई पूछे कि आपकी पत्नी कहां है, तो आप उसको जवाब दे सकें।Ó 'लेकिन यह क्या..होली के मौके पर आपको छुट्टी पर जाने की क्या सूझी? आप बाद में भी जा सकती थीं..मेरे बच्चों की अम्मा..आप क्यों मेरी मिट्टी पलीद करने पर तुली हुई हैं? कल होली है..आज शाम तक मेरी सालियां-सलहजें, भाई-भाभी और भतीजे-भतीजियां आने वाले हैं, ऐसे संकट के समय आपका छुट्टी पर जाना कहां तक उचित है?Ó अब मैं अपनी सारी हेकड़ी भूल चुका था। मुझे लगा कि इस समय झुक लेने में ही भलाई है। वैसे भी जीवन भर झुकना पति की नियति में ही होता है। अंग्रेज शायद इन मामलों में हमसे ज्यादा समझदार थे, तभी तो उन्होंने अंग्रेजी में पति के लिए शब्द गढ़ा 'हसबैंडÓ यानी वह बैंड जो हंसकर बजे।
घरैतिन विपक्षी दलों के नेताओं की तरह व्यंग्यात्मक ढंग से मुस्कुराईं, 'मेरी मांगों पर जब केंद्र सरकार की तरह हीलाहवाली करते रहे, तो मुझे भी अन्ना हजारे बनने पर मजबूर होना पड़ा। देश के युवराज तो बिना बताए गायब हो गए, मैं तो बाकायदा सूचित करके छुट्टी पर जा रही हूं। और सुनिए, यह जो चाय आप पी रहे हैं, वह मेरे छुट्टी पर जाने से पहले की है। अब आप समझिए कि मैं हूं ही नहीं। इसलिए..बराय मेहरबानी..खाने-पीने से लेकर कपड़े-लत्ते तक का इंतजाम खुद कीजिए।Ó घरैतिन के तेवर देखते हुए मैंने हथियार रख देने में ही भलाई समझी। इस पर वे बोलीं, 'तो मैं यह मान लूं कि शाम तक बनारसी साड़ी मेरे सामने होगी। मेरी बहनों और भाभियों से ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करेंगे, दूर से ही उन पर रंग और गुलाल डालेंगे। पिछले साल की तरह छिछोरी हरकतें नहीं करेंगे। पड़ोसन छबीली के साथ होली नहीं खेलेंगे। अपनी भाभी से बहुत ज्यादा लप्पो-झप्पो नहीं करेंगे।Ó घरैतिन की सालियों-सलहजों और भाभी के संबंध में लगाए गए प्रतिबंध पर मुझे ताव आ गया, 'अरे यार..होली पर इनके साथ हुड़दंग नहीं करूंगा, मस्ती नहीं करूंगा, तो क्या बैठकर मजीरा बजाऊंगा। बस..बहुत हो चुका..तुम्हें छुट्टी पर जाना है, तो जाओ। मैं तुम्हारी छुट्टी मंजूर करता हंू।Ó इतना कहकर मैं घर के बाहर आ गया।

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