मुझे कानपुर जाने वाली ट्रेन पकडऩी थी, तो भागकर दिल्ली रेलवे स्टेशन गया। टिकट खरीदने के लिए पसीना पोछता हुआ लाइन में खड़ा हो गया। काफी देर तक जब लाइन में लगे व्यक्ति नहीं खिसके, तो मैं बेचैन होने लगा। गाड़ी छूटने में मुश्किल से आधा घंटा बचा था। मैंने आगे वाले से पूछा, ‘भाई साहब..यह लाइन खिसक क्यों नहीं रही है?’ उसने मुझे घूरते हुए कहा, ‘मुझे क्या पता..लाइन में लगा हूं, जब नंबर आएगा, तो टिकट ले लूंगा।’ मैं सिटपिटाकर रह गया। उससे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई। जब दस मिनट और गुजरने के बाद लाइन जस की तस रही, तो मेरा धैर्य जवाब देने लगा। मैंने उस आदमी से कहा, ‘मैं आपके पीछे लाइन में लगा हुआ हूं। अभी देखकर आता हूं कि क्या माजरा है?’ मैं आगे पहुंचा, तो देखा कि टिकट बांटने वाला नदारद है। फिर नजर दौड़ाई, तो पता लगा कि किसी भी टिकट खिडक़ी पर कर्मचारी नहीं हैं। मैंने सबसे आगे वाले से पूछा, ‘यह टिकट बांटने वाला कहां गया है?’
उस आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘योगा करने..सरकारी आदेश आया है कि हर सरकारी आदमी घंटे-दो घंटे योगा करेगा। देश के कर्मचारियों का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। जब कर्मचारी स्वस्थ रहेंगे, तो देश स्वस्थ रहेगा और जब देश स्वस्थ रहेगा, तो अच्छे दिन समझो आ गए।’ आगे वाला आदमी शायद इंतजार करते-करते दार्शनिक हो गया था। मैं प्लेटफॉर्म की ओर भागा। रास्ते में मैंने अपना बैग स्कैनर पर रखना चाहा, तो देखा कि लोगों की जेब से पर्स तक निकाल कर देख लेने वाले सुरक्षा कर्मी भी गायब हैं। थोड़ी दूर पर एक मोटा थुलथुल सुरक्षा कर्मी खड़ा दायें बायें झूम रहा था। मैं उसके पास पहुंचा और जिम्मेदार नागरिक की तरह अपना बैग खोलते हुए कहा, ‘आप मेरा बैग चेक कर लीजिए, वैसे इसमें कुछ है नहीं।’ सुरक्षा कर्मी ने झूमना बंद नहीं किया और गुर्राया, ‘अबे भाग..योग करने दे। नहीं तो सरकारी काम में बाधा डालने के अपराध में अंदर कर दंूगा।’ हांफता कांपता प्लेटफार्म पर पहुंचा, तो देखा कि प्लेटफार्म पर ही गार्ड और ड्राइवर कागज बिछाए योगा कर रहे हैं। अब मुझे विश्वास हो गया कि बस..कुछ ही दिनों में अपना देश पूरी दुनिया में ‘योगगुरु’ होने वाला है।
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