-अशोक मिश्र
उस्ताद गुनहगार के घर पहुंचा, तो देखा कि ज्योतिषाचार्य मुसद्दीलाल मेज पर अपना पोथी-पत्रा बिछाए गंभीर चिंतन में डूबे हुए हैं। मुझे देखकर भी उन्होंने अनदेखा कर दिया और अपनी गणना में लगे रहे। कभी वे कुछ अंगुलियों पर गिनते, कभी सामने रखे पासे को गुनहगार की जन्मपत्री पर फेंकते और जो नंबर आता, उसे नोट करके फिर जोड़ने-घटाने लगते। मुझे देखते ही उस्ताद गुनहगार चुपचाप एक कोने में बैठ जाने का इशारा किया। चरण स्पर्श करने पर सिर्फ बुदबुदाकर रह गए। मैंने कहा, ‘उस्ताद! अपनी जन्म पत्री सुधरवा रहे हैं क्या? जन्म पत्री सुधरवाने से आप कोई पीएम इन वेटिंग नहीं हो जाएंगे। आप पाकेटमार हैं, पाकेटमार ही रहेंगे।’
मेरी बात सुनते ही उस्ताद गुनहगार बमक (भड़क) उठे, ‘तुम अपनी चोंच बंद ही रखो, तो अच्छा है। हर मामले में टांग अड़ाना अच्छा नहीं होता। कभी-कभी टांग टूट जाया करती है।’ मैं उस्ताद की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गया। मैंने विनीत स्वर में कहा, ‘उस्ताद! कोई खता हुई क्या? मैंने तो सिर्फ परिहास किया था।’ मेरे अढतालिस कैरेटी विनय को देखते हुए उनका लहजा सहज हुआ। वे बोले, ‘चुपचाप कुछ देर बैठो। पंडित जी को अपना काम करने दो।’ मैंने गांधी जी के एक बंदर की तरह अपना मुंह दोनों हाथों से बंद किया और चुपचाप एक कोने में बैठ गया। ज्योतिषाचार्य मुसद्दीलाल पता नहीं क्या ‘अगड़म-बगड़म’ बुदबुदाते रहे और अंगुलियों पर गिनती करते रहे। काफी देर बाद वे गंभीर स्वर में बोले, ‘उस्ताद जी! आपकी कुंडली में राजयोग तो है, लेकिन थोड़ा वक्री है। सातवें घर में बैठे बुध, तीसरे घर में बैठे शुक्र और नवें घर में बैठे चंद्र एक सीध में आते से दिख रहे हैं, लेकिन बुध के थोड़ा-सा तिरछा हो जाने से राजयोग वक्री हो गया है। अगर आपकी कुंडली का बुध सातवें के बजाय छठवें घर में होता, तो सन 2014 का राजयोग आपकी ही किस्मत में लिखा था। न तो पप्पू आपका मुकाबला कर सकता है, न फेंकू। दोनों टुकुर-टुकुर सत्ता सुंदरी को सिर्फ ताकते रह जाते और सत्ता सुंदरी आगे बढ़कर आपके गले में जयमाल डालकर आपका वरण कर लेती।’ मुसद्दीलाल की बात सुनकर उस्ताद गुनहगार घबरा गए। उन्होंने कमरे की बाहर बने किचन की ओर ताकते हुए कहा, ‘क्या पंडित जी! प्रधानमंत्री बनने से पहले ही मेरा जनाजा निकालने का इरादा है क्या? यह जयमाल, भयमाल और वरण-शरण की उपमा से बाज आइए। कहीं इस घर की मालकिन ने सुन लिया, तो देश में ‘राइट टू रिकॉल’ लागू हो या नहीं, इस घर में अवश्य लागू हो जाएगा। अभी कल ही मेरी एक अदद बीवी कह रही थी कि अगर हम औरतों को भी शादी-विवाह के मामले में ‘राइट टू रिकॉल’और ‘राइट टू रिजेक्ट’ जैसे अधिकार मिले होते, तो मैं आपको कबका रिजेक्ट कर चुकी होती। आपको जो कहना हो, सीधे-सीधे कहिए। बातों की जलेबी मत बनाइए।’
