-अशोक मिश्र
पता नहीं क्यों, आज मुझे सबसे ज्यादा गुस्सा स्टिंग आपरेशन चलाने वालों पर आ रहा है। दुनिया में पहला स्टिंग आपरेशन चलाने वाला अगर मुझे मिल जाता, तो उसके कान के नीचे दो-चार कंटाप लगाकर लाल कर देता। पहला स्टिंग आपरेशन चलाने वाले ने देश-दुनिया के प्रेमियों के लिए कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है, अगर वह समझ जाता तो शायद स्टिंग आपरेशन से तौबा कर लेता। मेरी नजर में स्टिंग आपरेशन के सूत्रधार दो ही व्यक्ति हो सकते हैं, मुनि शिरोमणि नारद या फिर धृतराष्ट्र चैनल के कैमरा मैन विद रिपोर्टर संजय। आज तक पत्रकारिता के ज्ञात इतिहास के मुताबिक दुनिया के सबसे पहले पत्रकार और टीवी के सबसे पहले कैमरामैन विद रिपोर्टर महाराज धृतराष्ट्र के सारथी संजय थे। संजय धृतराष्ट्र चैनल के पेड इंप्लाई थे और रोज चैनल में उनका आंखों देखा हाल प्रसारित होता था। सुना है कि महाभारत युद्ध के बाद चैनल बंद कर दिया गया था, लेकिन नारद तो अपने जीवन के अंतिम समय तक पत्रकारिता के फील्ड में जमे रहे। उस समय आज की तरह अट्ठावन या साठ साल की उम्र में रिटायर कर देने का कोई नियम तो था नहीं। उस पर नारद जी का बर्थ सर्टिफिकेट भी नहीं बना था। जब भी उनके रिटायरमेंट की बात चलती, तो झट से कह देते थे कि साठ का हो जाऊंगा, तो खुद ही रिटायर हो जाऊंगा। मेरे कैल्कुलेशन के मुताबिक, नारद जी कई बार स्टिंग आपरेशन चलाकर देवों और दानवों के बीच झगड़ा करा चुके थे। कई बार देवराज इंद्र को नारद जी की वजह से देवलोक छोड़कर मृत्युलोक आना पड़ा था। उस समय नारद जी का आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाला कार्यक्रम ‘वाइस आफ नारद’ काफी लोकप्रिय हुआ था।
इधर इक्कीसवीं सदी में किसी खुराफाती पत्रकार ने स्टिंग आपरेशन की मृतप्राय परंपरा को पुनर्जीवित कर दिया है। आजकल तो स्टिंग आपरेशन चलाने वालों की चांदी है। इन लोगों ने अपनी दुकान तो चमका ली, लेकिन दूसरों की दुकान के टिमटिमाते बल्ब फ्यूज हो गए हैं, इसकी ओर ध्यान नहीं दिया है। स्टिंग आॅपरेशन ने उन पत्नियों के हाथ में ब्रह्मास्त्र थमा दिया है, जिन्हें अपने पति के ‘अच्छे’ चाल चलन का थोड़ा-सा भी यकीन है। पति को आॅफिस से आने में दस-बारह मिनट देर हुई नहीं कि पत्नी की पूछताछ चालू हो गई। इतनी देर कहां लगा दी? सड़क पर चलते समय सीधे क्यों नहीं देखते? चकरमकर दायें-बायें क्यों देखते हो? कल मिसेज वर्मा से बहुत हंस-हंसकर बतिया रहे थे, क्या बातें हो रही थीं तुम दोनों के बीच? परसों तुम्हारे आगे चल रही लड़की कौन थी? कल मेरी मौसेरी बहन बबिता बता रही थी कि चार नंबर की बस में तुम किसी लड़की की बगल में बैठकर गप्प लड़ाते हुए आफिस जाते हो। कल से चार नंबर की बस से जाने की बजाय टैंपो से आफिस जाओगे, समझे! मुझे तो तुम्हारी इस शर्मनाक करतूत का पता ही नहीं चलता। अगर बबिता कल तुम्हें उस कलमुंही के साथ गपियाते हुए न देख लेती।..अब भला बेचारे पति को क्या मालूम कि आगे-आगे चलने वाली लड़की कौन थी और कहां से आ रही थी? किसी से हंसकर दो-चार बातें कर लेना, इश्क लड़ाना है क्या?
