Monday, June 8, 2015

पीकू से सीखो

-अशोक मिश्र
मेरे एक पड़ोसी हैं मुसद्दी लाल। जब से वे फिल्म 'पीकू' देखकर आए हैं, उनका तो जैसे तकिया कलाम हो गया है, 'पीकू से सीखो।' पीकू ऐसी है, पीकू वैसी है। पीकू ऐसे बोलती है, तो पीकू वैसे चलती है। मतलब कि हर बात में बस पीकू ही पीकू। पीकू न हुई, मानो किसी पंडित-पुजारी की सुमरिनी हो गई जिसको हर समय मुसद्दीलाल फेरते रहते हैं। वे अगर किसी से राजनीति पर बातचीत कर रहे हों, तो घूम फिर वे पीकू पर ही आ जाते हैं, 'अमा यार...अगर एक बार पीकू राजनीति में आ जाए, तो इस देश से भ्रष्टाचार का तो नामो निशान समझ मिट ही गया। उसको तो कोई घोटाला करना है नहीं। अच्छे भले मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है, बढिय़ा कमाती है। शादी-शूदी की नहीं। बस ले-दे कर एक बाप है। तो इन बाप-बेटी को खर्चे के लिए कितना पैसा चाहिए? एक अच्छा खासा ब्वायफ्रेंड है, जो उस पर लट्टू होकर कुछ न कुछ उड़ाता ही होगा। फिर कोई घोटाला-शोटाला करने की जरूरत ही क्या है?'
मुसद्दी लाल के एक बेटा और एक ही बेटी है। प्यारी सी पत्नी है, लेकिन जैसे फिल्म देखकर आने के बाद उनके लिए ये सब बेकार। उन्होंने पानी पीने की इच्छा जताई और मानो थोड़ी देर हो गई, तो वे गुर्राते हुए बोलते हैं, 'इतनी देर हो गई..कब से प्यासा बैठा हुआ हूं। तुम लोगों को तो जैसे मेरा कोई ख्याल ही नहीं है। पीकू को देखो..अपने पिता का कितना ख्याल रखती है, बेचारी।'  उनकी इस आदत से सब परेशान..। सनक की सीमा तक उनके सिर पर छाई हुई है पीकू। अभी कल की ही बात है। मेरा बेटा मोहल्ले के पार्क में क्रिकेट खेल रहा था। उसके साथी ने बॉल को जोर से मारा, संयोग से उधर से आ रहे मुसद्दीलाल के पैरों से बॉल टकरा गई। मुसद्दीलाल का पारा सातवें आसमान पर। बेटा उनके पास पहुंचा और 'अंकल नमस्ते' कहकर बाल उठाने लगा, तो उन्होंने गुर्राते हुए कहा, 'अगर तुम्हारी यह बाल मेरे सिर पर लग जाती तो?' मेरे बेटे ने सिटपिटाकर जवाब दिया, 'लेकिन अंकल..लगी तो नहीं न!'
'मान लो, लग जाती तो? फिर तो मैं गया था बारह के भाव..तुम्हारी बाल लगने से मेरी मौत भी हो सकती थी? तुम्हारे क्रिकेट के चक्कर में मेरा तो रामनाम सत्य हो जाता।' इतना कहकर उन्होंने बेटे से पूछा, 'तुम पढऩे जाते हो? किस क्लास में पढ़ते हो?' मेरे बेटे ने शालीनता से जवाब दिया, 'हां..छठवीं में।'
'फिर तुम्हारा यह हाल है...दिन भर मटरगश्ती करते फिरते हो। शाम को आता हूं, तुम्हारे घर..करता हूं तुम्हारे बाप से शिकायत..सीखो..पीकू से सीखो..तुम्हारे जितनी थी पीकू, तो सिर्फ पढऩे के सिवाय उसे कुछ नहीं आता था। तुम लोगों की तरह दिन भर उछल-कूद नहीं मचाती थी। तभी तो मल्टी नेशनल कंपनी में काम पा गई।' मुसद्दीलाल बड़बड़ाते हुए अपने घर चले गए।
आज सुबह बैठा मैं अखबार पढ़ रहा था कि तभी हड़बड़ाते हुए मुसद्दीलाल मेरे घर में घुसे। मैंने नमस्कार किया, तो वे मेरी बांह पकड़कर बोले, 'आप जरा मेरे घर चलिए, देखिए मेरे सपूत मेरी नाक कटाने पर तुले हैं।' उनकी हड़बड़ाहट देख में भी भागकर उनके घर गया। देखा एक खूबसूरत युवती का हाथ पकड़े उनका सपूत खड़ा है। मैंने शांति से पूछा, 'बेटे..यह कौन है?'
बेटे ने बेहद गुस्से से कहा, 'यह मेरी गर्लफ्रेंड है। मैंने अब पीकू से सीख लिया है। हम दोनों अब इसी घर में रहेंगे..बिना किसी सामाजिक बंधन में। पिता जी...जब बात-बात में कहते हैं कि पीकू से सीखो..तो अंकल..आज मैंने पीकू से सीख लिया।' इसके बाद तो मुसद्दीलाल का चेहरा देखने लायक था। मैं बिना कुछ बोले घर लौट आया।

1 comment:

  1. आप ने बहुत अच्छी तरह से लिखा है और आखिर की लाइनों में तो आपने कमाल ही कर दिया... वाह बहुत खूब!

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