गुनहगार की बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। पिटने के डर से ठहाका लगाने के बजाय थोबड़े पर बत्तीस इंची मुस्कान सजा ली। ज्योतिषी मुसद्दीलाल ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘बात दरअसल यह है, उस्ताद जी! दूसरे घर में बैठा राहु आपकी अंतरात्मा पर भारी पड़ रहा है जिसके चलते निकट भविष्य में ‘लातयोग’ की आशंका है। यह लात आपको पार्टी से भी पड़ सकती है और जीवन संगिनी से भी। आपका पांचवें घर में बैठे बृहस्पति की आपके पूर्वजन्म से ही दसवें घर में जमे बैठे केतु से नजर लड़ रही है। केतु और बृहस्पति की यह युगलबंदी आपको किसी परस्त्री से छेड़छाड़ का आरोपी बना सकती है। याचक, अगर तीन सप्ताह तक किसी स्त्री से मिलने परहेज कर सकें, तो संभव है कि वक्री राजयोग सीधा हो जाए। यहां तक कि अपनी व्याहता पत्नी से भी।’ मुसद्दीलाल की बात सुनकर उस्ताद गुनहगार को गुस्सा आ गया, ‘अबे तुझे ज्योतिषी किसने बना दिया है। तू राजयोग से पहले मृत्युयोग की व्यवस्था कर रहा है। तीन सप्ताह क्या, एक भी दिन अगर पत्नी से नहीं मिला, तो वह शक के आधार पर मेरी हत्या कर देगी। प्रधानमंत्री बनने से पहले ही स्वर्गवासी हो जाऊंगा। एक तो उसे मेरे अच्छे चालचलन को लेकर पहले से ही शक है। बात-बात पर ताने मारती है। किसी महिला से बात भी कर लूं, तो तीन दिन तक घर में चूल्हा तक नहीं चलता। तीन सप्ताह गायब रहा, तो मेरी क्या गति-दुर्गति होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। आप सुबह से बहुत भेजा खा चुके, दिमाग ही पंचर कर दिया सुबह-सुबह। आप अपनी दक्षिणा लीजिए और दूसरा शिकार पकड़िये। मुझे नहीं बनना है पीएम-शीएम।’ इतना कहकर उस्ताद गुनहगार ने ग्यारह रुपये मुसद्दीलाल की दायीं हथेली पर रखे और हाथ जोड़ लिए। मैं बैठा-बैठा यह तमाशा देखता रहा।
उस्ताद गुनहगार के घर पहुंचा, तो देखा कि ज्योतिषाचार्य मुसद्दीलाल मेज पर अपना पोथी-पत्रा बिछाए गंभीर चिंतन में डूबे हुए हैं। मुझे देखकर भी उन्होंने अनदेखा कर दिया और अपनी गणना में लगे रहे। कभी वे कुछ अंगुलियों पर गिनते, कभी सामने रखे पासे को गुनहगार की जन्मपत्री पर फेंकते और जो नंबर आता, उसे नोट करके फिर जोड़ने-घटाने लगते। मुझे देखते ही उस्ताद गुनहगार चुपचाप एक कोने में बैठ जाने का इशारा किया। चरण स्पर्श करने पर सिर्फ बुदबुदाकर रह गए। मैंने कहा, ‘उस्ताद! अपनी जन्म पत्री सुधरवा रहे हैं क्या? जन्म पत्री सुधरवाने से आप कोई पीएम इन वेटिंग नहीं हो जाएंगे। आप पाकेटमार हैं, पाकेटमार ही रहेंगे।’
मेरी बात सुनते ही उस्ताद गुनहगार बमक (भड़क) उठे, ‘तुम अपनी चोंच बंद ही रखो, तो अच्छा है। हर मामले में टांग अड़ाना अच्छा नहीं होता। कभी-कभी टांग टूट जाया करती है।’ मैं उस्ताद की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गया। मैंने विनीत स्वर में कहा, ‘उस्ताद! कोई खता हुई क्या? मैंने तो सिर्फ परिहास किया था।’ मेरे अढतालिस कैरेटी विनय को देखते हुए उनका लहजा सहज हुआ। वे बोले, ‘चुपचाप कुछ देर बैठो। पंडित जी को अपना काम करने दो।’ मैंने गांधी जी के एक बंदर की तरह अपना मुंह दोनों हाथों से बंद किया और चुपचाप एक कोने में बैठ गया। ज्योतिषाचार्य मुसद्दीलाल पता नहीं क्या ‘अगड़म-बगड़म’ बुदबुदाते रहे और अंगुलियों पर गिनती करते रहे। काफी देर बाद वे गंभीर स्वर में बोले, ‘उस्ताद जी! आपकी कुंडली में राजयोग तो है, लेकिन थोड़ा वक्री है। सातवें घर में बैठे बुध, तीसरे घर में बैठे शुक्र और नवें घर में बैठे चंद्र एक सीध में आते से दिख रहे हैं, लेकिन बुध के थोड़ा-सा तिरछा हो जाने से राजयोग वक्री हो गया है। अगर आपकी कुंडली का बुध सातवें के बजाय छठवें घर में होता, तो सन 2014 का राजयोग आपकी ही किस्मत में लिखा था। न तो पप्पू आपका मुकाबला कर सकता है, न फेंकू। दोनों टुकुर-टुकुर सत्ता सुंदरी को सिर्फ ताकते रह जाते और सत्ता सुंदरी आगे बढ़कर आपके गले में जयमाल डालकर आपका वरण कर लेती।’ मुसद्दीलाल की बात सुनकर उस्ताद गुनहगार घबरा गए। उन्होंने कमरे की बाहर बने किचन की ओर ताकते हुए कहा, ‘क्या पंडित जी! प्रधानमंत्री बनने से पहले ही मेरा जनाजा निकालने का इरादा है क्या? यह जयमाल, भयमाल और वरण-शरण की उपमा से बाज आइए। कहीं इस घर की मालकिन ने सुन लिया, तो देश में ‘राइट टू रिकॉल’ लागू हो या नहीं, इस घर में अवश्य लागू हो जाएगा। अभी कल ही मेरी एक अदद बीवी कह रही थी कि अगर हम औरतों को भी शादी-विवाह के मामले में ‘राइट टू रिकॉल’और ‘राइट टू रिजेक्ट’ जैसे अधिकार मिले होते, तो मैं आपको कबका रिजेक्ट कर चुकी होती। आपको जो कहना हो, सीधे-सीधे कहिए। बातों की जलेबी मत बनाइए।’
गुनहगार की बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। पिटने के डर से ठहाका लगाने के बजाय थोबड़े पर बत्तीस इंची मुस्कान सजा ली। ज्योतिषी मुसद्दीलाल ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘बात दरअसल यह है, उस्ताद जी! दूसरे घर में बैठा राहु आपकी अंतरात्मा पर भारी पड़ रहा है जिसके चलते निकट भविष्य में ‘लातयोग’ की आशंका है। यह लात आपको पार्टी से भी पड़ सकती है और जीवन संगिनी से भी। आपका पांचवें घर में बैठे बृहस्पति की आपके पूर्वजन्म से ही दसवें घर में जमे बैठे केतु से नजर लड़ रही है। केतु और बृहस्पति की यह युगलबंदी आपको किसी परस्त्री से छेड़छाड़ का आरोपी बना सकती है। याचक, अगर तीन सप्ताह तक किसी स्त्री से मिलने परहेज कर सकें, तो संभव है कि वक्री राजयोग सीधा हो जाए। यहां तक कि अपनी व्याहता पत्नी से भी।’ मुसद्दीलाल की बात सुनकर उस्ताद गुनहगार को गुस्सा आ गया, ‘अबे तुझे ज्योतिषी किसने बना दिया है। तू राजयोग से पहले मृत्युयोग की व्यवस्था कर रहा है। तीन सप्ताह क्या, एक भी दिन अगर पत्नी से नहीं मिला, तो वह शक के आधार पर मेरी हत्या कर देगी। प्रधानमंत्री बनने से पहले ही स्वर्गवासी हो जाऊंगा। एक तो उसे मेरे अच्छे चालचलन को लेकर पहले से ही शक है। बात-बात पर ताने मारती है। किसी महिला से बात भी कर लूं, तो तीन दिन तक घर में चूल्हा तक नहीं चलता। तीन सप्ताह गायब रहा, तो मेरी क्या गति-दुर्गति होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। आप सुबह से बहुत भेजा खा चुके, दिमाग ही पंचर कर दिया सुबह-सुबह। आप अपनी दक्षिणा लीजिए और दूसरा शिकार पकड़िये। मुझे नहीं बनना है पीएम-शीएम।’ इतना कहकर उस्ताद गुनहगार ने ग्यारह रुपये मुसद्दीलाल की दायीं हथेली पर रखे और हाथ जोड़ लिए। मैं बैठा-बैठा यह तमाशा देखता रहा।
Waah ...Jabardast vyangy ...
ReplyDeleteमेरे अढतालिस कैरेटी विनय को देखते हुए उनका लहजा सहज हुआ। Mishra ji ye kya kuch naye tarah ki vinay ki janch ki kasauti hai hehehe :) :)
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