अब मुझे ही लीजिए। जब भी कहीं से घूमकर आता हूं, तो भले ही किसी की मैय्यत में शामिल होने गया होऊं, घरैतिन की घूरती आंखें स्टिंग आपरेशन में उपयोग किए जाने वाले कैमरे के लेंस की तरह मुआयना करती हैं। कमीज या कोट के दोनों कंधों पर किसी के बाल या कोई और निशानी बड़ी सूक्ष्मता से तलाशे जाते हैं, जेबों की तलाशी इस तरह ली जाती है, मानो किसी देशद्रोही के खिलाफ कोई सुबूत खोजा जा रहा हो। जब भी घरैतिन किसी अखबार में छपे स्टिंग आपरेशन की खबर पढ़कर मुस्कुराती हैं, तो सच मानिए, मेरे होश गुम हो जाते हैं। पता नहीं कब और किससे चोंच लड़ाता पकड़ लिया जाऊं। पहले बात-बात पर मस्का मारने वाली बीवी अब रह-रहकर दहाड़ती है, गुर्राती है।
कल की ही बात है। बारह वर्षीय बेटे टिल्लू को लेकर मैं सब्जी खरीदने गया। वहां संयोग से कद्दू खरीदती छबीली से मुलाकात हो गई। दुआ-सलाम के बाद वह टिल्लू को लेकर दिलाने चली गईं और मैं सब्जी खरीदने लगा। बेटा लौटा, तो उसके पास कई तरह के खिलौने और चाकलेट के पैकेट्स थे। इसके बाद हम दोनों लौट पड़े। लौटते समय बेटे ने मुझसे कॉपी खरीदने के लिए दस रुपये मांगे, तो मैंने दे दिए। घर पहुंचकर सब्जियों का थैला किचन में रखा और कमरे में बैठकर टीवी देखने लगा। मां-बेटे आपस में बतियाने लगे। फिर पता नहीं क्या हुआ कि घरैतिन पाकिस्तानी फौज की तरह एकाएक झपटीं, ‘अच्छा तो अब सब्जी मंडी में इश्क फरमाया जाने लगा है। बुढ़ापे में प्रेम घरौंदा बसाया जा रहा है।’ मैं भौंचक्का रह गया। तभी अपनी मम्मी के पीछे खड़े साहबजादे ने नहले पर दहला जड़ा, ‘और मम्मी, पापा ने मुझे दस रुपये की और छबीली आंटी ने खिलौनों-चाकलेट्स की रिश्वत दी, ताकि यह बात मैं आपको न बताऊं।
अब भला मैं दस रुपये के लिए अपना ईमान क्यों खराब करूं, जबकि आप बीस रुपये देने का वायदा कर चुकी हैं।’ मामला समझ में आते ही मेरे होश उड़ गए। मुझे लगाकि आज मैं बलि का बकरा बना दिया जाऊंगा। ये दोनों मां-बेटे मेरी किसी भी दलील और अपील को सुने बिना ही सूली पर चढ़ा देंगे। इसी बौखलाहट में मैं बेटे पर झपट पड़ा, ‘अबे तुझे शर्म नहीं आती झूठ बोलते हुए..रुक जा, तेरी खाल खींचता हूं। नालायक।’ बेटे के आगे घरैतिन ढाल बनकर खड़ी हो गईं, ‘खबरदार! जो बेटे को टेढ़ी नजर से देखा..एक तो पराई औरतों से इश्क फरमाते हो और बेटे को डांटते हो। आपको शर्म आनी चाहिए। आप क्या समझते हैं कि आप बाहर इश्क फरमाते रहेंगे और मुझे पता ही नहीं चलेगा।’
‘और मम्मी..छबीली आंटी ने मेरे जिस गाल पर पप्पी ली थी, डैडी उस गाल को काफी देर तक सहलाते रहे हैं। मम्मी, कल पापा छबीली आंटी के साथ शायद फिल्म देखने जाएं। छबीली आंटी इशारे से बता रही थीं कि कल कहां मिलना है।’ बेटा मेरी भट्ठी बुझाने पर ही तुला था। इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कर सकते हैं। कोई ऐसी-वैसी बात न होते हुए भी मुझे दोबारा ऐसा अकृत्य (जो कभी किया ही न हो) न करने की कसम खानी पड़ी।
पता नहीं क्यों, आज मुझे सबसे ज्यादा गुस्सा स्टिंग आपरेशन चलाने वालों पर आ रहा है। दुनिया में पहला स्टिंग आपरेशन चलाने वाला अगर मुझे मिल जाता, तो उसके कान के नीचे दो-चार कंटाप लगाकर लाल कर देता। पहला स्टिंग आपरेशन चलाने वाले ने देश-दुनिया के प्रेमियों के लिए कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है, अगर वह समझ जाता तो शायद स्टिंग आपरेशन से तौबा कर लेता। मेरी नजर में स्टिंग आपरेशन के सूत्रधार दो ही व्यक्ति हो सकते हैं, मुनि शिरोमणि नारद या फिर धृतराष्ट्र चैनल के कैमरा मैन विद रिपोर्टर संजय। आज तक पत्रकारिता के ज्ञात इतिहास के मुताबिक दुनिया के सबसे पहले पत्रकार और टीवी के सबसे पहले कैमरामैन विद रिपोर्टर महाराज धृतराष्ट्र के सारथी संजय थे। संजय धृतराष्ट्र चैनल के पेड इंप्लाई थे और रोज चैनल में उनका आंखों देखा हाल प्रसारित होता था। सुना है कि महाभारत युद्ध के बाद चैनल बंद कर दिया गया था, लेकिन नारद तो अपने जीवन के अंतिम समय तक पत्रकारिता के फील्ड में जमे रहे। उस समय आज की तरह अट्ठावन या साठ साल की उम्र में रिटायर कर देने का कोई नियम तो था नहीं। उस पर नारद जी का बर्थ सर्टिफिकेट भी नहीं बना था। जब भी उनके रिटायरमेंट की बात चलती, तो झट से कह देते थे कि साठ का हो जाऊंगा, तो खुद ही रिटायर हो जाऊंगा। मेरे कैल्कुलेशन के मुताबिक, नारद जी कई बार स्टिंग आपरेशन चलाकर देवों और दानवों के बीच झगड़ा करा चुके थे। कई बार देवराज इंद्र को नारद जी की वजह से देवलोक छोड़कर मृत्युलोक आना पड़ा था। उस समय नारद जी का आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाला कार्यक्रम ‘वाइस आफ नारद’ काफी लोकप्रिय हुआ था।
इधर इक्कीसवीं सदी में किसी खुराफाती पत्रकार ने स्टिंग आपरेशन की मृतप्राय परंपरा को पुनर्जीवित कर दिया है। आजकल तो स्टिंग आपरेशन चलाने वालों की चांदी है। इन लोगों ने अपनी दुकान तो चमका ली, लेकिन दूसरों की दुकान के टिमटिमाते बल्ब फ्यूज हो गए हैं, इसकी ओर ध्यान नहीं दिया है। स्टिंग आॅपरेशन ने उन पत्नियों के हाथ में ब्रह्मास्त्र थमा दिया है, जिन्हें अपने पति के ‘अच्छे’ चाल चलन का थोड़ा-सा भी यकीन है। पति को आॅफिस से आने में दस-बारह मिनट देर हुई नहीं कि पत्नी की पूछताछ चालू हो गई। इतनी देर कहां लगा दी? सड़क पर चलते समय सीधे क्यों नहीं देखते? चकरमकर दायें-बायें क्यों देखते हो? कल मिसेज वर्मा से बहुत हंस-हंसकर बतिया रहे थे, क्या बातें हो रही थीं तुम दोनों के बीच? परसों तुम्हारे आगे चल रही लड़की कौन थी? कल मेरी मौसेरी बहन बबिता बता रही थी कि चार नंबर की बस में तुम किसी लड़की की बगल में बैठकर गप्प लड़ाते हुए आफिस जाते हो। कल से चार नंबर की बस से जाने की बजाय टैंपो से आफिस जाओगे, समझे! मुझे तो तुम्हारी इस शर्मनाक करतूत का पता ही नहीं चलता। अगर बबिता कल तुम्हें उस कलमुंही के साथ गपियाते हुए न देख लेती।..अब भला बेचारे पति को क्या मालूम कि आगे-आगे चलने वाली लड़की कौन थी और कहां से आ रही थी? किसी से हंसकर दो-चार बातें कर लेना, इश्क लड़ाना है क्या?
अब मुझे ही लीजिए। जब भी कहीं से घूमकर आता हूं, तो भले ही किसी की मैय्यत में शामिल होने गया होऊं, घरैतिन की घूरती आंखें स्टिंग आपरेशन में उपयोग किए जाने वाले कैमरे के लेंस की तरह मुआयना करती हैं। कमीज या कोट के दोनों कंधों पर किसी के बाल या कोई और निशानी बड़ी सूक्ष्मता से तलाशे जाते हैं, जेबों की तलाशी इस तरह ली जाती है, मानो किसी देशद्रोही के खिलाफ कोई सुबूत खोजा जा रहा हो। जब भी घरैतिन किसी अखबार में छपे स्टिंग आपरेशन की खबर पढ़कर मुस्कुराती हैं, तो सच मानिए, मेरे होश गुम हो जाते हैं। पता नहीं कब और किससे चोंच लड़ाता पकड़ लिया जाऊं। पहले बात-बात पर मस्का मारने वाली बीवी अब रह-रहकर दहाड़ती है, गुर्राती है।
कल की ही बात है। बारह वर्षीय बेटे टिल्लू को लेकर मैं सब्जी खरीदने गया। वहां संयोग से कद्दू खरीदती छबीली से मुलाकात हो गई। दुआ-सलाम के बाद वह टिल्लू को लेकर दिलाने चली गईं और मैं सब्जी खरीदने लगा। बेटा लौटा, तो उसके पास कई तरह के खिलौने और चाकलेट के पैकेट्स थे। इसके बाद हम दोनों लौट पड़े। लौटते समय बेटे ने मुझसे कॉपी खरीदने के लिए दस रुपये मांगे, तो मैंने दे दिए। घर पहुंचकर सब्जियों का थैला किचन में रखा और कमरे में बैठकर टीवी देखने लगा। मां-बेटे आपस में बतियाने लगे। फिर पता नहीं क्या हुआ कि घरैतिन पाकिस्तानी फौज की तरह एकाएक झपटीं, ‘अच्छा तो अब सब्जी मंडी में इश्क फरमाया जाने लगा है। बुढ़ापे में प्रेम घरौंदा बसाया जा रहा है।’ मैं भौंचक्का रह गया। तभी अपनी मम्मी के पीछे खड़े साहबजादे ने नहले पर दहला जड़ा, ‘और मम्मी, पापा ने मुझे दस रुपये की और छबीली आंटी ने खिलौनों-चाकलेट्स की रिश्वत दी, ताकि यह बात मैं आपको न बताऊं।
अब भला मैं दस रुपये के लिए अपना ईमान क्यों खराब करूं, जबकि आप बीस रुपये देने का वायदा कर चुकी हैं।’ मामला समझ में आते ही मेरे होश उड़ गए। मुझे लगाकि आज मैं बलि का बकरा बना दिया जाऊंगा। ये दोनों मां-बेटे मेरी किसी भी दलील और अपील को सुने बिना ही सूली पर चढ़ा देंगे। इसी बौखलाहट में मैं बेटे पर झपट पड़ा, ‘अबे तुझे शर्म नहीं आती झूठ बोलते हुए..रुक जा, तेरी खाल खींचता हूं। नालायक।’ बेटे के आगे घरैतिन ढाल बनकर खड़ी हो गईं, ‘खबरदार! जो बेटे को टेढ़ी नजर से देखा..एक तो पराई औरतों से इश्क फरमाते हो और बेटे को डांटते हो। आपको शर्म आनी चाहिए। आप क्या समझते हैं कि आप बाहर इश्क फरमाते रहेंगे और मुझे पता ही नहीं चलेगा।’
‘और मम्मी..छबीली आंटी ने मेरे जिस गाल पर पप्पी ली थी, डैडी उस गाल को काफी देर तक सहलाते रहे हैं। मम्मी, कल पापा छबीली आंटी के साथ शायद फिल्म देखने जाएं। छबीली आंटी इशारे से बता रही थीं कि कल कहां मिलना है।’ बेटा मेरी भट्ठी बुझाने पर ही तुला था। इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कर सकते हैं। कोई ऐसी-वैसी बात न होते हुए भी मुझे दोबारा ऐसा अकृत्य (जो कभी किया ही न हो) न करने की कसम खानी पड़ी।
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